शीत के दोहे
बालापन सा हो गया, चहुँदिश तपन अतीत
यौवन सा ठिठुरन लिए, लो आ पहुँची शीत।१।
मौसम बैरी हो गया, धुंध ढके हर रूप
कैसै देखे अब भला, नित्य धरा को धूप।२।
शीत लहर के तीर नित, जाड़ा छोड़े खूब
नभ के उर में पीर है, आँसू रोती दूब।३।
हाड़ कँपाती ठंड से , सबका ऐसा हाल
तनमन मागे हर समय, कम्बल स्वेटर शॉल।४।
शीत लहर फैला रही, जाने क्या क्या बात
दिन घूँघट में फिर रहा, थरथर काँपे रात।५।
लगी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2018 at 7:27am — 8 Comments
विपदा से हारो नहीं, झेलो उसे सहर्ष
नित्य खुशी औ' प्यार से, बीते यह नववर्ष।१।
नभ मौसम सागर सभी, कृपा करें अपार
जनजीवन पर ना पड़े, विपदाओं की मार।२।
इंद्रधनुष के रंग सब, बिखरे हों हर बाग
नये वर्ष में मिट सके, भेद भाव का दाग।३।
खुशियों का मकरंद हो, हर आँगन हर द्वार
हो सब में सदभावना, जीने का आधार।४।
विदा है बीते साल को, अभिनंदन नव वर्ष
ऋद्धि सिद्धि सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2018 at 8:00am — 12 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
रवैया हाकिमों का देश को बीमार कर देगा
यहाँ मिलजुल के रहना और भी दुश्वार कर देगा।१।
फँसाया जा रहा है यूँ अविश्वासों में हमको अब
न जाने कब सखा ही झट पलटके वार कर देगा।२।
सियासत तेल छिड़केगी हमारी बस्तियों में फिर
जलाने का बचा जो काम वो अखबार कर देगा।3।
परोसे झूठ सच जैसा बनाकर मीडिया जो नित
किसी दिन ये हमारी सोच को लाचार कर देगा ।४।
अबोला शक बढ़ाता है रखो सम्वाद भाई से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2018 at 8:30pm — 18 Comments
2122 2122 212
जीतने की जिस किसी ने ठान ली
मंजिलों की राह खुद पहचान ली ।1।
हार का अहसास उसको खा गया
पूछ मत अब ये कि क्यों कर जान ली।2।
है वचन शीशा न कोई टूटेगा
पत्थरों की बात चाहे मान ली ।3।
कोयलों ने होंठ अपने सी लिये
झुंड में आ मेंढकों ने तान ली ।4।
भ्रष्ट जब सारी सियासत है यहाँ
क्या है कैसे कितनी राशी दान ली।5।
मौलिक अप्रकाशित
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2017 at 1:54pm — 23 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 4:02pm — 22 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 17, 2017 at 11:13am — 11 Comments
गजल
2121 1221 1212 122
मेरे रहनुमा ही मुझसे मिले सूरतें बदल के
भला क्या समझता तब मैं छिपे पैंतरे वो छल के।1।
न सितारे बोले उससे मेरा हाल क्या है या रब
न ही चाँद आया मुझ तक कभी एकबार चल के।2।
खता क्या थी अपनी ऐसी अभीतक न समझा हूँ मैं
जो था राज मेरे दिल का खुला आँसुओं में ढल के।3।
कहूँ लाल कह के उसने न गले लगाया क्यों मैं
न लिपट सका था मैं ही कभी उससे यूँ मचल के।4।
बड़ा ख्वाब था खिलाऊँ उसे मोल की भी रोटी
न खरीद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2017 at 1:10pm — 18 Comments
1222 1222 1222 1222
ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी
किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।
सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।
हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए
मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।
हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो
किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।
नहीं उसको…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
जुबाँ पर वो नहीं चढ़ता मनन उसका नहीं होता
जो बाँटा खौफ करता हो भजन उसका नहीं होता।1।
जो करता बात जयचंदी वतन उसका नहीं होता
जिसे हो प्यार पतझड़ से चमन उसका नहीं होता।2।
जिसे लालच हो कुर्सी का जो करता दोगली बातें
वतन हित में कभी लोगों कथन उसका नहीं होता।3।
गगन उसका हुआ करता जो दे परवाज का साहस
जो काटे पंख औरों के गगन उसका नहीं होता।4।
समर्पण माँगता है प्यार निश्छल भाव वाला बस
नजर हो सिर्फ दौलत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2017 at 11:21am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
जफा कर यूँ मुहब्बत में कभी ऊपर नहीं होते
वफा के खेत दुनियाँ में कभी बंजर नहीं होते।1।
खुशी मंजिल को पाने की वहाँ उतनी नहीं होती
जहाँ राहों में मंजिल की पड़े पत्थर नहीं होते।2।
परख सकती नहीं हर आँख गहना रूप का यारो
किसी की सादगी से बढ़ कोई जेवर नहीं होते।3।
नहीं चाहे बुलाता हो उसे फिर तीज पर नैहर
न छोड़े गर नदी नैहर कहीं सागर नहीं होते।4।
यहाँ कुछ द्वार सुविधा के खुले होते जो उनको भी
पहाड़ी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 29, 2016 at 11:25am — 11 Comments
2222 2222 2222 222
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यौवन भर देखी है हमने कैसी कैसी छाँव घनी
कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1
धूप अगर होती राहों में तो साया भी मिल जाता
लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2
हमको तो आदत सहने की सर्दी गर्मी बरखा सब
दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3
छाया अच्छी तो है लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके
कड़ी धूप से भी बदतर है यारो ऐसी छाँव घनी।4
फसलों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments
2122 2122 2122 212
खोटा सिक्का हो गया है आज अय्यारों का फन
हर तरफ छाया हुआ है आज बाजारों का फन
कर रही है अब समर्थन पप्पुओं की भीड़ भी
क्या गजब ढाने लगा है आज गद्दारों का फन
हौसला देते जरा तो क्या गजब करती सुई
आजमाने में लगे सब किन्तु तलवारों का फन
पुल बने हैं कागजों पर कागजों पर ही नदी
क्या गजब यारो यहा आजाद सरकारों का फन
पास जाती नाव है जब साथ नाविक छोड़ता
आपने देखा न होगा यार…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 16, 2016 at 11:21am — No Comments
1222 1222 1222 1222
कहाँ तक नाव जाएगी करे पतवार गद्दारी
गजल लय में रहे कैसे करें असआर गद्दारी ।1।
भले कहना सरल है ये यहाँ हर नींव पक्की है
सलामत छत रहे कैसे करे दीवार गद्दारी ।2l
कहा करते हैं दुर्जन भी ये तो तहजीब का फल है
सुहाती है किसी को ढब किसी को भार गद्दारी ।3l
न जाने यार क्या होगा चमन में हाल फूलों का
अगर करने लगे यूँ ही कसम से खार गद्दारी ।4l
जुड़े जब स्वार्थ ही केवल…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
1222 1222 1222 1222
बिछड़ कर भी कहाँ तुझसे तेरी बातों को भूले हैं
कहाँ उस झील के तट की मुलाकातों को भूले हैं।1।
कि छोड़ा हमने अपना दिन तेरी जुल्फों के साये में
तेरे काँधें पे हम अपनी सनम रातों को भूले हैं।2।
बजा करती हैं कानों में तुम्हारी पायलें अब भी
खनकती चूडि़यों वाले न उन हातों को भूले हैं।3।
न छत पर चाँद तारों से हमारा हाल तुम पूछो
तपन की याद किसको है कि बरसातों को भूले हैं।4।
अगर है याद जो थोड़ा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 5, 2016 at 12:01pm — 15 Comments
1222 1222 1222 1222
उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर कूप के यारो कभी बाहर नहीं होते ।1
समर्थन पाक को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी कश्मीर पर इतने कड़े तेवर नहीं होते।2
पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी मासूम हाथो में लिए पत्थर नहीं होते।3
बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर तब छिपे भीतर नहीं होते।4
समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा इस सियासत में भरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments
212 2112 2112 222
सोच अच्छी हो तो मस्जिद या शिवाला देगी
तंग हो और अगर खून का प्याला देगी।1।
लाख अनमोल कहो यार ये हीरे लेकिन
पर हकीकत है कि मिट्टी ही निवाला देगी।2।
जब हमें भोर में आँखों ने दिया है धोखा
कौन कंदील जो पावों को उजाला देगी।3।
आशिकी यार तबायफ की करोगे गर जो
स्वर्ग से घर में नरक सा ही बवाला देगी।4।
आप हम खूब लडे़ खून बहाना मकसद
राहेरौशन तो जमाने को मलाला देगी।5।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2016 at 3:00pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
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दुश्मनों के डर को उसने अपना ही डर कर लिया
और दामन दोस्तों के खून से तर कर लिया ।1।
जब नगर में रह न पाए दोस्तो महफूज हम
आदिमों के बीच हमने दश्त में घर कर लिया ।2।
चोट खाकर भी हँसे हैं आँख नम होने न दी
सब गमों को आज हमने देखिए सर कर लिया ।3।
आपके तो पर परिंदों फिर भी क्यों लाचार हो
हर कठिन परवाज भी यूँ हमने बेपर कर लिया ।4।
कह न पाए बात कोई…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2016 at 12:31pm — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
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जिसे राणा सा होना था वो जाफर बन गया यारो
सियासत करके गड्ढा भी समंदर बन गया यारो ।1।
हमारी सीख कच्ची थी या उसका रक्त ऐसा था
पढ़ाया पाठ गौतम का सिकंदर बन गया यारो ।2।
करप्सन और आरक्षण का रूतबा देखिए ऐसा
फिसड्डी था जो कक्षा में वो अफसर बन गया यारो ।3।
तरक्की है कि बर्बादी जरा सोचो नए युग की
जहाँ बहती नदी थी इक वहाँ घर बन गया यारो ।4।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 16, 2016 at 10:48am — 18 Comments
221 2122 2212 122
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मत पूछ किस लिए वो तेवर बदल रहे हैं
शह पा के दोस्तों की दुश्मन उछल रहे हैं l1l
होगी वफा वतन से यारो भला कहाँ अब
हुंकार जाफरों की शासन दहल रहे हैं l2l
हमको पता है लोगों शैलाब बढ़ रहा क्यों
दरिया के प्यार में कुछ पत्थर पिघल रहे हैं l3l
आँखों को सबकी यारों चुँधिया न दें कहीं वो
तम के दयार में से तारे निकल रहे हैं l4l
ताकत विरोध की तज अपनायी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:15am — 14 Comments
गजल/धूप
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1222 1222 1222 1222
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करो तय दोस्तो थोड़ा जिगर में धूप का होना
मिटा सीलन को देता है कि घर में धूप का होना /1
दुआ मागी थी रिमझिम में जरा सी धूप तो दे दो
अखरता क्यों तुझे है अब डगर में धूप का होना /2
जहाँ देखो वहीं जलवा करें साए इमारत के
पता चलता किसे है अब नगर में धूप का होना /3
चलो आँगन में रख आए चटखती हड्डियों को अब
जरूरी है बुढ़ापे की उमर में धूप का होना…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2016 at 11:52am — 18 Comments
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