For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है ..

सुनी मैंने दिल की जब जब मुझे  रुस्वा कराया है
खुदा तुझको बताकर मुझ से  फिर  सजदा कराया है |
फकत हालात  ही रचते हैं ये  साजिश मेरी खातिर  
कभी तुमसे कभी खुदसे मेरा फासला कराया है |
जिसे सींचा लहू से मेरे अपने  आज उसकी ही
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है |
कभी मेरी कभी तेरी कभी इसकी कभी उसकी
लगा बोली सभी की रूह से धंधा कराया है |
बनाती है, मिटाती है, मिटाकर फिर बनाती…
Continue

Added by Veerendra Jain on May 31, 2011 at 12:27am — No Comments

मुक्तिका : भंग हुआ हर सपना संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :
भंग हुआ हर सपना

संजीव 'सलिल'

*
भंग हुआ हर सपना,
टूट गया हर नपना.

माया जाल में उलझे
भूले माला जपना..

तम में साथ न कोई
किसे कहें हम अपना?

पिंगल-छंद न जाने
किन्तु चाहते छपना..

बर्तन बनने खातिर
पड़ता माटी को तपना..

************

Added by sanjiv verma 'salil' on May 31, 2011 at 12:02am — No Comments

दूर कहीं शोर सुनाई देता है

लिखने, पढ़ने और रोज़मर्रा के कामों सारा दिन निकल जाता है,

दिल करता है की यहीं दिल लगा लूं,

घर वालों की देख रेख करूँ, उनका…
Continue

Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 30, 2011 at 9:30pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
घनाक्षरी छंद

(1)

 

(भ्रूण हत्या)

 

जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,

घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !

 

होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला

इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !

 

पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,

हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !

 

महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,

उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 30, 2011 at 9:20pm — 20 Comments

कविता : - ये स्वप्न नहीं

कविता : - ये स्वप्न नहीं

कहाँ मानव रहे हम
हमारे शहर सारे बन गए वन
भटकता रास्तों में सारा जनगण
सभी संशय में फंस कर बंद तरकश
प्रतीक्षा कर रहे हैं
मर रहे हैं !

नहीं है स्वप्न कोई
और न यथार्थ ही ये
चिंकोटी काटता खुद को
गड़ाता खुद ही पंजे
चमड़ी खुद ही उधेड़ता आप अपनी
मैं खाता खुद ही अपना मांस - टुकड़ा
चिल्लाता फिर रहा हूँ
की हाँ मैं आदमी हूँ !!

Added by Abhinav Arun on May 29, 2011 at 10:57am — 2 Comments

जिंदगी है प्यासी सुधा के लिए..

  जिंदगी है प्यासी सुधा के…
Continue

Added by R N Tiwari on May 28, 2011 at 8:00pm — 5 Comments

अट्टालिका पर अटका हुआ बयान

अट्टालिका पर अटका हुआ बयान

...........................

रतन टाटा ने मुकेश अम्बानी की उस शानदार अट्टालिका पर आश्चर्य व्यक्त किया,जिसमें वह सपरिवार रहते हैं और जिसकी कीमत इतनी है कि दस डिजिट के कैल्कुलेटर में भी न समाये.उन्होंने मुकेश अम्बानी को संवेदनशील बनने की सलाह देते हुए कहा कि अकूत धन सम्पदाधारी लोगों को जनसामान्य के  जीवन स्तर में सुधार के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करना चाहिये.

रतन टाटा बाद में अपने बयान से यह कहते हुए मुकर गए कि उनके कहे को मीडिया ने तोडमरोड कर शरारतपूर्ण अंदाज़ में… Continue

Added by nirmal gupt on May 28, 2011 at 12:48pm — 1 Comment

रात से हमने दोस्ती कर ली

रात  से हमने दोस्ती कर ली

लोग कहते है, दिल्लगी कर ली

 

ये फ़िज़ा बहकी, हवा महकी सी

शाम ने तेरी मुख़बिरी कर ली

 

ये हिज़्र मेरे बस की बात नहीं

लो सजा अपनी मुलतवी कर ली

 

तेरा ख्याल ले के सोये थे

ख्वाब में हमनें रोशनी कर ली

 

जो इल्म आया महोब्बत का 'अमि'

आशिको ने शायरी कर ली                                  ~अमि'अज़ीम'

Added by अमि तेष on May 28, 2011 at 12:13am — No Comments

इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन

कभी महफ़िल हुआ करती थी यहाँ,
अब सब है धुआं-धुआं,
इंतज़ार, अँधेरा और अकेलापन
बसता है अब यहाँ 
किसी की आहट, कोई दस्तक,
किसी का आना, कहाँ होता है अब यहाँ?
शायद इस कुँए में वो मिठास ही नहीं रही  
के कोई प्यासा रुकता यहाँ 
बस बेरंग पर्दों से खेलती है हवा आजकल,
शमा कहाँ जलती है अब यहाँ?
साज़ खामोश ही रहते हैं अक्सर,
मोसिक़ी-ए-ख़ामोशी बजती है अब यहाँ 
सब कद्रदान…
Continue

Added by Anjana Dayal de Prewitt on May 27, 2011 at 6:58pm — No Comments

अच्छा है

तेरी यादों में खुदको इस तरह से झोंक रखा है
के मैंने कुछ पलों को तेरी खातिर रोक रखा है

तडपता देखकर मुझको अगर तू खुश हुआ तो क्या
मेरी उम्मीद बंधती है तेरा ये शौक़ अच्छा है

सिर्फ तू हो ख्यालों में, मेरी हर सोच में तू हो
न कोई पास आये मैंने सबको टोक रखा है

ये बेटे कल तुम्हारी सब ज़मीनें बाँट ही लेंगे
तो इनकी छह में तुम न उजाडो कोख अच्छा है

Added by Vishal Bagh on May 27, 2011 at 1:35pm — No Comments

प्यार करते हैं बेइन्तहा

प्यार करते हैं बेइन्तहा इम्तहां चाहे ले ले जहाँ।

हम ना होंगे जुदा जाने जाँ, हम हैं दो जिस्म और एक जां।।



चाँदनी चाँद में ज्यों बसी, फूल में है ज्यों मीठी हँसी।

त्योंही उर में बसी उर्वसी छोड़कर तुम ये सारा जहां।।



सुन हकीकत ऐ हुस्ने परी, मैं हूँ शायर हो तुम शायरी।

चश्मो दिल में हो कब से मेरी, कह नहीं सकती है ये जुबां।।



बिन पिये भी नहीं होश है क्या नशीला ये आगोश है।

जामे लब  में भरा जोश है, हैं मिलाये जमीं आसमां।।



मय मयस्सर हुई ही नहीं, हमको… Continue

Added by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 27, 2011 at 8:46am — 1 Comment

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा

ऐ ज़िन्दगी कभी तो मुझपे मेहरबां हो जा,…

Continue

Added by Anshumali Srivastava on May 27, 2011 at 8:00am — No Comments

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज



-----------------------------------------



एक दिन कलम ने आके चुपके से मुझसे ये राज खोला ,



कि रात को भगत सिंह ने सपने में  आकर उससे  बोला,







कहाँ  गया वो  मेरा इन्कलाब कहाँ गया वो  बसंती… Continue

Added by Rajeev Kumar Pandey on May 27, 2011 at 3:30am — No Comments

अनुभव..

जिन्दगीं हर घड़ी

एक नया अनुभव लाती है

पर मैं क्या करु मेरा हर नया अनुभव

मेरे हर पुराने अनुभव से

कुछ कड़वा है, कुछ फ़ीका है, कुछ खारा है

कुछ दुर ही सही

मैं उसके साथ चलता हूँ

कभी सभ्लता हूँ, कभी फ़िसलता हूँ

मैं उसे नहीं बांटता

ये ही मुझे रफ़्ता रफ़्ता बांट देता है

मेरी इस छोटी सी जिन्दगी को

जो मेरे लिये ही काफ़ी नही

दो आयामों में काट देता है

वह मेरा सबसे पुराना मित्र है

और सबसे बड़ा…

Continue

Added by अमि तेष on May 26, 2011 at 6:42pm — No Comments

जुर्रत हो गयी है

Ye Jurrat ho gayi hai

Mohabbat ho gayi hai



Use bahi ne maaraa



siyasat ho gayi hai



Zalimon bach ke rehna



Baghawat ho gayi hai



Yahan matam na ho gar



Shahadat ho gayi hai



Buzargon ka karoon kya



Wasiyat ho gayi hai



Fata bam aur kya ho



Mazzamat ho gayi hai

ये जुर्रत हो गयी है

मोहब्बत हो गयी है



उसे भाई  ने…

Continue

Added by Vishal Bagh on May 26, 2011 at 4:00pm — 1 Comment

अब किस के लिए ,

अधुरा जीवन जिऊँ  ,

अब किस के लिए ?



तू उनका ही नहीं हुआ .

जिन्होंने तुझे जन्म दिया,

बोल जी रहा हैं तू ,

अब किस के लिए ?



पैसा सब कुछ नहीं हैं ,

मगर पैसा ना हो ,

तो कुछ भी नहीं हैं ,

और तू पैसे के लिए ,



घरवार छोड़ दिया ,

तू आया साथ लाया ,

अपने बीबी और बच्चो को ,

उनको छोड़ दिया ,

सपने में भी उनको ,

एक गिलास पानी दिया ,

वो तुम्हारे पैसे को नहीं ,

तुम्हारी राह देखते हैं ,

उनके इस अधूरे…
Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 26, 2011 at 1:30pm — No Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल : कुछ कड़वा सा एहसास

सभी रिश्ते है मतलब के ये मानो या न मानो तुम,
है मिलते प्यार में धोखे ये मानो या न मानो तुम,
 
रहूँ मैं राम भी बनके अगर हो भरत सा भाई,
है माता कैकई घर मे ये मानो या न मानो तुम,      
 
यकीं…
Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 5:00pm — 83 Comments

एक बार और

एक बार और



एक बार और जीने की ख्वाहिश हुई

और उमंगे सातवें आसमान छूने को है

एक बार और मन के बीज अंकुरित हुए

और दिल की सरहदें खुलने को है



असंभव कुछ पहले भी नही था

लेकिन इंद्रियां जुड़ नही रही थी

मन… Continue

Added by AJAY KANT on May 25, 2011 at 2:00pm — 1 Comment

GAZAL BY AZEEZ BELGAUMI

अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे

ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे



जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे

अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे



हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए

कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे



ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार

बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे



पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें

कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे



कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए

क्या हम गुलों के हार…

Continue

Added by Azeez Belgaumi on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments

इक मासूम ग़ज़ल

हर दिन जमाना दिल को मेरे आजमाता है

 मिलता है जो भी, बात उसकी ही चलाता है

 

मालूम है मुझको की आईना है सच्चा पर

ये आजकल, सूरत उसी, की ही दिखाता है

 

पीना नहीं चाहा कभी मैने यहाँ फिर भी

मयखाने का साकी, ज़बरदस्ती पिलाता है

 

सच है खुदा तू ही मदारी है जहाँ का बस

हम सब कहाँ है नाचते, तू ही नचाता है

 

"मासूम" अब रोना नहीं दुनिया मे ज़्यादा तुम

इस आँख का पानी उठा सैलाब लाता है

Added by Pallav Pancholi on May 25, 2011 at 12:00am — 3 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service