होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला
अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला
खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी
फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी
भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके
प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2018 at 7:17pm — 5 Comments
ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)
1222 1222 1222 1222
तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,
हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।
तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी
यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।
मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,
इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।
जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,
झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।
नहीं कम ब्लॉग में मस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2018 at 11:30am — 9 Comments
122 122 122 122
मुझे ढ़ाल दे अपने ही ढंग से अब
सराबोर कर खुद के ही रंग से अब
ज़रूरी है ख़श्बू फ़िज़ाओं में बिखरे
बदन की तुम्हारे मेरे अंग से अब
न मुझसे चला जा रहा होश में है
तू मदहोश कर रूप की भंग से अब
है महफ़िल में भी मन हमारा अकेला
उमंगें इसे दे तेरे संग से अब
न जाने है कैसी जो मिटती नहीं है
मनस सींच तू प्रीत की गंग से अब
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2018 at 10:30am — 8 Comments
होली के दोह
मन करता है साल में, फागुन हों दो चार
देख उदासी नित डरे, होली का त्योहार।१।
चाहे जितना भी करो, होली में हुड़दंग
प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।
तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल
रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।
फागुन में गाते फिरें, सब रंगीले फाग
उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।
घोट-घोट के पी रहे, शिव बूटी कह भाँग
होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments
2122 2122 2122 2122
इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब
चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब
जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला
पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब
जो रफू कर दें किसी औरत के आँचल को नज़र से
अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब
हो गये पत्थर के जैसे फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ
हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब
क्या बचा है मर्म इसमें क्या करोगे इसको…
Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments
रूठो न दिलदार कि होली आई है
झूम उठा संसार कि होली आई है
-
साजन हैं परदेस न भाए रंग-अबीर
गोरी के आँखों से बहता झर-झर नीर
ख़त में साजन को ये लिखकर भेजा है
तुम बिन नहीं क़रार कि होली आई है
-
होली के दिन बदला हर रुख़सार लगे
रंग-बिरंगा होली का श्रंगार लगे
पिए भांग हैं मस्त फाग की टोली में
बरसे रंग-फुहार कि होली आई है
-
होली के दिन बड़ों का आशीर्वाद रहे
छोटो के संग होली का पल याद रहे
हर मज़हब के लोग खुशी मे खोए हैं
रंगो का…
Added by SALIM RAZA REWA on March 1, 2018 at 5:51pm — 25 Comments
समय का काला
क्रूर धुआँ
आख़िरकार
तैर गया आँखों में
बन के मोतियाबिंद
बड़ा चुभता है आठों पहर
उन दिनों आँखें
बड़ी व्यस्त रहती थी
किसी के दिल को लुभाती थी
किसी के मन को भाती थी
सारा संसार समाया था इनमें
लेकिन धीरे-धीरे
इनका यौवन फीका पड़ गया
पहले जैसा कुछ भी नहीं रहा
अब ये आँखें
पथराई-सी
डबडबाई-सी
लाचार-सी रहती है
बस यही पहचान रह गई है इनकी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on March 1, 2018 at 5:00pm — 16 Comments
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