Added by Arpana Sharma on November 26, 2016 at 4:21pm — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on November 7, 2016 at 11:08pm — 2 Comments
Added by Arpana Sharma on November 5, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on November 4, 2016 at 4:07pm — 2 Comments
Added by Arpana Sharma on October 29, 2016 at 6:48pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:02pm — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on October 25, 2016 at 3:59pm — 4 Comments
हम सब कठपुतलें हैं,
करते परंपरागत दहन,
रावण के पुतलों का,
मनाते पर्व विजय का,
पर छुपे हुए रावण,
हर जगह फैलें हैं,
ऊपर से उल्लासित हम,
भीतर से त्रस्त और खोखले हैं,
आतंक,दुराचार,विभीषिकाओं के,
भीषण दौर इस विश्व में,
सभी धर्मों, सभ्यताओं,
और समाजों ने झेले हैं,
छुपी हुई दुराचारी,
अहंकारी मनोवृत्ति के,
आतंक और भ्रष्टाचार के,
युद्ध और विनाश के,
अशिक्षा और दरिद्रता के,
इन रावणों का दहन करने,
हे राम…
Added by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 10:30am — 15 Comments
Added by Arpana Sharma on October 7, 2016 at 3:20pm — 6 Comments
"अरे , मकान का काम देखने मम्मी जी , पापाजी को भेज दें।", राखी कुनमुनाई, "बेकार ही घर में बैठे हैं" वो सोचने लगी, " हम तो खाना निपटा कर फिर थोड़ी देर वहाँ काम देख आएँगे", सास-ससुर के जाते ही उसने आजादी की साँस ली और जल्दी से मायके फोन लगाया । वैसे तो सुबह उठकर सबसे पहले अपने पिताजी से बात करके ही उसका दिन शुरू होता है पर फिर भी पूछना था कि उन्होंने ठीक से खाना खाया कि नहीं । तभी नन्ही पलक ठुमकती आई-"मम्मी सू आरही है", "अरे भई, अपन से नहीं होता ये सब, बच्चों की सू-सू, पाॅटी", राखी ने…
ContinueAdded by Arpana Sharma on October 5, 2016 at 11:00pm — 4 Comments
“उत्कर्ष“
एक टिमटिमाते, बुझते तारे का उत्कर्ष,
देख लोग, होते चमत्कृत,
लेकिन वे बूझने में असमर्थ,
उसका नैपथ्य में छिपा,
गहन, सतत संघर्ष,
रुपहली चमक के पीछे छिपे,
कालिमा के सुदीर्घ, लंबे वर्ष,
फिर भी आशाओं से परिपूर्ण,
बाधाएँ, चुनौतियाँ पार कर,
उत्साहित, प्रसन्नचित्त, प्रकाशमान सहर्ष,
प्रोत्साहन देता अनूठा, गांभीर्य शब्द संघर्ष,
छिपा गूढ इसमें तात्पर्य,
ड़टे रहो कर्तव्यपथ पर “ संग + हर्ष",
अब दूर कहीं मुसकुराता है,…
Added by Arpana Sharma on October 4, 2016 at 5:41pm — 6 Comments
देखो भाई, स्मार्ट फोन का, जमाना आया,
साथ में नेट-पैक वालों की, चाँदी कर लाया,
उँगलियों के स्पर्श से, चलता ये पुर्जा,
हजारों रूपये का , इस पर होता खर्चा,
हर छुअन पर , जाता है सिहर,
जहाँ छुओ, वहाँ खुल जाता, एक नया मंजर,
फेसबुक, व्हाट्सएप की बड़ी बहार है,
चुटीले-उपदेशी संदेशों की भरमार है,
विभिन्न समूहों में होरहीं, गहन चर्चाएँ,
सारे राष्ट्र की समस्याएँ, यहीं सुलझाएँ,
अपने -अपने गुटों की, खुली है चौपाल,
सरकार भी चौकन्नी…
ContinueAdded by Arpana Sharma on September 29, 2016 at 8:00pm — 6 Comments
Added by Arpana Sharma on September 28, 2016 at 12:30pm — 6 Comments
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