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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (460)

एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

*

जो नदी की  आस  लेकर जी रहे हैं

एक अनबुझ प्यास लेकर जी रहे हैं।१।

*

है बहुत धोखा सभी की साँस में यूँ

परकटे  विश्वास  लेकर  जी  रहे हैं।२।

*

जो पुरोधा  हैं  यहाँ  स्वाधीनता के

साथ अनगिन दास लेकर जी रहे हैं।३।

*

भोग में डूबे स्वयम् उपदेश देकर

कौन ये सन्यास लेकर जी रहे हैं।४।

*

जिन्दगी उन को लुभा ले हर्ष देकर

जो मरण की आस लेकर जी रहे हैं।५।

*

एक दिन तो ईश को सुनना पड़ेगा

जीभ में अरदास लेकर जी रहे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2022 at 10:50am — 11 Comments

केवल बहाना खोज के जलती हैं बस्तियाँ - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

सीमित से दायरे  में  न पल भर उड़ान हो

उनको भी अब तो एक बड़ा आसमान हो।१।

*

दुत्कार अब न तुम लिखो हिस्से अनाथ के

राजन सभी के नाथ हो सब को समान हो।२।

*

केवल हों कर्म ध्यान में नित मान के लिए

इस को  नहीं  जरूरी  बड़ा  खानदान हो।३।

*

मन्जिल की दूरियों को अभी पाटना इन्हें

इतनी अधिक न पाँव के हिस्से थकान हो।४।

*

जनता को खुद ही चाहिए उनको न ताज दे

जिस की भी लोकराज में कड़वी जबान हो।५।

*

हिस्से में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2022 at 7:00am — 4 Comments

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खंडित करे न देश को तलवार मजहबी

आँगन खड़ी न कीजिए दीवार मजहबी।।

*

मन्शा उन्हीं की देश को हर बार तोड़ना

करते रहे हैं लोग  जो  व्यापार मजहबी।।

*

जीवन न जाने कितने ही बर्बाद कर रहा

इन्सानियत से  दूर  हो  सन्सार मजहबी।।

*

माटी का मोल प्रेम की भाषा भी साथ हो

इन के बिना तो व्यर्थ है सँस्कार मजहबी।।

*

समरसता ज्ञान और न आपस का मेल है

बच्चों को जो भी देते हैं आधार मजहबी।।

*

करती नहीं है धर्म का कोई भी काम…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 22, 2022 at 10:00am — 2 Comments

जलाया घर अमावस ने -- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

*

नहीं ऐसा स्वयं यूँ ही सभी को दीप जलते हैं

दुआ माँ की फलित होती तभी तो दीप जलते हैं।।

*

तमस की रात कितनी हो ये सूरज ही करेगा तय

मगर सब को उजाला हो इसी को दीप जलते हैं।।

*

हवा से यारियाँ उन की उसी से साँस चलती है

सदा तूफान से लड़कर बली हो दीप जलते हैं।।

*

तुम्हारे जन्म से यौवन खुशी को जो लड़े तम से

बुढ़ापे में तके पथ को वही दो दीप जलते हैं।।

*

जलाया घर अमावस ने है लेकर नाम उनका ही

कहेगा कौन अब ऐसा सभी को दीप जलते…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2022 at 5:21am — No Comments

पिता - दोहे

दोहे -पिता

*****

पिता एक उम्मीद सह, हैं जीवन की आस

वो हिम्मत परिवार की, हैं मन का विश्वास।१।

*

जीवन जग में तात ही, केवल ऐसा गाँव

सघन शीत जो धूप दें, और धूप में छाँव।२।

*

जो करते सुत को सरल, जीवन की हर राह

अनुभव से अर्जित हमें, देकर सीख अथाह।२।

*

डाँट-डपट करते भले, भोर, दिवस या रात

सम्बल सबके पर रहे, कठिन समय में तात।४।

*

नित सुख में परिवार हो, होती मन में चाह

हँसते -हँसते झेलते, इस को पीर अथाह।५।

*

पत्थर से व्यवहार…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2022 at 3:53pm — 4 Comments

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत है मन में एक ही दुनिया सयानी हो

अब रक्त डूबी  इस  में  न कोई कहानी हो।।

*

होता अगर  हो  प्यार  का  आबाद हर नगर

हर बात उसकी हम को भी यूँ आसमानी हो।।

*

भटको न आस पास  के  रंगीं नजारे देख

पथ में रखो निगाह जो ठोकर न खानी हो।।

*

हमने उन्हें खुदा का जो दर्जा दिया है फिर

कोई सजा अगर हो तो उन की जुबानी हो।।

*

किस्मत बड़ी है मान ले दामन में गर गिरे

मोती सा आबदार जो आँखों का पानी हो

*

दिल है जवाँ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2022 at 7:14am — No Comments

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं-(गजल)

आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा

अब एक दूसरे  को  चिढ़ाया न जाएगा।।

*

यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है

वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।

*

मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं

आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।

*

बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा

सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।

*

संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं

कोई भी भेद-भाव  हो  गाया न जाएगा।।

*

होगी समान न्याय की जब रीत देश में

तब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 14, 2022 at 6:18pm — 2 Comments

गुण्डे समूची फौज ले थाने पे आ गये -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"



२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

बाबर से यार  जो  भी बुलाने पे आ गये

इतिहास लिख के झूठ छुपाने पे आ गये।१।

*

अनबन से घर की गैर जो न्योते गये कभी

अपनों के बाद खुद भी निशाने पे आ गये।२।

*

पुरखों को अपने भूल के अपनाते गैर को

ये  कौन  लोग  देश  जलाने  पे  आ  गये।३।

*

कानून कैसे आज भी पहले सा है विवश

गुण्डे समूची  फौज  ले  थाने  पे आ गये।४।

*

गुजरा वो दौर बम से जो दहले था देश पर

पत्थर से  आज  शान्ति  उड़ाने  पे जा गये।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2022 at 9:30pm — 4 Comments

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

जो व्यक्ति जग में जन्म से अपना इमाम हो

बोलो किसी भी और का क्योंकर ग़ुलाम हो।।

*

इतनी न आपने देश में फैले अशान्ति फिर

घर में सभी के आज भी पौदा जो राम हो।।

*

चाहे किसी भी कौम से नाता हो फर्क क्या

जाफर न  घर  में  आप के, पैदा कलाम हो।।

*

दण्डित किया ही जाएगा गद्दार देश में

अब्दुल गणेश जोन या करतार नाम हो।।

*

छोड़ो ये खानदान ये मजहब ये जातियाँ

सबकी वतन में देखिए पहचान काम हो।।

*

नफरत लिए न भोर के बैठी हो…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2022 at 9:58am — 2 Comments

बातें जो वामियान की थमती नहीं कहीं - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

खिचवाते भीत प्रीत की ऊँची नहीं कहीं

मीनारें नफरतों  की  ये ढहती नहीं कहीं।।

*

जकड़ा है राजनीति ने मकड़ी के जाल सा

इतिहास खोद  बस्तियाँ  मिलती नहीं कहीं।।

*

होली में कब वो  रंग  में डूबा था पूछ मत

अब तो मिठास ईद की दिखती नहीं कहीं।।

*

मजहब के फेर भूल के भटके हैं इस तरह

आये हैं ऐसी  राह  जो  खुलती नहीं कहीं।।

*

मन्दिर के भग्नभाग का इतिहास क्या कहें

बातें जो  वामियान  की  थमती नहीं कहीं।।

*

बाबर ढहाया तोड़ के…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2022 at 12:55pm — 2 Comments

खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

*

कैसे कैसे  सर  बचाने  में  लगे  हैं  लोग  सब

क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले

नींव के  पत्थर  बचाने  में  लगे हैं लोग सब।।

*

लहलहाते  खेत  मेटे  सेज  के  विस्तार को

आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।

*

जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ

कैसे कह दें  घर  बचाने  में  लगे  हैं लोग सब।।

*

हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर

अपने भीतर डर  बचाने  में  लगे हैं…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं

टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।

*

कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी

जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।

*

कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ

अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।

*

उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है

अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।

*

उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने

देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।

*

उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments

जब है मंदिर और मस्जिद में वही - लक्ष्मण धामी " मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२

सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए

दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।

*

देशहित में क्या भला है आप भी

कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।

*

जब है मंदिर और मस्जिद में वही

आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।

*

सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया

क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।

*

धर्म  माटी  को  समझकर  देश  की

आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।

*

चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का

आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।

*

फिर उठाना दूसरे की आप सौं

पहले पूरा इक वचन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments

मातृ दिवस पर गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी

मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।

*

चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के

समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।

*

माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर

नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।

*

गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ

मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।

*

पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक

लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।

*

चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments

तन-मन के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

तन-मन के दोहे

-------------------

चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार

जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।

*

सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर

जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।

*

तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत

कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।

*

बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार

केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।

*

तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन

जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।

*

विषय मुक्त जो मन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments

रक्त से भीगा है आगन आज तक भी -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

2122-2122-2122

झूठ का  सन्सार  करना  चाहता है

सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।

*

जो न रखता वास्ता अपनो से कोई

अन्य का  आभार  करना चाहता है।२।

*

देह को पतवार करके आदमी अब

हर नदी को  पार  करना चाहता है।३।

*

भाव गुणना आज भी आया नहीं पर

शब्द  का  व्यापार  करना  चाहता है।४।

*

भीड़ से लगने  लगा  अब डर बहुत

डर को भी हथियार करना चाहता है।५।

*

तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको

अब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 11:00am — 9 Comments

कहता हूँ तुझसे जन्मों का नाता है ओबीओ

गजल

221/2121/1221/212

*

लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ

कारण यही है सब  को  लुभाता  है ओबीओ।।

*

जुड़कर  हुआ  हूँ  धन्य  निखर  लेखनी गयी

परिवार  जैसा   धर्म   निभाता   है  ओबीओ।।

*

कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा

लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।

*

अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा

चाहत ये सब के  मन  में  जगाता  है ओबीओ।।

*

वर्धन हमारा  हौसला  करने  को साथ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 8:20am — 16 Comments

आभार - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (दोहे)

मात -पिता ने जन्म दे, पाला, किया दुलार।

प्रथम करें हम इसलिए, उनका ही आभार।।

*

गुरुओं ने जो  ज्ञान दे, जीवन दिया सँवार।

चाहे जितना भी करें, कम पड़ता आभार।।

*

सखा, सहेली, मीत जो, सुख दुख में तैयार।

उनका भी तो हम करें, नित थोड़ा आभार।।

**

आस - पड़ौसी जो करें, प्रेम भरा व्यवहार।

हक से उनका भी करें, चलो आज आभार।।

*

सदा चिकित्सक दे दवा, करते हैं उपचार।

जीवन रक्षण के लिए, उनका भी आभार।।

*

अन्य सभी जो  भी  हुए, जीवन  में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2022 at 10:00pm — 4 Comments

वानिकी के दोहे

सदा कीजिए वानिकी, मिलती इससे छाँव।

नगर प्रदूषण से  रहित, प्यारा  लगता गाँव।।

*

जन जीवन है पेड़ से, नहीं पेड़ को काट।

पेड़ बिना है यह  धरा, बस  रेतीला घाट।।

*

अपने दम पर वानिकी, जीवित रखे पहाड़।

बची नहीं  जो  वानिकी, धरती  बने उजाड़।।

*

इन से ही सुन्दर लगे, इस धरती का रूप।

पेड़ बहुत हैं  काम  के, हरते  तपती धूप।।

*

वन सिखलाते हैं सदा, जीवन की हर रीत।

पुरखों ने सच ही कहा, इनको अपना मीत।।

*

पर्वत पथ तट जो रहे, लम्बी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2022 at 10:00pm — 3 Comments

होली  की  हर रीत (दोह) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अहंकार की हार हो, जीते नित्य विनीत।

इतना ही  संदेश  दे, होली  की  हर रीत।१।

*

दहन होलिका का करो, होली के त्योहार।

तजकर ही होली मने, पाखण्डी व्यवहार।२।

*

रंग अनोखे  थाल  भर, हर  घर गाती फाग।

होली कहती मिल गले, भेद भाव को त्याग।३।

*

कहकर बाँटें रंग ढब, मत रख खाली हाथ।

निखरा लाल पलास तो, सेमल आया साथ।४।

*

होली सब को पर्व हो, चाहे बिलकुल एक।

मन में उठी उमंग  जो, उस के अर्थ अनेक।५।

*

चाहे सूखी खेलना, या फिर पानी डाल।

पर्व…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2022 at 10:27pm — 2 Comments

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