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सारी सारी रात जग जिन के लिए
पूछते वे जागरण किन के लिए |1|
चाँद तारों तो झुले हैं रात में
एक सूरज को रखा दिन के लिए |२|
आसान नहीं भूलना यूँ भूत को
आज तक तो मोह है इन के लिए |३|
रात भर आँसू कभी थमती नहीं
अश्रु जल यूँ लुडकते किन के लिए|४ |
वो सुखी हैं या दुखी किस को पता
फूल जंगल में खिले किन के लिए |५|
जानते थे हम जुदा होंगे कभी
क्या जतन करते कभी इन के लिए |६|
अब इन्हें संसार में आना नहीं
कौन रोये इस जहाँ इन के लिए |७|
वो कभी पीड़ा समझना चाहती
क्लेश हम पीते गए जिनके लिए |८|
मौलिक और अप्रकाशित
कभी है ऊपर कभी नीचे, यह साँप सीडी का खेल
बजट में मंत्री खेलते हैं, यह साँप सीडी का खेल |
आँकड़ों का खेल है सबकुछ, आँकड़े सब जादुई का
टैक्स घटाया सेस बढ़ाया, यह साँप सीडी का खेल |
एक थैली का मॉल निकाल, रखा दूसरी थैली में
नया बोतल शराब पुरानी, यह साँप सीडी का खेल |
सब चीजों का भाव बढ़ गए, फिर भी बजट गरीबों का
उलटी गंगा बही खेल में, यह साँप सीडी का खेल |
आशाओं के दीप जलाकर, उस पर पानी डाल…
ContinuePosted on February 3, 2018 at 4:34pm — 2 Comments
मुसीबतों से लोकतंत्र को, जल्दी उबारना होगा
निर्धनों के हक़ में देश में कानून बदलना होगा |
निर्धन नहीं खड़ा हो सकता, पार्षद के भी चुनाव में
लाखों रुपये चाहिए उसे, चुनाव दंगल लड़ने में |
गणतंत्र अभी धनतंत्र हुआ, धनाढ्य चुनाव लड़ते हैं
गरीब कैसे लडेगा भला, पास न लाखो रूपये हैं’ |
धनबल बाहुबल की प्रचुरता, ताकत बड़ी अमीरों की
निर्धनता ही कमजोरी है, इस देश के गरीबो की |
भ्रष्टाचार और महँगाई, साथ यौन शोषण भी…
ContinuePosted on January 28, 2018 at 10:17am — 5 Comments
काफिया :अन ; रदीफ़ : को
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को
ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|
किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में
नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |
सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़
कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|
बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी
न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे…
ContinuePosted on January 23, 2018 at 11:02am — 8 Comments
काफिया : अम रदीफ़: देखते हैं
बह्र : १२२ १२२ १२२ १२२
महात्मा जो हैं, वो करम देखते हैं
अधम लोग उसका, जनम देखते हैं |
बहुत है दुखी कौम गम देखते हैं
सुखी कौम गम को तो’ कम देखते हैं |
अतिथि मुल्क में जो भी’ आये यहाँ पर
मनोहर बियाबाँ, इरम देखते है |
दिशा हीन सब नौजवान और करते क्या
वज़ीरों के’ नक़्शे कदम देखते हैं |
किया देश हित काम जनता ही’ देखे
विपक्षी तो’ केवल सितम देखते हैं…
ContinuePosted on January 17, 2018 at 11:30am — 2 Comments
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फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
आप इसलिये अटक रहे हैं कि आपने मात्रा नहीं गिराई है,मात्रा गिराकर देखेंगे तो सही नतीजे पर पहुँच जाऐंगे ।
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय
कालीपद प्रसाद मंडल जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
हम सभी उम्मीद करते है कि आपका सहयोग इसी तरह से पूरे OBO परिवार को सदैव मिलता रहेगा |
सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आपको जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएँ ..
स्वागत के लिए धन्यवाद मिथिलेश जी ! जन्म दिन की बधाई आपने दी उसे भी सधन्यवाद स्वीकार करता हूँ क्योकि जन्मदिन मेरा भाई का है मेरा नहीं | सुबह मैंने दोहा पोस्ट किया था वो मुझे कहां दिखाई देगा ?
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आपका अभिनन्दन है.
ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए
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