2122 2122 2122
आग से ही आग का संधान फिर फिर
हाथ जलता छल रहा इंसान फिर फिर।1
आग अपनी तो भली सबको लगी है
ढल रहा कितना सुलग दिनमान फिर फिर।2
आग सागर की उफनती किस कदर यह
और उठने को गला हिमवान फिर फिर।3
जब पवन ठिठका लता फिर है लजाई
आँसुओं में बह रहा तूफान फिर फिर।4
आग का मंजर गजल का वाकया है
बह्न सजती है जुड़े अरकान फिर फिर।5
जब मिली मंजिल मुसाफिर है थमा बस
फिर चला है हो रहा हलकान फिर फिर।6
गाँठ…
Continue
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2016 at 11:00am —
2 Comments
लड़ रहा वह युद्ध कबसे
पर थका कब?
घिर भी जाता अकेला
व्यूह में बेशस्त्र वह
हारता हिम्मत कहाँ?
लड़ता रहा बेखौफ वह
हाथ में पहिया भले टूटा हुआ
तो क्या हुआ?
हुंकारता दहला रहा वह
शूर वीरें को
जो बिके हर काल में
बेजुबां ही मर गये।
कैद मैं रहता कहाँ
फड़फड़ाता तोड़ता
भी वह कड़ी
रहता सदा ही मुक्त वह
जो कि परिंदा है।
लाख मारो मर नहीं सकता
'अभि' हर रोज जिंदा है।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on March 3, 2016 at 1:30pm —
4 Comments
2212 2212 22
कितना कहूँ सपना अधूरा है
मन तो महज अपना जमूरा है।1
लगता रहा तबसे हुआ मन का
होता कहाँ पर चाँद पूरा है?2
इक खूबसूरत-सी अदा ने तो
बनकर बला हर बार घूरा है।3
चाहा कभी नभ ने जमीं मिलती
छिटकी रही ठगता कँगूरा है।4
बस देखता चलता नदी में चुप
जो है छला शशि अक्श पूरा है।5
पिसती गयी है तिष्णगी रस की
निकला कहाँ यूँ आज बूरा है।6
कितनी मनौव्वल हो गयी अबतक
दिल तो रहा बदरंग भूरा है।7
मौलिक…
Continue
Added by Manan Kumar singh on February 27, 2016 at 7:48pm —
2 Comments
2212 2212 2
मेरी गजल कहती बहुत है
यह घाव भी करती बहुत है।1
मन का कहा करती अकड़कर
चुप भी कभी रहती बहुत है।2
घिरकर रदीफों से भले ही
यह काफिये रचती बहुत है।3
चलती पगों को यह सहेजे
बेजा भले बचती बहुत है।4
गम को बसा अपनी लहर में
बनकर नदी बहती बहुत है।5
कितने चलाते तीर शाइर
बिंधती मगर सजती बहुत है।6
आँसू छिपाकर के बहाती
हर रूक्न में रहती बहुत है।7
कितने उड़ा लेती सपन यह
अशआर भी कहती…
Continue
Added by Manan Kumar singh on February 23, 2016 at 6:55am —
4 Comments
2122 2122 212
बादलों ने दे लिया धरना जरा
रोशनी होगी अभी रूकना जरा।1
चीड़ती लाली घटा को देख तो
है खड़ा कबसेअभी झुकना जरा।2
बात नजरों से मुकममिल हो रही
बंद ही मुख आज बस रखना जरा।3
होंठ देते हैं गवाही मौन की
आँकने का सुख अभी चखना जरा।4
है वजह कुछ बात बनने की अभी
बोलती बुत है कभी कहना जरा।5
वह शिखर से है उतरती भी कभी
बस कहूँ अपनी जगह उठना जरा।6
छिप गयी जो रोशनी तो क्या हुआ
फिर हँसेगी मत अभी रूठना जरा।7
भर रहा रस है कली में बस…
Continue
Added by Manan Kumar singh on February 19, 2016 at 12:00pm —
8 Comments
2122 2122 2122 2
भौंकते कुत्ते ठिकाना चाहिए अपना
टोकते हर शख्स आना चाहिए अपना।1
राह इतनी है नहीं आसां कि चाहे वह
घुस चले घर में बताना चाहिए अपना।2
देख कुत्ते भी नहीं गाते कभी ऐसे
जय कहें घर की फसाना चाहिये अपना।3
पल गये हो पौध तुम रस पी रहे घर का
शाख भटकी क्यूँ बचाना चाहिये अपना।4
साख कुत्तों ने बचायी है अभी तक भी
ताव दुश्मन को दिखाना चाहिये अपना।5
है नहीं पहचान करने क्या चले हो तुम
जल रहे हैं घर बुझाना…
Continue
Added by Manan Kumar singh on February 15, 2016 at 10:08am —
2 Comments
2122 2122 212
काँपती घाटी बुलाती है किसे
वादियाँ चुप अब उठाती हैं किसे?1
उलफतें अब हो रहीं बेजार हैं
मुफ्त की माशूका'भाती है किसे?2
हो गयी कुर्सी सियासत की कला
देखिये फिर से लुभाती है किसे?3
शोर कितने कर रहे बेघर सभी
सोचते हैं फिर बसाती है किसे?4
हो भले अपना निशाँ अब एकला
चंचला इसको थमाती है किसे?5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Added by Manan Kumar singh on February 10, 2016 at 9:00pm —
6 Comments
2122 2122 2122 212
दोष उनको दे रहे क्यूँ आप कुछ तो बोलिये
मौन यह कबतक चलेगाआज मुँह तो खोलिये।1
सिर रहे धुन क्या मिला आगे मिलेगा और क्या
याद करनाआप क्यूँ ऐसे किसीके हो लिये।2
पर्व था जनतंत्र का चलते जरा आगे कहीं
मिल गये नाले समझ नद आपने मुँह धो लिये।3
हाथ में डोरी पड़ी थी हाँकते रथ और भी
घिर गयी क्षणभर घटा ढीले पड़े फिर सो लिये।4
आपके वरदान से राजा बने कितने सभी
मिल गया थोड़ा कहीं फिर तो बहुत कुछ खो…
Continue
Added by Manan Kumar singh on January 31, 2016 at 8:30am —
14 Comments
2212 2212 2212 12
बदले भले मौसम कभी मत आप दहलिये
सुलगे हमीं कितना कहें चुपचाप रह लिये।1
बदली हुई रुत देखते जाती रही खुदी
होगी नजर फिर आपकी सोचा उछह लिये।2
सूनी पड़ी है देखिये अपनी जहाँ अभी
आकर यहाँ चुपचाप ही निः शंक टहलिये।3
आधी अधूरी आज तक दिल की लगी रही
अबतक सहे हम हैं बहुत बस आज कह लिये।4
अब तो खिले कुछ फूल हैं फिर आपकी नजर
मसले गये हर बार सहते खार रह लिये।5
इतरा रहे कितना अभी गेंदा गुलाब हैं
छितरा रहे…
Continue
Added by Manan Kumar singh on January 25, 2016 at 8:18am —
6 Comments
2212 2212 2212
कटते सिपाही ठग रही अब भीत है
बस मर्सिया पढ़ना यहाँ की रीत है।1
शर्मोहया ढूँढ़ें कहाँ,तू कह रहा-
कटते सिपाही खोखले! तू रीत है।2
बगुला बना तू रे चकाचक हो गया
गाता रहा तबसे पुराना गीत है।3
तू मछलियाँ लपका किया बस बेधड़क
जीता किसीने कह रहा निज जीत है।4
बँट ता रहा घर -बार है तेरी दुआ
रे दुखहरण! तुझसे समां भयभीत है।5
हर बार काँटा है चुभा परसे दही
रे छा रही संकट-घटा विस्फीत है।6
है फेंकता…
Continue
Added by Manan Kumar singh on January 10, 2016 at 1:21pm —
2 Comments
#गजल#
2212 2212 2212
कटते सिपाही ढ़ह रही कब भीत है?
बस फातिहा पढ़ना यहाँ की रीत है।1
शर्मोहया रख ताक पर ,तूने कहा-
कटते सिपाही,बात तेरी नीत है।2
बगुला बना चलता चकाचक तू हुआ
गाता रहा रे बस पुराना गीत है।3
तू मछलियाँ लपका किया बस बेधड़क
जीता किसीने कह रहा निज जीत है।4
बँटता रहा घर -बार है तेरी दुआ
रे दुखहरण! तुझसे समां भयभीत है।5
हमने जहाँ परसे दही काँटा चुभा,
रे भाल तेरा हो गया अब पीत है।6
है…
Continue
Added by Manan Kumar singh on January 5, 2016 at 10:30pm —
18 Comments
2122 2122 2122 212
कामना आ ओ करें ऐसी जहाँ में रीत हो!
भूल जायें भेद सब नव वर्ष में बस प्रीत हो!!
पुष्प मुकुलित हों प्रिये आये मधुप लेकर नवल
रसभरी मधु-मालती को सिक्त करता गीत हो।
ज्योत्सना ऐसी खिलेअब रे खिले जन-मन मृदुल
हों सभी उन्मुक्त मन फिरअब नहीं कुछ भीत हो।
पी अमर रस पीक जब टेरे खड़ा फिर रे पिकी
छेड़ती हो धुन अमर गुंजित जहाँ हो जीत हो।
हों नियति के सब सभासद रुख लिए अनुकूल ही
हो निशा का अंत फूटे रोशनी नव नीत हो।
चंप-लतिका फेरती हो शीश…
Continue
Added by Manan Kumar singh on January 1, 2016 at 8:30am —
6 Comments
गजल
2122 212 2122 2122
था फलक निज का कभी हो गया अब हाशिया हूँ
रोशनी तब थी मिली खो गयी बस मैं जिया हूँ।1
ढूँढता तब से रहा मैं अरे मिल भी सकी कब?
वह पहेली हो रही अब इधर मैं मुँह सिया हूँ।2
आ गये कितने खिलाड़ी खला मैं उन भलों को
खाल घर की बेचते बोलते खुद काफ़िया हूँ।3
तब लड़ी मैंने लड़ाई थके बिन जय कही भी
दुश्मनों पर छक चढ़ा फिर छका कर जय किया हूँ।4
जल सपन अपने गये बस रही है आरजू यह
हर कली खिल सज चले अब नये मग क्या लिया हूँ?5
लूटते हो लाज तुम…
Continue
Added by Manan Kumar singh on December 27, 2015 at 10:00pm —
2 Comments
2122 2112
आ रहा है साल नया
जा रहा है काल बचा।
तिक्त-मीठी बात रही
है सपन का जाल रचा।
अनसुनापन बोल रहा
लेख दुर्गम भाल खचा।
कर जतन मन डोल रहा
देख अब ढाढस न बचा।
थे चले उम्मीद लिये
दे गया गत साल गचा।
नाच आये थिर न हुए
मन कहा अब न नचा।
कह रहा है साल नवल
देख मेरी शान बचा।
लाज लुटती चूक गये
मैं सकूँ इसको न पचा।
चीर जोड़ो,गर न सको
बलि चढ़ो नर न लजा।
शांत रहने दे न मुझे
रक्त से दामन न सजा।
मच रही है…
Continue
Added by Manan Kumar singh on December 24, 2015 at 11:30am —
6 Comments
2212 2122 2
हर बार तू खार पाता है
उसको जिता हार जाता है।
सपने दिखा वह चला जाता
सबकुछ मुआ मार जाता है।
आया छड़ी जो पिटा था वह
तुझपर हुकूमत चलाता है।
थाना नचा था रहा जिसको
वह अब तुझे ही नचाता है।
बस मत लिया फिर चला जाता
आता यहाँ कब भुलाता है।
बाँटा कभी,तू कभी कटता
मिल भी गया जब मिलाता है।
सोचा कभी हाथ रहता क्या?
हर बार कर तेरा कटाता है।
हर बार तू ही मरा दंगों में
झंडा उड़ा, तू बँटाता है।
आता मसीहा नया फ़रमा,
तू…
Continue
Added by Manan Kumar singh on December 21, 2015 at 10:24am —
4 Comments
गजल
*****
चैन आना मुश्किल-सा लगा है
आज रिश्ता बोझिल-सा लगा है।
पैठ करतीं बातें तीर बनकर
अंग हर अपना दिल-सा लगा है।
दर्द अपना रख लो गाँठ कर अब
तंग दिल उसका सिल-सा लगा है।
तंज कसता वह तेरी वफ़ा पे
अब रहम उसका खिल-सा लगा है।
माँगते हो तुम खैरात उससे
वह तो' मुझको बेदिल-सा लगा है।
"मौलिक व अप्रकाशित"@मनन
खिल=घाव के मवाद कीअंतिम किश्त
सिल=पत्थर
Added by Manan Kumar singh on December 15, 2015 at 8:38am —
6 Comments
2212 2212 2122 22 12
सबने कही अपनी कथा अब कहो मन तुम भी अभी,
कितनी रही व्यथा बता चुप न रो मन तुम भी अभी।
चलते रहे हो साथ मेरे चला हूँ जिस मग जहाँ
करता रहा हूँ बात मैं अब करो मन तुम भी अभी ।
राजा मुझे मन का कहा जँच गया था मुझको कहूँ
बहता रहा मन- मौज अब बह चलो मन तुम भी अभी ।
टूटे हुए सब ख्वाब मैंने बटोरे फिर फिर यहाँ
बिखरे सभी जितने बटे आ बटो मन तुम भी अभी ।
कितनी कलाएं साधता आ गया मैं हूँ अब यहाँ
सधता गया बस काल है अब कहो मन तुम भी…
Continue
Added by Manan Kumar singh on December 6, 2015 at 9:02pm —
1 Comment
गजल
2122 2122
**************************
मैं चलो सपने सजा दूँ
आ सुनो अब गीत गा दूँ।
जो पड़ीं सोयी जहन में
ख्वाहिशें फिर से जगा दूँ।
जो बुझी है आरजू अब
आ उसे जलना सिखा दूँ।
है पड़ी सूनी डगर अब
राग मीठा गुनगुना दूँ ।
चल अली सूनी गली का
साँस से रिश्ता लगा दूँ ।
रश्मियों से आरती कर
आ अभी पलकें बिछा दूँ।
छू गया कबका पवन मुख
बन हवा तुझको रिझा दूँ।
छा रहीं मुख पे घटायें
आ अभी फिरसे सजा दूँ।
ताप तेराअब शमन…
Continue
Added by Manan Kumar singh on December 5, 2015 at 9:07am —
10 Comments
2122 2122 2222
वक्त बनके आ गये हो टल जाओगे
गर्दिशें कर तो अभी ही ढल जाओगे।
बुझ रहे दीये अभी रोशन जो रफ्ता
रोशनी बख्शो नजर में पल जाओगे।
हम बिठा लेते नयन में भूलें सब कुछ
कर भला वरना नजर से चल जाओगे।
आग उर में ले चले तो रौशन कर मग
बेवजह बाँटो तपिश मत जल जाओगे।
छल गये हो बार कितनी पूछो खुद से
सच न हो एक बार फिर अब छल जाओगे।
.
मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on December 1, 2015 at 10:00am —
2 Comments
गजल
2122 2122 2122 2122
हम हुए कब से पराये अब बताना चाहिए भी,
जब हुए थे मनचले हम यह सुनाना चाहिए भी।
चुभ गयी थी चाँदनी तब ओस की इक बूँद बनकर,
हृत्-पटल तब से विखंडित कुछ जुड़ाना चाहिए भी।
खो गये हम थे बहुत उस नेह की सूनी डगर तब,
हैं कहाँ पहुँचे पता अब तो लगाना चाहिए भी।
भूलते हम जा रहे, जाना बहुत,फिर भी कहाँ तक,
रुत नयी नित हो रही कुछ तो अ-जाना चाहिए भी
बादलों-से केश काले कर रहे अठखेलियां जब,
ढक न जाये चाँद अब घूँघट हटाना चाहिए…
Continue
Added by Manan Kumar singh on November 10, 2015 at 9:10am —
2 Comments