For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2019 Blog Posts (70)

कर्ज़- एक मर्ज़

कर्ज़ का मर्ज़ होता है कैसा

समझ कभी ना पाया था

जब तक कर्ज में नहीं था डूबा

ऋणकर्ता का मजाक बनाया था

समय बदलते देर ना लगती     

अपनी मूर्खताओ की वजह से

मैं भी जब बाल-बाल बंधवाया

तब समझ में आया था ||

 

माँ कहती थी कर्ज ना लेना

गरीबी में तुम रह लेना

मुँह छोटा ओर पेट बड़ा

कर्ज का होता है बेटा

आसानी से ये नहीं चुकता

अच्छे-अच्छे को ले डूबता

पर आसानी से नहीं चुकता

इतना समझ लेना बेटा…

Continue

Added by PHOOL SINGH on September 5, 2019 at 5:00pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तू शिक्षक है़ या रक्षक है़

आदरणीय योगराज जी , आदरणीय सौरभ जी , आदरणीय समर भाई जी , तथा जिस मित्र ने भी कभी भी मेरा मार्ग दर्शन किया सभी को  समर्पित  ,करती हूँ ये रचना .

जीवन निर्माता भाग्य विधाता सब दुःख हरता ईश्वर है़

तृण तृण परिभाषित राह प्रदर्शित पग- पग करता गुरुवर है़



गिर जाने पर हाथ बढ़ाना

हर मुश्किल में पार लगाना



गहन तमस में घिर जाने पर

भटकों को यूँ राह दिखाना



तेरी अनुकंपा के आगे

कष्टों की धुंध का छट जाना



पतझड़ के मारे तरुओं पर

हरित हरित…

Continue

Added by rajesh kumari on September 5, 2019 at 4:30pm — 6 Comments

-गुरु दिवस

झिझको नहीं ठिठको नहीं
लो पकड़ लो मेरा हाथ
मैं तुम्हे ले चलता हूँ
तम से प्रकाश की ओर

प्रकाश तुम्हें दिखाएगा
जीवन के अनंत आयाम
तुम कसौटी पर परखना
औऱ चुन लेना कोई एक

वो एक ही पर्याप्त है
जीवन को दिशा देने के लिए
अन्य के जीवन में
प्रकाश फ़ैलाने के लिए॥

- प्रदीप देवीशरण भट्ट - मौलिक व अप्रकाशित

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 5, 2019 at 3:50pm — 4 Comments

कुण्डलिया छंद-

नयनों का जिस क्षण हुआ, नयनों से सम्पर्क।
नयन नयन के हो गए, हुआ न कोई तर्क।।
हुआ न कोई तर्क, नयन नयनों पर छाए।
निकट नयन को देख, नयन नत-नत शरमाए।।
नयना ही आधार, नयन के है चयनों का।
नयन नयन का मेल, निरामय है नयनों का।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
#हरिओम श्रीवास्तव#

Added by Hariom Shrivastava on September 3, 2019 at 7:04pm — 4 Comments

तू है यहीं..।।

तू है यहीं..।।

दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी।

तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।

चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं।

अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।

हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है।

वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?

यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त ।

मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।

हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ।

बतला…

Continue

Added by Usha on September 3, 2019 at 10:30am — 4 Comments

संबंध-सूत्र

अजीब अवस्था है

कोई खुरदरी विवशता है

और है अद्भुत  चित्ताकर्षण ....

पलकों के आसपास 

गहन दूरता का आवरण

कि  जैसे  हो  फैल  रहा

मूर्छा का मौन वातावरण

अपरिचित भीड़ में खो गईं 

कितनी  परिचित  संज्ञाएँ

सरोवर-सदृश  संवेदनाएँ

फिर  भी  न  जाने  कैसे

दरिद्र हुई धड़कन में भी आदतन

कोई वादा निभाने के बहाने ही शायद

डरी  हुई  बाहें  फैलाए

व्याकुलतर  गति  से  छू  लेती  हैं

आज भी…

Continue

Added by vijay nikore on September 3, 2019 at 7:27am — 4 Comments

एक ग़ज़ल मनोज अहसास इस्लाह के लिए

2×15

मेरे मन की लाचारी में जल जायें ना मेरे हाथ

मुझको फिर से पावन कर दे तू हाथों में लेके हाथ

मम्मी,पापा,बहना,भाई,बीवी,बच्चे और साथी

काम-समय अपने हाथों में दिखते मुझको सबके हाथ

सुन लेने की आदत को कमजोरी समझा जाता है

सच्चे साबित हो जाते हैं पल-पल हाथ नचाते हाथ

सच कहने की चाहत तो है लेकिन इन झूठों के बीच

कैसे सबको बतलाऊं मैं मेरे भी हैं काले हाथ

अपना मानना,अपना कहना,अपना होना बात कई

लेकिन…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 2, 2019 at 11:10pm — 2 Comments

कभी देखा नहीं सुनते रहे सैलाब आएगा (६० )



कभी देखा नहीं सुनते रहे सैलाब आएगा

हमारे गाँव की चौपाल तक अब आब आएगा

**

खिलौना जानकर कुछ लोग उसको तोड़ डालेंगे

अगर तालाब की तह में उतर महताब आएगा

**

हमेशा ख़्वाब देखें और मेहनत भी करेंगे तो

हक़ीक़त में उतर कर एक दिन वो ख़्वाब आएगा

**

नहीं था इल्म हमको ये कि जिस फ़रज़न्द को पाला

वही बेआब करने सूरत-ए-कस्साब आएगा

**

ग़रीबी से दिलाएगा  निज़ात अब कौन और कैसे

अमीरी का रियाया को कभी क्या ख़्वाब आएगा …

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 2, 2019 at 11:00pm — 5 Comments

अधिकारों की नई परिभाषा

काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।

उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”

“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।

“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”

शिवानी…

Continue

Added by Usha on September 2, 2019 at 12:00pm — 1 Comment

गजल

फूल को काँटा चुभाना तो कभी अच्छा नहीं

घाव देकर मुस्कुराना तो कभी अच्छा नहीं।1

प्रेम के बिरवे उगें तो वादियाँ गुलजार हों

बेरहम पत्थर उठाना तो कभी अच्छा नहीं।2

रोशनी का सिलसिला चलने लगा,चलने भी' दो

भोर का सूरज चुराना तो कभी अच्छा नहीं।3

प्यास धरती की बढ़ा क्यूँ फिर चले काली घटा?

जल रहे को फिर जलाना तो कभी अच्छा नहीं।4

दाग औरों को लगाने को सभी बेताब हैं,

आँख से काजल उड़ाना तो कभी अच्छा नहीं।5

इल्म…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 1, 2019 at 8:30am — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service