मापनी १२२ १२२ १२२ १२२
नदी का वो बहता हुआ जल किधर है.
सवालों का ऐसे बता हल किधर है.
घुसी जा रहीं आज खेतों में सडकें,
डराता था हमको वो जंगल किधर है.
कहाँ से पवन अब बहे मंद शीतल,
चमेली, ये बेला, ये…
ContinuePosted on April 29, 2021 at 9:26am — 2 Comments
एक ग़ज़ल
चूड़ी भरी कलाईयाँ, कँगना बसंत है.
सिंदूर भर के मांग में सजना बसंत है.
चारों तरफ घिरी रहें यादों की बदलियाँ,
फिर उनके साथ रात में जगना बसंत है.
बिखरी हुई हो चाँदनी नदिया के तीर…
ContinuePosted on April 22, 2021 at 8:28pm — 4 Comments
मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२
धवल हैं वस्त्र, नीयत के मगर गंदे बहुत हैं
चिरैया देख! दाने कम उधर फंदे बहुत हैं
मचा है शोर मँहगाई का चारों ओर लेकिन
यहाँ बस आदमी के भाव ही मंदे बहुत हैं
…
ContinuePosted on April 19, 2021 at 12:35pm — 4 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
उपवनों में फूल कलियाँ तितलियाँ दिखतीं नहीं
रोज कोयल खोजती अमराइयाँ दिखतीं नहीं
हो गई आँखों से ओझल ऋतु बसंती प्यार की
तप रहा मन का मरुस्थल बदलियाँ दिखतीं नहीं
कौन सा यह आवरण ओढ़ा हुआ है आपने…
ContinuePosted on April 16, 2021 at 1:19pm — 10 Comments
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