झूठ सुहाना होता प्रियवर
सबके ही मन भाता है
ऐसी है यह लिपि अनोखी
हर भाषा में चल जाता है
झूठ धर्म इतना समरस है
हर देश में रच-बस जाता है
समता का संदेश सुहावन
जन-जन में फैलाता है
झूठ जानती केवल अपनाना
नहीं किसी को ठगती है
सातों जन्म निभाती सुख से
वफा हमेशा करती है
झूठ तो एक भोली कन्या है
जो चाहे मन बहलाता है
जब चाहे जी अपनाता इसको
जब चाहे जी ठुकराता…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 31, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
कहो दर्द के देव तुम्हारे
चौबारे क्यों हमें डराय.. .
उदयाचल का
कोई जादू
कंगूरों पर
चल ना पाय
**कल जोड़े
भयभीत किरण भी
पल-पल काया
खोती जाय
पड़े तीलियों
के भी टोंटे
झूठे दीपक कौन जलाय ?
कहो दर्द के.....................
रोटी-बेटी
पर चिनगारी
रोज पुरोहित
ही रख आय
उलटा लटका
सुआ समय का
बड़े नुकीले
सुर में गाय
हर फाटक…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 30, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
सद्भावों की थोड़ी खूशबू
सरगम की आवाज बची है
आओ दिल का दीया जला लो
मुट्ठी में थोड़ी राख बची है
नई उमर के गर्म खून से
उठी हुई कुछ भाप बची है
श्रद्धा के कुछ बूंद जमे से
बचपन की एक शाख बची है
आओ दिल का.................
तेरी आरजू मेरी शिकायत
की मीठी तकरार बची है
जग से जाने के कुछ लम्हें
जीवन की सौगात बची है
आओ दिल का.................
घुटी व्यथा जो…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 24, 2013 at 6:29pm — 15 Comments
शब्द,
तेरी गंध
बड़ी सोंधी है
तेरी देह,
बड़ी मोहक है
अपनी उपत्यका में
एक मूरत गढ़ने दोगे ?
देखो न,
तेरे ही आंचल का
वह विस्मित फूल
मोह रहा है मुझे
और मेरे बालों में
अंगुली फिराती
बदन पर हाथ फेरती
मुझे सिहराती
सजाती, सींचती
वो तुम्हारी लाजवंती की साख
जब
चांद के दर्पण में
कैद
मेरी प्रतिच्छाया को
आलिंगन में भींच लेती है,
और मैं…
Added by राजेश 'मृदु' on January 23, 2013 at 12:00pm — 14 Comments
हर किसी को ग़म यहां पर
और तो ना दीजिए
हो सके तो मुस्कुराते
कारवां रच दीजिए
आ गई जो रात काली
तो नया है क्या हुआ
ये तो है किस्सा पुराना
राख इसपर दीजिए
लिख रहा जो लाल केंचुल
चीखते मज़हब नए
पोखराजी लेखनी ले
आप भी चल दीजिए
देखना क्या ये तमाशे
चार दिन का जब सफ़र
हर लहर को बस किनारे
का पता दे दीजिए
द़श्त सहरा खून पानी
लिख चुके कमसिन गज़ल
कुछ तराने अब ख़ुदा के
नाम भी कर दीजिए
दर्द के…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 17, 2013 at 2:30pm — 3 Comments
किसने रंग डाला है ऐसा
मारी किसने पिचकारी
ऐसे ही रंग मोहे रंग दे
हे मुरलीधर बनवारी
बह गए मेरे रेत घरौंदे
टूट गए आशा के हौदे
चाहे जितनी जुगत लगा लूं
कमती ना है दुश्वारी
कैसे बिखरे तान सहेजूं
किस जल से ये प्राण पखेजूं
सांझ के अनुपद धूनी रमाए
कह जाओ मुरलीधारी
शेष पहर छाया है पीली
भीत भरी अंखियां हैं नीली
धिमिद धिमिद नव नाद जगाते
आओ हे…
Added by राजेश 'मृदु' on January 16, 2013 at 5:05pm — 8 Comments
एक फसली जमीन को
तीन फसली करने का हुनर.....
धर्म के अंकुश तले
आकुल उड़ान की कला......
अभिशप्त़ कामनाओं को
ममी बनाने का शिल्प.......
कहां जानता है
एक अदना सा आदमी ?
वह जानता है
ताप, पसीना, थकान
विषाद, उत्पीड़न
और उससे उपजी
तटस्थता
जिसको उसने नहीं चुना,
वह जानता है
टीस, चुभन, दर्द, मरण
और इन्हें समेटकर
हो जाता है एकदिन…
Added by राजेश 'मृदु' on January 15, 2013 at 6:00pm — 14 Comments
जाने कौन कहां से आकर
मुझको कुछ कर जाता है
मेरी गहरी रात चुराकर
तारों से भर जाता है
जाने कौन.........
देख नहीं मैं पाउं उसको
दबे पांव वह आता है
और न जाने कितने सपने
आंखों में बो जाता है
जाने कौन.......
एक दिन उसको चांद ने देखा
झरी लाज से उसकी रेखा
मारा-मारा फिरता है अब
दूर खड़ा घबराता है
जाने कौन....
चैताली वो रात थी भोली
नीम नजर भर नीम थी डोली
वही तराने सावन-भादो
उमड़-घुमड़ कर गाता है …
Added by राजेश 'मृदु' on January 10, 2013 at 3:00pm — 6 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on January 8, 2013 at 11:30am — 4 Comments
मिर्च बुझी तेजाबी आंखें
हांक रहे चीतल,मृग, बांके
बुदबुद करते मूड़ हिलाते
वेद अनोखे बांच रहे हैं
अर्ध्वयु हैं पड़े कुंड में
जातवेद भी खांस रहे हैं
चमक रही कैलाशी बातें
दमक रही तैमूरी रातें
सांकल की ठंडी मजबूरी
खाप जतन से जांच रहे हैं
विविध वर्ण के टोने-टोटके
कितने सूरज फांस रहे हैं
बागड़बिल्लों के कमान में
पंजे, नख मिलते बयान में
पड़ी पद्मिनी भांड़ के पल्ले
खिलजी जमकर नाच रहे हैं
मिनरल वाटर हलक…
Added by राजेश 'मृदु' on January 4, 2013 at 5:06pm — 3 Comments
Added by राजेश 'मृदु' on January 3, 2013 at 2:22pm — 12 Comments
हर अध्याय
अधूरे किस्से
कातर हर संघर्ष
प्रणय, त्याग
सब औंधे लेटे
सिहराते स्पर्श
कमजोर गवाही
देता हर दिन
झुठलाती हर शाम
आस की बडि़यां
खूब भिंगोई
पर ना आई काम
इन बेखौफ लकीरों ने सबको किया तमाम
फलक बुहारे
पूनो आई
जागा कहां अघोर
मरा-मरा
आकाश पड़ा था
हुल्लड़ करते शोर
किसकी-किसकी
नजर उतारें
विधना सबकी वाम
हिम्मत भी
क्या खाकर मांगे
निष्ठुर दे ना दाम
इन बेखौफ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on January 2, 2013 at 4:30pm — 8 Comments
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