For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नादिर ख़ान's Blog (47)

हाइकू

1

इंसानी भूल

लापरवाह लोग

धूल ही धूल

2

प्यारी सी धुन

सुबह का मौसम

प्यार से सुन 

3…

Continue

Added by नादिर ख़ान on December 29, 2017 at 10:30pm — 4 Comments

क्षणिकाएँ

1.

शायद आज बच जाओ

साम दाम दण्ड भेद से

मगर एक कैमरा

नज़र रखे है

हर करतूत पर

बिना साम दाम दण्ड भेद के .....

 

2.

मत उलझाइये खेल

मत कीजिये घाल-मेल

सीधी है ... सीधी ही रहने दीजिये

जिंदगी की रेल

 

3.

उठ रहे हैं बच्चे

सूरज के जागने से पहले

ठिठुर रहे हैं बच्चे

पीठ में बोझ लिए

झेल रह हैं बच्चे

भविष्य का दण्ड…

Continue

Added by नादिर ख़ान on December 25, 2017 at 1:30pm — 10 Comments

बीमार?

उसे होश में आया देख डॉक्टर का नुमाइंदा पास आया और फरमान सुनाने लगा । अपने घर बात करके  15 हज़ार रुपये काउंटर में जमा करवा दो बाकि के पैसे डिस्चार्ज के समय जमा करा देना । मगर साहब मै बीमार नहीं, बस दो दिन से भूखा हूँ। उसकी आवाज़ घुट के रह गई, नुमाइंदा जा चुका था ।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by नादिर ख़ान on December 9, 2017 at 10:00pm — 12 Comments

क्षणिकाएँ

     

1. 

उतारिए चश्मा

पोछिये धूल

चीज़ें खुदबखुद... साफ़ हो जाएँगी ।

 

 

2.

ज़रूरी है… सफाई अभियान

शुरुआत कीजिये

दिल से ....

 

3.

गंदगी सिर्फ मुझमे ही नहीं

तुम में भी है मित्र

ज़रा अंदर तो झाँको ....

 

4.

जब ईमान गिरवी हो

ज़मीर बिक चुका हो

कौन उठायेगा बीड़ा

समाज की सफाई का ....

 

5.

साफ़ नहीं होती गंदगी

बार बार उंगली दिखाने…

Continue

Added by नादिर ख़ान on November 26, 2017 at 8:00pm — 10 Comments

क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल

(22 22 22 22)

क्यूँ है तू बीमार मेरे दिल

गम से यूँ मत हार मेरे दिल

 

तय है इक दिन मौत का आना

इस सच को स्वीकार मेरे दिल

 

पहले ही से दर्द बहुत हैं

और न ले अब भार मेरे दिल

 

सुनकर भाषण होश न खोना

ये सब है व्यापार मेरे दिल

 

कौन यहाँ पर कब बिक जाए

रहना तू हुशियार मेरे दिल

 

झूठ खड़ा है सीना ताने

सच तो है लाचार मेरे दिल

 

दिल के कोने में रहने दे

प्यार…

Continue

Added by नादिर ख़ान on November 2, 2017 at 12:30am — 7 Comments

कर्ज़ का बोझ

वह किसान था

लड़ता रहा उम्र भर

कभी सूखे की मार से  

तो कभी बाढ़ की तबाही से

कभी बेमौसम बारिश से

तो कभी ओला वृष्टि से .....

 

वह किसान था  

सहता रहा उम्र भर

हर तक़लीफ

हर गम

ताकि भरा रहे पेट दूसरों का  .....

 

वह किसान था  

करता रहा गुज़ारा

बचे खुचे पर

वह सीख गया था, एडजस्ट करना

प्रक्रति के साथ......

 

वह किसान था  

खुश रहता था  

हर परिस्थिति…

Continue

Added by नादिर ख़ान on August 11, 2016 at 11:00am — 5 Comments

पिता

वो छुपाते रहे अपना दर्द

अपनी परेशानियाँ

यहाँ तक कि

अपनी बीमारी भी….

 

वो सोखते रहे परिवार का दर्द

कभी रिसने नहीं दिया

वो सुनते रहे हमारी शिकायतें

अपनी सफाई दिये बिना ….

 

वो समेटते रहे

बिखरे हुये पन्ने

हम सबकी ज़िंदगी के …..

 

हम सब बढ़ते रहे

उनका एहसान माने बिना

उन पर एहसान जताते हुये

वो चुपचाप जीते रहे

क्योंकि वो पेड़…

Continue

Added by नादिर ख़ान on February 3, 2016 at 6:30pm — 12 Comments

संकल्प (लघुकथा)

अरे ये क्या किया आपने, वक्त ज़रूरत के लिए एक ज़मीन थी वो भी बेच दी कल को बेटी की शादी करनी है और रिटायरमेंट के बाद के लिए कुछ सोचा है । एक सहारा था वह भी चला गया ।
अरे भाग्यवान, बेटी के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन के लिए ही तो बेचा है, और बुढ़ापे का सहारा ये ज़मीन जायजाद नहीं हमारे बच्चे हैं और उनकी तरबियत की जिम्मेदारी हमारी है । रही बात शादी की तो, न लड़की की शादी में दहेज़ देंगे, न लड़के की शादी में दहेज़ लेंगे
हिसाब बराबर है, न लेना एक न देना दो ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by नादिर ख़ान on December 2, 2015 at 10:45pm — 16 Comments

राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो

२१२२  ११२२  ११२२  २२

 

अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो

बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो

 

मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर

अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो

 

बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ

तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो

 

सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना

तुम हकीकत नज़र आज  मिलाकर देखो

 

तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ

राह में सबके…

Continue

Added by नादिर ख़ान on November 24, 2015 at 6:30pm — 12 Comments

अपराध बोध (लघुकथा )

भरी दोपहरी मई के महीने में वो दरवाज़े पर आया और ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगाने लगा खान साहब…….. खान साहब……..| मेरी आँख खुली मैंने बालकनी से झाँका | एक ५५-६० साल का अधबूढ़ा शख्स, पुराने कपड़ों, बिखरे बाल और खिचड़ी दाढ़ी में सायकल लिए खड़ा है। मुझे देखते ही चिल्ला पड़ा फलाँ साहब का घर यही है| मैंने धीरे से हाँ कहा और गर्दन को हल्की सी जेहमत दी | वो चहक उठा उन्हें बुला दीजिये | मैंने कहा अब्बा सो रहे हैं, आप मुझे बताएं | उसने ज़ोर देकर कहा, नहीं आप उन्हें ही बुला दीजिये , कहियेगा फलाँ शख्स आया है। मुझे बड़ा…

Continue

Added by नादिर ख़ान on October 28, 2015 at 12:30pm — 7 Comments

तरही गज़ल (रात को रो-रो सुबह किया या दिन को ज्यों-त्यों शाम किया)

है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया

दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया

 

मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया 

फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया

रब से तुझको हरदम माँगा दिल भी तेरे नाम किया

फिर भी तूने मेरे हक में बस झूठा इल्ज़ाम…

Continue

Added by नादिर ख़ान on July 26, 2015 at 4:30pm — 7 Comments

चुनावी क्षणिकाएँ

1

जारी है कवायद

शब्दों को रफ़ू करने की

बुलाये गए हैं 

शब्दों के खिलाड़ी

 

शब्द

काटे जोड़े और

मिलाये जा रहे हैं

रचे और रंगे जा रहे हैं

शब्दों का सौंदर्यीकरण जारी है

2

शब्द

कभी चाशनी में

घोले जा रहे हैं

तो कभी छौंके जा रहे हैं 

कढ़ाई में

फिर जारी है खिलवाड़

हमारे सपनों का

 

3

 

भाँपा जा रहा है मिजाज़

हर शख्स का

अचानक…

Continue

Added by नादिर ख़ान on May 2, 2014 at 8:30am — 11 Comments

चुनावी बाज़ार

 

1

गिरते – गिराते

उठा-पटक 

शातिर चालें

शह और मात

जूतम पैजार

चमकाते हथियार

भड़काते विचार  

हो जाइए तैयार

फिर गरम है

चुनावी बाज़ार ।

 

2

 

चापलूसों की फौज

शहीदों का अपमान

गिरती इंसानियत

बेचते ईमान   

लड़ते –लड़ाते

शोर मचाते

लक्ष्य है जीत।

 

3

झूठ पे झूठ

आरोप प्रत्यारोप

काम का दिखावा

बातों से…

Continue

Added by नादिर ख़ान on April 9, 2014 at 9:00pm — 7 Comments

मज़दूर

(एक)

 

तुम क्या चुकाओगे

मेरी मेहनत की कीमत

मेरी जवानी

मेरे सपने

मेरी उम्मीदें

सब-कुछ तो दफ्न है

तुम्हारी इमारतों में।

 

(दो)

 

जब चलती हैं  

झुलसा देने वाली गर्म हवाएँ

कवच बन जातीं है

यही सूरज की किरणें

हमारे लिए ।

 

मुसलधार बारिश

जब हमारे बदन को छूती है

फिर से खिल उठता है  

हमारा तन

ऊर्जावान हो…

Continue

Added by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:30pm — 16 Comments

हालात .....

नियम/अनुशासन

सब आम लोगों के लिए है

जो खास हैं

इन सब से परे हैं

उन पर लागू  नहीं होते

ये सब

ख़ास लोग तो तय करते हैं

कब /कौन/ कितना बोलेगा

कौन सा मोहरा

कब / कितने घर चलेगा

यहाँ शह भी वे ही देते हैं  

और मात भी

आम लोग मनोरंजन करते हैं   

आम लोगों का रेमोट

ख़ास लोगों के हाथों में होता है  

वे नचाते हैं

आम लोग नाचते हैं.....

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही…

Continue

Added by नादिर ख़ान on January 8, 2014 at 12:00pm — 11 Comments

माँ – बाप (क्षणिकाएँ )

(1)

हमारे सपने लेते रहे आकार

बड़े और बड़े

महानगर की इमारतों की तरह

भव्य और विशाल

हमारे सपने

बढ़ते रहे

आगे और…

Continue

Added by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 12:30pm — 22 Comments

फिर चुनावी दौर शायद आ रहा है

फिर चुनावी दौर शायद आ रहा है

द्वेष का बाज़ार फिर गरमा रहा है 

 

मेंमने की खाल में है भेड़िया जो

बोटियों को नोंच सबकी खा रहा है

 

इस तरह से सच भी दफ़नाया गया अब 

झूठ को सौ बार वो दुहरा रहा है

 

क्या वफ़ादारी निभायी जा रही है

देवता, शैतान को बतला रहा है

 

बोझ दिल में सब लिए अपने खड़े हैं

ख़ुद-से ही हर शख़्स अब शरमा रहा है 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by नादिर ख़ान on August 18, 2013 at 8:00pm — 9 Comments

माँ

बहुत ख़ुशनसीब हैं

हम लोग

हमारे सिर पर

हाथ है माँ का

क्योंकि

माँ का आँचल

हर छत से ज़्यादा

मज़बूत होता है

सुरक्षित होता है…

Continue

Added by नादिर ख़ान on May 9, 2013 at 1:00pm — 12 Comments

किसका दोष है ??

रोज़ होती सड़क दुर्घटनायें

कभी ये, कभी वो…

Continue

Added by नादिर ख़ान on April 16, 2013 at 5:52pm — 5 Comments

होली (हाईकु)

हंसी ठिठोली

सबको मुबार‍क 

रंगों की होली ।

 

 बढ़ता मेल 

कोई गोरा न काला 

समझो न खेल…

Continue

Added by नादिर ख़ान on March 28, 2013 at 5:21pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service