“ए बच्ची सुन,यहाँ जेल में किससे मिलने आई है !”
“जी सरकार ,अपने पिताजी से !”
“ पर तू तो भले घर की लगती है, और तेरा बाप जेल में, क्या हुआ था ?”
“साहब एक हादसा हो गया था !”
“कैसा हादसा ,कब ?
“ जी ,सब कहतें हैं मेरे पैदा होने के समय !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:52pm — 12 Comments
“कार से एक लड़की उतरी और बस स्टैंड की तरफ बढ़ी, एक बुजुर्ग से बोली, अंकल ये ‘मौर्या शेरेटन’ जाने का रास्ता किधर से है, बेटा आगे से जाकर दायें हाथ पर मुड़ जाना, जी शुक्रिया, तभी उसके कानों में एक मधुर संगीत गूँज उठा, “ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी....! “
“उसने पलट कर देखा, रंगीन चश्मा लगाए हुए एक लड़का गा रहा था, बस देखते ही लड़की का पारा गर्म हो गया और तभी उसने उसे एक झापड़ दे मारा, ये ले!”
“बस इतना देखते ही वहाँ खड़े लोग उस पर टूट पड़े और चप्पल, लात,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 28, 2015 at 3:12pm — 8 Comments
मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,
जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !
मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,
एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,
नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !
चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,
चौदहवीं का चाँद
जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !
मैं हूँ बीमारे गम …………
जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,
शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 9:00am — 16 Comments
दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,
अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !
आदमी कुछ भी नहीं, एक एहसास तो है,
शुन्य जैसा ही सही, एक आकाश तो है !
टूटा बिखरा हो कहीं, एक विश्वास तो है,
इस हक़ीकत को हम ,अब न भुला पायेंगे !
दो विदाई, अब तो कहीं दूर निकल जाएँगे ,
अब तो ये गीत कहीं और जा के गाएँगे !!
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hari Prakash Dubey on March 24, 2015 at 2:57am — 14 Comments
नीली बत्ती की एक अम्बेसडर कार तेजी से आकर रुकी और ‘साहब’ सीधा निकलकर अपने केबिन में चले गए ! पीछे – पीछे ‘बड़े-बाबू’ भी केबिन की तरफ भागे ! तभी एक आवाज आई ,“ क्या बात है ‘बड़े-बाबू’ बड़े पसीने से लतपथ हो , कहाँ से आ रहे हो ?”
“ पूछो मत ‘नाज़िर भाई’ , नए ‘साहब’ के साथ गाँव- गाँव के दौरे पर गया था, राजा हरिश्चंद्र टाईप के लग रहें हैं, मिजाज भी बड़ा गरम दिख रहा है, आपको भी अन्दर तलब किया है , आइये , मनरेगा, जल-संसाधन और बजट वाली फ़ाइल भी लेते हुए आइयेगा ! “
“ठीक है, आप चलिए मैं आ रहा…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 21, 2015 at 4:04am — 22 Comments
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
बिस्तर पर लेटी राज दुलारी ,
पर उसको चोट लगी है भारी ,
लौटा दो फिर से उसकी हँसी,
उसे धीरे से गुदगुदाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
तरह - तरह के मर्ज पड़े है,
जाने कितने दुःख-दर्द पड़ें हैं,
पीड़ा कम हो जाए उनकी,
ऐसा मरहम लगाया करो !
रात की रानी अस्पताल में,
तुम फिर से मुस्कराया करो !!
कुछ…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 8:33pm — 28 Comments
2122--2122--2122--212
इक यही सूरत बची है आज़्मा कर देखिये
दोस्ती अब दुश्मनों से भी निभाकर कर देखिये
आँख से रंगीन चश्में को हटाकर देखिये
जिंदगी के रंग थोड़ा पास आकर देखिये
रोज खुश रहने में दिल को लुत्फ़ मिलता है मगर
जायका बदले ज़रा सा ग़म भी खाकर देखिये
कल बड़ी मासूमियत से आईने ने ये कहा
हो सके तो आज मुझको मुस्कराकर देखिये
छोड़ कर इन ख़ामोशियों को चार दिन तन्हाँ कहीं
आसमां को भी कभी सर…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 3:30am — 16 Comments
अपने कोकून को
तोड़ दिया है मैंने अब
जिसमे कैद था, मैं एक वक़्त से
और समेट लिया था अपने आप को
इस काराग्रह में ,एक बंदी की तरह !
निकल आया हूँ बाहर , उड़ने की चाह लिए
अब बस कुछ ही दिनों में, पंख भी निकल आयेंगे
उड़ जाऊंगा दूर गगन में कहीं , इससे पहले की लोग
मुझे फिर से ना उबाल डालें , एक रेशम का धागा बनाने के लिए
और उस धागे से अपनी , सतरंगी साड़ियाँ और धोतियाँ बनाने के लिए !!
© हरि प्रकाश दुबे
“मौलिक व अप्रकाशित…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 12, 2015 at 3:30pm — 26 Comments
“आज स्त्री दिवस है भाई, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, ८ मार्च है ना, समझे कुछ !”
“किस लिए मना रहें हैं भईया, और कबसे ?”
“ अरे यार एकदम बकलोल हो क्या ? अरे महिलाओं के लिए, उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने और उन महिलाओं को याद करने के लिए जिन्होंने महिलाओं के लिए प्रयास किए, अरे १९०९ से मना रहें हैं १०० साल से जयादा हो गए मनाते हुए, कुछ पढ़ते नहीं हो क्या ? !”
“तब भइया, रोज क्यों नहीं मनाते, देखिये न सभी स्त्रीयां सुबह से रात तक घर, परिवार,समाज का कितना…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 3:16pm — 27 Comments
22--22—22--22--22—2
मैं तो हूँ फ़कीर मैं झूमता चला हूँ
आदाब कर खुदा को नाचता चला हूँ
मस्त हूँ ख़ुशी मैं कहूं इसे ही जीना
गम के भँवर मैं मस्त तैरता चला हूँ
मौत क्या बला है मैंने इसे न जाना
जिंदगी मिली है बस भागता चला हूँ
बड़ी ख़ाक छानी पहले हुआ परेशां
नसीब को नाज़ तले रौंदता चला हूँ (नाज़= कोमलता)
शक हो किसी के दिल में तो आजमाले
इस देह को न’अश को सौंपता चला हूँ (न’अश =…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 11:06am — 12 Comments
“ कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन हो रहा था, सभागार श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था , देश के कई बड़े कवि मंच पर उपस्तिथ थे, मंच संचालक महोदय बार –बार निवेदन कर रहे थे की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना का पाठ करें, इसी श्रृंखला में उन्होंने कहा, अब मैं आमंत्रित करता हूँ, आप के ही शहर से आये हुए श्रधेय कवि विद्यालंकार जी का, तालियों से सभागार गूँज उठा !”
“तभी मंच संचालक महोदय ने उनके कान में कहा ‘सर कृपया १५ मिनट से ज्यादा समय मत लीजियेगा’ !”
“विद्यालंकार जी ने मंच पर आसीन कवियों एवम् श्रोताओं से…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 5, 2015 at 12:49pm — 10 Comments
डरना हो तो बुरे कर्म से , डरना सीखो मतवाले !
उनको चैन कभी ना मिलता , जिनके होते मन काले !!
तोल सको तो पहले तोलो, बिन तोले कुछ मत बोलो !
मौन रहो जितना संभव हो , कम बोलो मीठा बोलो !!
खाना हो तो गम को खाओ, आंसू पीकर खुश होना !
गम सहने की चीज है बंधू , अपना गम न कहीं रोना !!
जला सको तो अहं जला दो , वरना अहं जला देगा !
हिरण्यकश्यप रावण के सम, तुमको भी मरवा देगा !!
दिखा सको तो राह दिखाओ , उसको जो पथ में भूला !
भगत…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 2, 2015 at 9:00pm — 16 Comments
दिल में रहने वाले मुझसे नकाब क्यों ?
इतना मुझे बता दे मुझसे हिज़ाब क्यों?
साकीं यह सुना तू है मदिरा का सागर
लाखों को तूने तारा मुझको जवाब क्यों?
मेरे गुनाह लाखों होंगे ये मैंने है माना
गैरों से कुछ न पूछा मुझसे हिसाब क्यों?
तूने जिसको अपनाया उसको खुदा बनाया
उनका नसीब है अच्छा मेरा खराब क्यों?
छोटी सी ये हस्ती में है कुल कमाल तेरा
बेहद का है तू दरीया फिर मैं हुबाब क्यों?
© हरि…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on March 1, 2015 at 2:34pm — 30 Comments
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