Added by kanta roy on October 17, 2015 at 2:33pm — 9 Comments
बाजार में बहुत भीड़ थी आज । क्यों ना हो ,नवरात्रि का पहला दिन, लोग सुबह से ही स्नान ध्यान कर पूजा-पाठ की तैयारी में लगे हुए थे ।
मै भी स्नान कर ,कोरी साड़ी पहन, नंगे पैर माता रानी को लिवाने आई थी । फुटपाथ के उसी निश्चित कोने में , माता रानी विविध रूपों में मुर्ति रूप लिये दुकानों में सज रही थी । कहीं तीन मुंह वाली शेर पर सवार थी , कहीं अपने अष्टभुजा में सम्पूर्ण शस्त्रों के साथ , तो कहीं दस भुजा लेकर महिषासुर का वध करती हुई । काली ,चामुण्डा सबके दर्शन हुए लेकिन मै लेकर…
Added by kanta roy on October 13, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
Added by kanta roy on October 11, 2015 at 9:16am — 2 Comments
Added by kanta roy on October 9, 2015 at 8:50am — 6 Comments
Added by kanta roy on October 6, 2015 at 4:00pm — 12 Comments
" तुम्हारे नम्बर तो मुझसे कम आये थे ना ! फिर ये एडमिशन .... ? "
" रहने दो अब ये सब पूछना - पूछाना ,लो पहले मिठाई खाओ , आखिर तुम्हारा जिगरी दोस्त तो डाक्टर बन रहा है ना ! "
" मतलब ? "
" अरे नहीं समझे अब तक क्या ! वही पुरानी शिक्षा नीति की घटिया चालबाज़ी , डोनेशन ! और क्या ! "
" लेकिन तुम तो कहते थे डोनेशन देकर नहीं पढोगे । अपने कोशिशों की नैया पर सवार रहोगे ! सो , उसका क्या ? "
" कोशिशों की नैया ! हा हा हा हा ....वो सब स्कूली बातें थी ।…
Added by kanta roy on October 1, 2015 at 7:30pm — 8 Comments
बेटी से हैं सृष्टि सारी
बेटी से संसार है न्यारी
बेटी घर देहरी फुलवारी
बेटी से मान और गान है ..............
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान है
शिक्षा ,पोषक में रही अधूरी
सदियों मर कर जीती आई
बहुत हुआ ये भेदभाव
बहुत हुआ अब अपमान है ...........
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान है
धोखा धोखा है जग आशा
बेटी पर ना किया भरोसा
बेटा ही बेटा करते आये
समझा क्या बेटी शान है ...........
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान…
Added by kanta roy on September 24, 2015 at 4:30am — 6 Comments
"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "
"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "
"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"
"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।
माँ का लाड़ से मुस्कुरा…
ContinueAdded by kanta roy on September 16, 2015 at 11:00pm — 27 Comments
पति को आॅफिस के लिये विदा करके ,सुबह की भाग - दौड़ निपटा पढने को अखबार उठाया , कि दरवाजे की डोर बेल बज उठी ।
"इस वक्त कौन हो सकता है !" सोचते हुए दरवाजा खोला। उसे मानों साँप सूँघ गया । पल भर के लिये जैसे पूरी धरती ही हिल गई थी । सामने प्रतीक खड़ा था ।
"यहाँ कैसे ?" खुद को संयत करते हुए बस इतने ही शब्द उसके काँपते हुए होठों पर आकर ठहरे थे ।
"बनारस से हैदराबाद तुमको ढूंढते हुए बामुश्किल पहुँचा हूँ ।" वह बेतरतीब सा हो रहा था । सजीला सा प्रतीक जैसे कहीं खो गया था ।
"आओ…
Added by kanta roy on September 8, 2015 at 10:30am — 2 Comments
" पापा , हम गरीब क्यों है ? "
" नहीं बेटा हम गरीब कहाँ .... देखो तो ....तुम शहर के सबसे बडे़ स्कूल में जो पढते हो ! " बेटे को दुलारते हुए पिता ने गोद में बिठा लिया ।
"लेकिन पापा , मेरे दोस्त कहते है कि मै गरीब हूँ । " बच्चे का मन बेहाल सा था ।
" क्यूँ कहते है तुम्हें वो गरीब ... अभी तो ...उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शानदार दावत दी तुम्हारे दोस्तों को ! " पिता मन को कड़ा कर रहे थे ।
" तभी तो कहा ! उस दिन हमारे घर आने से ही तो उनको मालूम हुआ की हम गरीब है । वो कहते है कि…
Added by kanta roy on September 6, 2015 at 7:00pm — 13 Comments
Added by kanta roy on August 30, 2015 at 6:33am — 24 Comments
आज कोचिंग से निकलने में देर हो गई थी , इसलिए घर जल्दी पहुँचने के लिए उसने मेन रोड छोड़ इसी गली से निकलने का फैसला किया था । हालांकि रात में इस गली से निकलने के लिए मम्मी ने मना किया था लेकिन आज बडी़ ही मजबूरी हो चली थी । कलाई पर बंधी घड़ी की सुई पर नजर पडते ही वो सहम उठी । गली सुनसान -सन्नाटा हुआ जा रहा था । करीब दस फर्लांग ही आगे बढीं होगी कि पीछे से आहट आई । उसे भान हुआ कि कोई पीछे आ रहा है । पलट कर देखा । दो लडके थे । स्थिति को भाँप वो लम्बी - लम्बी डग भरने लगी । पीछे से पदचाप की आवाजें…
ContinueAdded by kanta roy on August 24, 2015 at 11:30pm — 17 Comments
आज भी आँख खुलते ही रोज की ही तरह सुबह -सुबह इंतज़ार किया उसका । दरवाजा खोला ही था कि सायकिल पर चढा दुबला सा लडका दरवाजे पर चेतना की चाबी फेंक गया । रोज की ही तरह ऐसे लपककर स्वागत किया मानो बरसों से इंतज़ार किया हो उसका । अंदर ले आया और टेबल पर फैला कर परत -दर- परत तहों को खोलता गया ।चेतना मन- पौध खुलकर कुलबुलाती हुई जन्म से परिपक्व होने तक का सफर शनैः शनैः तय करने लगी ।तहें अब अपने आखिरी विराम को पहुँच , मन को गहन चिंतन में डाल ...... चेतना अपने सम्पूर्ण यौवन में स्थापित थी । तभी सहसा घड़ी…
ContinueAdded by kanta roy on August 13, 2015 at 2:00pm — 4 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 6:00pm — 7 Comments
Added by kanta roy on August 8, 2015 at 11:30am — 13 Comments
ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो…
Added by kanta roy on August 6, 2015 at 9:00am — 25 Comments
सावन की बुनझीसी सखी है तन में लगाए आग .......बदरिया कहाँ गई
गोर बदन कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ......बदरिया कहाँ गई
सावन भादों रात अंहारी थर - थर काँपय शरीर ...... बदरिया कहाँ गई
दादूर मोर पपीहा बोले कहाँ गये रघुनाथ.....बदरिया कहाँ गई
अमुआँ की डारी झूले नर- नारी मैं दहक अंगार ....बदरिया कहाँ गई
उमड़ उमड़े नदी जल पोखर तन में रह गई प्यास...... बदरिया कहाँ गई
सब सखी पहिरय हरीयर चुड़ी मोरा कंगना उदास ......…
Added by kanta roy on August 5, 2015 at 2:00pm — 10 Comments
Added by kanta roy on August 1, 2015 at 9:30pm — 12 Comments
Added by kanta roy on July 25, 2015 at 12:06am — 5 Comments
धूमिल होती भ्रांति सारी, गण-गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डुबो कर नव दवात में, रूख समय का मोड़ रही हूँ
मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......
नई भोर की चादर फैली, जन-जीवन झकझोर रही हूँ
धधक रही संग्राम की ज्वाला, सागर सी हिल-होर रही हूँ
मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......
टूटे हृदय के कण-कण सारे, चुन-चुन सारे जोड़ रही हूँ
उद्वेलित मन अब सम्भारी, विषय-जगत अब छोड़ रही…
Added by kanta roy on July 24, 2015 at 9:30am — 36 Comments
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