1.
भ्रष्ट नेता रे,
लालची मतदाता,
लोकतंत्र है ?
2.
पढ़े लिखे हो ?
डाले हो कभी वोट ?
क्यो देते दोष ??
3.
देख लो भाई,
कौन नेता चिटर ?
तुम वोटर ।
4.
तुम हो कौन ?
सरकार है कौन ?
जनता मौन ।
5.
क्या मानते हो ?
ये देश तुम्हारा है ।
मौन क्यों भाई ??
.
...........‘‘रमेश‘‘............
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 27, 2013 at 11:00am — 11 Comments
नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।।
डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।
.............................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:49pm — 11 Comments
प्रेम दुलार जगावत मानवता मन भावत भारत प्यारा ।
गीत खुशी सब गावत नाचत मंगल थाल सजावत न्यारा ।
बंधु सभी मिल बैठ करे नित चिंतन सुंदर हो जग प्यारा ।
ये सपना मन भावन देख ‘‘रमेश‘‘ खुशी मन गावत न्यारा ।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:34am — 8 Comments
मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ।
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ।
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ।
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ।
मोर - मेरा/मेरी
..................................
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 22, 2013 at 10:00am — 7 Comments
हिन्दी हिन्द की बेटी, ढूंढ रही सम्मान ।
घर गली हर नगर नगर, सारा हिन्दूस्तान ।।
सारा हिन्दूस्तान, दासत्व छोड़े कैसे ।
उड़ रहे आसमान, धरती पग धरे कैसे ।।
‘रमेश‘ कह समझाय, अपनत्व माथे बिन्दी ।
स्वाभीमान जगाय, ममतामयी है हिन्दी ।।
.....................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 20, 2013 at 11:30am — 9 Comments
काम कैसे कठिन भला, हो करने की चाह ।
मंजिल छुना दूर कहां, चल पड़े उसी राह ।।
चल पड़े उसी राह, गहन कंटक पथ जावे ।
करे कौन परवाह, मनवा जो अब न माने ।।
जीवन में कुछ न कुछ कर, जो करना हो नाम ।
कहत ‘रमेश‘ साथी सुन, जग में पहले काम ।।
......................................
मौलिक अप्रकाशित (प्रथम प्रयास)
Added by रमेश कुमार चौहान on September 11, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
जीवन है क्या ?
मन के यक्ष प्रश्न
सुख या दुख ।
मेरा मन
पथ भूला राही है,
जग भवर ।
देख दुनिया,
जीने का मन नही,
स्वार्थ के नाते ।
मन भरा है,
ऐसी मिली सौगात,
बेवाफाई का ।
कैसा है धोखा,
अपने ही पराये,
मित्र ही शत्रु ।
जग मे तु भी,
एक रंग से पूता,
कहां है जुदा ?
क्यों रोता है ?
सिक्के के दो पहलू
होगी सुबह ।
........‘रमेश‘.........
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 8, 2013 at 11:42am — 7 Comments
राजनीतिज्ञ,
कुशल अभिनेता,
मूक दर्शक।
कुटनीतिज्ञ
कुशल राजनेता
मित्र ही शत्रु
शकुनी नेता
लोकतंत्र चैसर
बिसात लोग
लोकराज है
लोभ मोह में लोग
यही तो रोग
अपनत्व है ?
देश से सरोकार ?
फिर बेकार ।
सपना क्या था ?
शहीद सपूतो का
मिले आजादी ?
आजादी कैसी
विचार परतंत्र
वाह रे तंत्र
गांधी विचार
कैसे भरे संस्कार
कहां है खादी ?
विकास गढ़े…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 4, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
दोहा
मातृभूमि है मेरी, स्वर्ग से भी भली ।
माथा झुका नमन करू, प्रस्सुन ले अंजुली ।।
चैपाई
लहर लहर तिरंगा लहराता । रवि जहां पहले शिश झुकाता
जय हो जय हो भारत माता । तेरा वैभव सकल जग गाता
उत्तर हिमालय मुकुट साजे । उन्नत शिखर रक्षक बन छाजे
गंगा यमुना जहां से निकली । केदार नंदा तट है बद्री
दक्षिण में सिंधु चरण पखारे । दहाड़ता जस हो रखवारे
सेतुबंध कर शंभू जापे । तट राम रामेश्वर थापे
पूरब कोणार्क जग थाती …
Added by रमेश कुमार चौहान on September 2, 2013 at 11:00pm — 9 Comments
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