For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Ravi Prakash's Blog – July 2013 Archive (8)

प्रेम के कवित्त - (रवि प्रकाश)

1.धार तू,मझधार तू,सफ़र तू ही,राह तू,

घाव तू,उपचार तू,तीर भी,शमशीर भी।

जाने कितने वेश है,दर्द कितने शेष हैं,

गा चुके दरवेश हैं,संत ,मुर्शिद,पीर भी।

ध्वंस किन्तु सृजन भी,भीड़ तू ही,विजन भी,

छंद है स्वच्छन्द किन्तु,गिरह भी,ज़ंजीर भी।

भाग्य से जिसको मिला,उसे भी रहता गिला,

पा तुझे बौरा गए,हाय,आलमगीर भी॥

 

 

2.डूब चले थे जिनमें,उनसे ही पार चले,

जिनमें थे हार चले,वो पल ही जीत बने।

कितने साँचों में ढले,सारे संकेत तुम्हारे,

कुछ ग़ज़लों…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 29, 2013 at 8:00am — 9 Comments

मन तक आना शेष रहा - (रवि प्रकाश)

मैंने बस धीरज माँगा था,तुमने ही अधिकार दिया;

कितने पत्थर रोज़ तराशे,फिर मुझको आकार दिया।

बादल,बरखा,बिजली,बूँदें,क्या कुछ मुझमें पाया था;

पथ-भूले को इक दिन तुमने,दिग्दर्शक बतलाया था।

लेकिन मेरे पथ पर चलना,श्रद्धा लाना शेष रहा।

धड़कन के दरबान बने तुम,मन तक आना शेष रहा॥

आशा को थकन नहीं होती,इच्छा को विश्राम कहाँ;

जब तक साँसों में उष्मा है,जीवन को आराम कहाँ।

कण-कण जमते हिमनद में भी,बाक़ी रहता ताप कहीं;

मनभावन आलिंगन में भी,छू जाता संताप…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 27, 2013 at 5:30pm — 7 Comments

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

-एक दुधमुँहा प्रयास-

बहर -ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽऽ ऽ।ऽ

.

पाँव कीचड़ से सने हैं और मंज़िल दूर है।

शाम के साए घने हैं और मंज़िल दूर है॥



तुम मिलोगे फिर कहीं इस बात के इम्कान पे,

फास्ले सब रौंदने हैं और मंज़िल दूर है॥

कौन हो मुश्किलकुशा अब कौन चारागर बने,

घाव ख़ुद ही ढाँपने हैं और मंज़िल दूर है॥

कल बिछौना रात का सौगात भारी दे गया,

अब उजाले सामने हैं और मंज़िल दूर है॥

धड़कनें भी मापनी हैं थामनी कंदील भी,

रास्ते…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 24, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

प्यार और मनुहार - (रवि प्रकाश)

अधिकार भरी मादकता से,दृष्टिपात हुआ होगा;

मन की अविचल जलती लौ पर,मृदु आघात हुआ होगा।



साँसों की समरसता में भी,आह कहीं फूटी होगी;

सूरज के सब संतापों से,चन्द्रकिरण छूटी होगी।

विभावरी ने आते-जाते,कोई बात सुनी होगी;

सपनों ने तंतुवाय हो कर,नूतन सेज बुनी होगी।

कितने पल थम जाते होंगे,बंसीवट की छाँव तले;

मौन महावर पिसता होगा,आकुलता के पाँव तले।



सन्ध्या का दीप कहीं बढ़ कर,भोरों तक आया होगा;

मस्तक का चंदन अनायास,अलकों तक छाया होगा।…



Continue

Added by Ravi Prakash on July 23, 2013 at 12:00pm — 7 Comments

मुक्तक - (रवि प्रकाश)

वज़न-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ



1. नहीं शिकवा नज़ारों से अगर नज़रें फिसल जाएँ,

भले ख़ामोश आहों में सुहाने पल निकल जाएँ।

तेरी मग़रूर चौखट पे नहीं मंज़ूर झुक जाना,

हमेशा का अकेलापन भले मुझ को निगल जाए॥

.

2. तुम्हारे रूप की गागर न जाने कब ढुलक जाए,

चटख रंगीनियों में भी पुरानापन झलक जाए।

मगर मेरी मुहब्बत तो सदानीरा घटाएँ है,

वहीं अंकुर निकलते हैं जहाँ पानी छलक जाए॥

.

3. किसी जुम्बिश में धड़कन के अभी अहसास बाक़ी है,

अपरिचित आहटों में भी तेरा…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 20, 2013 at 7:00am — 15 Comments

मेरी कविते ! (रवि प्रकाश)

चाँद नगर को जाते-जाते,जिनका अश्व भटकता है;

उडुगण की उजली बस्ती में,चुँधियाया सा रुकता है।

स्वर्णकिरण की राहों पर जो,चलते हुए झिझकते हैं;

जिनके स्वप्न जहाँ विस्फारित,होते वहीं पिघलते हैं।

नीरदमाला बन कर उनके,निःश्वासों में गलना है।

मेरी कविते! साथी हो कर,हमको दूर निकलना है॥

जग में चौराहे कितने हैं,कितनी परम्पराएँ भी;

बनती-मिटती बस्ती भी है,अडिग अट्टालिकाएँ भी।

जीवन भर दोराहे पर जो,पथ-निर्धारण करते हैं;

आशा की कच्ची गागर में,सदा हताशा भरते हैं।…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 18, 2013 at 7:00am — 8 Comments

कितना तुमको जीना है //रवि प्रकाश (Kitna Tumko Jeena Hai By Ravi Prakash)

सदियाँ बीत गई हैं फिर भी,जीने का आधार नहीं;

धड़कन लीक बदलती है पर,सांसों में आभार वही।

गरमी के खेमे उठ जाते,अगले पल में रिमझिम है;

जग के झूठे व्यापारों में,परिवर्तन ही अन्तिम है।

दुख की दीवारें पक्की हैं,सुख का परदा झीना है।

अपने में ही सब कुछ हो कर,कितना तुमको जीना है॥

सागर होना बहुत सरल है,नदिया बन गाना मुश्किल;

शिखरों सा उठना संभव है,गल कर बह जाना मुश्किल।

छाले भी सहलाने होंगे,गिरती-पड़ती राहें हैं;

सुर में गा पाना बहुत कठिन,स्वर में तपती आहें… Continue

Added by Ravi Prakash on July 16, 2013 at 6:00am — 14 Comments

गंगे ! (रवि प्रकाश)

माँ वो है-

जो जन कर जुड़ जाती है

चेतना के अंधकूपों में भी

अपने जने का करती है पीछा,

एक सूत्र बन कर संतति से हो जाती है तदाकार,

पालना ही जिसका

सार्वत्रिक,सार्वभौमिक और शाश्वत संस्कार;

शायद इसीलिए हमारे

उन दिग्विजयी पड़दादाओं ने

तेरे कगारों पर दण्डवत कर के

उर्मिल जल की

अँजुरी भर के

कोई संकल्प किया था

और बुदबुदाये थे कितने ही मंत्र अनायास

तुझे माँ कह कर।

वो शायद आदिम थे

इसीलिए भ्रमित थे,असभ्य थे

और हम सभ्य…

Continue

Added by Ravi Prakash on July 13, 2013 at 5:30pm — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service