बेवफा थे बेवफा हो बेवफा ही रहो
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 29, 2012 at 12:39pm — 5 Comments
यूँ तो सूरज का गर्वित होना वाजिब है
अपनी शान पर ,
क्योंकि अपनी रश्मियाँ फैलाता है ,
वो ज़मीं पर .
करता है रोशनी .
पर यह ज़मीं भी तो सहती है ,
धूप, सर्दी और बरसात सब.
क्यों चुप रहता है सूरज तब .
क्या दिखती नही उसे इस
ज़मीं की सहनशीलता ???
Added by Naval Kishor Soni on August 29, 2012 at 12:10pm — No Comments
लोग पूछते है कविता
हमे क्या है, देती
मैं कहता हूँ कविता
हमे क्या नहीं देती
हृदय सबके सादगी देती
नीरस जीवन में ताजगी देती
जीने का मकसद जब, तुझे ना सूझे
जीवन की राह फिर हमे दिखाती
मुहब्बत का पैगाम सुनाती
वीरो की गाथा सुना
कीर्ति उनकी जग फैलाती
संकीर्णता की सरहदे लाँघ
हृदय को विचरण नभ कराती
अमन का सन्देश सुनाती
कल्पना की छलांग लगा
सपनों की दुनिया में, कवि घुमाती
कभी बनाती शीश महल
कभी रंक से राजा बनाती…
Added by PHOOL SINGH on August 29, 2012 at 9:30am — 2 Comments
छुटपन में
हर रोज़ बाबा का हाथ थामे निकल जाता था मैं,
सुबह की सैर को |
रास्ते की हर ठोकरों से बेख़ौफ़ लड़ता,
अकड़ता,
बढ़ता जाता था मैं |
क्यों कि जानता था,
कि कोई भी पत्थर कोई भी ठोकर मुझे गिरा न पाएगी |
क्यों कि दुनिया का सबसे मज़बूत सहारा थाम रखा है मैंने....
पर
कल सीढियां चढ़ते वक़्त
बाबा लड़खड़ा गये...और थाम लिया हाथ मेरा!
और मैं रह गया,
अतीत और वर्तमान के बीच का
सारांश ढूंढता हुआ.....
-पुष्यमित्र उपाध्याय
.
Added by Pushyamitra Upadhyay on August 28, 2012 at 9:20pm — 2 Comments
भाई-भाई बैरी बना, रोटियों में खून सना,
छा गया अँधेरा घना, देख आँख रो पड़ी |
भूल गए सब नाते, दूर से ही फरियाते,
काम देख बतियाते, कैसी आ गई घड़ी |
जहाँ कोई मिल जाए, नोंच-नोंच कर खाए,
देख गिद्ध शरमाए, बात नहीं ये बड़ी |
होश नहीं इश्क जगे, चाहे भले जाए ठगे,
गैर लगे सारे सगे, सोच कैसी है सड़ी ||
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 28, 2012 at 6:00pm — 4 Comments
कर्म ने ही सुखद भाग्य बनाया
गीता में कृष्ण ने यही बताया |
मदद ली जाती है, इसकी समझ धरो
भूलोंसे सीख का मन में उन्माद भरो |
प्रभु के दिए मौके को न जाने दिया करो
उंगलियाँ यूँ ही न सब पर उठाया करो |
बीते वक्त की याद ने मन दुखी कराया
उठों तभी सवेरा है, मन को समझाया…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 28, 2012 at 5:34pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 28, 2012 at 4:54pm — No Comments
झुंझुनू यात्रा के दौरान
घुमाया गया मुझे
तथाकथित "रानी सती" के मंदिर में.
मंदिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर लिखा था ....
"हम सती प्रथा का विरोध करते है"
पर अंदर जाकर जिस तरह श्रदालुओं का दिखा रेला ,
और बाहर भी लगा था भक्तों का मेला ,
मेरे मन में सवाल उठा कि-------
जब दुनिया से गया होगा इस महिला का पति,
तो क्या अपनी इच्छा से हुई होगी यह सती ?
वहां तो कोई जवाब नहीं मिला पर रात को सपने में आई वो महिला .
उसे देखकर पहले तो मैं डरा फिर मेरा…
Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 4:30pm — 2 Comments
बातें करते है "वो" शिक्षा में क्रांति की
कहते है अब जरुरी हो गई है
शिक्षा में क्रांति ?
मैंने पूछा किस तरह की क्रांति चाहते है आप ?
जवाब था आमूलचूल परिवर्तन
पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदलना होगा
मैने कहा आप भी शिक्षक है आप कुछ करियें ना ?
वो बोले मेरे अकेले के करने से क्या होगा ?
क्रांति के लिए जरुरत होती है जनता के सैलाब की .
विचार और जज्बे के फैलाव की ----------------------?
मैनें कहा बहुत कुछ हो सकता है.
आप अपनी कक्षा से कर सकते है…
Added by Naval Kishor Soni on August 28, 2012 at 3:00pm — No Comments
जिंदगी से जब सरोकार हुआ
संघर्ष की आँधियों ने
लोगो की तीखी बातों ने
ऐसा दिल पर वार किया
लहूलुहान हुआ हृदय अपना
ऐसा घायल दिल
अपना तो यार हुआ
कुरेद कुरेद के बातें छेड़े
लोग उस वक़्त की
जिस वक़्त जीना
अपना दुश्वार हुआ
मांगे भी तो मौत ना मिलती
दुःख दावानल का
जब वार हुआ
तब समझ में आया हमको
क्यों संसार अग्रसर
प्रलय की ओर हुआ
Added by PHOOL SINGH on August 28, 2012 at 12:00pm — 2 Comments
नेता
१
नेता सा वह आदमी, होता था जो आम /
जा संसद में बैठता, होता है बदनाम //
होता है बदनाम, काम के लेता पैसे /
दिया अमूल्य वोट, दें फिर कैसे पैसे //
गया महल में बैठ, रहा झुग्गी में सोता /
बन गया ये खास, आम रहा नहीं नेता //
२
बोले हरदम झूठ जों, नेता वही कहाय/
ओछे करके काम जों, मोटा माल बनाय//
मोटा माल बनाय,निराले सपन दिखाता/
भूखा सोय गरीब, ये मोबाईल लाता//
बोले यही अशोक, बचो धोखे से भोले/
नेता वही कहाय, हरदम झूठ जों…
Added by Ashok Kumar Raktale on August 28, 2012 at 8:30am — 3 Comments
अहसासों के दरमियां
मेरे ख़्वाबों को जगाने
जब तुम आओगे ना
कुछ शरामऊँगी मैं
धडकनों को थामकर
कुछ बहक सा जाऊँगी मैं
मुझे बहकाने तुम आओगे ना ????
इठलाती सी धूप में
रूख पर नक़ाब गिराने
Added by deepti sharma on August 27, 2012 at 6:30pm — 15 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 27, 2012 at 3:04pm — 2 Comments
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 27, 2012 at 3:00pm — 26 Comments
(१) नारी घर का मान है, नारी पूज्य महान |
नारी का अपमान तू, मत करना इंसान ||
मत करना इंसान, नहीं ये शाप कटेगा,
खुश होगा शैतान, सदा ही नाम रटेगा |
धर माता का रूप, लुटाती ममता भारी,
बढ़े पाप तो खड्ग, उठा लेती है नारी ||
(२) नारी जो बेटी बने, देवे कितना स्नेह |
बने बहिन तो बाँट ले, कष्टों की भी देह ||
कष्टों की भी देह, बाँध हाथों पे राखी,
नहीं कहा कुछ गलत, देश-दुनिया है साखी |
करे कोख पर वार, गई मत उसकी मारी,
फूट…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 27, 2012 at 2:10pm — 6 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2012 at 9:30am — 10 Comments
पंक्तियाँ
v एक दिन देखना देश हमारा इतना हाईटेक हो जाएगा,
दूल्हा भी घूंघट दुल्हन का रिमोट से ही उठाएगा!
v आयेंगे तो जा न पायेंगे ये हमारी ज़िम्मेदारी है,
और जायेंगे भी कैसे जनाब ये अस्पताल ही सरकारी है!
v पुरुषो से हैं कहीं आगे आजकल की महिलाएं,
धडल्ले से हैं पीती दारू वो भी बिना बरफ मिलाये!
v पत्नियां घूमें सेल में ढूंढें महंगी साड़ी,
पति बेचारा जेब टटोले कभी…
ContinueAdded by Ranveer Pratap Singh on August 25, 2012 at 9:53pm — 2 Comments
फिर कोई धोखा खा बैठे
फिर द्वार तुम्हारे आ बैठे
सीधी साधी बातों में
हम अपना मन उलझा बैठे
गुड्डे गुडिया के दौर में हम तो
प्रीत का रोग लगा बैठे
जो बात कभी न समझी तुमने
हम खुद को वो समझा बैठे
जो आया ठोकर लगा गया
पत्थर दिल ऐसा पा बैठे
कच्ची सी वो उमर थी लेकिन
हम पक्की कसमें खा बैठे
दो लफ्जों की बात थी सारी
वो क्या-क्या लिखवा बैठे
जो गीत अधूरे छोड़ गए तुम
हम आज वही फिर गा बैठे
फिर कोई धोखा खा…
ContinueAdded by Pushyamitra Upadhyay on August 25, 2012 at 9:43pm — 2 Comments
मुझे यकीं है
समझ न सकोगे तुम
दुनिया की रस्में
उल्फत की कसमें
क्यूंकि तुम हो ही नहीं
खुद के वश में
तुम हर रोज चलते हो
नित नए सांचे में ढलते हो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 25, 2012 at 3:02pm — 3 Comments
याद है तुम्हें वे ढाक के पेड़
जहां ऐसे ही सावन में
हम-तुम भींगे थे.....
और....कितना रोया था मैं
कि पहली छुअन की सिहरन
को पचा नहीं पाया ...
उस विशाल मैंदान की मांग.....
जब मेरे साइकिल पर
तुम बैठी थी और
Added by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 2:40pm — 2 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |