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Dr. Vijai Shanker's Blog (202)

शिक्षिका , प्रथम और अंतिम ( लघु - कथा ) - डॉo विजय शंकर

माँ बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है।
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और पत्नि , पति की अंतिम शिक्षिका होती है।
.
.
क्योंकि माँ बच्चे को जो सिखाती है वो वह कभी भूलता नहीं।
और पत्नि जो सिखाती है , पति वह भूल सकता नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on January 13, 2016 at 11:20am — 11 Comments

दानव शिक्षा ( लघु-कथा ) : डॉo विजय शंकर

दानव गुरु ने अपने शिष्यों को गुरु-मन्त्र दिया : स्वर्ग में सेवा करने के बजाय नर्क में शासन करना अधिक अच्छा होता है।
एक जिज्ञासु शिष्य ने एक गम्भीर प्रश्न किया : पर गुरु जी , यह तो धरती स्वयं ही स्वर्ग जैसी है तो हम कहा जाएँ ?
दानव गुरु ने तुरंत उत्तर दिया : धरती को नर्क बना दें और उस पर शासन करें।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2016 at 9:30am — 8 Comments

जनतंत्र में जयकार की जय - डॉo विजय शंकर

कोई ये दावा कर के बैठा है ,

कोई वो दावा करके बैठा है ,

कहाँ रह गए गरीबी मिटाने वाले ,

सबसे आगे तो वो निकला

जो रोटी रोटी पे अपनी तस्वीर

चिपका के बैठा है।

क्या बात है ,

हर बात में तेरी जय ,

हर खुशी में तेरी जय ,

हर गमी में तेरी जय ,

फसल अच्छी तो तेरी जय ,

पड़े सूखा तो तेरी जय ,

हर आपदा में जय ,

जय , सिर्फ तेरी जय ,

खाए तो तेरी जय ,

भूखा हो तो तेरी जय ,

जिए तो तेरी जय

मरे तो तेरी जय ,

जिंदगी रहे या जाए… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 5, 2015 at 10:42am — 11 Comments

दुनियाँ क्या से क्या हो गई-- डॉo विजय शंकर।

दुनियाँ,क्या से क्या
हो गई,
रफ़्तार, हवा से तेज
हो गई ,
जिंदगी, बस एक रेस
हो गई ,
मेहबूब की बातें,
मेहबूब से बातें ,
ग़ज़ल न जाने कहाँ ग़ुम
हो गई,
इश्क न जाने कहाँ खो गया
अफेयर का ज़माना हो गया ,
चलते हैं ,
बदलते हैं ,
कितने फेयर होते हैं ,
जफ़ा को अब कोई रोता नहीं ,
जिक्रे वफ़ा अब कहीं होता नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2015 at 10:31am — 20 Comments

क्षणिकायें - 7 --- डॉo विजय शंकर

1. फूल जानता है
कितनी है जिंदगी ,
फिर भी खिलता है ,
तो मुस्कुराता है ,
हँसता है ,
खुशियाँ बिखेरता है।

2. पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ तो
रुक पाते नहीं ..........

3. क्या फितरत है
तुम्हारी
हमें छोड़ गए और
अपना
न जाने क्या क्या
हमारे पास छोड़ गए ……

4. सादगी भी
अजीब चीज़ है
कितने रंगीन
सपने दिखा देती है ………

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2015 at 9:55am — 10 Comments

एक लघु साहित्यिक - संस्मरण --- डॉ o विजय शंकर

साहित्य और हम , साहित्य और स्वयं हम। सोंचें तो कितने जुड़े हैं साहित्य से हम। कितना प्रभाव डालता है साहित्य हम पर , कितना हम दे पाते हैं उसे , वापस।

कथा-कहानी साहित्य की मेरी जीवन यात्रा " पराग " से शुरू हई थी , पचास के दशक के आख़िरी कुछ वर्षों से , नई मुद्रा का प्रचलन 01 अप्रेल 1957 से शुरू हुआ था।नैये पैसे , न जाने कैसे मुझे आज भी याद है , पराग काफी समय तक चालीस पैसे ( नैये पैसे ) में आती थी लेकिन काफी बड़ी और सुन्दर पत्रिका होती थी , मुझे यत्र - तत्र कुछ-कुछ याद है , शायद सबसे अधिक छोटू… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 15, 2015 at 12:00pm — 11 Comments

हँसिये मुस्कुराइये --- डॉo विजय शंकर

बीवी ने किचेन के सामान का पर्चा दिया

मात्रा गिनी उन्होंने और खारिज कर दिया ||



बोले बीवी से इसमें वज्न और बढ़ाइये

वो बोलीं पर्स देखिये सामान ले आइये ॥



आटा दाल चावल वजन के हिसाब से लाइए

मसाले हलके पैकेट स्वाद में तेज लाइए ||



बोले काफ़िया नहीं मिल रहा काफ़िया मिलाइये

वो बोलीं काफ़िया छोड़िये आप कॉफी ले आइये ||



मात्रा और काफिये से गृहस्थी नहीं चलती

नून औ तेल से चलती है, उसी से चलाइये ||



गृहस्थी किचेन के कुछ उसूल हुआ… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 13, 2015 at 9:30am — 12 Comments

शिक्षा का महत्त्व --- डॉo विजय शंकर

"यार , शिक्षा , आई मीन , एजुकेशन , है बड़ी इम्पॉर्टेंट चीज़।"
"अच्छा तुझे भी टीचर्स डे पर ही शिक्षा याद आ रही है "
"हाँ यार , गागर में सागर भर देती है , सागर से मोती निकालना सिखा देती है। "
"ठीक कहते हो यार, पर लगता नहीं यार कि हमारे यहां तो लोग पढ़ कर या तो सागर पार चले जाते हैं ,
या फिर इस पार रेत माफिया जैसे बन कर रह जाते हैं। "
"तुम्हारा मतलब सागर में उतरता कोई नहीं। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 11:30am — 6 Comments

न्यूज़ (लघुकथा) - डॉo विजय शंकर

" अरे यार ये टीo वीo चैनेल वाले भी बस क्या क्या दिखाते रहते हैं , हफ़्तों - महीनों। कभी किसी बाबा को , कभी किसी स्वामिनी को या फिर पारिवारिक रंजिशें।

बस यही देश की न्यूज़ रह गई है ? "

" उनकीं नज़र में यही न्यूज़ है , वो बचपन में पढ़े थे न , कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है , किसी बड़े खबरची ने कहा है।"

" पता नहीं , यार , हम तो कभी कुत्ते को काटे नहीं , वो हमारे सामने काट के दिखाता तो पता चलता , उसे भी और हमें भी। "…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 3, 2015 at 11:00am — 23 Comments

हम क्या कर रहे हैं -- डॉo विजय शंकर

देश बड़ा है , महान है ,

कहाँ है ,

हर एक तो अपने परिवेश

से परेशाँ है ,

सब अपनी अपनी पहचान

बता रहे हैं ,

दूसरे का अस्तित्व ही

नकार रहें हैं ,

स्वयं को खुद ढूंढ

नहीं पा रहे हैं ,

न अपने को समझा

पा रहे हैं ,

न दूसरे को समझा

पा रहे हैं ,

भटके हुए दूसरे को

रास्ता दिखा रहे हैं ,

कैसे कैसे टुकड़ों में

बँट रहे हैं ,

टुकड़ा टुकड़ा

लड़ा रहे हैं ,

कह रहे हैं हम

देश बना रहे हैं ॥



मौलिक एवं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 9:26am — 8 Comments

कलयुग हैं , कलियुगी होना चाहिए ---डॉo विजय शंकर

आदमी को समय के साथ चलना चाहिए

कलयुग में हैं तो कलियुगी होना चाहिये ॥

चालाकियां होश्यारियां हुनर सब अपने लिए हैं

काम दूसरे का हो तो मासूम बन जाना चाहिए ॥

अपने सब काम क़ानून को ताख पर रख कर कर लें

दूसरे को सारे नियम क़ानून बताना चाहिए ॥

बात किसी की कभी काटनी नहीं चाहिए

काम किसी का भी हो करना नहीं चाहिए ॥

कहना किसी का भी हो मोड़ना नहीं चाहिए

तिनका किसी के लिए भी तोड़ना नही चाहिए ॥

आदमी को समय के साथ साथ चलना चाहिए

कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2015 at 8:30am — 16 Comments

कैसे कैसे बिकता है आदमी -- डॉo विजय शंकर

आदमी की कीमत समझता है आदमी

किस किस भाव देखिये बिकता है आदमी ॥



जमीर कीमती है जानता है आदमी

तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥



जब चाहे जहां चाहे खरीद ले कोई

हर जगह हर वक़्त खूब बिकता है आदमी ॥



रिश्ते - दोस्ती में सब देखता है आदमी

बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी ॥



खरीदार होना चाहिए देशी हो विदेशी

जानवर से भी सस्ते में बिकता है आदमी ॥



गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी

अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 10:30am — 16 Comments

हक़ की लड़ाई (लघुकथा)- डॉo विजय शंकर

दोनों बुराई के लिये लड़ रहे थे, एक दूसरे पर खूब कीचड़ उछाल रहे थे ।
देखने वालों ने समझा दोनों बुराई मिटा के रहेंगे ,
जब कि वो दोनों बुराई पर अपना अपना हक़ जता रहे थे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 23, 2015 at 3:00am — 27 Comments

पहुँच-मार्ग --- डाo विजय शंकर

विद्यालय का भवन बन कर तैयार था, आज उसके अधिग्रहण की कार्यवाही हो रही थी , सब लोग नवनिर्मित-भवन के राउंड पर थे। प्राचार्य जी, दबी जबान बड़े इंजीनियर साहब को कमियां गिनवा रहे थे , बाथरूम में फर्श पर पानी रुक रहा है, सर, बहुत सी खिड़कियों के दरवाजे बंद ही नहीं हो रहें हैं, और सर.…… , सबसे बड़ी बात, मुख्य सड़क से भवन तक पहुंच- मार्ग तो अभी बना ही नहीं , उसे जरूर बनवा दीजिये सर.

" अरे आप तो व्यर्थ परेशान हो रहे हैं , प्रिंसिपल साहब, पहुंच- मार्ग तो स्टूडेंट्स के चलने से अपने आप बन जाएगा , इतना… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 16, 2015 at 1:00am — 10 Comments

ऊंचे चमकदार आदर्श -- डॉo विजय शंकर

ऊंचे आदर्श ,

बहुत ऊंचे , पहुँच से ऊपर ,

झाड़फानूस की तरफ ,

रौशन भी होते हैं , चमक के साथ ,

बिजली आती रहे तब ,

और हैं भी केवल उन घरों में

जो इतने बड़े हैं कि

झाड़फानूस लगवा सके।

पर वे भी बस उसकी चमक से

उपकृत , चमत्कृत होते रहते हैं ,

अधिकांशतः किसी के आने पर

उसे रौशन करते हैं , दिखाने के लिए।

सामान्यतः तो आदमी मामूली चप्पलों में ही

चलता है , उसका जीवन तो उन्हीं में बीतता हैं ।

उनमें से बहुतों ने तो झाड़फानूस देखे भी नहीं हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 23, 2015 at 1:20pm — 8 Comments

बुराई बुराइयै का काट डालत है -- डॉo विजय शंकर

- चच्चा , ई का वखत आय गयो , बेईमान बेईमानै की शिकायत कर रहा है , कहत है कि इका सजा देयो । चोरै चोर का पकड़ावाय देही का ?

हम तो यही जाने रहे कि सबै मौसेरे भाई होत हैं।

- अब का कींन जाए , जब सब भले मनई मुह बांधे बैठे रहिये , सबै बुराईयन पे आँखें मूंदें रहिये , कान बंद किये रहिये तब और का होई, यही होई , बुराइयै बुराई का मार डाली , चोरै चोर का पकड़वाए देई। …………बुराई फलत नाइ है बचवा, ज्यादा दिन चलत नाई है, नाही तो दूनियाँ तो कब्बै खत्म हुई गई होत.

अच्छाई अच्छाई का कब्बो…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2015 at 3:32pm — 4 Comments

सोशल-सिक्योरिटी -- डॉo विजय शंकर

  

  बच्चा करीब छह महीने का हुआ था ,लेटे - लेटे इधर उधर देखता और रोने लगता।  माँ - बाप उसे बहलाने की कोशिश करते पर वह चुप नहीं होता।  परेशान माँ - बाप उसे डॉक्टर के पास ले गए।  डॉक्टर ने उसे देखा और कहा, बच्चा बिलकुल ठीक है , इसे स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई समस्या नहीं है।  पर बच्चा था कि शांत ही नहीं होता , जो खिलौना दिया जाता उसे फेंक देता, गुस्सा दिखाता और रोने रोने को हो जाता। 



   परेशान माँ - बाप उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले गये. उसने परीक्षण किया, कहा बच्चा बिलकुल…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2015 at 1:41pm — 22 Comments

क्षणिकाएँ --6 -डॉo विजय शकर

इतने कांटे
कि उनसे बचते-बचते
गुलाब क्या
हर फूल से हम
दूर हो गए .......... 1.

पेड़ कहीं जाते नहीं
फल पक जाएँ
तो रुक पाते नहीं....... 2 .

तुम क्या गये
मेरी तन्हाई
भी ले गये .......…… 3.

और यह भी , यूँ ही,

उनका लिखा शेर खूब चला, खूब चला, खूब चला,
चलना ही था , ट्रक के पीछे जो लिखा था ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on June 9, 2015 at 9:30pm — 23 Comments

पहचान - डॉo विजय शंकर

  हीरा - क्या ज़माना आ गया , लोगों को बताना पड़ता है , मैं हीरा हूँ , हीरा। बड़ा महंगा होता ही हीरा।

          मेरी चमक दूर दूर तक जाती है. कभी राज के राज तबाह हो जाते थे हमारे लिए.

          एक नज़र हमें देख कर लोग अपने नसीब को सराहते थे।

         रानी - राजकुमारियों को हमारे हार ही सुहाते थे।

         ( आह भर कर ) अब तो जैसे कोई हमें चाहता ही नहीं। पहचानता भी नहीं.    

   कोयला - हाँ भाई , बात तो सही है, पर मेरे भाई , वक़्त वक़्त की बात होती है,…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 5, 2015 at 7:30pm — 18 Comments

जागरूकता -- डॉo विजय शंकर

वह ऑटो से उतरा, पैसे दिए और जल्दी से पीछे हट गया ,उसे डर था कि अभी ऑटो खूब ढेर सा धुंआ उसके सामने उगल कर चला जाएगा , पर ऐसा हुआ नहीं , ऑटो लहरा कर निकल गया, उसने गौर से देखा ऑटो सी एन जी वाला था। चारों तरफ फैले धुएं धुएं से उसे घुटन सी हो रही थी. जेब से कार्ड निकाल कर उसने पास खड़े कुछ एडजूकेटेड लोगों की और बढ़ कर पता पूछा , उन्होंने बड़ी शालीनता से उसी समझाया, वो जो ऊपर पांच चिमनियां देख रहें हैं , वो जिनसे काला काला धुअाँ निकल रहा है, हाँ, वही. उसने सर उठा कर देखा दूर दूर तक आसमान स्लेटी…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 3, 2015 at 3:00pm — 20 Comments

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