आपने भी तो कहाँ ठीक से जाना मुझ को
खैर जो भी हो, मुहब्बत से निभाना मुझ को.
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जीत कर मुझ से, मुझे जीत नहीं पाओगे
हार कर ख़ुद को है आसान हराना मुझ को.
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मैं भी लुट जाने को तैयार मिलूँगा हर दम
शर्त इतनी है कि समझें वो ख़ज़ाना मुझ को.
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आप मिलियेगा नए ढब से मुझे रोज़ अगर
मेरा वादा है न पाओगे पुराना मुझ को.
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ओढ़ लेना मुझे सर्दी हो अगर रातों में
हो गुलाबी सी अगर ठण्ड, बिछाना मुझ को.
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मुख़्तसर है ये तमन्ना कि अगर जाँ निकले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 30, 2018 at 10:42am — 26 Comments
212 212 212 212
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उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।
दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया…
Added by Harash Mahajan on April 27, 2018 at 7:00pm — 13 Comments
सोने की बरसात करेगा
सूरज जब इफ़रात करेगा
बादल पानी बरसाएंगे
राजा जब ख़ैरात करेगा
जो पहले भी दोस्त नहीं था
वो तो फिर से घात करेगा
कुर्सी की चाहत में फिर वो
गड़बड़ कुछ हालात करेगा
जो संवेदनशील नहीं वो
फिर घायल जज़्बात करेगा
जो थोड़ा दीवाना है वो
अक्सर हक़ की बात करेगा
नंद कुमार सनमुखानी.
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"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Nand Kumar Sanmukhani on April 23, 2018 at 10:00am — 21 Comments
Added by Kumar Gourav on April 21, 2018 at 9:15pm — 9 Comments
"लोकतंत्र ख़तरे में है!
कहां
इस राष्ट्र में
या
उस मुल्क में!
या
उन सभी देशों में
जहां वह किसी तरह है!
या जो कि
कठपुतली बन गया है
तथाकथित विकसितों के मायाजाल में,
तकनीकी, वैज्ञानिकी विकास में! या
ब्लैकमेलिंग- व्यवसाय में!
धरातल, स्तंभों से दूर हो कर
खो सा गया है
कहीं आसमान में!
दिवास्वप्नों की आंधियों में,
अजीबोग़रीब अनुसंधानों में!
"इंसानियत ख़तरे में है!
कहां
इस मुल्क में
या
उस राष्ट्र…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on April 21, 2018 at 2:35pm — 14 Comments
निष्कलंक कृति .....
अवरुद्ध था
हर रास्ता
जीवन तटों पर
शून्यता से लिपटी
मृत मानवीय संवेदनाओं की
क्षत-विक्षत लाशों को लांघ कर
इंसानी दरिंदों के
वहशी नाखूनों से नोची गयी
अबोध बच्चियों की चीखों से
साक्षात्कार करने का
रक्त रंजित कर दिए थे
वासना की नदी ने
अबोध किलकारियों को दुलारने वाले
पावन रिश्तों के किनारे
किंकर्तव्यमूढ़ थी
शुष्क नयन तटों से
रिश्तों की
टूटी किर्चियों की
चुभन…
Added by Sushil Sarna on April 20, 2018 at 4:25pm — 8 Comments
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये…
Added by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:00pm — 40 Comments
ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |
आठ वर्ष तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज ||
दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |
योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |
काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2018 at 2:30pm — 27 Comments
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