क्षण भंगुर जीवन हुआ, जीवन का क्या मोल ।
भज लो तुम भगवान को, क्यों रहे विष घोल ।।
बंद पड़ी सब खिड़कियाँ, चाहे तो लो खोल ।
खुले हुये अंबर तले, कर लो अब किल्लोल ॥
* भामा माया मोहिनी, मोहति रूप अनेक ।
माया माला भरमनी, फंसत नाहीं नेक ॥
*इस दोहे को इस तरह भी देखें :-
ऐसी माया मोहिनी मोहती रूप अनेक ।
केवल माला फेर के कोई न बनता नेक ॥
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 28, 2014 at 11:00pm — 21 Comments
शाख पर लगा
अलौकिक सौंदर्य पर इतराता
वसुधा को मुंह चिढ़ाता
मुसकुराता इठलाता
मस्त बयार मे कुलांचे भरता
गर्वीला पुष्प !..........
सहसा !!!
कपि अनुकंपा से
धराशायी हुआ
कण कण बिखरा
अस्तित्व ढूँढता
उसी धरा पर
भटकता यहाँ से वहाँ
उसी वसुधा की गोद मे समा जाने को आतुर ...
बेचारा पुष्प !!!
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 25, 2014 at 10:30am — 21 Comments
छंद पर मेरा प्रथम प्रयास
छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम
आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।
ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,
खुशी न समानी मन मानी हुई जाती हूँ ।
भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर
भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।
सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,
राधिका सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on January 21, 2014 at 8:30pm — 16 Comments
जाग रे मन !
कब तक यूं ही सोएगा
जग मे मन को खोएगा
अब तो जाग रे मन !!
1)
सत्कर्मों की माला काहे न बनाई
पाप गठरिया है सीस धराई
जाग रे !!!!
2)
माया औ पद्मा कबहु काम न आवे
नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे
जाग रे !!!!
3)
दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई
प्रीति की रीति अबहूँ न निभाई
जाग रे !!!!!
4)
सारा जीवन यही जुगत लगाई
मान अभिमान सुत दारा पाई
जाग रे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
गंगा चुप है ...................
वेगवती गंगा प्रचंड प्रबल
लहराती, बल खाती जाए
रूप चाँदी सा दूधिया धवल
जनमानस तारती जाए
वो गंगा !! आज चुप है ..............
हे ! मानस किञ्च्त जागो
भागीरथी की व्यथा सुनो
तुमको तो जीवन दिया है
किन्तु तुमने क्या दिया है
व्यथित गंगा !! आज चुप है ................
आंचल मैला किए देते हो
मुख मे भी विष दिये देते हो
चाँदी सा रूप हुआ क्लांत
सौम्यता भी हुई…
ContinueAdded by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:30pm — 9 Comments
वो हिरनी सी चंचल आंखे
कभी मुसकुराती हुई
खामोश है अब ......
एक ज्वार भाटा आकर
बहा ले गया है सब ...
वो रिक्त आंखे
अब नहीं देखती
कोई सपना मधुर
क्योंकि उनसे छीना है
किसी ने हक़
स्वप्न देखने का ।
वे अब नहीं ताकती
किसी की राह
क्योंकि वे खामोश है
शायद पत्थर हो गई है........
किसी ने छीना है
उनसे जीने की खुशी
उनकी मुस्कुराहट
उनकी चंचलता
किसी व्याघ्र…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
बाबा की दहलीज लांघ चली
वो पिया के गाँव चली
बचपन बीता माँ के आंचल
सुनहरे दिन पिता का आँगन
छूटे संगी सहेली बहना भैया
मिले दुलारी को अब सईंया
मीत चुनरिया ओढ़ चली
बाबा की ................
माँ की सीख पिता की शिक्षा
दुलार भैया का भाभी की दीक्षा
सखियों का स्नेह लाड़ बहना का
वो रूठना मनाना खेल बचपन का
भूल सब मुंह मोड चली
वो पिया के ...............
परब त्योहार हमको बुलाना
कभी तुम न मुझको…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 5:30pm — 32 Comments
कुछ इस तरह पुकारा तुमने
कदम भी मेरे लगे बहकने
कुछ इस .........
दामिनी दमक उठी नैनो मे
सरगम छनक उठी साँसों मे
हृद वीणा सी झंकृत कर दी
जागे से लगने लगे सपने
कुछ .......................
अन्तर्भावों की सुरवलियों मे
उद्गारों की हारावलियों मे
शब्द सुशोभित सज्जित कर दी
मन-कानन सब लगे महकने
कुछ .....................
अप्रकाशित एवं…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 21, 2013 at 9:00pm — 22 Comments
अकुला रही सारी मही
किसको पुकारना है सही ।
सोच रही अब वसुंधरा
कैसा कलुषित समय पड़ा
बालक बूढ़े नौजवान
गिरिवर तरुवर आसमान
किसको पुकारना .........
अखंड भारत का सपना
देखा था ये अपना
खंडित हो कर बिखर रहा
न जन मानस को अखर रहा
अकुला रही .................
ढूँढने पर भी अब मिलते नहीं
राम कृष्ण से पुरुषोत्तम कहीं
गदाधर भीम अर्जुन धनु सायक नहीं
गांधी सुभाष भगत से नायक…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 3, 2013 at 11:00am — 10 Comments
जरूरत
पूनम कानों मे ईयर फोन लगाये रेलिग के सहारे खड़ी किसी से बाते कर रही थी , पास ही चारपाई पर लेटा उसका दो माह का दूधमुहा शिशु बराबर बिलख रहा था । इतनी देर मे तो पड़ोस की छतों से लोग भी झांक कर देखने लगे थे कि क्या कोई है नहीं बच्चा इतना क्यों रो रहा है ?
देखा तो पूनम पास ही खड़ी थी लेकिन उसका मुंह दूसरी ओर था । लोगों ने आवाज भी लगाई पर उसने सुना नहीं । अब तक नीचे से बूढ़ी सास भी हाँफती हुई आ गई थी और बड़बड़ाते हुए उन्होने बच्चे को गोद मे उठा लिया । परन्तु पूनम कि बातें…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 29, 2013 at 1:30pm — 29 Comments
आखेटक !!
क्या तुम्हें आभास है ?
कि तुम जिजीविषा मे
किसी का आखेट कर
जीवन यापन की मृगया मे
भटकते हुये मदहोश हो !
आखेटक !
क्या तुम्हें आभास है ?
आखेटक को संजीवनी नहीं मिलती
मन की तृष्णा की खातिर
अनन्य मार्गदर्शी का भी
विसस्मरण कर दिया है
सृजनमाला को विस्फारित नेत्रों से
देखते हुए मदमस्त हो !
आखेटक !!
क्या भूल गए हो ?
आखेट करने को आया तीर
एक दिन तुम्हें भी बेध जाएगा
तब…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 20, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
समंदर किनारे रेत पर
चलते चलते यूं ही
अचानक मन किया
चलो बनाए
सपनों का सुंदर एक घरौंदा
वहीं रेत पर बैठ
समेट कर कुछ रेत
कोमल अहसास के साथ
बनते बिगड़ते राज के साथ
बनाया था प्यारा सा सुंदर
एक घरौंदा................
वही समीप बैठ कर
बुने हजारों सपनो के
ताने बाने जो
उसी रेत की मानिंद
भुरभुरे से ,
हवा के झोंके से उड़ने को बेताब
प्यारा घरौंदा ..............
अचानक उठी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 13, 2013 at 8:00pm — 23 Comments
नव युवा हे ! चिर युवा तुम
उठो ! नव युग का निर्माण करो ।
जड़ अचेतन हो चुका जग,
तुम नव चेतन विस्तार करो ।
पथ भ्रष्ट लक्ष्य विहीन होकर
न स्व यौवन संहार करो ।
उठो ! नव युग का निर्माण करो ...............
दीन हीन संस्कार क्षीण अब
तुम संस्कारित युग संचार करो ।
अभिशप्त हो चला है भारत !!
उठो ! नव भारत निर्माण करो ।
नव युवा हे ! चिर युवा ..............................
गर्जन तर्जन ढोंगियों का
कर रहा मानव मन…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 8, 2013 at 7:00pm — 31 Comments
अब तक तो सभी घरों मे रंग रोगन होकर नए तरीके से सभी के घर भी सज चुके है । जिन घरों मे रंग रोगन नहीं हुआ है वहाँ साफ सफाई होकर सज सज्जा के साथ घरों को लक्ष्मी जी के आगमन हेतु तैयार कर लिया गया है । इस दिवाली लक्ष्मी जी सभी के घरों को खुशियों से भर दें । सभी के मनों मे प्रेम, सौहार्द्य एवं सच्चाई का उजाला भर दें ।कहा जाता है कि दीपावली कि रात्री मे विष्णु प्रिया श्री लक्ष्मी सदगृहस्थों के घर मे प्रवेश कर यह देखती है कि हमारे निवास योग्य घर कौन…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 2, 2013 at 9:30pm — 16 Comments
मेरे प्रियवर .............
स्नेह सिक्त हृदय
तुम रहते प्राण बन
जीवन की अविरल धारा
तुम रहते अठखेलियाँ बन
तुम मेरे प्रियवर.............
मद युक्त नयन
तुम रहते काजल रेख बन
शीश पर चमकते
यों सिंदूरी रेख बन
तुम मेरे प्रियवर.....................
तुमसे ही है जीवन
हर शाम सिंदूरी
फूलों सा महके सिंगार
संग तुम्हारा अनुपम फुलवारी ॥
मेरे प्रियवर.................
.
अन्नपूर्णा…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 24, 2013 at 10:30am — 22 Comments
क्या कहूँ ...............
आहत मन की व्यथा
कैसे सुनाऊँ.................
मन की व्याकुलता
अश्रु और व्याकुलता
साथी है परस्पर
आकुल होकर आँख भी
जब छलक जाती है
गरम अश्रुओं का लावा
कपोलों को झुलसा जाता है
न जाने कब कैसे ...................
पीर आँखों की राह
चल पड़ती है बिना कुछ कहे
आकुल मन बस यूं ही
तकता रह जाता है
भाव विहीन होकर भी
भाव पूर्ण बन जाता है जब
जिह्वा सुन्न हो…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 21, 2013 at 2:23pm — 34 Comments
आशीर्वाद !!
वह कोई नब्बे के आस पास वृदधा रही होगी जो सामान सहित अपने ही घर के बाहर बैठी थी न जाने क्या अँड बंड बड़बड़ा रही थी । लोग सहनुभूति से देखते और और चल देते किसी ने हिम्मत भी की उससे जानने की तो वह ठीक ठीक नहीं बता पा रही थी । पता नहीं क्रोध की अधिकता थी या ममता और दुःख का मिश्रित भाव था जो शब्द न निकल रहे थे । बेटा कुछ दिनों से बाहर गया हुआ था और घर पर बहू अकेली…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 7:30pm — 26 Comments
हे! कमल पर बैठने वाली सुंदरी भगवती सरस्वती को मेरा प्रणाम । तुम सब दिशाओं से पुजजीभूत हो । अपनी देह लता की आभा से ही क्षीर समुद्र को अपना दास बनाने वाली , मंद मुस्कान से शरद ऋतु के चंद्रमा को तिरस्कृत करने वाली............
माँ शारदा !!!
मार्ग प्रशस्त करो माँ अम्ब जगदम्ब हे !
आपकी शरण हम है माँ अम्ब जगदम्ब हे ! ........
श्वेत कमल विराजती वीणा कर धारती हे !
श्वेत हंस वाहिनी माँ श्वेताम्बर धारणी हे !
कमल सदृश नयन माँ भाग्य अनूपवती हे…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 6:00pm — 14 Comments
माँ !!
नेह ममता
लाड़ दुलार
अविस्मरण रूप
स्नेह की गागर
छलकाती ।
आँखों मे असंख्य
अबूझ स्वप्न
स्नेह सिक्त
जल धारा बरसाती ।
होती ऐसी माँ !!!..................अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:00pm — 24 Comments
स्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
अर्ध उन्मीलित नेत्र
उनींदा मानस
आलस्य पूरित
यह तन मन
पंछियों ने राग सुनाया ।
कामिनी सी कमनीय
सौंदर्य की प्रतिमा
नैसर्गिक छटा
फैली चहुं ओर
मुसकाते सुमन
झूमते तरुवर
नव जोश जगाया ।
हुआ प्रफुल्लित ये मन
तोड़ कर मंथर बंधन
मानो रोली कुमकुम
आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 4:59pm — 30 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |