Added by Hilal Badayuni on October 31, 2011 at 12:30am — 16 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on October 30, 2011 at 10:29am — 6 Comments
व्यंग्य रचना:
दीवाली : कुछ शब्द चित्र:
संजीव 'सलिल'
*
माँ-बाप को
ठेंगा दिखायें.
सास-ससुर पर
बलि-बलि जायें.
अधिकारी को
तेल लगायें.
गृह-लक्ष्मी के
चरण दबायें.
दिवाली मनाएँ..
*
लक्ष्मी पूजन के
महापर्व को
सार्थक बनायें.
ससुरे से मांगें
नगद-नारायण.
न मिले लक्ष्मी
तो गृह-लक्ष्मी को
होलिका बनायें.
दूसरी को…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 26, 2011 at 8:00am — 4 Comments
दोहा सलिला :
दोहों की दीपावली:
--संजीव 'सलिल'
दोहों की दीपावली, रमा भाव-रस खान.
श्री गणेश के बिम्ब को, अलंकार अनुमान..
दीप सदृश जलते रहें, करें तिमिर का पान.
सुख समृद्धि यश पा बनें, आप चन्द्र-दिनमान..
अँधियारे का पान कर करे उजाला दान.
माटी का दीपक 'सलिल', सर्वाधिक गुणवान..
मन का दीपक लो जला, तन की बाती डाल.
इच्छाओं का घृत जले, मन नाचे दे ताल..
दीप अलग सबके मगर, उजियारा है एक.
राह अलग हर…
Added by sanjiv verma 'salil' on October 25, 2011 at 5:00pm — 4 Comments
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 12:30pm — 7 Comments
आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार
द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार
झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन
सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........
Added by दुष्यंत सेवक on October 24, 2011 at 6:38pm — 4 Comments
Added by Abhinav Arun on October 23, 2011 at 8:30pm — 10 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on October 22, 2011 at 2:00pm — 8 Comments
लघुकथा - बकाया !
डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती…
ContinueAdded by Abhinav Arun on October 19, 2011 at 9:00am — 16 Comments
हमको रहना चाहिए अब सोह्बते तलवार में !
Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments
कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .
गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --
करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.
निठल्ले आईने पर
सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं
जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं
उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..
…
Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
***************
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा ||1||
हो खरा…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments
ज़िन्दग़ी का रंग हर स्वीकार होना चाहिये
जोश हो, पर होश का आधार होना चाहिये ||1||
एक नादाँ आदतन खुशफहमियों में उड़ रहा
कह उसे, उड़ने में भी आचार होना…
Added by Saurabh Pandey on October 10, 2011 at 9:46am — 11 Comments
मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है
जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से ||1||…
Added by Saurabh Pandey on October 4, 2011 at 1:30pm — 33 Comments
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