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बसंत कुमार शर्मा's Blog – June 2017 Archive (9)

लल्ला गया विदेश.

लल्ला गया विदेश

© बसंत कुमार शर्मा

 

जाने क्यों अपनी धरती का,

जमा नहीं परिवेश.

ताक रही दरवाजा अम्मा,

लल्ला गया  विदेश.

 

खेत मढैया बिका सभी कुछ,

हैं जेबें  खाली.

बैठी चकिया पीस रही है,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2017 at 6:55pm — 4 Comments

पश्चिम का आँधी

पश्चिम की आँधी

 

पश्चिम की आँधी शहरों से,

गाँवों तक आई.

देख सड़क को पगडंडी ने,

ली है अँगड़ाई.

 

बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,

बैठा है दूल्हा.

नई बहुरिया माँग रही है,

तुरत गैस चूल्हा.…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2017 at 4:30pm — 2 Comments

मुहब्बत होती है

मात्रिक छंद आधारित एक गीतिका

 

स्वीट कभी नमकीन, मुहब्बत होती है

जग में बहुत हसीन, मुहब्बत होती है

 

थोड़ा  थोड़ा  त्याग, तपस्या हो  थोड़ी,

फिर न कभी ग़मगीन, मुहब्बत होती है

 

चढ़ती है परवान, नाम दुनिया में होता,

जितनी  भी  प्राचीन, मुहब्बत होती…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 13, 2017 at 3:39pm — 10 Comments

कुछ तुम बोलो कुछ हम बोलें

बहर  फ़ैलुनx ४

कुछ तुम बोलो कुछ हम बोलें

सारा  मैल  ह्रदय  का धो लें 

 

सुख की धूप खिल रही बाहर,

अन्दर की खिड़की तो खोलें.

 

उगा लिए हैं बहुत कैक्टस,

बीज फूल के भी कुछ बो लें

 

सूख न जाए आँख का पानी,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 9, 2017 at 12:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल- फासला रह गया

मापनी २१२ २१२ २१२ २१२ 

रात दिन बस यही सोचता रह गया

पास आकर भी क्यों फासला रह गया  

 

पत्थरों से लड़ाई कहाँ तक करे,

तोप का मुँह सिला का सिला रह गया

 

चढ़ गयीं परतें मुखोटे पे’ उनके कई,

बेखबर देखता आइना रह  गया

 

वज्न…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 7, 2017 at 9:30am — 19 Comments

हास्य ग़ज़ल - खूब फटे में टांग अड़ाएं

यार चलो  नेता बन जाएँ

खूब  फटे  में टाँग अड़ाएँ  

 

शेयर जैसे सुबह उछलकर,

लुढ़क शाम को नीचे आएँ

 

जंतर मंतर पर जाकर हम,

मूंगफली  का  भाव बढ़ाएँ

 

उल्टा पुल्टा बोल बोल कर,

चप्पल, जूते, थप्पड़ खाएँ…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2017 at 8:30am — 10 Comments

गजल- कोई न ठिकाना है

मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२

 

नफरत के किले सारे, अब हमको ढहाना है

जब हाथ मिलाया है, दिल को भी मिलाना है



चुपचाप  न बैठोगे,  पाओगे  सदा  मंजिल,

दुश्मन है तरक्की का, आलस को भगाना है…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 5, 2017 at 8:30am — 4 Comments

ग़ज़ल - तुमसे मन की बात हो गई

बहर- फैलुन*4

तुमसे मन की बात हो गई  

सावन सी बरसात हो गई,  

 

जब से आये हो जीवन में,

पूनम सी हर रात हो गई

 

नैनों से जब नैन मिले तो,

सपनों की बारात हो गई

 

दिल में तुमने हमें बसाया,…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 3, 2017 at 1:34pm — 4 Comments

पैदा वो हालात न कर

इतनी ज्यादा बात न कर

वादों की बरसात न कर

 

ह्रदय बड़ा ही नाजुक है,

उस पर यूँ आघात न कर

 

ख्यात न हो कुछ बात नहीं,

पर खुद को कुख्यात न कर

 

मानव को मानव रहने दे,

ऊंची नीची जात न कर

 …

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Added by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2017 at 10:02am — 20 Comments

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