Added by ram shiromani pathak on December 26, 2014 at 1:00pm — 24 Comments
Added by ram shiromani pathak on December 25, 2014 at 5:30pm — 30 Comments
जब से देखा है उन्हें'रहा न खुद का ज्ञान।
जादूगरनी या कहूँ'मद से भरी दुकान।।1
दुख की रजनी जब गयी'सुख का हुआ प्रभात।
तरुअर देखो झूमते'नाच रहे हैं पात।।2
उपवन में ले आ गयीं'अनुपम एक सुगंध।
मन भँवरे ने कर लिया'जीने का अनुबंध।।3
मन उपवन में बस गया'उनका उजला चित्र।
बाकी सब धुँधला दिखे'अब तो मुझको मित्र।।4
नीति नियम हों साथ में'नेह भरा लघु कोष।
हिय उपवन में तब रहे'परम शांति संतोष।।5
मानवता…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on December 1, 2014 at 9:00pm — 20 Comments
बुद्ध हो गये क्या?
शुद्ध हो गये क्या?
मज़ाक मज़ाक में!
क्रुद्ध हो गये क्या?
उसको देख देख!
मुग्ध हो गये क्या?
सफेदी दिखी है!
दुग्ध हो गये क्या?
अपनों के पथ में!
रुद्ध हो गये क्या?
**************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on November 30, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 27, 2014 at 8:55pm — 15 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 1:30am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:57am — 26 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 25, 2014 at 12:46am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 22, 2014 at 11:00am — 8 Comments
मन को दुर्बल क्यों करें'क्षणिक दीन अवसाद।
आगे देखो है खड़ा'आशा का आह्लाद।।
रिश्ते भी अब हो गये'ज्यों दैनिक अखबार।
आज पढ़ लिया प्रेम से'कल फिर से बेकार।।
ह्रदय प्रेम से भर गया'देखा अनुपम प्यार।
कामदेव दुन्दुभि लिये'आये मेरे द्वार।।
खुद को भी आवाज़ दे,खुद को ज़रा पुकार!
एक रात तू भी कभी,खुद के साथ गुजार।!
आप कहो कुछ मै कहूँ'बातें हो दो चार।
तुम खुश मैं भी खुश रहूँ'बना रहेगा…
Added by ram shiromani pathak on November 9, 2014 at 1:58pm — 16 Comments
Added by ram shiromani pathak on November 2, 2014 at 10:09am — 18 Comments
१-कहा था मैंने
क़र्ज़ न ले उससे
मुफलिशी बेशर्म है
कपडे उतार लेती है
२-वो फिर से चला ढूँढने
दो रोटी
बजबजाते कूड़े के ढेर में
३-नदी के किनारे वाला पेड़
आज प्यास से मर गया
४-मैं मोम था
शायद इसीलिए
धूप में बैठा गयीं मुझे
५-मैं तुमसे हाँथ जरूर मिलाऊंगा
मेरा कद मुकम्मल हो जाने दो
६-मुझे पाने की अजीब हवस है उन्हें
रेत में गिरा आँसू हूँ
फिर भी ढूँढ़ रही हैं
७-तुझे भी…
Added by ram shiromani pathak on October 12, 2014 at 11:59am — 6 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 28, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 25, 2014 at 7:51pm — 8 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 24, 2014 at 9:44am — 23 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 10, 2014 at 7:07pm — 11 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 7, 2014 at 2:00pm — 12 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 7, 2014 at 1:30pm — 12 Comments
वो मेरा कुछ नहीं लगता
और मैं कोई महान व्यक्ति भी नहीं
फिर भी बार बार वो
मेरे पैर पकड़ रहा था
पता है क्यों ?
मैंने सिर्फ दो रोटी दी उसे
**************************
बहुत दुश्मन है उसके
गलती ?
बहुत अच्छा आदमी है वो
*******************************
सिसकियाँ मत लो ग़म-गीं हवाओ
चुप हो जाओ
पता है क्यों?
वो आ रहीं है
*********************************
लोग कहते है उनकी आँखों में
प्यार का समंदर है
फिर भी मैं क्यों ?
प्यासा…
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 6:00pm — 14 Comments
खुद का भी अहसास लिखो!
एक मुकम्मल प्यास लिखो!!
उससे इतनी दूरी क्यों !
उसको खुद के पास लिखो !!
खाली गर बैठे हो तुम!
खुद का ही इतिहास लिखो !!
गलती उसकी बतलाना !
खुद का भी उपहास लिखो!!
हे ईश्वर ऊब गया हूँ!
मेरा भी अवकाश लिखो!!
***************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on August 24, 2014 at 1:11am — 28 Comments
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