घोघा रानी, कितना पानी ।
बदला मौसम, बरसा पानी ।।
डूब गई गली और सड़कें ।
नगर निगम का उतरा पानी ।।
सब कुछ अच्छा करते दावा ।
नही बचा आँखों का पानी ।।
गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।
सब नदियों में उफना पानी ।।
मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।
पितरों को भी देता पानी ।।
नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।
उठा गरीब का दाना पानी ।।
जल दूषित से उनको क्या है ?
वो पीते बोतल का पानी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर
मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को
बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में
काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2018 at 11:30pm — 21 Comments
हाथ लगा जो गाल पर, पटकेंगे धर केश ।
दुनिया संग बदल रहा, गाँधी का ये देश।।
नैतिकता का पाठ अब, पढ़े-पढ़ाये कौन ?
मात-पिता-बच्चे सभी, ले मोबाइल मौन।।
'तुम' धन 'मैं' जब 'हम' हुए, दोनों हुए विशेष।
'हम' ऋण 'तुम' जैसे हुए, नहीं बचा अवशेष ।।
रीति जहां की देख कर, मन चंचल, मुख मौन।
मतलब के सधते सभी, पूछें तुम हो कौन ?
छप कर बिकता था कभी, जिंदा था आचार।
जबसे बिक छपने लगा, मृत लगते अखबार।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2018 at 9:51pm — 13 Comments
नर्स अनिता उदास होकर अपनी सहकर्मी से बोली, "आज का दिन ही खराब है, बेड नंबर चार को भी लड़की हुई है । याद है जो सुबह में बेटी पैदा हुई थी ?"
"कौन ! वही क्या, जो लोग बड़ी गाड़ी से आये थे"
"हाँ रि वही, बख्शीस माँगा, तो कुछ दिया भी नही और गुस्से से बोला कि एक तो बेटी हुई है और तुम्हे बख्शीस की पड़ी है"
खैर ....
"मालती देवी के घर से कौन है ?"
"जी बहन जी, मैं हूँ, बताइए न, मालती कैसी है और ...."
रघुआ घबराते हुए बोला ।
जी, आपके घर लक्ष्मी आयी है ।
रघुआ खुशी से झूम उठा और…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2018 at 8:27pm — 10 Comments
पाँच बरस तक कुछ न कहेंगे कर लो अपने मन की बाबू ।
बात चलेगी, तो बोलेंगे, अपनी ही थी गलती बाबू ।।
चाँद-चाँदनी, सागर-पर्वत, चाहत कहाँ किसानों की है ?
मुमकिन हो तो इनके हिस्से लिख दो थोड़ी बदली बाबू ।।
खाली थाली, खाली तसला, टूटा छप्पर, चूल्हा गीला,
रोजी-रोटी बन्द पड़ी जब, क्या करना जन-धन की बाबू ।।
जो काशी बन जाए क्योटो, या दिल्ली हो जाए लंदन ।
प्यासा जन बस जल पा जाये, गाँव लगे शंघाई बाबू ।।
अच्छे-दिन, काले-धन की…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2018 at 3:30pm — 17 Comments
करनी है जब मन की साहब
क्यों पूछे हो हमरी साहब ।
पानी भरने मैं निकला हूँ
ले हाथों में चलनी साहब ।
पढ़े फ़ारसी तले पकौड़े
किस्मत अपनी अपनी साहब ।*
आटा से डाटा है सस्ता
सब माया है उनकी साहब ।*
शौचालय का मतलब तब ही
जन जब खाए रोटी साहब ।
नही सुरक्षित घर में बेटी
धरम-करम बेमानी साहब ।
सच्ची सच्ची बात जो बोले
आज वही है 'बाग़ी' साहब ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
*संशोधित
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 29, 2018 at 2:30pm — 23 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 13, 2018 at 1:30pm — 16 Comments
20 मार्च "विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष
याद आ रही है...
करीने से बँधी चोटियाँ
आँगन में खेलती बेटियाँ
गुड्डा-गुड़िया, गोटी-चिप्पी,
आइ-स्पाइस, छुआ-छुई
चंदा-चूड़ी, लँगड़ी-बिच्छी
याद आ रहा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2018 at 9:00am — 29 Comments
नये सरकारी आदेश की प्रति बाबूराम के कार्यालय में पहुँच गयी थी. इस आदेश के अनुसार किसी भी विकलांग को लूला-लंगड़ा, भैंगा-काणा या गूंगा-बहरा आदि कहना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया था. सरकार ने यह व्यवस्था दी है कि यदि आवश्यक हुआ तो विकलांग के लिए दिव्यांग शब्द का प्रयोग किया जाए. बड़े साहब ने मीटिंग बुला कर उस सरकारी आदेश को न केवल पढ़कर सुनाया था बल्कि सभी को सख्ती से इसे पालन करने की हिदायत भी दी थी. आज कार्यालय जाते समय बाबूराम यह सोचकर…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2016 at 3:00pm — 14 Comments
श्रद्धांजलि
राज पथ पर अवस्थित
शहीद चौक ..
लोगो का हुजूम
मिडिया वालों का आवागमन
चकमक करते कैमरे
चमकते-दमकते चेहरे
फोटो खिंचाने की होड़
हाथों में मोमबत्तियाँ
नहीं-नहीं, कैंडल....
साथ में लकदक पोस्टर, बैनर
जिनपर अंकित था -
'शहीदों को
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि' !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2016 at 12:00am — 11 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 8, 2016 at 9:30am — 8 Comments
अतुकांत कविता : व्यवस्था
गर्मी से तपती धरती
चहुँ ओर मचा हाहाकार
बादल को दया आयी
चारो तरफ नज़र दौड़ाई
जाति देखी, धर्म देखा
सगे-सम्बन्धी, पैरवीकार देखा
खुद को सिमित करके
खूब बरसा, जमकर बरसा
कही बाढ़ तो कही सूखा
पुनः मचा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 7, 2016 at 10:30am — 9 Comments
ऊँची, नीची, मैदानी, पठारी,
उथली, गहरी...
दूर तक विस्तृत
उपजाऊ जमीन.
यहाँ नहीं उपजते
गेहूँ, धान
फल, फूल,
न उगायी जाती हैं साग, सब्जियाँ
किन्तु,
जो उपजता हैं
उससे....
करोड़ों कमाती हैं
बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ
तय होतें हैं
सियासी समीकरण
बनती बिगड़ती हैं
सरकारें
पैदा होता है
विकास
आते हैं
अच्छे…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2016 at 9:00am — 16 Comments
“मिस्टर सिंह, आप और आपकी टीम विगत छः माह से उस खूंखार आतंकवादी को पकड़ने में लगी हुई है, किन्तु अभी तक आपकी प्रगति शून्य है.”
“सर हम लोग पूरी निष्ठा और ईमानदारी से इस अभियान में लगें हैं, मुझे उम्मीद है कि हम शीघ्र सफल होंगे.”
“आई. बी. वालों ने भी सूचना दी थी कि वो पड़ोसी मित्र देश में छुपा हुआ है, फिर प्रॉब्लम क्या है ?”
“सर, यदि वो पड़ोसी देश में छुपा होता तो हम लोग उसे जिन्दा या मुर्दा दो दिन में ही पकड़ लेते,
लेकिन प्रॉब्लम तो यह है कि ....”
“क्या प्रॉब्लम…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2016 at 5:30pm — 13 Comments
मैं सड़क हूँ
मुझे तैयार किया गया है
रोड रोलरों से कुचल कर.
मुझे रोज रौंदते हैं
लाखों वाहन
अक्सर....
विरोध प्रदर्शन का दंश
झेलती हूँ
अपने कलेजे पर
होता रहता हैं
पुतला दहन भी
मेरे ही सीने पर
विपरीत परिस्थितियों में
मैं ही बन जाती हूँ
आश्रय स्थल
कई कई बार तो
प्राकृतिक बुलावे का निपटान भी
हो जाता है
मेरी ही गोद में
फिर भी.....
मैं सहिष्णु…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 29, 2015 at 1:00pm — 32 Comments
हर्षिता क्लास की सबसे खुबसूरत लड़की थी, अधम, रंजित और उसकी मित्र मंडली, सभी उससे दोस्ती के लिए लालायित रहते थे किन्तु वह तो बस अपने काम से काम रखती थी. एक दिन हर्षिता को अकेला देख रंजित उससे बोला,
“हर्षिता मैं तुम्हे अपनी बहन बनाना चाहता हूँ क्या तुम मुझे अपना भाई होने का अधिकार दोगी ?”
माँ बाप की इकलौती बेटी हर्षिता रंजित को भाई के रूप में पाकर बहुत ख़ुश हो गयी. अब उसका उठना बैठना रंजित के साथ-साथ उसके दोस्तों के साथ भी होने…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:04pm — 30 Comments
गर्मी में भीग जाते हैं
पसीने से
ठंढ में खड़े हो जाते हैं
रोयें...
हमारी त्वचा
तुरंत परख लेती है
मौसम परिवर्तन को
धूल-कण आने से पहले
बंद हो जाती हैं पलके
उन्हें पता चल जाता है
है कोई खतरा
सुगंध और दुर्गन्ध में
अंतर करना जानती हैं
ये नासिका
खट्टा, मीठा, तीखा सब
हमारी जिह्वा
हल्की सी आहट को
पहचान लेते…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2015 at 8:18pm — 23 Comments
बेरोजगारी निवारण विधेयक वापस लो.. वापस लो, सरकार की मनमानी नहीं चलेगी...नहीं चलेगी.....
“मम्मी मम्मी जल्दी आओं, टीवी पर पापा को दिखा रहे हैं.”
“अच्छा....”
“मम्मी ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं बेटा, शाम में जब तेरे पापा आयेंगे तो पूछ कर बताउंगी.”
“सुनिए जी, आज आपको मुन्ना टीवी पर देख बहुत खुश हो रहा था. वैसे एक बात बताइये ये बेरोजगारी निवारण विधेयक क्या है ?”
“पता नहीं यार, मैंने नहीं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 20, 2015 at 4:40pm — 25 Comments
“मास्टर साहब तनिक मेरे छोटका बेटा को समझाइये न, गलत संगत में पड़ वह अपनी जिन्दगी और खानदान का नाम... दोनों बर्बाद कर रहा है.”
मास्टर साहब को चुप देख प्रधान जी पुनः बोल पड़े.
“आप तो उसे ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाये हैं आप की बात वो जरुर मानेगा.”
“प्रधान जी आपके कहने से पहले ही मैंने सोचा था कि उसे समझाऊं किन्तु ...”
किन्तु क्या मास्टर साहब ?
"प्रधान जी क्षमा चाहूँगा किन्तु कीचड़ से सनी उसकी जूती तथा अपना उजला लिबास देख उसे समझाने का साहस मैं नहीं जुटा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2015 at 5:21pm — 18 Comments
मुख पर स्थाई भाव
न राग न द्वेष
शांत और निच्छल
पूर्णता को प्राप्त
जिन्दगी की भाग-दौड़
बहू की भुन-भुन
बेटे की झिड़की
पत्नि की देखभाल
और ....
महंगी दवाइयों से
मिल गयी मुक्ति
चल पड़ा वो
सब कुछ त्याग
महा-यात्रा…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 3:47pm — 23 Comments
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