For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,125)

बाबा की पाती

[आएश और आमश के लिए]





हमारे पास कुछ भी नहीं है



चंद औराक़ गर्दिशे-दौराँ के

चंद नसीहतें जो नस्ल दर नस्ल हम तक पहुंचीं

ऐसा विश्वास जहाँ श्रद्धा के अतिरिक्त

सारे सवाल अनुत्तरित और प्रतिबंधित

हैं



मैं कांपता था , लड़खडाने लगते थे क़दम

पसीने लगते थे छूटने

तुम मत डरना

कभी कुत्ते के भौंकने और बिल्ली के म्याओं म्याओं से



शिनाख्त रखना नहीं

न वजूद के पीछे

भागना

रैपर बन जाना

किसी भी साबुन की… Continue

Added by शहरोज़ Shahroz on August 9, 2010 at 10:30pm — 6 Comments

बेच दूंगा मैं खुद को खरीदेंगे आप

बेच दूंगा मैं खुद को खरीदेंगे आप

सोच के आज आया हूँ बाज़ार में --

दोस्तों मेरी कीमत जियादह नहीं

मैं भी बिक जाउंगा आपके प्यार में |



पहले हर बोल के मोल को तौलिये

'बाद में जो मुनासिब लगे बोलिए ---

बोल से ही तो जाहिर ये होता है के

'कितनी तहजीब होगी खरीदार में



इतनी जुर्रत कहाँ के लगा लूँ गले

ये भी हसरत नहीं के गले.से लगूं ---

जो मजा पा के सौ बार मिलता नहीं

वो मजा खो के पाया है एक बार में |



बिक रही है जमीं बिक रहा… Continue

Added by jagdishtapish on August 9, 2010 at 7:42pm — 3 Comments

हाइकु क्या है..??

हाइकु - ये जापानी काव्य प्रकार है । हाइकु अकसर कुदरत वर्णन के लिए लिखे गए हैं । जिसे " कीगो " कहते हैं । जापानी हाइकु , एक पंक्ति में लिखा जाता है और १९ वीं शताब्दी पूर्व इसे हिक्को कहा जाता था । मासाओका शिकी महोदय ने १९ वीं सदी के अंत तक इसे हाइकु नाम दिया ।



हाइकु , कविता में ३ पंक्तियाँ होतीं हैं । जिनका अनुपात है--



प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर , दूसरी में ७ अक्षर और फ़िर तीसरी पंक्ति में ५ अक्षर हों..



अकसर , संधि अक्षर भी एक अक्षर ही गिना जाता है… Continue

Added by विवेक मिश्र on August 9, 2010 at 2:56am — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
वापस दे दो

जब्त किये है तुमने जो अल्फाज़ अभी वापस दे दो

अपने हिस्से की थोड़ी आवाज अभी वापस दे दो



मेरा ग़म, दिल की मायूसी, या फिर मेरी तन्हाई

दिल में छुपाये मेरे सारे राज अभी वापस दे दो



सूरज से जो लड़ आये थे खालिस जेठ महीने में

उन मदमस्त परिंदों की परवाज़ अभी वापस दे दो



सीमा पार से जो आया है वो बारूद है कर्जे का

मूल को छोड़ो ब्याज बहुत है ब्याज अभी वापस दे दो





अब एक प्यारा सा गाना भी सुनते… Continue

Added by Rana Pratap Singh on August 8, 2010 at 11:00pm — 3 Comments

गीत: हर दिन मैत्री दिवस मनायें..... संजीव 'सलिल'

गीत:

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

संजीव 'सलिल'

*

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

होनी-अनहोनी कब रुकती?

सुख-दुःख नित आते-जाते हैं.

जैसा जो बीते हैं हम सब

वैसा फल हम नित पाते हैं.

फिर क्यों एक दिवस मैत्री का?

कारण कृपया, मुझे बतायें

हर दिन मैत्री दिवस मनायें.....

*

मन से मन की बात रुके क्यों?

जब मन हो गलबहियाँ डालें.

अमराई में झूला झूलें,

पत्थर मार इमलियाँ खा लें.

धौल-धप्प बिन मजा नहीं है

हँसी-ठहाके… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 8, 2010 at 11:32am — 3 Comments

मन को बांधना आसान नहीं

शब्दों की तरह

चाहता हू बांधना मन को भी

मगर मन ...

कौंधती है बिजली की तरह

बढती है लहरों की तरह

मन बाहर दौड़ने लगता है

ध्यान के दौरान

गंदे विचार कुलबुलाते रहते है ॥





बड़े ही द्वन्द में जीता है मन

आत्मा -परमात्मा के चक्कर में

गृहस्थ -वैराग्य के रास्तों पर

अपने -पराये की दहलीज पर

ठिठक जाता है मन ॥



खोये प्रेमी /खोया धन

पाने के लिए तपड़ता है मन ॥

सोचा था ...

बुढ़ापे के साथ

तन और मन ठंढा हो जाएगा… Continue

Added by baban pandey on August 8, 2010 at 7:31am — 4 Comments

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा

लडखडाते हुए तुमने जिसे देखा होगा
वो किसी शाख से टूटा हुआ पत्ता होगा


अजनबी शहर में सब कुछ ख़ुशी से हार चले
कल इसी बात पे घर घर मेरा चर्चा होगा

गम नहीं अपनी तबाही का मुझे दोस्त मगर
उम्र भर वो भी मेरे प्यार को तरसा होगा

दामने जीस्त फिर भीगा हुआ सा आज लगे
फिर कोई सब्र का बादल कहीं बरसा होगा

कब्र में आ के सो गया हूँ इसलिए अय तपिश
उनकी गलियों में मरूँगा तो तमाशा होगा
मेरे काव्य संग्रह ---कनक--से -

Added by jagdishtapish on August 7, 2010 at 8:41pm — 7 Comments

जिंदगी

जिंदगी के नशे मे है झूमती जिंदगी

मौत के कुएँ मे भी है घूमती जिंदगी



जिंदगी की कीमत तो जिंदगी ही जाने

रेगिस्तान मे जलबूँद है ढूँढती जिंदगी



हो गर जवाब तो वो लाजवाब ही होवे

हर पल ऐसे सवाल है पूछती जिंदगी



कोई मिला खाक मे, कोई खुद धुआँ हुवा

धरती ओर गगन के बीच है झूलती जिंदगी



किसी का गम किसी की मुस्कुराहट यहाँ

हर हाल मे मुस्कुराके आँखे है मूंदती जिंदगी



जान ले "मासूम " रुसवाई नही किसी को यहाँ

मौत के भी खुश होकर पग है… Continue

Added by Pallav Pancholi on August 7, 2010 at 3:30pm — 3 Comments

प्रशांत ! Copyright ©

कैसे विनम्र सा बैठा



अथाह सागर फैला हुआ



मौत सा सन्नाटा सुनाई देता



इसके अन्दर सिमटा हुआ



बंद करके आँखें मैं



लेट गया सफ़ेद रेत पे



सुनने को आतुर था मन



सुर जो बनता



लहरों के साहिल पे टकराने से



जब पूरा ध्यान उन लहरों पर था



और मन के सारे द्वार मैंने खोल दिए



पहचानने को वो शक्ति मैं था बैठा



ऐसा लगता मानो कह रहा सागर



धैर्य हूँ मैं



शंकर हूँ और शक्ति हूँ… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 7, 2010 at 1:24am — No Comments


मुख्य प्रबंधक
मेरी दूसरी ग़ज़ल

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,

क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,



मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए

बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,



माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,

डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,



इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,

फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,



मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,

चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,



कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,

ना… Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 7, 2010 at 1:00am — 27 Comments

yeh kaisaa saawan

यह कैसा सावन
--------------
सावन के झूलों के संग
हिलोरे लेती मैं
और मेरी
सतरंगी चुनर के रंग
कहाँ खो गए
अब के क्यों
बर्फ सी जमी है
सावन मैं
एहसास भी बर्फ सी
सफ़ेद चादर ओढ़े
सो गए.

Added by rajni chhabra on August 6, 2010 at 11:23pm — 4 Comments

हिन्दी वैभव: मगही / भोजपुरी / अंगिका / बघेली / उर्दू खड़ी बोली

हिन्दी वैभव:

हिन्दी को कम आंकनेवालों को चुनौती है कि वे विश्व की किसी भी अन्य भाषा में हिन्दी की तरह अगणित रूप और उन रूपों में विविध विधाओं में सकारात्मक-सृजनात्मक-सामयिक लेखन के उदाहरण दें. शब्दों को ग्रहण करने, पचाने और विधाओं को अपने संस्कार के अनुरूप ढालकर मूल से अधिक प्रभावी और बहुआयामी बनाने की अपनी अभूतपूर्व क्षमता के कारण हिन्दी ही भावी विश्व-वाणी है. इस अटल सत्य को स्वीकार कर जितनी जल्दी हम अपनी ऊर्जा हिन्दी में हिंदीतर साहित्य और संगणकीय तकनीक को आत्मसात करेंगे, अपना और हिन्दी का… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 6, 2010 at 7:57pm — 2 Comments

रैप टाइम (हास्य ) हिंगलिश- शैली

गिरते -पड़ते डांस करें, बिन सुर - ताल के गाना.

ये है रैप ज़माना - ये है रैप ज़माना.

स्कूल हो या कॉलेज हो, बस फिल्मों का नॉलेज हो.

क्या रखा है किताबों में, अलजबरा के हिसाबों में.

झगड़ा है इतिहासों में, टेंसन संधि- समासों में.

तर्कशास्त्र तो टेढ़ा है, इंगलिश एक बखेड़ा है.

राजनीति में पचड़ा है, अर्थशास्त्र एक दुखड़ा है.

कौन फंसे साइक्लोजी में, लफड़ा है बाईलोजी में.

पानीपत में कौन जीता, बेमतलब सर है खपाना.

ये है रैप ज़माना… Continue

Added by satish mapatpuri on August 6, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

कारगिल युद्ध के एक सैनिक का अंतिम क्षण

लेह से कारगिल तक का राजमार्ग

फिजाओं में घुला था बारूदी महक

हो भी क्यों ना

यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं

बोफोर्स्र तोपों का था ॥



अँधेरी रातों में

घावों से रिस रहा था मवाद

शरीर निढाल था

और पैर मानो

लोहे का बना था ....

मिलों तक थकान नहीं था

मगर कान जगे थे

और जब कान जागता हो

तो नींद कैसे आएगी ॥





धुल के गुब्बार

आखों में धुल नहीं झोक पाए

वह नेस्नाबुद करना चाहता था

चाँद -तारे उगे हरे झंडे

और फतह… Continue

Added by baban pandey on August 6, 2010 at 12:12pm — 2 Comments

कायरता या बुद्ध Copyright ©.







ज्ञात हैं हमें कि हर भाव

इतना शक्तिशाली होता है

कि वो आपका जीवन

बदल दे

असीम शक्ति का

प्रमाण है भाव

व्यक्त न भी हो सके तो

क्या

है वो ही प्रणाम

जो पशुओं और मनुष्य में

करता है चुनाव

एक ऐसा ही भाव है

कायरता।





कायरता, बुजदिली

या जो भी कह लो

अद्भुत शक्ति है इसमें

जो काया पलट दे

और साधारण से

असाधारण , अनुपम में बदल दे

भय हो जब हार… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 10:01pm — 2 Comments

2010 की अगस्त क्रांति Copyright ©

जैसे ही अगस्त आया है



वैसे ही सब कवियों ने



तिरंगा उठाया है



और स्याही में कलम डुबो के



सब को यह दिलासा दिलाया है



कि “हम भूले नहीं हैं



भारत हमारा है”



काला है , गोरा है



अभिशप्त है तो क्या हुआ



दरिद्र है तो क्या हुआ



भ्रष्ट है तो क्या हुआ



बाकी न सही पर



अगस्त आते ही हमे याद



ज़रूर आया है



भारत हमारा है।







शब्दावली से… Continue

Added by अनुपम ध्यानी on August 5, 2010 at 8:30am — 10 Comments

मुक्तिका: मन में दृढ़ विश्वास लिये. संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



मन में दृढ़ विश्वास लिये.



संजीव 'सलिल'

**

मन में दृढ़ विश्वास लिये.

फिरते हैं हम प्यास लिये..



ढाई आखर पढ़ लें तो

जीवन जियें हुलास लिये..



पिये अँधेरे और जले

दीपक सदृश उजास लिये..



कोई राह दिखाये क्यों?

बढ़ते कदम कयास लिये..



अधरों पर मुस्कान 'सलिल'

आयी मगर भड़ास लिये..



मंजिल की तू फ़िक्र न कर

कल रे 'सलिल' प्रयास… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 4, 2010 at 8:37am — No Comments

सुलेखा पांडे की तीन कविताएँ

अजनबीपन



दर्पण के पीछे है

एक और दर्पण

मन के भीतर है

एक और मन



शब्दों के जाल में

अनजाने भाव है

ऊपर से गहराई

नापते हैं हम



रात की सियाही में

दर्द के सैलाब पर

अंधेरे की चादर

तानते हैं हम



शूलों के दर्द में

फूल जो महका

उसकी ही रुह से

अनजान है हम



अपनी ही काया के

भीतर जो छाया है

उसकी सच्चाई कब

पहचानते हैं हम



दर्पण के पीछे..

मन के… Continue

Added by Narendra Vyas on August 3, 2010 at 4:12pm — 3 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल-6 (योगराज प्रभाकर)

कई बरसों के बाद घर मेरे चिड़ियाँ आईं

बाद मुद्दत ज्यों पीहर में बेटियाँ आईं !



ज़मीं वालों के तो हिस्से में कोठियाँ आईं,

बैल वालों के नसीबों में झुग्गियाँ आईं !



जाल दिलकश बड़े ले ले के मकड़ियां आईं

कत्ल हों जाएँगी यहाँ जो तितलियाँ आईं !



झोपडी कांप उठी रूह तलक सावन में,

ज्योंही आकाश पे काली सी बदलियाँ आईं !



ऐसे महसूस हुआ लौट के बचपन आया,

कल बड़ी याद मुझे माँ की झिड़कियां आईं !



बेटियों के लिए पीहर में पड़ गए ताले

हाथ… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on August 2, 2010 at 9:00pm — 7 Comments

क्षितिज के पार

नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm — 1 Comment

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
4 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service