२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
कैसे कैसे सर बचाने में लगे हैं लोग सब
क्या समझ खन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
एक हम हैं जो शिखर पर जान देने पर तुले
नींव के पत्थर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
लहलहाते खेत मेटे सेज के विस्तार को
आजकल बन्जर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
जिसको देखो आग ही की बात करता है यहाँ
कैसे कह दें घर बचाने में लगे हैं लोग सब।।
*
हैं सुरक्षित सोचकर वो भीड़ में शामिल मगर
अपने भीतर डर बचाने में लगे हैं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2022 at 12:58pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
मजहब की नफरतों का ये मन्जर नया नहीं
टोपी तिलक के बीच का अन्तर नया नहीं।१।
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कितनों को कोसें और कहें जा निकल अभी
जाफर विभीषणों से भरा घर नया नहीं।२।
*
कितना बचेंगे साध के चुप्पी भला यहाँ
अपनों की आस्तीन का खन्जर नया नहीं।३।
*
उन की जुबाँ पे आज भी बँटवारा बैठा है
अपनों से पायी पीर का सागर नया नहीं।४।
*
उन्माद नाम धर्म के लिख राजनीति ने
देना तो देश दुनिया को उत्तर नया नहीं।५।
*
उलझे हुओं की सोच में तारण उसी से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2022 at 9:39pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२
सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए
दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।
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देशहित में क्या भला है आप भी
कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।
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जब है मंदिर और मस्जिद में वही
आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।
*
सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया
क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।
*
धर्म माटी को समझकर देश की
आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।
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चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का
आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।
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फिर उठाना दूसरे की आप सौं
पहले पूरा इक वचन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2022 at 10:45pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी
मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।
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चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के
समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।
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माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर
नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।
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गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।
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पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक
लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।
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चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments
तन-मन के दोहे
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चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार
जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।
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सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर
जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।
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तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत
कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।
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बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार
केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।
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तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन
जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।
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विषय मुक्त जो मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments
2122-2122-2122
झूठ का सन्सार करना चाहता है
सत्य पर नित वार करना चाहता है।१।
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जो न रखता वास्ता अपनो से कोई
अन्य का आभार करना चाहता है।२।
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देह को पतवार करके आदमी अब
हर नदी को पार करना चाहता है।३।
*
भाव गुणना आज भी आया नहीं पर
शब्द का व्यापार करना चाहता है।४।
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भीड़ से लगने लगा अब डर बहुत
डर को भी हथियार करना चाहता है।५।
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तोड़ देता था कभी दिखते ही उसको
अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2022 at 11:00am — 9 Comments
गजल
221/2121/1221/212
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लेखन का खूब गुण जो सिखाता है ओबीओ
कारण यही है सब को लुभाता है ओबीओ।।
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जुड़कर हुआ हूँ धन्य निखर लेखनी गयी
परिवार जैसा धर्म निभाता है ओबीओ।।
*
कमियों बता के दूर करें कैसे यह सिखा
लेखक सुगढ़ हमें यूँ बनाता है ओबीओ।।
*
अच्छा स्वयं तो लिखना है औरों को भी सिखा
चाहत ये सब के मन में जगाता है ओबीओ।।
*
वर्धन हमारा हौसला करने को साथ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2022 at 8:20am — 16 Comments
मात -पिता ने जन्म दे, पाला, किया दुलार।
प्रथम करें हम इसलिए, उनका ही आभार।।
*
गुरुओं ने जो ज्ञान दे, जीवन दिया सँवार।
चाहे जितना भी करें, कम पड़ता आभार।।
*
सखा, सहेली, मीत जो, सुख दुख में तैयार।
उनका भी तो हम करें, नित थोड़ा आभार।।
**
आस - पड़ौसी जो करें, प्रेम भरा व्यवहार।
हक से उनका भी करें, चलो आज आभार।।
*
सदा चिकित्सक दे दवा, करते हैं उपचार।
जीवन रक्षण के लिए, उनका भी आभार।।
*
अन्य सभी जो भी हुए, जीवन में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2022 at 10:00pm — 4 Comments
सदा कीजिए वानिकी, मिलती इससे छाँव।
नगर प्रदूषण से रहित, प्यारा लगता गाँव।।
*
जन जीवन है पेड़ से, नहीं पेड़ को काट।
पेड़ बिना है यह धरा, बस रेतीला घाट।।
*
अपने दम पर वानिकी, जीवित रखे पहाड़।
बची नहीं जो वानिकी, धरती बने उजाड़।।
*
इन से ही सुन्दर लगे, इस धरती का रूप।
पेड़ बहुत हैं काम के, हरते तपती धूप।।
*
वन सिखलाते हैं सदा, जीवन की हर रीत।
पुरखों ने सच ही कहा, इनको अपना मीत।।
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पर्वत पथ तट जो रहे, लम्बी…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2022 at 10:00pm — 3 Comments
अहंकार की हार हो, जीते नित्य विनीत।
इतना ही संदेश दे, होली की हर रीत।१।
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दहन होलिका का करो, होली के त्योहार।
तजकर ही होली मने, पाखण्डी व्यवहार।२।
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रंग अनोखे थाल भर, हर घर गाती फाग।
होली कहती मिल गले, भेद भाव को त्याग।३।
*
कहकर बाँटें रंग ढब, मत रख खाली हाथ।
निखरा लाल पलास तो, सेमल आया साथ।४।
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होली सब को पर्व हो, चाहे बिलकुल एक।
मन में उठी उमंग जो, उस के अर्थ अनेक।५।
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चाहे सूखी खेलना, या फिर पानी डाल।
पर्व…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2022 at 10:27pm — 2 Comments
फैला आँचल है बहुत, लेकिन चोली तंग।
धरा देश की देखिए, लिए अनोखे रंग।।
*
भरें अनोखे रंग नित, जीवन में त्योहार।
तभी सनातन धर्म में, है इनकी भरमार।।
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बहना, माता, सहचरी, बंधु , तात आधार।
भरे अनोखे रंग नित, मीत रूप में प्यार।।
*
बचपन यौवन वृद्धता, चलते संग कुसंग।
नित जीवन देता रहा, हमें अनोखे रंग।।
*
बड़े अनोखे रंग यूँ, रखती धरती पास।
पानी पानी है कहीं, कहीं सिर्फ है प्यास।।
*
विविध अनोखे रंग की, मौसम मौसम धार।
धरती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2022 at 11:54pm — 4 Comments
यह नवयुग की नारी है, सुमन रूप चिंगारी है।।
अबला औ' नादान नहीं अब।
दबी हुई पहचान नहीं अब।।
खुली डायरी का पन्ना है,
बन्द पड़ा दीवान नहीं अब।।
अंतस स्वाभिमान भरा है, लिए नहीं लाचारी है।।
यह नवयुग की नारी है.....
संघर्षों में तप कर निखरी।
पैमानों पर चोखी उतरी।।*
जितना इसको गया दबाया,
उतना बढ़चढ़ यह तो उभरी।।*
हल्के में मत इस को लो, छिपी हुई दोधारी है।।
यह नवयुग की नारी है.....
इसका साहस जब नभ गाता।
करता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2022 at 8:54pm — 8 Comments
देगा हल क्या ये भला, स्वयं समस्या युद्ध
दम्भी इस को ओढ़ता, तजता सदा प्रबुद्ध।१।
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युद्ध न लाता भोर है, यह दे केवल साँझ
इस के हर परिणाम से, होती धरती बाँझ।२।
*
सज्जन टाले युद्ध को, दुर्जन दे सत्कार
जो झेले वह जानता, कैसी इसकी मार।३।
*
लोग समझते शांति की, यह रचता बुनियाद
लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।४।
*
इससे बढ़ता नित्य ही, दुख का पारावार
जाने अन्तिम युद्ध कब, होगा इस संसार।५।
*
सदा प्रगति शान्ति का, युद्ध बना अवरोध
लेकिन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2022 at 2:36pm — No Comments
भीम, महेश्वर, शम्भवे, शंकर, भोलेनाथ
गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।
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गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश
कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।
*
वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति
हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।
*
शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट
भक्तवत्सल, वृषांक उग्र, करते हरण अनिष्ट।४।
*
तारक, परमेश्वर, अनघ, हिरण्यरेता, गणनाथ
शशि को धर शशिधर हुए,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2022 at 12:26am — No Comments
सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर
जाति धर्म के फेर से, मुक्त नहीं जब देश
तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।
*
कत्ल अपहरण रेप की, बलशाली को छूट
है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।
*
चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन
सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।
*
धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग
न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।
*
सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय
दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2022 at 11:00pm — 10 Comments
माघ पूर्णिमा जन्म ले, कहलाए रविदास
जीवन जीकर आम का, बातें की हैं खास।१।
*
देते जीवन भर रहे, नित्य सीख अनमोल
सबके हितकारक रहे, सच है उनके बोल।२।
*
रहो प्रेम से कह गये, जातिवाद को त्याग
जिसमें जले समाज ये, यह तो ऐसी आग।३।
*
दिया नित्य रविदास ने, केवल इतना ज्ञान
छोड़ो पद या जाति को, करो गुणों का मान४।।
*
निर्मल मन भागीरथी, करता कह निष्पाप
जनसाधारण जन्म ले, आप हो गये आप।५।
*
रहे न लालच द्वेष जब, मिटे बैर का भाव
ऐसे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2022 at 3:13am — 6 Comments
शुक्ल पंचमी माघ की, लायी यह संदेश
सजधज साथ बसंत के, बदलेगा परिवेश।।
*
कुहरे की चादर हटा, लगी निखरने धूप
दुल्हन जैसा खिल रहा, अब धरती का रूप।।
*
डाल नये परिधान अब, दिखे नयी हर डाल
हर्षित इस से सज रही, भँवरों की चौपाल।।
*
तरुण हुईं हैं डालियाँ, कोंपल हुई किशोर
उपवन में उल्लास है, अब तो चारो ओर।।
*
गुनगुन भँवरों ने कहे, स्नेह भरे जब बोल
मार ठहाका हँस पड़ी, कलियाँ घूँघट खोल।।
*
नहीं उदासी से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2022 at 9:00am — 8 Comments
मन्थन कर के सिन्धु का, बँटवारे में कन्त
राजनीति को क्यों दिए, बहुत विषैले दन्त।१।
*
दुख को तो विस्तार है, सुख में लगा हलन्त
ऐसी हम से भूल क्या, कुछ तो बोलो कन्त।२।
*
वैसे कुछ तो बाल भी, कहते सत्य भदन्त
मन छोटी सी कोठरी, बातें रखे अनन्त।३।
*
आया है उत्कर्ष का, यहाँ न एक बसन्त
केवल पतझड़ में जिये, यूँ जीवन पर्यन्त।५।
*
सुख तो मुर्दा देह सा, केवल दुख जीवन्त
जाने किस दिन आ स्वयं, ईश करेंगे अन्त।४।
*
कहलाने की होड़ में,ओछे लोग…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2022 at 8:43pm — 2 Comments
ठण्ड कड़ाके की पड़े, सरसर चले समीर।
नित्य शिशिर में सूर्य का, चाहे ताप शरीर।१।
*
दिखे शिशिर में जो नहीं, गजभर दूरी पार।
लगता धरती से हुआ, अम्बर एकाकार।२।
*
धुन्ध लपेटे भोर तो, विरहन जैसी साँझ।
विधवा लगते वृक्ष हैं, धरती लगती बाँझ।३।
*
घना कुहासा ढब घिरे, झरे हवा से नीर।
बदली जैसी भीत भी, धूप न पाये चीर।४।
*
देती है हिम खण्ड सा, शीतलहर अहसास।
चन्दा जैसा दीखता, सूर्य क्षितिज के पास।५।
*
हुए वृक्ष सब काँच से, हिम की ओढ़…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2022 at 7:16am — 4 Comments
आया है जन पर्व जो, मकर संक्रांति आज।
गंगा तट पर सब जुटे, छोड़ सकारे काज।१।
*
आज उत्तरायण हो चले, मकर राशि पर सूर्य।
हर घाट शंखनाद अब, बजता चहुँदिश तूर्य।२।
*
निशा घटे बढ़ते दिवस, बढ़ता सूर्य प्रकाश।
भर देते हैं इस दिवस, कनकौवे आकाश।३।
*
विविध प्रांत, भाषा यहाँ, भारत देश विशाल।
विविध पर्व भी हैं मगर, मनें सनातन चाल।४।
*
गंगा में डुबकी लगा, करते हैं सब स्नान।
करते पाने पुण्य फिर, अन्न धन्न का दान।५।
*
कहो मकर संक्रांत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2022 at 10:39am — 3 Comments
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