“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”
“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”
अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।
“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”
“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”
“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”
इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 27, 2015 at 10:00pm — 25 Comments
“अरे यार ओबामा साहब के रास्ते में कुत्ता आ गया, सुरक्षा व्यवस्था में भयंकर चूक हो गयी, अगर उसमें बम लगा होता तो?”
“कुछ नहीं यार “भारतीय कुत्ता” था, जान दे देता पर ओबामा साहब को कुछ नहीं होने देता, यार देश की इज्ज़त का सवाल था आखिर ।" जय हिन्द !
हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 1:00pm — 29 Comments
संघर्ष,
कहीं भी हो ,
कैसा भी हो,
होता, बहुत बुरा है ,
बहुत तड़पाता है,
काटता है ,
दुधारा छुरा है !
लेकिन,
संघर्ष न हो ,
तो सूख जाता है ,
मन का चमन ,
हर हाल में,हरा रखे ,
आदमी को,
संघर्ष वो सुरा है !
डरता,
जो पीने से ,
संघर्ष के,
छलकते हुए पैमाने ,
उस आदमी का जीवन,
बड़ा बेरंग,
बड़ा बेसुरा है !
लड़ता ,
हर आदमी…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 26, 2015 at 2:00am — 12 Comments
सुख-दुःख तो आते जाते हैं...................................
सुख-दुःख तो आते जाते हैं, राही मत घबरा जाना रे !
जीवन की गहरी नदियाँ में, हँसकर पतवार चलाना रे !
हमने कुछ देखी रीत यहाँ,..................................
हमने कुछ देखी रीत यहाँ, श्रम से ही सब कुछ मिलता है !
ईमान –धरम के काँटों में, तब फूल मुकद्दर खिलता है !
दौलत तो आनी जानी है.................................
दौलत तो आनी जानी है, ना मन इसमें उलझाना रे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 20, 2015 at 6:00pm — 21 Comments
सोचता हूँ मैं ,तुम कौन हो ?
सखी हो ,ईश्वर हो,
तुम मेरा प्यार हो,
तुम मेरा संसार हो !
करुणा हो, दुलार हो,
प्रेम की पुकार हो ,
तुम जीवन-आधार हो !
जीवन हो, स्पन्दन हो,
साँसों का गुंजन हो ,
तुम मेरा चिंतन हो !
हिम्मत हो जोश हो,
शक्ति का श्रोत हो,
प्रेम से ओत-प्रोत हो !
गगन हो , सर्जन हो,
सृष्टी का वरदान हो,
तुम मेरा अभिमान हो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 6:27pm — 16 Comments
“अरे क्या हुआ ये भीड़ कैसी है, कोई मर गया है क्या ?”
“हाँ यार वो साहब का नौकर, अरे वही यार जो साहब के घर के सारे काम करता था, झाड़ू - पोछा, चूल्हा-चौका ,बर्तन माँजने से लेकर सब्जी-भाजी लाने तक....जिसे साहब गाँव से लेकर आये थे, कहते थे चपरासी रखवा दूंगा डिपार्टमेंट में !”
“ओह वो गूंगा, वो तो बड़ा ही भला था और ठीक-ठाक भी, कैसे मरा ?”
“दोस्त, सब कह रहें हैं आत्महत्या कर ली, पर यार तू बताना मत किसी को, मेमसाहब की चेन चोरी हो गयी थी, कल रात पुलिस भी आई थी, बहुत मारा उसे, पर वह…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 1:57am — 20 Comments
अखण्ड आर्यावर्त की, उमंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
बुद्ध-कृष्ण-राम की, पुनीत –भूमि पावनी !
सुहार्द सम्पदा अनन्त, श्ष्यता संवारती !
सतार्थ धर्मं युद्ध में, सशक्त श्याम सारथी !
परार्थ में दधीचि ने, स्वदेह भी बिसार दी !!
निनाद कर रही उभंग, बंग वंदे मातरम् !
सुना रही है गंग की, तरंग वंदे मातरम् !!
धर्मं-जाति-वेश में, जरूर हम अनेक हैं !
परम्परा अनेक और बोलियाँ अनेक हैं…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 16, 2015 at 12:30am — 20 Comments
आत्मायें,
बिक चुकीं हैं,
बेचीं जा रहीं हैं,
कुछ असहाय,बिचारीं हैं,
कुछ म्रत्प्रायः,
कुछ मर चुकी हैं !
शरीर,
उन मृत आत्माओं का,
बोझ ढोए जा रहें हैं !
शब्द,
खो चुके अपना अर्थ,
उन अर्थहीन शब्दों से,
अच्छे दिनों के नारे लगा रहें हैं !
पैर,
चलना नहीं चाहते,
उन अनिच्छुक पैरों को ,
अच्छे दिनों की आस में,
कंटक पथों पर जबरन चला रहें हैं !
ईश्वर,
रंगमंच पर विद्यमान…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 14, 2015 at 1:08am — 19 Comments
बाउजी, आखिरकार वो “रोडियो वाली फिल्म” ने झंडे गाड़ दिए ,सनसनी पैदा कर दी है, और साहब सुना है की हीरो ने और जिसने फिल्म बनाई है उसने “करोड़ों रूपये अन्दर कर लिए हैं “ !
“हाँ बात तो सही कह रहा है तू .........तूने देखी है वो फिल्म ?”
नहीं साहब पैसे नहीं जुटा पाया, मैं लोगों के जूते सिलता ,पॉलिश करते हुए यहीं लोगों से उसकी कहानी सुनता रहता हूँ !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on January 13, 2015 at 10:33pm — 19 Comments
लग गयी हमारे-तुम्हारे प्यार को,
कुछ हवा शायद जो नज़र होती है !
और नज़र उतारती थी जो अम्मा,
अब कौन जानता किधर सोती है !
मुस्कराते थे पनघट, जो हम पर ,
उनकी हँसी अब उन्हीं पर रोती है !
लगे हमारे तुम्हारे मिलन पर पहरे,
दीवार हर बात- बात पर रोती है !
मिल नहीं पाता मैं अब तुमसे ,
तुमसे ख्वाबों में मुलाकात होती है !
दिन नहीं होता धरती पर अब ,
अब धरती पर सिर्फ रात होती…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 11, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
जब भी उमड़ घुमड़ कर काले बादल नभ में आते हैं,
पुरवाई के झोंके आ आकर चुप-चुप दस्तक दे जातें हैं !
मेरे कानों में आ चुपके से तुम कुछ कह जाती हो,
मुझको लगता फिर बार-बार तुम अपने गावँ बुलाती हो !!
कहती हो आकर देखो फिर ताल-तललिया भर आई,
आकर देखो वन उपवन में फिर से हरियाली छाई !
शुष्क लता वल्लारियाँ भी अब दुल्हन बन इठलाती हैं,
कुञ्ज बनाकर आँख मिचौली खेल –खेल मुस्कातीं हैं !!
बुढा बरगद फिर छैला बन पुरवाई संग झूम रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 9, 2015 at 2:00am — 14 Comments
लेकर बेठे हो, सारी नदियाँ
अनंत मूल्यवान, वनस्पतियाँ
भरपूर वन्य-जीव प्रजातियाँ
दिव्य देवताओं की, सम्पतियाँ
फिर भी करते रहते हो तुम
हरे भरे हिमालय, के लिए
आन्दोलन पर आन्दोलन
दिल्ली दरबार, वातानुकूलित कमरे
निशा में, आचमन पर आचमन
हमसे पूछो, हम कैसे जीते हैं
अपनी आँखों के आंसू पीते हैं
यहाँ सूख चुकी सारी नदियाँ
नष्ट हो गयी वनस्पतियाँ
लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियाँ
लुट गयी देवों की…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 7, 2015 at 5:00pm — 20 Comments
मरुस्थलीय मृगतृष्णा
*****************
तुम कहती हो
प्रतिभाशाली बनो
पर मैं असक्त
प्रतिभाओं का बोझ
उठा नहीं सकता
मरुस्थलीय मृगतृष्णा के
पीछे भाग नहीं सकता
जिस शून्यता की अवस्था में
जी रहा हूँ , क्या उसमे
तुमको पा नहीं सकता ?
मुझ शुन्य को अब
तुम्हारा ही सहारा है
तुमसे जुड़कर ही मेरा
कोई आधार बनेगा
यह गतिहीन जीवन
कुछ आगे बढेगा
मेरे हृदय के पवित्र भावों…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 12:30pm — 19 Comments
"देखिये श्रीमान आपका बेटा फिर से हर विषय में फेल हो गया है, किसी में 5, किसी में 6, किसी में 7 नंबर, इसीलिए आपको बुलाना पड़ा I लीजिये आप खुद ही इसकी सारी कॉपी देख लीजिये I" "
"अरे गुरूजी ये लीजिये, अब लिफाफा पकड भी लीजिये, आपका ही बच्चा है ,बस एक-एक शून्य लगा दीजिये I"
.
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 1:30pm — 12 Comments
नवजीवन में नव आशा से
नव नूतन कुछ कर्म करें
नव भक्ति से नव शक्ति से
शुभ नया वर्ष प्रारम्भ करें !
नयी सोच हो नए इरादे
नव सरिता की गागर हो
लक्ष्य नए आयाम नए
नव अभिलाषा का सागर हो !
नव बातें नव किस्सें हो
पर पीपल वही पुराना हो
हो ताल नयी हो राग नए
पर मन में वही तराना हो !
हो नया जोश हो नया सफ़र
नव नौका हो नव धारा हो
नव रिश्तें हों नव जीवन के
पर प्रेम पुरातन प्यारा हो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 2, 2015 at 7:00pm — 20 Comments
राजा बहुत हैं, शतरंज के इस खेल में,
इनक़लाब का शोर कब तक मचाओगे ?
अभाव बहुत हैं, अंधेरों के इस खेल में ,
गीत उजियारो के कब तक सुनाओगे ?
तलवारें बहुत हैं, अधर्म के इस खेल में,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on January 2, 2015 at 3:10am — 17 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |