माना रात है
कोई दिया नही
ठोकरें भी है ,
लेकिन जानता हूँ मैं
उम्मीद का हाथ
तुम नही छोड़ोगे !
नहीं करोगे निराशा की बातें !
चलते रहोगे मेरे साथ
स्वप्न पथ पर !
अ-थके
अ-रुके
अ-रोके !
तब तक –
-जब तक सुनहली किरने
चूम न लें
मेरे-तुम्हारे सपनो का ललाट !
-जब तक सूर्य गा न ले
मेरे तुम्हारे सम्मान में
विजय गीत !
-जब तक पीला न पड़…
ContinueAdded by Arun Sri on November 30, 2011 at 11:30am — 4 Comments
धीरज दूध की डेयरी पर खड़ा दोस्तों के साथ गप्प मार रहा था. किसी भी लड़की को बात ही बात में चरित्रहीन कर देना उसकी बुरी आदत थी. अभी किसी बात पर बहस हो ही रही थी कि सामने से एक लड़की आती हुई दिखी. धीरज अपनी आदतानुसार शुरू हो गया, " पता है कल्लू वो जो सामने से लड़की आ रही है न. उससे मेरी दोस्ती करीब एक साल तक रही. हम दोनों ने साथ-२ खूब मस्ती की." "पर धीरज वो लड़की तो देखने में बहुत शरीफ लग रही है फिर तेरे जैसे इंसान से उसने दोस्ती कैसे कर ली?" कल्लू ने हैरान हो पूछा.…
ContinueAdded by SUMIT PRATAP SINGH on November 30, 2011 at 11:00am — 12 Comments
मेरा कुत्ता मुझपर ही भौंकता है
मेरे हर आहट पर चौंकता है
कटकटाता है, गुर्गुराता है
जबड़े को भींच, लाल आँखें दिखाता है
उसके सफ़ेद नुकीले दांतों में मैं अपने
मांस का टुकड़े देखता हूँ
अपनी अंतड़ियों को काट-काट
उसकी ओर फेंकता हूँ
मेरे आस्तित्व को मिटाने के लिए
अपनी सारी उर्जा झोंकता है
मेरा कुत्ता ही अब मेरा मालिक है
मुझ पर भौंकता है
लेकिन जब अहम की भूख
सांझ…
ContinueAdded by Shashi Ranjan Mishra on November 30, 2011 at 9:00am — 5 Comments
Added by rajkumar sahu on November 29, 2011 at 10:29pm — 1 Comment
क्या वो पागल है, जो बेवजह मुस्कुराता है ?
पागल ही है, तभी सरे राह गुनगुनाता है |
अपनी ही धुन में वो गली गली घूमता है |
राह चलते जानवरों को तो कोई पागल ही चूमता है |
वो राहगीर है, उसका कोई घर बार बही है |…
Added by Vikram Srivastava on November 29, 2011 at 3:22pm — No Comments
जो अपने इल्म-ओ-मेहनत से जहाँ सारा सजा देते
ये मेहनत गांव में करते तो घर अपना बना लेते ..१
भरम तो टूटते हैं तब वतन की याद आती जब
अगर पैसे से मिलता तो सुकूँ थोडा मंगा लेते ...२
कहाँ मालूम था परदेस भी दर है जलालत का
नहीं तो हम कभी भी गांव से क्यों कर विदा लेते ?...३.
हंसी में इस तरह मायूसियत हरगिज़ नहीं होती
ज़रा अपने वतन की खिलखिलाहट को सजा लेते…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 29, 2011 at 8:00am — 3 Comments
पता नहीं,
शायद यहीं कहीं ,
नहीं- नहीं ,
यहीं
आसपास ही कहीं ,
क्योंकि ,
तुम्हारी सुगंध ,तुम्हारी सुवास ,
कलियों में चटकती है ,
फूलों में बसती है…
ContinueAdded by mohinichordia on November 28, 2011 at 12:00pm — 1 Comment
Added by Shyam Bihari Shyamal on November 28, 2011 at 5:51am — No Comments
भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया
इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए
लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम
चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए
जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी
देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए
जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई
इस पुराने घर में बस…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 27, 2011 at 11:30pm — 16 Comments
थी कभी दिलनशीं दास्ताॅ ज़िन्दगी
अब तो लगती है कोहे गेराॅ ज़िन्दगी
मुज़महिल मुज़तरिब बेकराॅ ज़िन्दगी
ढॅंूढती है कोई सायबाॅ ज़िन्दगी
गर्दिशे-वक्त ने क्या से क्या कर दिया
बूढ़ी लगने लगी है जवाॅ ज़िन्दगी
मुफ़लिसी घर की खुश्यिाॅ चुरा ले गई
देखती रह गई बेज़बाॅ ज़िन्दगी
ये ज़माना वेरासत कहेगा जिन्हें
छोड़ जायेगी ऐसे निशाॅ ज़िन्दगी
वक्त धोखा न दे पायेगा अब इसे
खूब समझे है …
Added by Bekhud Ghazipuri on November 27, 2011 at 9:07pm — No Comments
Added by AK Rajput on November 27, 2011 at 9:30am — 5 Comments
राणा प्रताप काव्य पाठ करते हुए
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on November 26, 2011 at 11:37pm — 5 Comments
कविता
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 26, 2011 at 2:36pm — 3 Comments
आज भी बदक़िस्मती का वो ज़माना याद है ।
एक ज़वा बेटे का दरया डूब जाना याद है ।
क्या सुनाए कोई नग़मा क्या पढ़ें अब हम ग़ज़ल,
ग़म में डूबा ज़िन्दगी का बस फसाना याद है ।
जश्ने-होली खो गई दीवाली फीक़ी पड़ गई,
अब फ़क़त हर साल इनका आना-जाना याद है ।
सोचते थे अब तलक़ वो छुप गया होगा कहीं,
लौट कर आया नहीं उसका बहाना याद है ।
कर रहे थे बाग़बानी हम बड़े ही प्यार से,
आज भी…
Added by Afsos Ghazipuri on November 26, 2011 at 8:08am — 2 Comments
Added by Shyam Bihari Shyamal on November 26, 2011 at 6:30am — 4 Comments
दुधवा के गैंडों को मिलेगी नयी पहचान
Added by D.P.Mishra on November 25, 2011 at 6:30pm — 1 Comment
छत पे उगे जो चाँद निहारा न कीजिए
सूरजमुखी का दिन में नज़ारा न कीजिए
महफ़ूज़ रह न पायेगी आँखों की रौशनी
दीदार हुस्ने-बर्क़ खुदारा न कीजिए
शरमा के मुँह न फेर ले आईना, इसलिये
ज़ुल्फ़ों को आइने में संवारा न कीजिए
ऐसा न हो कि ख़ुद को भुला दें हुज़ूर आप
इतना भी अब ख़याल हमारा न कीजिए
एहसा किसी पे कर के, किसी को तमाम रात
ताने ख़ोदा के वासते मारा न कीजिए
दिल जिस से चौक जाये किसी राहगीर का
अब उसका नाम ले…
Added by Afsos Ghazipuri on November 25, 2011 at 9:14am — 6 Comments
कवि ताक रहा है फूल
श्याम बिहारी श्यामल
अँटा पड़ा है
मटमैला आँचल सदी का
क्षत-विक्षत लाशों से
तब्दील हो रहे हैं
तेज़ी से…
Added by Shyam Bihari Shyamal on November 25, 2011 at 6:00am — 20 Comments
Added by rajkumar sahu on November 24, 2011 at 11:39pm — No Comments
पंचतारा होटलों की शानशौकत कुछ न भाई
बैरा निगोड़ा पूछ जाता किया जो मैंने कहा
सलाम झुक-झुक करके मन में टिप का लालच रहा
खाक छानी होटलों की चाहिए जो ना मिला
क्रोध में हो स्नेह किसका? कल्पना से दिल…
Added by LOON KARAN CHHAJER on November 24, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
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