** 2122 2122 2122 212
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दोष थोड़ा सा समय का कुछ मेरी आवारगी
सीधे-सीधे चल न पायी इसलिए भी जिंदगी
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हम तुम्हें कैसे कहें अब दूरियों को पाट लो
कम न कर पाये जो खुद हम आपसी नाराजगी
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कल हवा को भी इजाजत दी न थी यूँ आपने
आज क्यों भाने लगी है गैर की मौजूदगी
**
रात-दिन करने पड़ेंगे यूँ जतन कुछ तो हमें
कहने भर से दोस्तों ये किस्मतें कब हैं…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2014 at 11:30am — 22 Comments
2122 2122 2122 212
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सावनों में फिर हमारे घाव ताजा हो गये
रंक सुख से हम जनम के, दुख के राजा हो गये
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साथ माँ थी तो दुखों में भी सुखों की थी झलक
माँ गयी है छोड़ जब से सुख जनाजा हो गये
**
कल तलक जिनकी गली भी कर रही नासाज थी
आज क्यों कर वो तुम्हारे दिल के ख्वाजा हो गये ( ख्वाजा - स्वामी )
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कोइ चाहे देह हरना और कोई दौलतें
आज …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 3, 2014 at 11:00am — 8 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 29, 2014 at 4:34pm — 11 Comments
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भला हो या बुरा हो बस, शिकायत फितरतों में है
वो ऐसा शक्स है जिसकी बगावत फितरतों में है
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रहेगा साथ जब तक वो चलेगा चाल उलटी ही
भले ही दोस्तों में वो, अदावत फितरतों में है
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उसे लेना नहीं कुछ भी बड़े छोटे के होने से
खड़ा हो सामने जो भी, नसीहत फितरतों में है
**
हुनर सबको नहीं आता हमेशा याद रखने का
भुलाए वो किसी को क्या, मुहब्बत फितरतों में है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 26, 2014 at 11:00am — 25 Comments
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पाँव छूना रीत रश्में मानता अब कौन है
सर पे आशीषों की छतरी तानता अब कौन है
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जोड़ना आता नहीं पर , बाँटनें की फितरतें
धर्म हो या हो सियासत जानता अब कौन है
***
रो रहे क्यों वाक्य को तुम मानने की जिद लिए
शब्द भर बातें सयानों मानता अब कौन है
***
सिर्फ दौलत को यहाँ पर रोज भगदड़ है मची
प्यार की खातिर मनों को छानता अब कौन है
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सबको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2014 at 11:30am — 31 Comments
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एक भी उम्मीद उन से तुम न पालो दोस्तो
रास्ता इन बीहड़ों में खुद बना लो दोस्तो
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बंद दरवाजे जो दस्तक से नहीं खुलते कभी
इंतजारी से तो अच्छा तोड़ डालो दोस्तो
***
फुसफुसाहट नफरतों की तेज फिर होने लगी
प्यार का परचम दुबारा तुम उठा लो दोस्तो
***
होश में तो कह रहे थे ‘साथ हम तेरे खड़े’
गिर रहा मदहोशियों में अब सॅभालो…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2014 at 9:30am — 18 Comments
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हुआ जाता नहीं बच्चा कभी यारो मचलने से
नहीं सूरत बदलती है कभी दरपन बदलने से
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जला ले खुद को दीपक सा उजाला हो ही जायेगा
मना करने लगे तुझको अगर सूरज निकलने से
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हमारी सादगी है ये भरोसा फिर जो करते हैं
कभी तो बाज आजा तू सियासत हमको छलने से
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बता बदनाम करता क्यों पतित है बोल अब…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:26am — 14 Comments
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तन से जादा मन जरूरी प्यार को
मन बिना आये हो क्या व्यापार को
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मुक्ति का पहला कदम है यार ये
मोह माया मत समझ संसार को
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इसमें शामिल और जिम्मेदारियाँ
मत समझ मनमर्जियाँ अधिकार को
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डूब कर तम में गहनतम भोर तक
तेज करता रौशनी की धार को
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तब कहीं जाकर उजाला साँझ तक
बाँटता है सूर्य इस संसार …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 9:42am — 21 Comments
2122 2122 2122 212
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शब्द अबला तीर में अब नार ढलना चाहिए
हर दुशासन का कफन खुद तू ने सिलना चाहिए
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लूटता हो जब तुम्हारी लाज कोई उस समय
अश्क आँखों से नहीं शोला निकलना चाहिए
***
गिड़गिड़ाने से बची कब लाज तेरी द्रोपदी
वक्त पर उसको सबक कुछ ठोस मिलना चाहिए
**
हर समय तो आ नहीं सकता कन्हैया तुझ तलक
काली बन खुद रक्त बीजों को कुचलना चाहिए
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फूल बनकर दे महक उपवन को यूँ तो रोज तू…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 6, 2014 at 12:47pm — 31 Comments
2122 112 2 1122 22
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खार हूँ एक ये सोचा है सभी ने मुझको
फूल के साथ जो देखा है सभी ने मुझको
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बंद सदियों से पड़ा था मैं किसी कोने में
खत तेरा जान के खोला है सभी ने मुझको
**
भोर सा रास तुझे आज मगर आया क्यूँ
तम भरी रात जो बोला है सभी ने मुझको
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दाद वैसे तो मिली बात बुरी भी कह दी
बस तेरी बात पे कोसा है सभी ने मुझको
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रूह की बात किसे यार लगी सौदों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2014 at 10:30am — 25 Comments
बाद इसके भी बहस कुछ और चलनी चाहिए
सूरतों के साथ सीरत भी बदलनी चाहिए
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चल पड़े माना सफर में बात इससे कब बनी
लौटने को घर हमेशा साँझ ढलनी चाहिए
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आ ही जायेगा भगीरथ फिर यहाँ बदलाव को
आस की गंगा तुम्हीं से फिर निकलनी चाहिए
**
है जरूरी देश को विश्वास की संजीवनी
मन हिमालय में सभी के वो भी फलनी चाहिए
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ब्याह की बातें कहो या फिर कहो तुम देश की
हाथ से जादा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 22, 2014 at 10:30am — 19 Comments
मौत बेटियों को बस, दाइयाँ समझती हैं
पीर के सबब को सब माइयाँ समझती हैं
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सोच आज तक भी जब, है गुलाम जैसी ही
मुल्क की अजादी क्या, बेडि़याँ समझती हैं
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दो बयाँ भले ही तुम देश की तरक्की के
हर खबर है सच कितनी सुर्खियाँ समझती हैं
**
आप के बयानों में खूब है सफाई पर
बेवफा कहाँ तक हो, पत्नियाँ समझती हैं
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दोष तुम निगाहों को बेरूखी की देते हो
कान …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 12:30pm — 11 Comments
** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l
जिंदगीभर कौन देता है खुशी माँ के सिवा
ले अॅधेरा कौन देता रौशनी माँ के सिवा
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वह लहू को कर सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा
**
बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी
क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा
**
दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे
कौन अपनाता बता दे तिश्नगी माँ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 11, 2014 at 10:00am — 16 Comments
रोज की है बादलों से छेड़खानी आपने
और गढ़ ली प्यास की कोई कहानी आपने
***
चाह रखते हो भगीरथ सब कहें इतिहास में
पर न खुद से एक दरिया भी बहानी आपने
***
बात करते गाँव की पर कब उसे तरजीह दी
गाँव को तम दे सजाई राजधानी आपने
***
आपको दरिया मिली हर प्यास को सच है मगर
खोद कूआँ कब निकाला यार पानी आपने
***
लाख दुख मैं मानता हूँ आपने झेले मगर
झोपड़ी का दुख न झेला …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
2122 2122 2122 212
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हर खुशी हमको हुई है अब सवालों की तरह
और दुख आकर मिले हैं नित जवाबों की तरह
***
चाँद निकला तो नदी में देख छाया खुश रहे
रोटियाँ अब हम गरीबों को खुआबों की तरह
***
यूं कभी जिसमें कहाये यार हम महताब थे
उस गली में आज क्यों खाना खराबों की तरह
***
एक भी आदत नहीं ऐसी कि तुझको गुल कहूँ
पास काँटें क्यों रखो फिर तुम गुलाबों की तरह
***
है हमें तो जिन्दगी में साँस-धड़कन यार ज्यों
आप…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2014 at 9:30am — 13 Comments
2122 2122 2122 2122
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दर्द दिल का जो बढ़ा दे, बोलिए मरहम कहाँ है
रौशनी के दौर में अब तम के जैसा तम कहाँ है
**
कर रहे तुम रोज दावे चीज अद्भुत है बनाई
नफरतें पर जो मिटा दे लैब में वो बम कहाँ है
**
जै जवानों, जै किसानों, की सदा में थी कशिश जो
अब सियासत की कहन में यार वैसा दम कहाँ है
**
मत कहो तुम है खिलाफत धार के विपरीत चलना
चाहते बस जानना हम धार का उद्गम कहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 24, 2014 at 1:00pm — 24 Comments
1222 1222 1222 1222
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हॅसी में राज पाया है, कि कैसे उन को मुस्काना
उदासी से तेरी सीखे, कसम से फूल मुरझाना
**
भले ही खूब महफिल में, हया का रंग दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना
**
करो नफरत से नफरत तुम, इसी से दूरियाँ बढ़ती
मुहब्बत पास लाती है, भला क्या इससे घबराना
**
हमें है बंदिशों जैसे, कसम से रतजगे उसके
इसी से हो गया मुश्किल, सपन में यार अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2014 at 10:30am — 8 Comments
2122 2122 212
आँसुओं को यूँ मिलाकर नीर में
ज्यों दवा हो पी रहा हूँ पीर में
**
हाथ की रेखा मिटाकर चल दिया
क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में
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कौन डरता जाँ गवाने के लिए
रख जहर जितना हो रखना तीर में
**
हर तरफ उसके दुशासन डर गया
मैं न था कान्हा जो बधता चीर में
**
माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा
आ न पाया यार तेरी खीर में
**
शायरी कहता रहा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 10:30am — 15 Comments
2122 2122 2122 212
जानता हूँ देह के बेलौस प्यासे आप हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं
*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते यूँ बहुत पीडि़त जरा से आप है
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 11, 2014 at 11:00am — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
***
सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा
बहुत खुदगर्ज देखे हैं मगर तुझ सा नहीं देखा
**
महज कुर्सी को दुश्मन से करे तू लाख समझौते
चरित तुझ सा किसी का भी यहाँ गिरता नहीं देखा
**
सपन में भी दिखा करती मुझे तो बस सियासत ही
सियासत से मगर कच्चा कोई रिश्ता नहीं देखा
**
बराबर बाटते देखी मुहब्बत भी समानों सी
बड़ा-छोटा करे माँ प्यार का हिस्सा नहीं …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2014 at 12:30pm — 23 Comments
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