2122—1122—1122—22
रूठ मत जाना कभी दीन दयाला मुझसे
रखना रघुनाथ हमेशा यही नाता मुझसे
हर मनोरथ हुआ है सिद्ध कृपा से तेरी
तू न होता तो हर इक काम बिगड़ता मुझसे
नाव तुमने लगा दी पार वगरना रघुवर
इस भँवर में था बड़ी दूर किनारा मुझसे
जैसे शबरी से अहिल्या से निभाया राघव
भक्तवत्सल सदा यूँ प्रेम निभाना मुझसे
एक विश्वास तुम्हारा है मुझे रघुनंदन
दूर जाना न कोई करके बहाना मुझसे
जानकी नाथ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 28, 2015 at 11:16pm — 9 Comments
ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ
इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ
प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है
हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ
सूरज सर पर तपता है दोपहरी में
सर पर अपना करतल करदे सीला माँ
दूध दही हो जाता है शीतलता से
भाप जमा कर बादल करदे सीला…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 13, 2015 at 11:13am — 15 Comments
बरगद पीपल पनघट छूटे
बालसखा सब नटखट छूटे
गोपालों की शोख़ ठिठोली
चौपालों के जमघट छूटे
बालू के वो दुर्ग महल सब
तालाबों के वो तट छूटे
झालर संझा वो चरणामृत
मंदिर के चौड़े पट छूटे
मॉलों में क्या कूके कोयल
अमराई के झुरमुट छूटे
धूम कहाँ वो बचपन वाली
टोली के सब मर्कट छूटे
हमसे छूटा गाँव हमारा
जीने का अब जीवट छूटे
मौलिक व अप्रकाशित
Added by khursheed khairadi on March 12, 2015 at 12:32pm — 22 Comments
करें कोशिश सभी मिलकर हसीं दुनिया बना दें फिर
चलो जन्नत से भी बढ़कर जहां अपना बना दें फिर
लगाकर रेत में पौधे पसीने से चलो सींचें
ये सहरा सब्ज़ था पहले यहाँ बगिया बना दें फिर
मेरी मानो रियाज़त से बदल जाती है तकदीरें
हथेली की लकीरों में कोई नक्शा बना दें फिर
जलाकर खेत मेरे गाँव के बोले सियासतदां
इन्हें रोटी नहीं मिलती इसे मुद्दा बना दें फिर
दिलों के दरमियां कोई रुकावट क्यों रहे यारो
गिराकर इन…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 11:00pm — 20 Comments
इस होली पर रंग लगाने आ जायें
बचपन के कुछ यार पुराने आ जायें
होली-फागुन बरखा-सावन या जाड़ा
यादें तेरी ढूंढ बहाने आ जायें
दीवाने हो झूमा करते थे जिन पर
होठों पर वे मस्त तराने आ जायें
होली सुलगे भस्म न हो प्रहलाद कभी
सब नेकी का साथ निभाने आ जायें
सतरंगी थे इनके वादे कल यारों
लोग सियासी आज निभाने आ जायें
जीवन में हो पागलपन भी थोड़ा सा
दीवानों के संग सयाने आ…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 4, 2015 at 1:40pm — 7 Comments
२११-२११-२११-२११-२११-२११
होली का कुछ और मज़ा था उस बस्ती में
जश्न नहीं था एक नशा था उस बस्ती में
दिल के जंगल में यादों के टेसू लहके
तेरा मेरा प्यार नया था उस बस्ती में
शहरों में क्या धूम मचेगी, होली पर वो
भांग घुटी थी रंग जमा था उस बस्ती में
चंग बजाते घर घर जाते रसियों के दल
हरदम दिल का द्वार खुला था उस बस्ती में
जोश युवाओं का भी ठंडा ठंडा है अब
बूढों का भी जोश युवा था उस बस्ती…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 9:00pm — 21 Comments
२११--२११/२११--२११/२११ २
मंचों को तज गाँवों में जा अब शायर
धन को मत भज गुर्बत को गा अब शायर
दूर गगन पर तूने सपने जा टाँगे
इस धरती पर ज़न्नत को ला अब शायर
जाम बुझायेगें क्या तिसना इस मन की
गम को पिघला छलका गंगा अब शायर
आहों से भी ज्यादा ठंडी हैं रातें
फुटपाथों पर नंगे तन आ अब शायर
चाँद सितारों से मत बहला दुनिया को
इस माटी का कण कण चमका अब शायर
अच्छाई को ढाल बुराई की मत…
ContinueAdded by khursheed khairadi on March 1, 2015 at 12:30am — 10 Comments
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