जिन्दगी की डाँट खाकर भी सँभल पाये न हम
चाह कर भी यूँ पुराना पथ बदल पाये न हम।१।
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एक संकट क्या उठा के साथ छूटा सबका ही
हाथ था सबने बढ़ाया किन्तु चल पाये न हम।२।
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फर्क था इस जिन्दगी को जीने के अन्दाज में
आप सा छोटी खुशी पर यूँ उछल पाये न हम।३।
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भूख तक तो ठीक था मुँह फेरकर सब चल दिये
लुट रही इन इज्जतों पर क्यों उबल पाये न हम।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2020 at 6:55am — 6 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
कहते भरे हुए हैं अब भण्डार तो बहुत
लेकिन गरीब भूख से लाचार तो बहुत।१।
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फिरता है आज देखिए कैसे वो दरबदर
जिसने बनाये खूब यूँ सन्सार तो बहुत।२।
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मजदूर अब भी जा रहा पैदल चले यहाँ
रेलों बसों को कर रहे तैयार तो बहुत।३।
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बनता दिखा न आजतक हमको भवन कोई
रखते गये हैं आप भी आधार तो बहुत।४।
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सारे अदीब चुप हुए संकट के दौर में
सुनते थे यार उनका है बाजार तो बहुत।५।
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मजदूर सह किसान से जाने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 11:11am — 13 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
पथ से खुशी के दुख भरे काँटे नहीं गये
निर्धन के पाँव से कभी छाले नहीं गये।१।
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दसकों गुजर गये हैं ये नारा दिये मगर
होगी गरीबी दूर के वादे नहीं गये।२।
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जिन्दा नहीं तो मरके वो पाये हैं लाख जो
मजदूर अपने गाँव के सस्ते नहीं गये।३।
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कहते हैं इसको आपदा चाहे जरूर वो
शासन से इसके पर कभी रिश्ते नहीं गये।४।
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किस्मत गरीब की रही झोपड़ ही घास की
आँगन में जिसके फूल के डाले नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2020 at 4:03pm — 7 Comments
२१२२/२१२२/ २१२२/२१२
शासकों को रोज अपनी दुख बयानी लिख रहे
एक चिकने घट को जैसे बूँद पानी लिख रहे।१।
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अधजली दंगों में थी अब अधमरी है रोगवश
पर खबर में खूबसूरत राजधानी लिख रहे।२।
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दान दाता बन गये कुछ एक मुट्ठी दे चना
खींचकर तस्वीर उसकी नित कहानी लिख रहे।३।
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आस में अच्छे दिनों की शह्र आये थे मगर
गाँव के वो आज सब को खूब मानी लिख रहे।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
२२१/ २१२१/२२२/१२१२
दिखती भला है अब किधर उम्मीद की चमक
खोने लगी है खुद सहर उम्मीद की चमक।१।
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माझी को धोखा दे गयी पतवार हर कोई
दरिया में जैसे हो लहर उम्मीद की चमक।२।
**
बाँटेगा सबको आ के सच थोड़ी मिले भले
लेकर चला है वो अगर उम्मीद की चमक।३।
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कहते उसे किसान हैं निर्धन बहुत भले
झुकने न देगी उसका सर उम्मीद की चमक।४।
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लूटा गया है हर तरह उसको जहान में
आँखों में उसके है मगर उम्मीद की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 12, 2020 at 7:38am — 8 Comments
करती सूखा बाढ़ बस, हलधर को भयभीत
बाँकी हर दुख पर रही, सदा उसी की जीत।१।
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नाविक हर तूफान से, पा लेगा नित पार
डर केवल पतवार का, ना निकले गद्दार।२।
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मजदूरी में दिन कटा, कैसे काटे रात
टपके का भय दे रही, निर्धन को बरसात।३।
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आते जाते दे हवा, दस्तक जिस भी द्वार
लेकर झट उठ बैठता, हर कोई तलवार।४।
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शासन बैठा देखता, हर संकट को मूक
निर्धन को भय मौत से, अधिक दे रही भूक।५।
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मानवता से प्रीत थी, पशुपन से भय मीत
इस…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2020 at 6:06am — 6 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
भटकन को पाँव की भला कैसे सफर कहें
समझो इसे अगर तो हम लटके अधर कहें।१।
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गैरों से जख्म खायें तो अपनों से बोलते
अपनों के दुख दिये को यूँ बोलो किधर कहें।२।
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बातें सुधार से अधिक भाती हैं टूट की
दीमक हैं देश धर्म को उन को अगर कहें।३।
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टूटन दरो - दीवार की करते रफू मगर
जाते नहीं हैं छोड़ कर घर को जो घर कहें।४।
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जाने हुआ है क्या कि सब लगती हैं रात सी
दिखती नहीं है एक भी जिसको सहर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 4, 2020 at 7:41am — 7 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2020 at 9:41am — 6 Comments
द्वार पर वो नित्य आकर बोलता है
किन्तु अपना सच छुपाकर बोलता है।१।
***
दोस्ती का मान जिसने नित घटाया
दुश्मनों को अब क्षमा कर बोलता है।२।
***
हूँ अहिन्सा का पुजारी सबसे बढ़कर
हाथ में खन्जर उठाकर बोलता है।३।
***
गूँज घन्टी की न आती रास जिसको
वो अजाँ को नित सुनाकर बोलता है।४।
***
दौड़कर मंजिल को हासिल कर अभी तू
पथ में काँटे वो बिछा कर बोलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 10:00pm — 5 Comments
पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है
काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।
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पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे
अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।
**
छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था
बेटे हलधर के हम जिन को बोना अच्छा लगता है।३।
**
घोर तमस के बीच भी जो तब चौपालों में रहते थे
उनको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२
आप कहते आपदा में योजना है
सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।
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बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे
चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।
**
घोषणाएँ हो रही हैं नित्य जो भी
वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।
**
बँट रहा है ढब खजाना सत्य है यह
किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।
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हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था
शौक से लूटे जिसे भी लूटना …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments
२२१/२१२२/२२१/ २१२२
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लोरी सुना सुलाती रातें कहाँ गयीं अब
बचपन में चहचहाती सुब्हें कहाँ गयीं अब।१।
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दिनभर का खेलना वो हर भूख भूलकर नित
मस्ती भरी गजब की शामें कहाँ गयीं अब।२।
**
हर छलकपट से बंचित लड़ना झगड़ना लेकिन
मन से निकलती सच्ची बातें कहाँ गयीं अब।३।
**
जिनपर थी झुर्रियाँ ढब हरपल थी कँपकपाती
रखती थी किन्तु थामे बाहें कहाँ गयीं अब।४।
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वो होंट खिल-खिलाते मुरझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2020 at 6:52am — 4 Comments
कोरोनामय जग हुआ, फीका पड़ा बसन्त
माँगे खुद की खैर अब, राजा, रंक, महन्त।१।
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जन्मा चाहे चीन में, लाये अपने लोग
जिससे सारे देश में, फैल रहा यह रोग।२।
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विकट घड़ी में आपदा, आयी सबके द्वार
घर के बाहर आ मगर, करो नहीं सत्कार।३।
**
घर में बैठो चन्द दिन, ढककर खिड़की द्वार
कोरोना पर वार को, यही सफल हथियार।४।
**
आज चिकित्सक का कहा, थोड़ा मानव मान
घर में चुपके बैठ कर, होगा रोग निदान।५।
**
करो नमस्ते दूर से , नहीं मिलाओ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2020 at 8:04pm — 2 Comments
१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/
*
कभी कतरों में बँटकर तो कभी सारा गिरा कोई
मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।
*
कि होगी कामना पूरी किसी की लोग कहते हैं
फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।
*
गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं लेकिन
सुना हमने यहाँ खुशियों का भी मारा गिरा कोई।३।
*
किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
***
आओ नाचें, झूमें, गायें फिर से अब के होली में
इक-दूजे को खूब लुभायें फिर से अब के होली में।१।
**
देख के जिसको मन ललचाये ज़न्नत के वाशिन्दों का
रंगों के घन खूब उड़ायें फिर से अब के होली में।२।
**
जीवन में रंगत हो सब के संदेश हमें देे होली
रोते जन को यार हँसायें फिर से अब के होली में।३।
**
आग सियासत चाहे कितनी यार लगाये नफरत की
प्रेम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 10, 2020 at 7:30am — 8 Comments
२२१/२१२२/२२१/२१२२
*
फूलों की क्या जरूरत उपवन में आदमी को
भाने लगे हैं काँटे जीवन में आदमी को।१।
**
क्या क्या मिला हो चाहे मन्थन में आदमी को
विष की तलब रही पर जीवन में आदमी को।२।
**
आजाद जब है रहता उत्पात करता बेढब
लगता है खूब अच्छा बन्धन में आदमी को।३।
**
आता बुढ़ापा जब है रूहों की करता चिन्ता
तन की ही भूख केवल यौवन में आदमी को।४।
**
कितना हरेगा विष ये चाहे पता नहीं पर
रक्खो भुजंग जैसा चन्दन में आदमी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2020 at 4:21pm — 2 Comments
जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं
वो ही सच्चे अर्थों में सन्सार बचाया करते हैं।१।
**
उन लोगों से ही तो कायम हर शय की ये रंगत है
जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।
**
तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो
हम राख की ढेरी में देखो अंगार बचाया करते हैं।३।
**
जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 4, 2020 at 7:30am — 5 Comments
कब कहता हूँ आम आदमी मुझको अपने पैसे दे
हो सकता है तुझ से कुछ तो क़ुर्बानी में रिश्ते दे।१।
**
दिल्ली जलती है जलने दे मुझे सियासत करने दे
हर नेता का ये कहना है कुछ तो कुर्सी फलने दे।२।
**
ये लाशों के ढेर हमेशा सीढ़ी बन कर उभरे हैं
इनको मत रो इन पर मुझको पद की खातिर चढ़ने दे।३।
**
खूब सुरक्षा मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2020 at 8:30am — 13 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
**
उनका वादा राम का वादा समझ बैठे थे हम
हर सियासतदान को सच्चा समझ बैठे थे हम।१।
**
कह रहे थे सब यहाँ जम्हूरियत है इसलिए
देश में हर फैसला अपना समझ बैठे थे हम।२।
**
गढ़ गये पुरखे हमारे बीच मजहब नाम की
क्यों उसी दीवार को रस्ता समझ बैठे थे हम।३।
**
आस्तीनों में छिपे विषधर लगे फुफकारने
यूँ जिन्हें जाँ से अधिक प्यारा समझ बैठे थे हम।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 22, 2020 at 8:28am — 9 Comments
झूठी बातें कह कर दिनभर जब झूठे इठलाते हैं
हम सच के झण्डावरदारी क्यों इतना शर्माते हैं।१।
***
अफवाहों के जंगल यारो सभ्य नगर तक फैल गये
क्या होगा अब विश्वासों का सोच सभी घबराते हैं।२।
***
कैसे सूरज चाँद सितारे अब तक चुनते आये हम
बात उजाले की कर के जो नित्य अँधेरा लाते हैं।३।
***
नित्य हादसे होते हैं या उन में साजिश होती है
छोटा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:00am — 8 Comments
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