साथियों,
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हार्दिक आभार आ.अशोक कुमार जी। इनायत।
आदरणीय दिनेश कुमार जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । मतला गिरह सब बढ़िया
आदरणीय दिनेश जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद कबूल कीजिये
मैं हूँ आवाज़ आपके दिल की
ग़ौर से कब सुना गया है मुझे.....यह शेर विशेष रूप से पसंद आया|
//आसमाँ से गिरा गया है मुझे
मेरा अभिमान खा गया है मुझे// बहुत सुंदर मतला हुआ है।
//शुक्र है ! आइना दिखा कर वो
मेरी कमियाँ बता गया है मुझे// बहुत ही ईमानदाराना शेअर है, ऐसी बातों को स्वीकार करना हरेक के बूते की बात नही।
//कर के वादा तेरा मुकर जाना
दुनियादारी सिखा गया है मुझे// बहुत खूब.
//मैं हूँ आवाज़ आपके दिल की
ग़ौर से कब सुना गया है मुझे// लजवाब शेअर, दिल का दर्द उभर कर शब्दों का रूप अख्तियार कर गया है।
//अश्क पीना भी सीख ही लूँगा
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"// बेहद उम्दा गिरह, वह वाह वाह।
//मुझमें शुहरत की चाह बाक़ी है
क्यों कलन्दर कहा गया है मुझे// ये शेअर भी अच्छा है।
//कर के तारीफ़ वो मेरी झूठी
ज़ह्र धीमा चटा गया है मुझे // इस ज़ह्र से बचने में ही भलाई है। इस उम्दा ग़ज़ल हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आदरणीय दिनेश जी बेहतरीन गजल के लिए बधाई। हर शेर लाजवाब है।
बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है दिनेश भाई मुबारकबाद पेश करता हूँ |
वाह, बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है आ दिनेश कुमार साहब, आखिरी शेर तो कमाल का है. शेर दर शेर मुबारकवाद कुबूल कीजिये
वाह! शानदार ग़ज़ल हुई है| हार्दिक बधाई आपको आदरणीय दिनेश जी|
आदरणीय दिनेश जी, बहुत अच्छे अशआर हुए है. आख़िरी शेर अपने यथार्थपरकता के लिए ख़ास तौर पर अच्छा लगा. हार्दिक बधाई.
आदरणीय दिनेश कुमार जी, सादर अभिवादन।
मतले सहित लगभग सभी अशआर अच्छे हुए हैं।
आपकी ग़ज़लों में जो कशिश और पैनापन होता है, इस ग़ज़ल में उसकी कमी मुझे महसूस हुई है। अन्यथा न ले, मैं आपका बड़ा प्रशंसक हूँ इसलिए आपसे उम्मीदें भी जियादा है। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
इस तरह देखता गया है मुझे
यार दिल की जता गया है मुझे
तेरी नज़रों से दिल में आना था
ये सफ़र ही थका गया है मुझे
इसने मरहम कभी लगाया ना
वक़्त बस मारता गया है मुझे
रोटियाँ खाई जब पसीने की
स्वाद नमकीन भा गया है मुझे
क्या मैं गाड़ी नहीं चलाऊँगा?
एक चालान आ गया है मुझे
चार लोगों से चार बातें सुन
पाँचवी वो सुना गया है मुझे
लाल फ़ीते से बांध रक्खा है
और तरक़्क़ी कहा गया है मुझे
नोंक लगते ही फ़टना तय समझो
बस हवा से भरा गया है मुझे
तुझसे मिलने की आस में ही सही
**सब्र करना तो आ गया है मुझे**
#मौलिक व अप्रकाशित
जनाब अजय गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले के दोनों मिसरों में 'ता', की क़ैद दोष है,देखियेगा ।
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