नाशाद मेरा मिहिर तो जिंदगी वफात है
साँसों के गिर्दाब में इस रूह की निजात है l
साहिर है तेरी कलम में कुछ कमाल का
जैसे खून में भरा हो कुछ रंग गुलाल का l
हर्फों में छुपा रखी है सदियों की बेबसी
तेरे चेहरे पे अब देखती हूँ ना कोई हँसी l
बातों में बेरुखाई अब होती है इस कदर
बेजार सी जिंदगी जैसे बन गई हो जहर l
तासीर न कम होती है होंठों को भींचकर
या बेसाख्ता बहते हुये अश्कों से सींचकर…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 24, 2012 at 7:50pm — 9 Comments
मैं कौन हूँ ?
ये ही पूछा हैं न ?
ये मेरी ही दस्तक है
जो फैलाती हैं सुगंध
बनती है मकरंद.
जो काफी है
भौरों को मतवाला बनाने को
और कर देती है लाचार
बंद होने को पंखुड़ियों में ही
तुम नहीं देख पाए मुझको
उन परवानों के दीवानेपन में
जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर
क्या मैं नहीं होता हूँ
उन ओस की बूंदों में
जो गुदगुदाती हैं
प्रेमियों को
रिमझिम फुहार में
बस…
ContinueAdded by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments
सामान उठाते हैं
अब लौट के जाते हैं
दिल मेरा दुखाने को
अहबाब भी आते हैं
ये चाँद-सितारे भी
रातों को रुलाते हैं
जो टूट के मिलते थे
वो रूठ के जाते हैं
मैं उनका निशाना हूँ
वो तीर चलाते हैं
हम अपनी उदासी को
हँस-हँस के छुपाते हैं
की ख़ूब अदाकारी
पर्दा भी गिराते हैं
.......दीपक कुमार
Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments
याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और…
Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments
कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!
Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी छन्न पकैया में कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,
कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||
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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई
कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…
ContinueAdded by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
बीते कल का फ़साना
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 4, 2012 at 2:00pm — 10 Comments
सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से -
.
छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,
छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||
.…
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments
तमन्नाओं की ऊँची उड़ान
का आभास हुआ
जब कुछ बच्चों को
घर की मुंडेर
पर चढ़कर
पतंग उड़ाते देखा
अलग अलग रंगों की
छटा बिखेरती,
ऊँची और ऊँची
चढ़ रही थी
आसमान में
परिंदे उड़ते हैं जैसे ।
मेरी पतंग ही रानी है
शायद यही सोचकर
लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,
दूसरी पतंग धराशायी
हो गई
दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी
फिर मांझा चढ़ाया
और दूसरे ही क्षण
उसकी शहजादी करने…
ContinueAdded by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments
बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.
अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र.
तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.
देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.
अम्बरीष…
Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments
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