जिंदगी में कोई
क्यूँ नहीं मिलता
एक नया तूफ़ान
क्यूँ नहीं खिलता
मैं भी देख लूँ जी के
ऊँचे टीलों पे
क्या होते हैं एहसास
इन कबीलों के !
मैं भी उड़ लूँ
तूफ़ानी फिज़ाओं में
जानता हूँ एक दिन
तूफ़ान थम जायेंगे
फिर खुशिओं के
उत्सव ढल जायेंगे
और बेवफाईओं के
ख़ामोश पल आयेंगे !
मौत आ जाये बेधड़क
तूफ़ान के बवंडर में
न होने से तो
कुछ होना अच्छा होगा
प्यार ना मिलने से तो
मिलकर खोना अच्छा…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 7:35am — 12 Comments
धरती के सीने में
अमृत छलकता है
धरती के ऊपर पानी है
अन्दर भी पानी है
ये धरती की मेहेरबानी है
कि बादल में पानी है
बादल तरसते हैं
तो धरती अपना पानी
नभ तक पहुंचा
उनकी प्यास बुझाती है
बादल बरस कर
एहसान नहीं करते
सिर्फ़ बिन सूद
कर्ज चुकाते हैं
क्यूंकि पानी तो वो
धरती से ही पाते हैं
फिर भी धरती पर गरजते हैं
बिजली गिराते हैं
जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही बताया था
परमार्थ का बीज बोया…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 28, 2015 at 7:59am — 14 Comments
देह में तृष्णा के सागर
रेशम में ढकी गागर
इत्र से दबी गंध
लहू के धब्बों में
धुन्दलाया चेहरा
मुखोटों के पीछे
छिपाया मोहरा
न कोई मंजिल
ना कोई पहचान
बैठ ऊँचे मचान पर
ढूंढे नये आसमान
बे-माईने वक़्त का ये जहान
प्रेम परिभाषा ढूँढता वासना में
तम के घेरे में घिरा इंसान !!
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मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 27, 2015 at 6:30am — 18 Comments
हो चुकी हो तुम एक पाषाण
वो एहसासों की लहरों पे तैरना
धड़कनों को खामोशीओं में सुनना
होठों को छू लेने की तड़प
आगोश में भर लेने की चसक
सब रेत के घरोंदे थे .........
रेत के इन घरोंदों को
तूफ़ान से पहले क्यूँ खुद ही ढाना पड़ता है !
चादर में ग़मों की फटन को
वक़्त के धागे से क्यूँ ख़ुद ही सीना पड़ता है !
नींद के आगोश में
मरे हुए ख़वाबों को क्यूँ खुद ही ढोना पड़ता है !
उमंगों के उड़ते परिंदों को
दर्द के दरिया में क्यूँ…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 24, 2015 at 4:15am — 12 Comments
तुम दीया हो तो मुझे बाती बनना होगा
तेरा साथ पाने को चाहे मुझे जलना होगा !
तुम अगर रात हो तो मुझे अँधेरा बनना होगा
तुम से मिलने को मुझे सवेरों से लड़ना होगा !
तुम ग़र दरिया हो तो मुझे समन्दर बनना होगा
तुमको फिर मुहब्बत में मुझ से मिलना होगा !
तुम अगर हवा हो तो मुझे धूल बनना होगा
मुझे आगोश में ले आँधियों में तुम्हें उड़ना होगा !
तुम अगर चाँद हो तो मुझे चकोरी बनना होगा
तुमको हर रात मेरा मिलन का गीत सुनना होगा…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 20, 2015 at 1:25pm — 16 Comments
हवा क्यूँ है ?
ये सूरज क्यूँ है ?
क्या करूँगा मैं किरणों का
ये सूरज निकलता क्यूँ है ?
ना जमीं मेरी है
ना आसमां मेरा
बस इन अंधेरों का अँधेरा मेरा !
ये चमन क्यूँ है
ये फूल मुरझाये क्यूँ नहीं अब तक
ये तितलियाँ... ये भंवरे
घर गये क्यूँ नहीं अब तक
पेड़ों ने पत्तियाँ गिराई नहीं ?
हर चीज़ क्यूँ मुरझाई नहीं अब तक
धड़कनें क्यूँ चल रही हैं धक धक
जब तू ही नहीं
तो क्यूँ है ये दुनियाँ अब तक…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 9, 2015 at 7:33am — 5 Comments
जब तुम गयी हो
तो दिल का भवंरा बेसुध
तेरे दिल के बंद दरवाज़े से
जा टकराया
और गिर पड़ा जमीन पर
होश ना रहा उसको !
जब जागा नींद से
तो बेवफ़ाई की चींटियों ने
था उसे घेरा हुआ
नोच नोच कर खा रहीं थी
मेरे दिल के नादान भंवरे को
घसीटते हुए ले जा रहीं थी
अपनी मांद में
तड़पा था बहुत
कोशिश भी की छुटने की
जालिमों ने मौका न दिया
सोचा.... लोग तो चार कांधों की
आरजू करते हैं
और मुझे चार नहीं
हज़ार कांधे नसीब हुए
और…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 2, 2015 at 5:10am — 17 Comments
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