झूठे वचन हैं जिसके ,भाषण जिसका काम !
खाये सबकी गालियाँ ,नेता उसका नाम !!
नेता उसका नाम,जो लूटकर ही खाये !
बेचकर शर्म लाज,स्वयं को सही बताये !!
दिखता बंदरबाट ,तो जनता क्यूँ न रूठे !
नहीं रहा विश्वास ,सभी नेता है झूठे!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
(मौलिक/अप्रकाशित )
Added by ram shiromani pathak on February 28, 2013 at 8:27pm — 9 Comments
यदि अंकुश हो क्रोध पर, सहनशीलता पास !
वहां पाप होता नहीं, हो खुशियों का वास !!
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गुरुजन की सेवा करो, रहो बढ़ाते ज्ञान !
यदि करना जीवन सफल, दो इनको सम्मान !!
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धन की चंचल चाल है, क्यूँ करते विश्वास ,
कुछ दिन तेरे साथ है, कल फिर उसके पास !!
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लोगों में संस्कार हो, उत्तम हो व्यवहार !
कलह क्लेश ना फिर वहां, हो प्रसन्न…
Added by ram shiromani pathak on February 27, 2013 at 9:00pm — 18 Comments
बस लो भाई राम का नाम ,
बन जायेंगे बिगड़े काम !!
आशिकी का बुखार चढ़ा है ,
आशिकी में करना है नाम!
भेजो ऐसी सुन्दर कन्या ,
जो पिलाए इश्क का ज़ाम!!
इधर ढूंढा,उधर ढूंढा,
हो गई सुबह से शाम !
बेबस ,लाचार सा बैठा .
छोड़कर सब अपने काम !
गर्ल्स होस्टल के चक्कर काटकर,
बन गया हूँ उनका दुश्मन!
लड़कियाँ खोज़ती रहती मुझको ,
लिए हाँथ हाकी तमाम !
गर पिट गया तो गम नहीं ,
चलो ये दर्द भी सह लूँगा !
लेकिन अंत में भेज…
Added by ram shiromani pathak on February 26, 2013 at 9:22pm — 5 Comments
घर की रौनक ,
चौधवीं का चाँद हो !
मेरी दुआ .
मेरी फ़रियाद हो !
तुम्ही मेरी ग़ज़ल ,
तुम्ही मेरी गीत हो !
तुम्ही मेरी हार .
तुम्ही मेरी जीत हो !
मेरी…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 10:00pm — 1 Comment
हे शिव स्नेह के सागर ,
भर दो प्रेम गागर ,
मोह माया के तम से,
मुक्त कीजै आकर!
बंधनों से मुक्त करो ;
इतनी कृपा कर दो !
मुझे मलिन संसार से ,
अब तो पृथक कर दो !…
Added by ram shiromani pathak on February 19, 2013 at 3:40pm — 5 Comments
मंद -मंद बयार का झोका ,
पेड़ की टहनियों का झुकना!
झरने से निकलती कल-२ ध्वनि ,
दिनकर का बदली में छुपना!
प्रसून से निकलती सुगंध,
वृक्षों का आलिंगन करना !
चिड़ियों का मधुर गुनगुनाना ,
खुशियों भरा सुन्दर बहाना !
नदियों वृक्षों संग गुज़ारा ,
प्रकृति का अनुपम खज़ाना !
स्वर्ग इसी धरा पर ही है ,
सभी प्राणियों को बतलाना !
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 17, 2013 at 12:13pm — 11 Comments
ग़म की बस्ती में पड़ा हूँ ,
इस दर्द से उबार दो !
सच्चा ना सही ,
पर झूठा ही प्यार दो !
नफ़रत के इस रेगिस्तान में ,
प्यार की एक फुहार दो!
हमेशा के लिए ना सही,
पल भर के लिए उधार दो!
ग़मों को जो काट सके,
एक ऐसा औज़ार दो!
रस्ते से जो ना भटकाए,
एक ऐसा मददगार दो!
काट दूँ पूरी ज़िन्दगी,
पल ऐसा यादगार दो!
हो हमेशा खुशियाँ ही खुशियाँ,
एक ऐसा त्यौहार दो !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 16, 2013 at 3:24pm — 6 Comments
इस मलिन बस्ती से,
दूर जाना चाहता हूँ !
सब स्वार्थ से घिरे है ,
थोड़ा आराम चाहता हूँ !
ऐसा नहीं कि मै कमज़ोर हूँ ,
इनसे नहीं लड़ सकता !
अपनत्व दिखाते है फिर भी ,
चलते हैं चाल कुटिलता…
Added by ram shiromani pathak on February 12, 2013 at 7:00pm — 6 Comments
जब कभी ख़ुद रोना होगा ,
मेरी याद आयेगी तब तुझको !
बेइज्ज़त करेंगे अपने बेईमान कहकर ,
बेवफ़ा वो ख़ुद बेवफ़ा कहेंगे जब तुझको!
अँधेरे में पड़े रहोगे हमेशा,
लोग उजाला कहेंगे जब तुझको!
टूटी हुई कश्ती भी धोखा देगी ,
निगल जायेगा दर्द का समंदर जब तुझको!
दर्द आँखों में सीने में घाव होगा,
ज़िन्दगी ओढ़ा देगी जब कफ़न तुझको!
राम शिरोमंनी पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 8, 2013 at 7:19pm — 2 Comments
आलीशान वाहन में देखा ,
बैठा था एक सुन्दर पिल्ला !
खाने को इधर रोटी नहीं ,
गटक रहा था वह रसगुल्ला !
इर्ष्या हुयी पिल्ले से ,
क्रोध आ रहा रह-रह कर !
मै भूख से मर रहा ,
यह खा रहा पेट भरकर !
देख रहा ऐसी नज़रों से,
मानों समझ रहा भिखारी
सोचने पर मजबूर था ,
इतनी दयनीय दशा हमारी!
आदमी मरेगा भूख से ,
पिल्ला रसगुल्ला खायेगा !
किसी ने सच ही कहा है ,
ऐसा कलयुग आयेगा!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on February 6, 2013 at 8:30pm — 1 Comment
विकास तो बहोत किये ,
फिर भी हम पिछड़ गये ,
पाना था जो उत्कर्ष ,
उससे ही बिछड़ गये !!
प्रयास के उपरांत भी ,
ऐसा क्यूँ होता है !
जिसको हँसना चाहिए ,
वह स्वयं रोता है !
स्वच्छता की बात करने वाला ,
खुद गन्दगी नहीं धोता है ,
जिसको जागना चाहिए ,
वही अब सोता है!!
एक नई सोच ,
एक नई लालसा !
दिल में लिए हुये,
पाट रहा हूँ फासला !!
हारना नहीं है मुझे ,
लड़ता ही रहूँगा !
संघर्ष ही जीवन है,
प्रयास करता…
Added by ram shiromani pathak on February 5, 2013 at 8:30pm — 2 Comments
आते हुये लोग ,
जाते हुये लोग !
जीवन का सुख दुःख ,
आनंद और भोग !!
असली आनंद विदेशों में ,
विदेश यात्रा का सुख ,
खुश और कृत कृत हो जाऊ ,
भूलूं जीवन भर का दुःख !!
वहां का…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 1:28pm — 7 Comments
Added by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 12:59pm — 6 Comments
आदत हो गयी है,
आंख बंद करने की!
अच्छा बुरा कुछ भी हो ,
आदत हो गयी सहने की !!
आश्रित बनकर जीते है,
फेकी हुयी रोटी खाते है ,
हत्या कर देते है स्वाभिमान की ,
शायद! इसलिए झुककर जीते है !!
हम एक झूठी दुनियां में ,
अधखुली नींद सोते है!
वाह्य कठोरता दिखाते है !
अन्दर से फिर क्यूँ रोते है !!
आडम्बरों से भरा जीवन ,
बन चुकी कमजोरी है ,
वास्तविकता से सम्बन्ध नहीं ,
क्या ऐसा करना ज़रूरी है !!
आखिर कब तक यूँ…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on February 3, 2013 at 4:09pm — 1 Comment
गरीबी में हुआ गीला आटा,
फिर से लगा ज़ोरदार चांटा !
रोटी छीन गयी क्षण भर में ,
खड़ा हो गया गरीबी के रण में !!
क्या रोटी हो गयी अनमोल ,
इश्वर अब तो कोई पथ खोल !
मै अधीर ,व्यग्र ,व्याकुल मन से ,
कब दूर होगी गरीबी इस जीवन से !
इश्वर कब दूर होगा दुःख दाह,
अब तो दिखा दो कोई राह !!!!
ईश्वर !
गरीबी का करो अभिषेक ,
थोड़ा लगाओ अपना विवेक !
यदि इमानदारी की रोटी खाओगे ,
सदैव गीला आटा पाओगे !
हटाओ ये गरीब की ओट,
तू…
Added by ram shiromani pathak on February 2, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
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