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Sushil Sarna's Blog (804)

फिर किसी के वास्ते .......

फिर किसी के वास्ते ......

क्यूँ दिलाएं हम यकीं दिल को किसी  के वास्ते ।

हो गया दिल आज गमगीं फिर किसी के वास्ते ।

था बसाया घर कभी हमने किसी के ख़्वाब में ,

छोड़ दी हमने ज़मीं वो फिर किसी के वास्ते ।

मर मिटा था दिल कभी जो इक हसीं के नूर पर ,

तोड़ आए  दिल वहीं  वो फिर  किसी के वास्ते ।

दे गया महबूब मेरा  मुझ को  जीने की सज़ा ,

आज क्यूँ जाने हज़ीं है दिल किसी के वास्ते ।

वो तसव्वुर में हमारे बस गई कुछ इस तरह…

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Added by Sushil Sarna on May 19, 2022 at 2:12pm — 3 Comments

गज़ल - ज़ुल्फ की जंजीर से ......

गजल- ज़ुल्फ की जंजीर से ......

2122 2122 2122 212



आश्ना  होते  अगर  हम  हुस्न  की  तासीर से

दिल लगाते हम भला क्यों ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर से

खा रहे थे लाख क़समें जो हमारे प्यार की

दे गए वो दर्द लाखों इक नज़र के तीर से

हमसफ़र बन कर चले वो रास्ते में छोड़ कर

भर गए झोली  हमारी ग़र्द  की  जागीर  से

मंज़िलों  के  पास  आ  के  दूर  मंज़िंलें हो  गई

क्या गिला शिकवा करें हम धड़कनों के पीर से

बाद मुद्दत के मिले…

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Added by Sushil Sarna on May 13, 2022 at 9:00pm — 8 Comments

बुझते नहीं अलाव. . . . (दोहा गज़ल )

बुझते नहीं अलाव .....(दोहा गज़ल )

मौन  प्रीत  के  हो गए, अंकित मन में  भाव ।

इन  भावों  के उम्र भर, बुझते नहीं  अलाव ।।

साँसों को मिलती नहीं, जब तक प्रीत की साँस,

रिसते   रहते  ह्रदय  में, मौन  प्रीत   के   घाव ।

आँखों   को   देती  रहीं , आँखें  ये  संदेश ,

दूर किनारा है बहुत , कागज की है नाव ।

अजब अगन है प्रीत की, अजब प्रीत की रीत ,

नैन  कोर  से  याद   के , होते   रहते   स्राव ।

ठहर गया है वक्त भी…

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Added by Sushil Sarna on May 11, 2022 at 11:30am — 10 Comments

दोहा मुक्तक .....

दोहा मुक्तक.....

अपने कृत्यों  से  कभी, देना  मत  संताप ।
माँ के चरणों में कटें, जन्म- जन्म के पाप ।
फर्ज निभाना दूध का , हरना हर तकलीफ -
बेटे को  आशीष  से, माँ  के  मिले  प्रताप ।
                     * * * *
भूले से करना नहीं, माता का  अपमान ।
देना उसके  त्याग  को, सेवा से सम्मान ।
मूरत है ये ईश की, ये  करुणा  की  धार -
माँ के चरणों में सदा, सुखी रहे सन्तान ।

सुशील सरना / 10-5-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on May 10, 2022 at 8:12pm — 5 Comments

मनोरम छंद में मुक्तक ....

मुक्तक

आधार छंद - मनोरम



प्यार का इजहार लेकर ।

   आस का  अंबार लेकर ।

       दे  रहा  आवाज  कोई -

          श्वास का  शृंगार  लेकर ।

           ***

प्रीत  का  संसार  देकर ।

   मौन का  आधार  देकर ।  

       छल गया  विश्वास कोई -

           स्पर्श का अंगार देकर ।

           ***

ख्वाब जो साकार  होते ।

    दर्द  क्यों  गुलज़ार होते ।

        तिश्नगी  को  जीत  लेते -

            आप का हम प्यार होते ।

सुशील…

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Added by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 2:18pm — 4 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक ....

मन में मदिरा पाप की, तन व्यसनों का धाम ।

मानव का चोला करे, मानव को बदनाम ।।

छोड़ो भी अब रूठना, छोड़ो भी तकरार ।

देखे थे जो आपके , स्वप्न करो साकार ।।

लुप्त हुई संवेदना , मिटा खून का प्यार ।

रिश्तों में गुंजित हुई , बंटवारे की रार ।।

दिख जाएगी देख तू , तुझको  अपनी भूल ।

मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।

भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।

खो न दें कहीं रार में, जीवन का…

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Added by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 11:58am — 4 Comments

ताकत (लघुकथा )

ताकत .....

"क्या बात है रामदेव जी। आज बहुत  उदास लग रहे हो ।"" दीनानाथ जी ने चाय पीते- पीते पूछा ।

"दीनानाथ जी आजकल किसी को कुछ कहने का जमाना नहीं है ।" रामदेव ने कहा ।

"क्या हुआ कुछ बताओ तो।" दीनानाथ जी बोले ।

"अरे कल रात की ही बात है । आधी रात को सड़क बनाने वाले इंजन की आवाज़ सुनकर हमारी नींद उखड़ गई । बाहर  आकर देखा तो रोड रोलर हमारी गली के कोने की दुकान के सामने की सड़क के छोटे से टुकड़े पर डामरीकरण कर रहे थे ।" रामदेव जी बोले जा रहे थे ।

"फिर…

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Added by Sushil Sarna on April 30, 2022 at 8:49pm — 8 Comments

सत्य (आधार छंद रोला)

सुख-दुख हैं दो तीर , साँस की बहती धारा ।
जीवन  का  संघर्ष , अन्त  में  जीवन  हारा ।
बचा न कुछ भी शेष,
रही बस शेष कहानी ।
काया  के  अवशेष ,

ले  गया  गंगा  पानी  ।

अटल सत्य जब श्वास, छोड़ कर जाती काया ।
कुछ  न  आता काम , व्यर्थ हो जाती माया ।
वक्त  गया   जो   बीत,
कभी न लौट कर आए ।
शून्य  व्योम  ये  सत्य ,
बार -  बार   दोहराए  ।

सुशील सरना / 26-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 25, 2022 at 12:00pm — 2 Comments

दोहावली ....

दोहावली......

जग के झूठे तीर हैं, झूठी है पतवार ।

अवगुंठन में जीत के, मुस्काती है हार ।।

कुदरत ने सबको दिया, जीने का अधिकार ।

धरती के हर जीव को, बाँटो अपना  प्यार ।।

छाया देती साथ जब, होता प्रखर प्रकाश ।

विषम काल में ईश ही , काटे दुख के पाश ।।

दो साँसों के तीर में, सुख -दुख का है नीर ।

भज दाता के नाम को, जब तक चले शरीर ।।

काया की प्राचीर में, साँसें खेलें खेल ।

इसकी हर दीवार पर, इच्छाओं की…

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Added by Sushil Sarna on April 24, 2022 at 12:10pm — 2 Comments

(पुस्तक दिवस पर ) कैदी. . . .

पुस्तक दिवस पर )

कैदी......

पहले कैद थे
लफ्ज़
अन्तस की गहन कंदराओं में
फिर कैद हुए
मोटी- मोटी जिल्दों में सोये पृष्ठों में
फिर कैद हुए
लकड़ी की अलमारियों में
आओ
मुक्ति दें इन अनमोल कैदियों को
जो बैठे हैं
उन कद्रदानों के  इन्तिज़ार में
जो पहचान सकें
लफ्जों में लिपटे मौसम के
अनबोले अहसासों के

सुशील सरना / 23-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 23, 2022 at 10:26pm — 4 Comments

छल ....

छल ......

कल

फिर एक

कल होगा

भूख के साथ छल होगा

आशाओं के प्रासाद होंगे

तृष्णा की नाद होगी

उदर की कहानी होगी

छल से छली जवानी होगी

एक आदि का उदय होगा

एक आदि का अन्त होगा

आने वाला हर पल विकल होगा

जिन्दगी के सवाल होंगे

मृत्यु के जाल होंगे

मरीचिका सा कल होगा

तृष्णा तृप्ति का छल होगा

सच

कल

भोर के साथ

फिर एक कल होगा

भूख के साथ

छल होगा

सुशील सरना / 21-4-22

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on April 21, 2022 at 9:57pm — 2 Comments

सार छंद - अनुभूति

सार छंद  : अनुभूति

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसी प्रीत निभायी ,

दिल ने तुझको  समझा अपना , तू निकला हरजाई।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सपनों में जब आना ,

किसी और के सपनों मे फिर ,भूले से मत जाना ।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा ये युग आया ।

रिश्तों का कोई मोल नहीं, अच्छी लगती माया ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कैसा कलियुग आया ।

सास बनाये रोटी सब्जी, बहू सजाए काया ।।



सुशील सरना / 12-4-22

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:00pm — 6 Comments

आवाज ......

आवाज .....

सम्मान दिया
हर आवाज को
दबा कर
अपनी आवाज
स्त्री ने
तूफान आ गया
आवाज उठाई
उसने जो
अपनी 
आवाज के लिए
--------------------
वाचाल हो गया
मौन
नारी का
तोड़ कर
हर वर्जना
पुरातन की

सुशील सरना / 4-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on April 4, 2022 at 10:57pm — 10 Comments

क्षणिकाएँ -मिलावट .....

क्षणिकाएँ -मिलावट



मर गया

एक शख़्स 

खा कर

मिलावटी

जीवन रक्षक दवा

----------------------

कैसे करेंगे

देश की रक्षा

देश के नौनिहाल

पी कर दूध

मिलावटी

------------------------

ख़ूब कमाया धन

जन जन से

बेचकर सामान

मिलावटी

पर

पाप कमाया

असली

------------------------

बनावटी रिश्ते

मिलावटी प्यार

कैसे दें

असली सुगन्ध

फूल काग़ज़ के …

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Added by Sushil Sarna on April 2, 2022 at 12:30pm — 8 Comments

रोला छंद .....

रोला छंद :-

धड़की बन कर याद , सुहानी  वो  बरसातें  ।

दो अधरों की पास, सुलगती दिल की बातें ।

अनबोली  वो  बात, प्यार का बना फसाना ।

धड़के दिल के पास, मिलन का वही तराना ।

-----------------------------------------------------

दिन भर करते पाप, शाम को फेरें  माला ।

उपदेशों  के  संत, साँझ को  पीते  हाला  ।

पाखंडी  संसार , यहाँ  सब   झूठे  मेले   ।

ढोंगी करता मौज , सज्जन दु:ख ही झेले ।

सुशील सरना / 31-3-22

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on March 31, 2022 at 3:00pm — 6 Comments

2-रोला छंद .....

रोला छंद .....

मधुशाला में जाम, दिवाने लगे  उठाने ।
अपने -अपने दर्द, जाम में लगे भुलाने ।
कसमें वादे प्यार ,सभी  हैं  झूठी  बातें ।
आँसू आहें अश्क, प्यार की हैं  सौग़ाते ।
-----------------------------------------------
दमके  ऐसे  गाल, साँझ की  जैसे  लाली ।
मृग शावक सी चाल ,चले देखो मतवाली ।
मदिरालय  से  नैन, करें  सबको  दीवाना ।
अधरों पर मुस्कान, प्यार का मधुर तराना ।

सुशील सरना / 29-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 29, 2022 at 9:40pm — 6 Comments

यथार्थ के दोहे. . . . . .

यथार्थ के दोहे .....

पाप पंक पर बैठ कर ,करें पुण्य की बात ।

ढोंगी लोगों से मिलेेें, सदा यहाँ आघात ।।

आदि -अन्त के भेद को, जान सका है कौन ।

एक तीर पर शोर है, एक तीर पर मौन ।।

आदि- अन्त का ग्रन्थ है, कर्मों का अभिलेख ।

जन्म- जन्म की रेख को,देख सके तो देख ।।

कितना टाला आ गई, देखो आखिर शाम ।

दूर क्षितिज पर दिख रहा, अब अन्तिम विश्राम ।।

तृप्ति यहाँ आभास है, तृष्णा भी आभास …

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Added by Sushil Sarna on March 26, 2022 at 3:30pm — 13 Comments

पाप. . . . .

पाप.....

कितना कठिन होता है

पाप को परिभाषित करना

क्या

निज स्वार्थ के लिए 

किसी के  उजाले को

गहन अन्धकार के नुकीले डैनों से

लहूलुहान कर देना

पाप है

क्या

अपने अंतर्मन की

नाद के विरुद्ध जाना

पाप है

क्या

किसी की बेबसी पर 

अट्टहास करना

पाप है

क्या

अन्याय के विरुद्ध  मौन धारण कर

नज़र नीची कर के निकल जाना

पाप है

वस्तुतः

सोच से निवारण तक …

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Added by Sushil Sarna on March 25, 2022 at 8:14pm — 2 Comments

रोला छंद ......

रोला छंद .....

साबुन बचा न शेष, देह काली  की  काली ।
पहन हंस  का भेष , मनाये  काग  दिवाली ।
नकली जग के फूल, यहाँ का नकली माली।
सत्य  यहाँ पर मौन , झूठ की बजती ताली ।
------------------------------------------ ----------

खूब  किया  शृंगार, लगाई  बिन्दी   लाली ।
घरवाली को छोड़ ,सजन को भायी साली ।
रखना लेकिन याद ,काम अपने ही  आते ।
ऐसे  झूठे  साथ , बाद  में  बहुत   रुलाते  ।

सुशील सरना / 22-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 22, 2022 at 4:53pm — 6 Comments

रोला छंद .......

रोला छंद .....

मात्र नहीं संयोग ,जीव का सुख-दुख  पाना ।
सीमित तन में श्वास,लौट के सब के  जाना ।
भोर-साँझ आभास, जगत  है  झूठी  आशा ।
आदि संग अवसान, ईश का अजब तमाशा ।

***********************************

समझो मन की बात, रात है सजनी  छोटी ।
आ जाओ कुछ पास, प्रेम की  सेकें  रोटी ।
यौवन के दिन चार, न  लौटे कभी जवानी ।
लिख डालें फिर आज,प्रेम की नई कहानी ।

सुशील सरना / 21-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on March 21, 2022 at 1:00pm — 5 Comments

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