For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ram shiromani pathak's Blog – February 2013 Archive (15)

"नेता जी "

झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!


नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!


दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )

Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments

"कुछ दोहे " (एक प्रयास)

यदि अंकुश हो क्रोध पर, सहनशीलता पास !

वहां पाप होता नहीं, हो खुशियों का वास !!

*********************************************

गुरुजन की सेवा करो, रहो बढ़ाते ज्ञान !

यदि करना जीवन सफल, दो इनको सम्मान !!

********************************************

धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,

कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!

********************************************

लोगों  में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !

कलह क्लेश  ना फिर वहां, हो प्रसन्न…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments

"कभी हँस भी लिया करो जी "

बस लो भाई राम का नाम ,

बन जायेंगे बिगड़े काम !!



आशिकी का बुखार चढ़ा है ,

आशिकी में करना है नाम!

भेजो ऐसी सुन्दर कन्या ,

जो पिलाए इश्क का ज़ाम!!



इधर ढूंढा,उधर ढूंढा,

हो गई सुबह से शाम !

बेबस ,लाचार सा बैठा .

छोड़कर सब अपने काम !



गर्ल्स होस्टल के चक्कर काटकर,

बन गया हूँ उनका दुश्मन!

लड़कियाँ खोज़ती रहती मुझको ,

लिए हाँथ हाकी तमाम !



गर पिट गया तो गम नहीं ,

चलो ये दर्द भी सह लूँगा !

लेकिन अंत में भेज…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 26, 2013 at 9:22pm — 5 Comments

"प्रेम के नाम दो शब्द "

घर की रौनक ,

चौधवीं का चाँद हो !

मेरी दुआ .

मेरी फ़रियाद हो  !



तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,

तुम्ही मेरी गीत हो !

तुम्ही मेरी हार .

तुम्ही मेरी जीत हो !



मेरी…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment

"कण -कण के वासी "

हे शिव स्नेह के सागर ,

भर दो प्रेम गागर ,

मोह माया के तम से,

मुक्त कीजै आकर!



बंधनों से मुक्त करो ;

इतनी कृपा कर दो !

मुझे मलिन संसार से ,

अब तो पृथक कर दो !…



Continue

Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments

"स्वर्ग इसी धरा पर ही है"

मंद -मंद बयार का झोका ,
पेड़ की टहनियों का झुकना!
झरने से निकलती कल-२ ध्वनि ,
दिनकर का बदली में छुपना!


प्रसून से निकलती सुगंध,
वृक्षों का आलिंगन करना !
चिड़ियों का मधुर गुनगुनाना ,
खुशियों भरा सुन्दर बहाना !


नदियों वृक्षों संग गुज़ारा ,
प्रकृति का अनुपम खज़ाना !
स्वर्ग इसी धरा पर ही है ,
सभी प्राणियों को बतलाना !


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 12:13pm — 11 Comments

"इस दर्द से उबार दो "

ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !


नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!


ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!


काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!


राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments

बस कहूँगा राम-राम!

इस मलिन बस्ती से,

दूर जाना चाहता हूँ !

सब स्वार्थ से घिरे है ,

थोड़ा आराम चाहता हूँ !



ऐसा नहीं कि मै कमज़ोर हूँ ,

इनसे नहीं लड़ सकता !

अपनत्व दिखाते है फिर भी ,

चलते हैं चाल कुटिलता…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:00pm — 6 Comments

"मेरी याद आयेगी "

जब कभी ख़ुद रोना होगा ,
मेरी याद आयेगी तब तुझको !

बेइज्ज़त करेंगे अपने बेईमान कहकर ,
बेवफ़ा वो ख़ुद बेवफ़ा कहेंगे जब तुझको!

अँधेरे में पड़े रहोगे हमेशा,
लोग उजाला कहेंगे जब तुझको!

टूटी हुई कश्ती भी धोखा देगी ,
निगल जायेगा दर्द का समंदर जब तुझको!

दर्द आँखों में सीने में घाव होगा,
ज़िन्दगी ओढ़ा देगी जब कफ़न तुझको!

राम शिरोमंनी पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 8, 2013 at 7:19pm — 2 Comments

" कलयुग"

आलीशान वाहन में देखा ,
बैठा था एक सुन्दर पिल्ला !
खाने को इधर रोटी नहीं ,
गटक रहा था वह रसगुल्ला !

इर्ष्या हुयी पिल्ले से ,
क्रोध आ रहा रह-रह कर !
मै भूख से मर रहा ,
यह खा रहा पेट भरकर !

देख रहा ऐसी नज़रों से,
मानों समझ रहा भिखारी
सोचने पर मजबूर था ,
इतनी दयनीय दशा हमारी!

आदमी मरेगा भूख से ,
पिल्ला रसगुल्ला खायेगा !
किसी ने सच ही कहा है ,
ऐसा कलयुग आयेगा!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 8:30pm — 1 Comment

"हम कहाँ हैं"

विकास तो बहोत किये ,

फिर भी हम पिछड़ गये ,

पाना था जो उत्कर्ष ,

उससे ही बिछड़ गये !!

प्रयास के उपरांत भी ,

ऐसा क्यूँ होता है !

जिसको हँसना चाहिए ,

वह स्वयं रोता है !

स्वच्छता की बात करने वाला ,

खुद गन्दगी नहीं धोता है ,

जिसको जागना चाहिए ,

वही अब सोता है!!

एक नई सोच ,

एक नई लालसा  !

दिल में लिए हुये,

पाट रहा हूँ फासला !!

हारना नहीं है मुझे ,

लड़ता ही रहूँगा !

संघर्ष ही जीवन है, 

प्रयास करता…

Added by ram shiromani pathak on February 5, 2013 at 8:30pm — 2 Comments

"अंतिम इच्छा"

आते हुये लोग ,

जाते हुये लोग !

जीवन का सुख दुःख ,

आनंद और भोग !!

असली आनंद विदेशों में ,

विदेश यात्रा का सुख ,

खुश और कृत कृत हो जाऊ ,

भूलूं जीवन भर का दुःख !!

वहां का…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 1:28pm — 7 Comments

'दो शब्द "

एक मीठी तकरार ,
एक दुसरे पर अधिकार!
यही तो कहलाता है ,
एक संयुक्त परिवार !!
********************
रोने से क्या होता है ,
यहाँ लड़ना पड़ता है !
कर्महीन और कायर ही ,
उत्पीडन झेला करता है !
***********************
रोते को हँसा कर देखो,
भूखे को खिलाकर देखो !
कितनी आत्म शांति इसमे ,
एक बार आज़माकर देखो…
Continue

Added by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 12:59pm — 6 Comments

"आश्रित"

आदत हो गयी है,

आंख बंद करने की!

अच्छा बुरा कुछ भी हो ,

आदत हो गयी सहने की !!

आश्रित बनकर जीते है,

फेकी हुयी रोटी खाते है ,

हत्या कर देते है स्वाभिमान की ,

शायद! इसलिए झुककर जीते है !!

हम एक झूठी दुनियां में ,

अधखुली नींद सोते है!

वाह्य कठोरता दिखाते है !

अन्दर से फिर क्यूँ रोते है !!

आडम्बरों से भरा जीवन ,

बन चुकी कमजोरी है ,

वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं ,

क्या ऐसा करना ज़रूरी है !!

आखिर कब तक यूँ…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 4:09pm — 1 Comment

"गरीबी में आटा गीला"

गरीबी में हुआ गीला आटा,

फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !

रोटी छीन गयी क्षण भर में ,

खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!

क्या रोटी हो गयी अनमोल ,

इश्वर अब तो कोई पथ खोल !

मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल  मन से ,

कब दूर होगी गरीबी इस जीवन  से !

इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,

अब तो दिखा दो कोई राह !!!!

ईश्वर !

गरीबी का करो अभिषेक ,

थोड़ा लगाओ अपना विवेक !

यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,

सदैव गीला आटा पाओगे !

हटाओ ये गरीब की ओट,

तू…

Continue

Added by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:30pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
15 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service