झिझको नहीं ठिठको नहीं
लो पकड़ लो मेरा हाथ
मैं तुम्हे ले चलता हूँ
तम से प्रकाश की ओर
प्रकाश तुम्हें दिखाएगा
जीवन के अनंत आयाम
तुम कसौटी पर परखना
औऱ चुन लेना कोई एक
वो एक ही पर्याप्त है
जीवन को दिशा देने के लिए
अन्य के जीवन में
प्रकाश फ़ैलाने के लिए॥
- प्रदीप देवीशरण भट्ट - मौलिक व अप्रकाशित
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 5, 2019 at 3:50pm — 4 Comments
शाम को जिस वक़्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 26, 2019 at 3:30pm — 4 Comments
वर्तमान राजनैतिक व्यवस्ठा पर तंज
वक्त दोहराता है अपने आप को
कैसे कैसे दिन दिखाता आपको
भूलना हम जिसको चाहें बारहा
फिर वही मंज़र दिखाता आपको
जो सबक माज़ी में तुम भूले उसे
याद फिर-फिर से दिलाता आपको
जिस के संग जैसा किया है सामने
वक्त बस शीशा दिखाता आपको
शह नहीं है खेल बस शतरंज का
मात वो देना सिखाता आपको
तुम अगर सच्चे थे तब वो आज है
फिर वो क्यूँ झूठा कहाता आपको
सांच को ना आंच होती है कभी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 23, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
जिनको हमने चुनकर भेजा,सत्ता के गलियारों में
उनको लड़ते देखा जैसे, श्वान लड़ें बाज़ारों में
कब क्या कैसे गुल ये खिलाते,कोई जान नहीं पाया
इनके असली रंग हैं दीखते, तीज और त्योहारों में
चोर उच्चके…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 22, 2019 at 12:30pm — 1 Comment
(13 अगस्त-2018-इटली का मोरांडी पुल हादसा)
अटठावन वर्ष की उम्र भी कोई उम्र होती है
ना तो पूर्ण रुपेण युवा और ना ही पूरे वृद्ध
तुम्हारा यूँ इस तरह अकस्मात ही चले जाना
पूरे शहर को कर गया है अचम्भित और विक्षिप्त…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 19, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
बरसों से जो ख्वाब थे देखे, पूरे हमने कर डाले
मंसूबे हर एक दुश्मन के, बिना सर्फ़ के धो डाले
धाराओं के जाल में, मज़लूमों का जो हक थे मार रहे
हमने ऐसी धाराओं के हर्फ वो सारे धो डाले
सदियों से जो जमी हुई थी, साफ़ नही कर पाया कोई
हमने ऐसी जमी मैल के, बर्फ वो सारे धो डाले
तीन दुकाने चलती रहती थीं, कश्मीर की घाटी में
हमने ऐसे बीन बीन कर, ज़र्फ वो सारे धो डाले
बार बार समझाया सबको, पर वो समझ नही पाए
हमने 'दीप' फ़िर मजबूरी में कम-ज़र्फ़…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 15, 2019 at 9:00am — 3 Comments
मुझसे ना उलझे कोई ये जान ले
मैं कोई श्लाघा नही ताकीद हूँ
तेरी मंज़िल तक तुझे पहुँचाऊगाँ
मैं कोई छलिया नही मुर्शिद हूँ
हंस रहे हैं मुझपे वो ये जान…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 6, 2019 at 4:30pm — 5 Comments
लहू बुज़ुर्गो का मिट्टी में बहाने वालो
दागदारोँ को सरेआम बचाने वालो
बच्चोँ के हाथ में शमशीर थमाने वालो
बात फूलोँ की तुम्हारे मुँह से नहीं अच्छी लगती
खुदा के नाम पे दुकानों को चलाने वालो
धर्म् के नाम पर इंसा को बाँट्ने वालो…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 30, 2019 at 12:30pm — 3 Comments
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 29, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
दिल के बदले दिया सपना सलोना
नहीं खाली था शायद दिल में कोना
ये माना मैंने तुम सबसे हसीं हो
मगर सोना तो फ़िर भी होता सोना
ना वादा तुम करो मिलने का कोई…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 19, 2019 at 1:30pm — 3 Comments
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
सिर्फ़ एक नारा भर नहीँ है
कुछ करके दिखाना भी है
एक क़दम मैंने बढाया है
एक क़दम तुम भी ढ़ाओ
झिझको मत ठहरो मत
आगे बढो और पढाओ…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 17, 2019 at 5:30pm — 1 Comment
गुरु पूर्णिमा पर विशेष
गुरु कृपा हो जाए तो सफ़ल सिद्ध हों काम ।
कृपा हनू पर रखते हैं जैसे सियापति राम॥
राम कहें शंकर गुरु ,भोले कहें श्रीराम।
दोनों ही सर्वज्ञ हैं, मैं जाऊं काकै…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 16, 2019 at 4:00pm — 1 Comment
"यदि तुम्हें
उससे प्रेम है अनंत!
तो तुम स्वीकार
क्यूँ नहीं करते।
क्यूँ नहीं देख पाते
उसकी आंखों का सूनापन
जहाँ बरसों से नही बरसी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 9, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
दर्दों गम से हर कोई बेजार है,
हादसों की हर तरफ़ दीवार है।
बिक रहे हैं वो भी जो अनमोल हैं,
कैसे नादानों का ये बाज़ार हैं।
सब्र अब सबका चुका लगता मुझे,
हर बशर लड़ने को बस तैय्यार है।
पल में तोला पल में माशा मत बनो,
ये भी जीने का कोई आधार है।
मुफलिसी के मारे लगते हैं सभी,
फ़िर भी ये लगते नहीं लाचार हैं।
जिसके हाथों में हैं ज्यादा पुतलियाँ,
उनकी ही उतनी बड़ी सरकार…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 4, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
ज़ीस्त को मुझसे है गिला देखो
जी रहा हूँ मैं हौसला देखो
साथ रहते हैं एक छत के तले
दरम्याँ फिर भी फासला देखो
तुम जिधर जा रहे हो बेखुद से
वहीं आयेगा जलजला देखो
सँभाल ही लूँगा मरासिम…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on July 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
जब तू पैदा हुई थी
तो मैं झूम के नाचा था
मेरी गोद में आकर
जब तूने पलकें झपकाई
मैंने अप्रतिम प्रसन्नता क़ो
अनुभव किया था
फ़िर तू शनै शनै
बेल की तरह बड़ी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on June 24, 2019 at 11:30am — 1 Comment
ट्विंकल ट्विंकल लिट्ल स्टार
बंद करो ये अत्याचार
नज़रो में वहशत है पसरी
जीना बच्चों का दुश्वार
शहर नया हर रोज़ हादसा
क्यूँ चुप बैठी है सरकार
नज़र गड़ाए बैठे हैं फूल पर …
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on June 18, 2019 at 3:00pm — 3 Comments
बोझ उठाती हैअकेली माँ कई बच्चोँ का
कई बच्चोँ को मगर माँ भी बोझ लगती है
लहू से सींचकर जिसको बडा किया उसको
बहु के साथ ही रहने में मौज लगती है…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on May 30, 2019 at 3:00pm — No Comments
जब से शहर में चुनाव का बिगूल बज गया
श्वान का भी श्वान से खौफ निकल गया
शोर और सिर्फ शोर मच रहा सुबह शाम
पांच साल बाद नेता को पडा जनता से काम
श्वान हैरान परेशान घूमता रहता इधर उधर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 4, 2019 at 11:00am — 4 Comments
नारी तो केवल है नारी है
नर भी तो केवल है नर
दोनोँ के विचार अलग हैं
दोनोँ के किरदार अलग
ना इसका कुछ हिस्सा ज्यादा
ना ही उसका है कुछ कम
कभी…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on April 2, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
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