आहत युग का दर्द चुराने आया हूं
बेकल जग को गीत सुनाने आया हूं
कोमल करुणा भूल गये पाषाण हुये
दिल में सोये देव जगाने आया हूं
आँगन आँगन वृक्ष उजाले का पनपे
दहली दहली दीप जलाने आया हूं
ग़ालिब तुलसी मीर कबीरा का वंशज
मैं भी अपना दौर सजाने आया हूं
दिल्ली बतला गाँव अभावों में क्यूं है
नीयत पर फिर प्रश्न उठाने आया हूं
सिस्टम इतना भ्रष्ट हुआ, जिंदा होकर
इसके दस्तावेज़ जुटाने आया…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 10:09am — 11 Comments
मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों
कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों
उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से
घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों
करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर
व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों
सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम
मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों
लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम
जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 12:49pm — 22 Comments
कहूँ आपसे क्या थकन की कहानी
न समझोगे गाफ़िल बदन की कहानी
बनाती है ज़र्रे को रोशन सितारा
लुभाती बहुत है लगन की कहानी
समझ लो य’ अश्कों का सावन निरख कर
लबों से कहूँ क्या नयन की कहानी
जली उँगलियों से ज़रा पूछ आओ
कहेंगे फफोले हवन की कहानी
हर इक गम को ढाला ग़ज़ल में मुसल्सल
है झूठी अदीबों ग़बन की कहानी
सुनाते मिलेंगे चहकते चहकते
कफ़स में परिंदे चमन की कहानी
किरन दर…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 25, 2015 at 11:00am — 8 Comments
ग़ज़ल में दर्द ढल कर आ रहा है अब
कोई दरिया मचल कर आ रहा है अब
बड़े साहब ने इक साँचा बनाया है
जिसे देखो पिघल कर आ रहा है अब
ज़रा सा होश खोते ही हुआ जादू
जुबां पर सच निकल कर आ रहा है अब
चलो अच्छा हुआ जो ठोकरें खायी
गिरा लेकिन सँभल कर आ रहा है अब
बनाया मोम से पत्थर जिसे मैंने
मेरी जानिब उछल कर आ रहा है अब
गरज़ ढुलते ही रस्ता हो गया चिकना
मेरे घर वो फिसल कर आ रहा है…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 10:23am — 21 Comments
आँज गगन का नील निगाहें
लगती गहरी झील निगाहें
माँस बदन पर दिख जाये तो
बन जाती है चील निगाहें
आन टिकी है मुझ पर सबकी
चुभती पैनी कील निगाहें
बंद गली के उस नुक्कड़ पर
करती है क्या डील निगाहें
इक पल में तय कर लेती है
यार हज़ारों मील निगाहें
बाँध सकेगा मन क्या इनको
देती मन को ढील निगाहें
दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे
किरणों से मत छील निगाहें
मौलिक व…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 18, 2015 at 3:30pm — 18 Comments
मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा
जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा
चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में
उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा
आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में
उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा
इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन
आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा
गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं
चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा
खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन
जेठ दुपहरी…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:29am — 24 Comments
२१२२ — १२१२ — ११२(२२)
खिल रहे हैं सुमन बहारों में
झूमता है पवन बहारों में
ओढ़कर फागुनी चुनर देखो
सज गया है चमन बहारों में
आइने की तरह चमकता है
निखरा निखरा गगन बहारों में
यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों
हो गया शोख़ मन बहारों में
देखते हैं खिलाता है क्या गुल
आपका आगमन बहारों में
हो धनुष कामदेव का जैसे
तेरे तीखे नयन बहारों में
घुल गई है फिज़ा में मदिरा…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
1222-1222-1222-1222
दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत
रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत रियाज़त=परिश्रम
तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर
शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी
ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी
दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत
मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:00pm — 13 Comments
1222--1222--1222--1222
ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं
तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं
अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों
तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं
ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी
जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं
हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी
मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं
लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर…
ContinueAdded by khursheed khairadi on February 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments
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