लल्ला गया विदेश
© बसंत कुमार शर्मा
जाने क्यों अपनी धरती का,
जमा नहीं परिवेश.
ताक रही दरवाजा अम्मा,
लल्ला गया विदेश.
खेत मढैया बिका सभी कुछ,
हैं जेबें खाली.
बैठी चकिया पीस रही है,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2017 at 6:55pm — 4 Comments
पश्चिम की आँधी
पश्चिम की आँधी शहरों से,
गाँवों तक आई.
देख सड़क को पगडंडी ने,
ली है अँगड़ाई.
बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,
बैठा है दूल्हा.
नई बहुरिया माँग रही है,
तुरत गैस चूल्हा.…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2017 at 4:30pm — 2 Comments
मात्रिक छंद आधारित एक गीतिका
स्वीट कभी नमकीन, मुहब्बत होती है
जग में बहुत हसीन, मुहब्बत होती है
थोड़ा थोड़ा त्याग, तपस्या हो थोड़ी,
फिर न कभी ग़मगीन, मुहब्बत होती है
चढ़ती है परवान, नाम दुनिया में होता,
जितनी भी प्राचीन, मुहब्बत होती…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 3:39pm — 10 Comments
बहर फ़ैलुनx ४
कुछ तुम बोलो कुछ हम बोलें
सारा मैल ह्रदय का धो लें
सुख की धूप खिल रही बाहर,
अन्दर की खिड़की तो खोलें.
उगा लिए हैं बहुत कैक्टस,
बीज फूल के भी कुछ बो लें
सूख न जाए आँख का पानी,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 9, 2017 at 12:00pm — 2 Comments
मापनी २१२ २१२ २१२ २१२
रात दिन बस यही सोचता रह गया
पास आकर भी क्यों फासला रह गया
पत्थरों से लड़ाई कहाँ तक करे,
तोप का मुँह सिला का सिला रह गया
चढ़ गयीं परतें मुखोटे पे’ उनके कई,
बेखबर देखता आइना रह गया
वज्न…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 9:30am — 19 Comments
यार चलो नेता बन जाएँ
खूब फटे में टाँग अड़ाएँ
शेयर जैसे सुबह उछलकर,
लुढ़क शाम को नीचे आएँ
जंतर मंतर पर जाकर हम,
मूंगफली का भाव बढ़ाएँ
उल्टा पुल्टा बोल बोल कर,
चप्पल, जूते, थप्पड़ खाएँ…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2017 at 8:30am — 10 Comments
मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२
नफरत के किले सारे, अब हमको ढहाना है
जब हाथ मिलाया है, दिल को भी मिलाना है
चुपचाप न बैठोगे, पाओगे सदा मंजिल,
दुश्मन है तरक्की का, आलस को भगाना है…
Added by बसंत कुमार शर्मा on June 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments
बहर- फैलुन*4
तुमसे मन की बात हो गई
सावन सी बरसात हो गई,
जब से आये हो जीवन में,
पूनम सी हर रात हो गई
नैनों से जब नैन मिले तो,
सपनों की बारात हो गई
दिल में तुमने हमें बसाया,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 3, 2017 at 1:34pm — 4 Comments
इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
ह्रदय बड़ा ही नाजुक है,
उस पर यूँ आघात न कर
ख्यात न हो कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर
मानव को मानव रहने दे,
ऊंची नीची जात न कर
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2017 at 10:02am — 20 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |