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क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही

क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही
खुश्क आँखों में केवल नमी रह गई --


तुझको पाने की हसरत कहीं खो गई
सब मिला बस तेरी एक कमी रह गई |


आँधियों की चरागों से थी दुश्मनी
अब कहाँ घर मेरे रौशनी रह गई |


ना वो सजदे रहे ना वो सर ही रहे
अब तो बस नाम की बन्दगी रह गई |


अय तपिश जी रहे हो तो किसके लिए ?
किसके हिस्से की अब ज़िन्दगी रह गई |

Added by jagdishtapish on September 18, 2010 at 12:30pm — 2 Comments

आईये वाल्मीकिनगर बाघ अभ्यारण्य चलें

सहसा मेरी नज़र उस विज्ञापन पर पड़ी ,जिसमे क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी बता रहे थे ॥" सिर्फ १४११ बचे है "

उसके नीचे एक बाघ का फोटो ॥

जिन बाघों से हमारे दादा -दादी हमको डराते थे ,आज वे स्वम विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चूके है ॥

भारत में बाघों के संरक्षण एवं प्रजनन को लेकर " टाईगर प्रोजेक्ट " की शुरुयात सन १९७३ में की गई । अब तक देश भर में २७ बाघ अभ्यारण्य काम कर रहे है ॥ वर्ष २०००-२००१ तक भारत के कुल ३७,७६१ वर्ग किलोमीटर में यह फैला हुआ है ।

मुझे कहते हुए गर्व हो रहा है कि बिहार… Continue

Added by baban pandey on September 18, 2010 at 11:22am — No Comments

माँ

एक अक्षर का एक शब्द ये, कैसे करे हम इसका गान;

सूरज चाँद सितारों से भी बढ़कर रहता जिसका मान|

वन उपवन ये झरनें नदियाँ दे न पते इतना सुख;

एक पल में ही दे देती है माँ वो सुख जितना महान||



माँ न हो तो किसी चीज की कोई भी कल्पना कैसी;

इसके बिना तो जग झूठा है, झूठी है हम सबकी शान|

एक अक्षर का एक शब्द.....................................



सुख हो या दुःख सबमे रखती है अपने बच्चों को खुश;

सब कुछ सहती पर रखती है नित्य प्रति बच्चों का ध्यान |

एक अक्षर का… Continue

Added by आशीष यादव on September 18, 2010 at 12:04am — 5 Comments

मुक्तिका सत्य संजीव 'सलिल'

सत्य



संजीव 'सलिल'

*

सत्य- कहता नहीं, सत्य- सुनता नहीं?

सरफिरा है मनुज, सत्य- गुनता नहीं..

*

ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी.

सिर्फ कहता रहा, सत्य- चुनता नहीं..

*

आह पर वाह की, किन्तु करता नहीं.

दाना नादान है, सत्य- धुनता नहीं..

*

चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-

कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..

*

नष्ट पल में हुआ, भ्रष्ट भी कर गया.

कष्ट देता असत, सत्य- घुनता नहीं..

*

प्यास हर आस दे, त्रास सहकर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 10:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

by Tarlok Singh Judge

गिर गया कोई तो उसको भी संभल कर देखिये

ऐसा न हो बाद में खुद हाथ मल कर देखिये



कौन कहता है कि राहें इश्क की आसन हैं

आप इन राहों पे, थोडा सा तो चल कर देखिये



पाँव में छाले हैं, आँखों में उमीन्दें बरकरार

देख कर हमको हसद से, थोडा जल कर देखिये



आप तो लिखते हो माशाल्लाह, बड़ा ही खूब जी

कलम का यह सफर मेरे साथ चल कर देखिये



क्या हुआ दुनिया ने ठुकराया है, रोना छोडिये

बन के सपना, मेरी आँखों में मचल कर… Continue

Added by Tarlok Singh Judge on September 17, 2010 at 9:27pm — 2 Comments

शेर या गीदड (एक व्यथा)

आज कौन शेर है ... ?

सब हैं गीदड ...और ...

शेरनियों से शादी रचाए बैठे हैं ...

वो गुर्राया करती हैं ...

हम दुबके पड़े रहते हैं ...



घर से निकल कर कैसे कह दूँ ?

चौका-चूल्हा, बर्तन-भांडे ...

थे कभी जो उनके हिस्से ...

आते हैं अब मेरे हिस्से ...



कोमला, निर्मला, सौंदर्या ...

अबला, पीड़ित, कुचली, प्रताड़ित ...

कितने ही उपमान पाए इन्होने ...

सभी जानते हैं असलियत इनकी ...

कौन चाहता लाँघ… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 17, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

दोहा सलिला: नैन अबोले बोलते..... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



नैन अबोले बोलते.....



संजीव 'सलिल'

*

*

नैन अबोले बोलते, नैन समझते बात.

नैन राज सब खोलते, कैसी बीती रात.

*

नैन नैन से मिल झुके, उठे लड़े झुक मौन.

क्या अनकहनी कह गए, कहे-बताये कौन?.

*

नैन नैन में बस हुलस, नैन चुराते नैन.

नैन नैन को चुभ रहे, नैन बन गए बैन..

*

नैन बने दर्पण कभी, नैन नैन का बिम्ब.

नैन अदेखे देखते, नैनों का प्रतिबिम्ब..

*

गहरे नीले नैन क्यों, उषा गाल सम लाल?

नेह नर्मदा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 6:30pm — 4 Comments

जगाना मत !

कांपते हाथों से

वह साफ़ करता है कांच का गोला

कालिख पोंछकर लगाता है जतन से ..

लौ टिमटिमाने लगी है ..

इस पीली झुंसी रोशनी में

उसके माथे पर लकीरें उभरती हैं

बाहर जोते खेत की तरह

समय ने कितने हल चलाये हैं माथे पर ?

पानी की टिपटिप सुनाई देती है

बादलों की नालियाँ छप्पर से बह चली हैं

बारह मासा - धूप, पानी ,सर्दी को

अपनी झिर्रियों से आने देती

काला पड़ा पुआल तिकोना मुंह बना

हँसता है

और वह… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on September 17, 2010 at 5:00pm — 10 Comments

ऐसे जीयो जिन्दगी..........

शरमाये अपनी दास्तां पर ऐसा हाल न हो

नक़्दो - नजर खुद से कोई सवाल न हो



गौर फरमा ऐ दिल कदम उठाने से पहले

कि बाद में तुझको कोई मलाल न हो



करे जुवां दिलकश ब्यां जो खुले यह कभी

टूटे न दिल किसी का जीना मुहाल न हो



न कर नापाक करतूतों से दा़गदारे जिन्दगी

जाने फिर मुस्तकबिल तेरा खुशहाल न हो



सैकड़ों सांसे पास में चंद गमों से न धबरा

क्या फायदा जिन्दगी से जो इस्तेमाल न हो



दे मुकाम जिन्दगी को एक पहचान तुं शरद

वो वजूद कैसा… Continue

Added by Subodh kumar on September 17, 2010 at 4:00pm — 6 Comments

मानवाधिकार

मानवाधिकार का क्या मतलब है ! मानवाधिकार दो शब्दों से मिलकर बना है, मानव + अधिकार अर्थात मानव से सम्बन्धित अधिकार ! मानवाधिकार के अन्तर्गत वे सब अधिकार मानव को प्राप्त है , जिसका वह स्वतंत्र रूप से अधिकारी है ! आज के इस बदलते परिवेश में जहा मानव मूल्यों का हास हो रहा है ! वहा मानवाधिकारों का हनन होता जा रहा है ! चाहे वह सरकार के प्रशासन में जेल में कैदियों के साथ व्यवहार हो , समाज में फैली अनैतिकता , या फिर घरेलू हिंसा हो हर जगह पर मनुष्य के अधिकारों का हनन हो रहा है ! आज भारत के आजादी के ६ दशक… Continue

Added by Pooja Singh on September 17, 2010 at 1:58pm — 2 Comments

कविता

अधीरता

व्यग्र हो अधीर हो,कौतुक हो जिज्ञाशु हो ,
जोड़ ले पैमाना उत्थान का,
घटा ले पैमाना पतन का,
हुआ वही जो होना था,
होगा वही जो तय होगा,
परिणिति शास्वत विनिश्चित है ,
ईश्वरीय परिधि में,
मानवीय स्वाभाव न बदला है,न बदलेगा,
होगा वही जो होना है, शाश्वत युगों से.

....अलका तिवारी

Added by alka tiwari on September 16, 2010 at 3:35pm — 7 Comments

जी अब तू दुसरो के लिए अब बोल सब को हमारा हैं ,

जब तक दुसरो के लिए जिया सब बोले हमारा हैं ,

अपना काम पड़ा तो समझ में आया कौन हमारा हैं ,

मैं अपना तन और धन दुसरो पे जब तक लुटाता हु ,

दोस्त मिलते हैं लाखो खुद सबके नजदीक पाता हु ,

पॉकिट खाली छाया कंगाली गया दोस्तों की हुजूम ,

वही जो आगे पीछे घुमा करते थे अब कहते हैं तुम ,

गुरु ज़माने को पहचान जब तक हैं दम तब तक ही ,

नहीं तो लोग हाथ झटक चल देंगे साथ था अब तक ही ,

ले प्रभु का नाम उसी को सहारा बना ओ साथ देगा ,

अंत समय जब तेरा अपना ना होगा तो पाड़ करेगा… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 16, 2010 at 3:29pm — 4 Comments

क्यों आपको समझ नहीं आता हैं ,

हमे खाना नहीं मिलता हैं ,

अब जीना मुस्किल हो रहा ,

बाह रे हिंद के सासक ,

हम खाए बिना मरते हैं ,

आप के अन्य सड़ अब रहा ,

सडा कर आप मंगवाएंगे ,

बिक्री के लिए टेंडर ,

सस्ते में निकल जायेगा ,

ये अनाज सब सड़ कर ,

हुजुर सड़े हुए से भी ,

अपना पेट भर जाता हैं ,

आप हमें बर्बाद करने की ,

जुगत अच्छी बनाई हैं ,

शराब बनेगे इन सब की ,

जिसको आप ने सडाइ हैं

आप ही सोचो हम गरीबो पे ,

दोहरा माड पर जाता हैं ,

एक दिन बाजार में जब… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on September 16, 2010 at 1:00pm — 2 Comments

शर्म का घाटा

शर्म का घाटा



मिलावट का एक और खुलासा

मिलावट खोरों को शर्म का घाटा

शहद में मीठा ज़हर मिलाया

जिसनें भी खाया वोह पछताया

देश की नामीं बारह कम्पनियों में से

ग्यारह के सैम्पल में पाया

जन्म से लेकर मृत्यु तक

शहद का होता है उपयोग

किसको पता था मिटेंगे नहीं

लग जाएँगे और भी रोग

रामदेव बाबा जी के शहद से लेकर

डाबर तक यह पाया गया

मीठे मीठे चटकारों से

हम सबको बहलाया गया

सूली पर लटका दो सबको

या फिर मार दो गोली

जिस जिसनें… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 16, 2010 at 12:30pm — 5 Comments

जिन्दगी

फूलो की बहार है जिन्दगी,

काटो भरी सफर है जिन्दगी,

है जिन्दगी पर एक मकाम है यह जिन्दगी !

ये जिन्दगी एक अनकही पहेली है ,

जो समझ के भी समझ में न आये ,

ये जिन्दगी है, अनकही जिन्दगी !!

यह जिन्दगी है ,

सुबह से शाम है,

यह जिन्दगी हर एक नई सुबह है ,

यह जिन्दगी !



जिन्दगी जीने का नाम है ,

जीने की चाहत है ,

जिन्दगी हर दिन एक नया पैगाम है,

यह जिन्दगी !

इस जिन्दगी के सफर में,

जो पीछे छुट गया वह नही मिलता है ,

जो मिलता है,… Continue

Added by Pooja Singh on September 16, 2010 at 11:00am — 3 Comments

अभियंता दिवस पर मुक्तिका: हम अभियंता --अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'

अभियंता दिवस पर मुक्तिका:



हम अभियंता



अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कंकर को शंकर करते हैं हम अभियंता.

पग-पग चल मंजिल वरते हैं हम अभियंता..



पग तल रौंदे जाते हैं जो माटी-पत्थर.

उनसे ताजमहल गढ़ते हैं हम अभियंता..



मन्दिर, मस्जिद, गिरजा, मठ, आश्रम तुम जाओ.

कार्यस्थल की पूजा करते हम अभियंता..



टन-टन घंटी बजा-बजा जग करे आरती.

श्रम का मन्त्र, न दूजा पढ़ते हम अभियंता..



भारत माँ को पूजें हम नव निर्माणों… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 10:17am — 5 Comments

तरही मुक्तिका:: कहीं निगाह... संजीव 'सलिल'

आत्मीय!

यह मुक्तिका १०.९.१० को भेजी थी. दी गयी पंक्ति न होने से सम्मिलित नहीं की गयी. संशोधन सहित पुनः प्रेषित.



तरही मुक्तिका::



कहीं निगाह...

संजीव 'सलिल'

*

कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.

उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है



कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.

हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..



न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.

करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..



पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on September 16, 2010 at 9:19am — 10 Comments

पिछला सावन !

याद है मुझे !

पिछला सावन

जमकर बरसी थी

घटाएँ

मुस्कुरा उठी थी पूरी वादीयाँ

फूल, पत्तियां मानो

लौट आया हो यौवन



सब-कुछ हरा-भरा

भीगा-भीगा सा

ओस की बूँदें

हरी डूब से लिपट

मोतियों सी

बिछ गई थी

हरे-भरे बगीचे में

याद है मुझे !



गिर पडा था मैं

बहुत रोया

माँ ने लपक कर

समेट लिया था

उन मोतियों को

अपने आँचल में

मेरे छिले घुटने पे

लगाया था मरहम

पौंछ कर मेरे आँसू और

मुझे बगीचे…
Continue

Added by Narendra Vyas on September 15, 2010 at 10:16pm — 3 Comments

तोड़ना जीस्त का हासिल समझ लिया होगा

तोड़ना जीस्त का हासिल समझ लिया होगा

आइने को भी मेरा दिल समझ लिया होगा



जाने क्यूँ डूबने वाले की नज़र थी तुम पर

उसने शायद तुम्हे साहिल समझ लिया होगा



चीख उठे वो अँधेरे में होश खो बैठे

अपनी परछाई को कातिल समझ लिया होगा



यूँ भी देता है अजनबी को आसरा कोई

जान पहचान के काबिल समझ लिया होगा



हर ख़ुशी लौट गई आप की तरह दर से

दिल को उजड़ी हुई महफ़िल समझ लिया होगा



ऐ तपिश तेरी ग़ज़ल को वो ख़त समझते हैं

खुद को हर लफ्ज़ में शामिल समझ… Continue

Added by jagdishtapish on September 15, 2010 at 7:12pm — 6 Comments

कुछ न कुछ

कुछ न कुछ

मेरे शे-रों में कुछ न कुछ तो ज़रूर रहा होगा
वर्ना अश्क आपके,इस कदर न छलकते
अंधेरों में ही सही,चिराग जलाने चले आते हो
वर्ना मेरी मजार के आसपास,इस कदर बेबस न भटकते
मायूस होकर ना देखते,बंद फाइलों में तस्वीरें मेरी
मेरी यादों के लिए,इस कदर ना तरसते
यह तो 'दीपक कुल्लुवी' का वादा था याद रखेंगे
आप तो बेवफा थे,इस कदर बेवजह ना बदलते

दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
०९१३६२११४८६
१५/०९/२०१०

Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 15, 2010 at 11:16am — 3 Comments

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