एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं
उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)
तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,
ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)
कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3)
प्यार में इक महीन सा काग़ज़,
भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4)
तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,
सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5)
वो मेरी राह में खड़ी होगी ,
इसलिए तेज चल रहा हूँ…
Added by सूबे सिंह सुजान on May 3, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
ख़ुद ही ख़ुद को निहारते हैं हम
आरती ख़ुद उतारते हैं हम
फिर भी वैसे के वैसे रहते हैं
ख़ुद को कितना सँवारते हैं हम
दूसरों का मजाक करते हैं
ख़ुद की शेखी बघारते हैं हम
सिर्फ़ अपनी किसी जरूरत में
दूसरों को पुकारते हैं हम
डाल कर दूसरों में अपनी कमी
दूसरों को विचारते हैं हम
जीतने से ज़ियादा आये मज़ा
जब महब्बत में हारते हैं हम
इस खुशी…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on March 22, 2020 at 2:02pm — 6 Comments
ग़ज़ल
गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ
अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ
इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ
चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ
पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ.
कम दिनों के लिए होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
अब न इंसानियत की हवा लग रही
इस तरफ आजकल बंद…
Added by सूबे सिंह सुजान on January 25, 2019 at 6:27am — 4 Comments
ग़ज़ल
गण हुए तंत्र के हाथ कठपुतलियाँ
अब सुने कौन गणतंत्र की सिसकियाँ
इसलिए आज दुर्दिन पड़ा देखना
हम रहे करते बस गल्तियाँ गल्तियाँ
चील चिड़ियाँ सभी खत्म होने लगीं
बस रही हर जगह बस्तियाँ बस्तियाँ
पशु पक्षी जितने थे, उतने वाहन हुए
भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
कम दिनों के लिए होते हैं वलवले
शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
अब न इंसानियत की हवा लग…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on January 24, 2019 at 9:32pm — 7 Comments
नज़्म नया साल
इन दिनों पिछले साल आया था
पेड़ की टहनी पर नया पत्ता
वक्त की मार से हुआ बूढ़ा
आज आखिर वह शाख से टूटा ।
जन्मदिन हर महीने आता था
और वो और खिलखिलाता था
वो मुझे देख मुस्कुराता था
मैं उसे देख मुस्कुराता था ।
जिन दिनों वो जवान होता था
पेड़ पौधों की शान होता था
उस तरफ सबका ध्यान होता था
और वो आंगन की शान होता था ।
उसके चेहरे में ताब होता था
मुस्कुराना गुलाब होता…
Added by सूबे सिंह सुजान on December 31, 2018 at 2:30pm — 5 Comments
कौए अब अपने पितृ स्थान के लिए
स्कूल के बच्चों के हिस्से में आई
अनुदान राशि को हड़प ले गये ।
और अपनी श्रद्धा प्रकट करने के लिए
राजनीति को यूँ अपनाया
कि विधायक, सरपंच मजबूर हैं
सरकारी सहायता को पितृों तक भेजने के लिए ।
अन्य पक्षियों को छोड़कर
केवल कौओं की वोटो की गिनती
के मायने जियादा हैं ।
शेर भी लाचार हैं
वे अब शिकार नहीं करते
वे शिकार हो जाते हैं ।
शेरों को हमेशा
कौओं ने सरकश में नचवाया…
Added by सूबे सिंह सुजान on November 26, 2018 at 11:00pm — 6 Comments
हमने भी की इधर-उधर की बातें...
तुमने समझी इधर-उधर की बातें...
खो गये अर्थ वायदों के जब,
याद आयी इधर-उधर की बातें...
जब सरेआम चोरी पकडी गई,
फिर भी की इधर-उधर की बातें...
रोज वो ताश खेलने बैठें,
धूप करती इधर-उधर की बातें..
मुझ पे विश्वास कर महब्बत में,
छोड पगली इधर-उधर की बातें..
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on December 22, 2017 at 8:57pm — 6 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on September 19, 2016 at 11:04pm — 12 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on July 13, 2016 at 1:09am — 12 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on April 2, 2016 at 12:08am — 4 Comments
आज बस में खड़े खड़े आये
सबके चेहरों को देखते आये ।
पिछली यादें तलाश करते हुए
हम तेरे शहर में चले आये ।
और कुछ काम भी नहीं मुझको,
आज मिलने ही आपसे आये ।
जैसे कुछ खो गया था मेरा यहाँ
हर गली मोड़ देखते आये ।
मेरी औक़ात क्या महब्बत में
इस जहाँ में बड़े बड़े आये ।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on March 28, 2016 at 11:00pm — 5 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on August 13, 2015 at 10:08am — 5 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on August 12, 2015 at 11:34pm — 8 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on July 20, 2015 at 8:20pm — 13 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on June 27, 2015 at 2:12pm — 6 Comments
देखने में आ रही है गर्मियों में सर्दियाँ
मौसमों की दोस्ती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आम पर खामोश बैठी,झुरमटों से देखती
कोयलें कुछ सोचती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आओ चिंता सब करें अपने किसानों के लिये
क्यों फसल को लूटती हैं गर्मियों में सर्दिया
बादलों के साथ ओले ले, हवायें आ गई
देखो कितनी साहसी है गर्मियों में सर्दिया।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:30pm — 4 Comments
बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली
खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है
नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते
नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे
महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है
बहुत आगे निकल जाना…
Added by सूबे सिंह सुजान on April 15, 2015 at 10:30pm — 10 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on March 17, 2015 at 11:38pm — 13 Comments
बेटियाँ
बेटियों की ज़मीन को सींचो
उग रही पौध को नहीं खींचो
ये हमारे समाज की जड हैं,
इन जडों के शरीर मत भींचो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on January 15, 2015 at 11:12pm — 4 Comments
मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन
कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन
कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन
थरथराते हैं छुट्टियों के दिन
देखो सचमुच में थक गये हैं हम,
ये बताते हैं छुट्टियों के दिन
सैंकडों काम छोड कर बाकी
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन
सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन
चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन
आदतें और थकान,आलस…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on January 4, 2015 at 11:00pm — 16 Comments
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