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......... न करो !

......... न करो !



मेरी तक़दीर में लिखे नहीं हैं गीत कोई ,

फ़िज़ूल में ये संगीत बजाया न करो,

मुझे यूँ ही तनहाइयों में जीने दो,

मेरे चारो तरफ शोर मचाया न करो,

मैं खुश हूँ अपनी इस गुमनाम जिंदगी से ,

प्लीज़ मेरा और फ़साना बनाया न करो,

मेरे प्यार को बस प्यार ही रहने दो,

नाम कोई और देकर,यूँ तमाशा बनाया न करो,



मैं मुसाफिर हूँ और राह नहीं हैं मालूम,

कभी ये सोच कर ,मुझे रास्ता दिखाया न करो,

भटका हुआ सा मैं लगता हूँ जरुर,

खुद ढूंढ़… Continue

Added by Biresh kumar on May 10, 2010 at 11:47am — 5 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल नo- ३ (योगराज प्रभाकर)

ये काग़ज़ पे लिखी तरक्कियां, कुछ और कहती हैं

मगर लाखों करोड़ों झुग्गियां, कुछ और कहती हैं !



बड़ा फराख दिल है शहर तेरा शक नहीं मुझ को ,

ये हर-सू बंद पड़ी खिड़कियाँ, कुछ और कहती हैं !



तेरा दा'वा है कि अमन-ओ-सकूं है शहर में सारे,

मगर अख़बार की ये सुर्खियाँ, कुछ और कहती हैं !



मुझे यकीं नहीं आता बहार आ गयी, क्यों कि

उदास चेहरे लिए तितलियाँ, कुछ और कहती हैं !



मुझे गुमान था कि मैं बना हूँ खुद के ही दम से,

मेरे बापू की बूढी हड्डियाँ,… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 10, 2010 at 10:30am — 13 Comments

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी!

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी

पूंछ ए खुदा,क्या चाहता हूँ मै लिखना

तेरे हाँथ थक गए होंगे मेरी कहानी लिखते लिखते



तो थमा दे मुझे मेरे जीवन की पुस्तक क्यूंकि

किस्मत लिखना चाहता हूँ मै अपनी



कुछ शब्द है मेरे जेहन में,

कुछ चित्र है मेरे मन में,

कुछ रस्ते है इस वन में,

कई इरादे है अब मन में,

उन सबको मिलाकर लिखूंगा एक कहानी

जो होगी मेरी ही जुबानी,

जीयुंगा अब उसे ही मै,



अब बस यही एक तमन्ना रह गयी है,

कुछ बाते हैं मेरे… Continue

Added by Biresh kumar on May 9, 2010 at 8:14pm — 7 Comments

सहारा तेरा

डूब जाने की तलब दिल में उभर आई है

उसकी आँखों में अजब झील सी गहरे है



काश उसे भी मेरी हालत का पता हो जाता

रात है और गमे हिज्र की पुरवाई है



चाँद भी डूब गया बुझ गए तारे भी तमाम

मेरी आँखों में मगर नींद नहीं आई है



गम की तौहीन है इजहारे गमे दिल करना

और चुप रहने में शायद तेरी रुसवाई है



तेरी यादों ने दिया बढ़के सहारा ए दोस्त

जबकि कश्ती मेरी तूफ़ान से टकराई है



गमे जाना गमे दुनिया गमे हस्ती गमे दिल

ज़िन्दगी कितने मराहिल…
Continue

Added by aleem azmi on May 9, 2010 at 3:31pm — 3 Comments

माँ का प्यार : सुगंधित बयार"

माँ का प्यार : सुगंधित बयार

माँ तुझे सलाम!



माँ, समूची धरती पर बस यही एक रिश्ता है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता। कोई स्वार्थ, कोई प्रदूषण नहीं होता। इस एक रिश्ते में निहित है अनंत गहराई लिए छलछलाता ममता का सागर। शीतल, मीठी और सुगंधित बयार का कोमल अहसास। इस रिश्ते की गुदगुदाती गोद में ऐसी अनुभूति छुपी है मानों नर्म-नाजुक हरी ठंडी दूब की भावभीनी बगिया में सोए हों।



माँ, इस एक शब्द को सुनने के लिए नारी अपने समस्त अस्तित्व को दाँव पर लगाने को तैयार हो जाती है। नारी अपनी… Continue

Added by Raju on May 9, 2010 at 9:00am — 4 Comments

Maa

ज़िन्दगी और



मौत के बीच



zindagi से lachaar



से पड़ी थी तुम



मन ही मन तब चाहा था मैंने



की आज तक तुम मेरी माँ थी



आज मेरी बेटी बन जाओ



अपने आँचल की छाओं मैं



लेकर करूं तुम्हारा दुलार



अनगिनत



mannaten



खुदा से कर



मांगी थी तुम्हारी जान की खैर









बरसों तुमने मुझे



पाला पोसा और संवारा



सुख सुविधा ने



जब कभी भी… Continue

Added by rajni chhabra on May 9, 2010 at 12:14am — 9 Comments

माँ तुम

माँ तुम ममता का मूर्त रूप

तुम सतरंगी स्नेह -आँचल

तुम मंदिर प्रांगन सी पवित्र

तुम पावन -पुनीत गंगाजल

टेढ़ा -मेढ़ा विकट जीवन जगत

तुम सीधी-सादी सरल प्रांजल

छल ,छदम ,कपट चारों तरफ़

माँ तेरी गोदी निर्मल ,निश्छल

पावक ,अनल सामान जीवन

तुम चन्दन की छाया शीतल

तेरे आशीषों की ज्योत्सना से

पथ मेरा नित -नित उज्जवल

पाने तेरा वात्सल्य सोम -सुधा

ज़न्म-ज़न्म पी लूँ जीवन गरल

तेरी कोख पाने की अभिलाषा में

स्वयं -भू भी है आतुर प्रतिपल

मेरी… Continue

Added by asha pandey ojha on May 8, 2010 at 3:30pm — 16 Comments

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपने जो दिल मुझको दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपही से दिन मेरा होता हैं सुरु ,

आपही साम ढले रात होती है सुरु ,

रात हुई सपनों में दरस दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

कब तलक यैसे मुझे तुम सताओगे ,

चुपके छुपके मिलने कब तक बुलाओगे ,

आपको ही सनम दिल ये दिया ,

सुक्रिया, सुक्रिया, आपको सुक्रिया,

आपका मैं हुआ ये अब जानिए ,

आपही मेरे पिया ओ हजूर मानिये ,

ओ पिया ओ पिया सुक्रिया,… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 8, 2010 at 2:00pm — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है

तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,

तुम रक्त पात करते रहो, हम अपना लहू बहाने बैठे है,



तुम हिंसा को ही धरम मानते,हम अहिंसा के मतवाले है,

तुम दोनों गालो पर मारते रहो,हम तो गाँधी को मानने वाले है,

हर बार पीठ पर तुमने वार किया, फिर भी हम सीना ताने बैठे है,

तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,



तुम पडोसी धरम निभा न सके, हम भाई धरम निभाते है,

तुम फ़ौरन हमला कर देते, जब हम वार्ता के लिये बुलाते है,

तुम नफरत की आग उगलते हो,हम…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 8, 2010 at 10:30am — 16 Comments

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,

मेरा ये दिल तुमपे फ़िदा हैं ,

तेरी अदा मुझको तो भाए ,

तेरी सूरत मन में सजाये ,

तुही तो अब मेरा खुदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,



तेरे लिए ही जीना ,

तेरे लिए ही मरना ,

जब तक हैं जीवन ,

तुमसे ही प्यार करना ,

प्यार तू करले प्यार ,

प्यार तू करले यार ,

कातिल बड़ी तेरी अदा हैं ,

मेरी मुहब्बत थोरी जुदा हैं ,



मैं तो ये कहना चाहू ,

बात मेरी मान जा ,

दिल मेरा क्या चाहे ,

ये… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 7, 2010 at 2:47pm — 3 Comments

कानून का चक्कर ,

कानून का चक्कर ,

गुनाहगारो के लिए वरदान ,

बेगुनाहों के लिए अभिशाप ,

कारन तारीख पर तारीख ,

बेगुनाह हो जाते हैं फक्कर ,

कानून का चक्कर ,

अब देखिये कसाब को ,

जो बना एक सौ से ज्यादा ,

के गुनाहगार ,

उसको जो भी हो सजा ,

ओ उठाएगा कानून का फायदा ,

करेगा अपील ,

उसे मिल जायेगा कुछ दिन ,

यैसे मामलो में होगा अक्सर ,

कानून का चक्कर ,

सांसदों आप देश हित में ,

कोई कानून बनावो ,

साबुत हो तो येसो को ,

सरे आम फाशी पर चढाओ… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 6, 2010 at 1:10pm — 3 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल नo-२ (योगराज प्रभाकर)

शाहराह-ए-ज़िन्दगी पे अँधेरा ज़रूर था,

पर उस के पार दिन का भी डेरा ज़रूर था !



ये मैं ही था जो तीरगी में मुब्तिला रहा,

उसने तो रौशनी को बिखेरा ज़रूर था !



जेहन-ओ-ख्याल में बसा था और ही कोई,

हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !



आंसू छुपा रहा था जो चश्मे कि आड़ में,

बिछुड़ा हुआ साथी कोई, मेरा ज़रूर था !



मीलों तलक तवील था उस घर में फासला

वो घर नहीं था, रैन बसेरा ज़रूर था !



जो कौड़ियों के मोल लूट ले गया खिज़ां

वो… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 5, 2010 at 10:30pm — 15 Comments

वफ़ा

कसम खुदा की हमे तुमसे प्यार आज भी है

वो दोस्ती की तड़प बरकरार आज भी है



मेरी वफ़ा का तुझे ऐतबार हो की न हो

तेरी वफ़ा का ऐतबार आज भी है



तेरी जुदाई को सदिया गुज़र गयी लेकिन

तेरी जुदाई में दिल अश्कबार आज भी है



हमारी चाह में कोई कमी नहीं आई

तुम्हारे वास्ते सब कुछ निसार आज भी है



वो एक नज़र मुझे बर्बाद कर दिया जिसने

उसी नज़र का मुझे इंतज़ार आज भी है



वफ़ा का रंग मोहब्बत की बू नहीं मिलती

चमन में होने को यू तो बहार आज भी…
Continue

Added by aleem azmi on May 5, 2010 at 9:48pm — 5 Comments

मेरी बातो को जरा समझो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

दर्द भी है यह्सस भी हैं ,

दूर भी हैं ये पास भी हैं ,

मन की ना सुननेवाला ,

मन की ये बिस्वास भी हैं ,

जो मन में आये ओ कह दो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

चाहत इसको कह नहीं सकते ,

फिर भी तुम बिन रह नहीं सकते ,

हस्ती हो तो हसना चाहू ,

रोती हो तो घबराता हु ,

पास मैं चाहू दूर जाती हो ,

मेरी बातो को जरा समझो ,

जाती बाद की बेरी हैं ,

जन चेतना में देरी हैं ,

सोचता हु क्या करू मैं ,

लडू या भाग परु मैं… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 5, 2010 at 2:18pm — 3 Comments

जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .

ग़ज़ल
यूँ ना खेला करो दिल के ज़ज्बात से .
जिंदगी थक गयी ऐसे हालात से .
रोज़ मिलते रहे सिर्फ मिलते रहे .
अब तो जी भर गया इस मुलाक़ात से .
ख्वाब में आता हँसता लिपटता सनम .
हो गई आशनाई हमें रात से .
गा रहा था ये दिल हंस रही थी नज़र .
क्या पता आँख भर आई किस बात से .
फन को मापतपुरी पूछता कौन है .
पूछे जाते यहाँ लोग अवकात से .
गीतकार -सतीश मापतपुरी
मोबाइल -9334414611

Added by satish mapatpuri on May 5, 2010 at 2:04pm — 6 Comments

RAHUL MEIN BAHUT DOSH HAI.............

JANE WOH KISKA THA SAAYA JISE CHUNE KO,

HUM BHATAKTE RAHE AWARA HAWAO KI TARAH.

PYAAR KE WASTE PYASHA HAI YE DIL SADIO SE,

AB TOH BARSO KOI SAAWAN KI GHATAO KI TARAH.

HAR ANDHERE SE SUBAH BANKAR GUJAR JAUNGA,

TERA AANCHAL JO RAHE SAR PE DUWAO KI TARAH.

AAJ PALKO MEIN MUJHE KHWAAB BANAKAR CHUPA LO,

KAL MAI KHO JAUNGA GUMNAAM GUFAO KI TARAH.

MUJHE SULJHANE MEIN TUM KHUD HI ULAJH JAOGE,

MERI ZINDGI HAI SADHU KI JATAO KI TARAH.

JI HAAN RAHUL MEIN… Continue

Added by rahul pandey on May 4, 2010 at 6:45pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
ग़ज़ल नo-१ (योगराज प्रभाकर)

नफरत का अन्धकार यूं फैला दिखाई दे

नाम-ओ-निशान अमन का मिटता दिखाई दे !



काशी दिखाई दे कभी का'बा दिखाई दे,

नन्हा सा बच्चा जब कोई हँसता दिखायी दे !



जिनको भी ऐतमाद है अपनी उड़ान पर

उनको आसमान भी छोटा दिखाई दे !



वो शख्स जिसकी नींद ही खुलती हो शाम को,

उसको ये आफताब क्यूँ चढ़ता दिखाई दे !



खिड़की ही जब नहीं है कोई घर के सामने,

फिर कैसे भला चाँद का टुकड़ा दिखाई दे !



श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?

श्रद्धा हो ग़र… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on May 4, 2010 at 2:07pm — 15 Comments

ऐ खुदा इतना भी कमाल न कर

ऐ खुदा इतना भी कमाल न कर
ज़िंदगी में मौत सा हाल न कर
काँटों को इतनी तरज़ीह देकर
यूं फूलों का जीना मुहाल न कर
ये दुनिया इक मुसाफ़िर ख़ाना
इसमें बसने का ख़याल न कर
ग़मे दहर का झगड़ा लेकर
तूं अपने घर में बवाल न कर
दर्द का दरमाँ तड़फ ही है
करके मुहब्बत मलाल न कर
आग बहुत दुनिया में,पानी कम
ये आंसू बेवज़ह पैमाल न कर
याद कर वो माज़ी के मंज़र
तूं अपना बरबादे-हाल न कर
चांदनी की चाह में यूं न पगला
इन अंधेरों से विसाल न कर

Added by asha pandey ojha on May 4, 2010 at 1:30pm — 16 Comments

बिड़ला फाउंडेशन के सरस्वती-व्यास सम्मान के लिए प्रविष्टियां आमंत्रित(प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि ३१ मई-२०१०)

केके बिड़ला प्रतिष्ठान ने अपने दो प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कारों सरस्वती सम्मान और व्यास सम्मान के लिए 31 मई तक प्रविष्टियां आमंत्रित की है। विजेता को पांच लाख रूपए प्रदान किए जाएंगे।



प्रतिष्ठान के निदेशक निर्मल कांति भट्टाचार्य ने आज यहां बताया कि भारतीय भाषाओं के लिए दिए जाने वाले सरस्वती सम्मान 2010 के लिए वर्ष 2000 से 2009 के बीच प्रकाशित कृति पर विचार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस सम्मान के लिए काव्य, उपन्यास, लघु कहानियां, हास्य, व्यंग्य, नाटक, प्रस्ताव,…
Continue

Added by Admin on May 4, 2010 at 12:30pm — No Comments

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,

ना सार की जरुरत हैं ना बिचार के जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,



सोच हो समझ हो इसपर कोई ध्यान ना दे ,

अट पटा लिखे समाज को कुछ ज्ञान ना दे ,

अब लोग भी खोजने लागे कुछ येसा कुछ वैसा ,

समाज और संसकृति से ना लगाव हो जैसा ,

बस मन बहलाने वाला सब्द की जरुरत हैं ,

कविता लिख रहा हु कविता की जरुरत हैं ,



अब रामायण की बाते सुनाने के वास्ते ,

हर कोई से बिनती की चले आना साम को ,

पर बिना… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on May 3, 2010 at 3:00pm — 5 Comments

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