तरीफे उनकी क्यूँ लगती
जहर से भरी मीठी बातें
हर पिशुन/चुगलखोर की
झूठी बातें भी सच्ची लगती||
स्वार्थ की तह तक गिर
औछी हरकते करते रहते
भलाई का दामन औढकर
सहकर्मियों की बुराई वो करते||
दूसरों के काम में टांग अड़ाना
आदतों में शुमार उनकी
सहकर्मियों को आपस में भिड़ाकर
फिर निश्छल होने का ढोंग रचाते||
लाभ ना हो जाए कहीं किसी को
बुगले के जैसा ध्यान लगाते
एडी चोटी का ज़ोर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 19, 2019 at 2:56pm — 5 Comments
एक फूल दो है, माली
धर्म-कर्म की यही कहानी
आत्मा-परमात्मा में भेद करा
दुनियांदारी में हमे फसा-फसाकर, जन्म-मरण का चक्कर कटवाती ||
अहंकार रूपी ये पुत्र हमारा, धन रूपी सा भाई,
मोह रूपी ये पुत्रवधू, आशा रूपी ये स्त्री प्यारी
आसक्ति लगा के इनमे
कर्म बंधन से ना मुक्ति पाई||
ममतामयी माँ रूप बना ये, हम पर खूब ये, प्यार लुटाता
बहन बन ये जब भी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 8, 2019 at 11:52am — 5 Comments
चहेरे पर मुस्कान को रख
कुछ नया करने की चाहत रख
स्वयं पर दृढ़ विश्वास को रख
आगे बढ़ बस आगे बढ़ता चल ||
सहयोग बलिदान की भावना रख
जिम्मेदारियों ना तू डर
टीम वर्क पर विश्वास जता
हौंसले संग तू आगे बढ़ ||
नामुमकिन कुछ नहीं है जग में
मन में थोड़ा धैर्य रख
असफलताओ से सीख ले
मुकाम को अपने हासिल कर ||
कहने वाले कहते हैं
उनकी बातों पर ध्यान ना धर
कठिन पर अडचने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 6, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
घने-काले बादलों से निकल बूंद, जब
सपनों में, अनगिनत खो जाती है
कहाँ गिरूंगी कैसे गिरूंगी
सोच-सोच घबराती है ||
क्या गिरूंगी, फूल पराग में
या धुल संग मिल जाऊँगी
कहीं बनूँगी, ओस का मोती
और मनमोहकबन जाऊँगी ||
कहीं बनूँ, जीवन आधार मैं
जीव की प्यास बुझाऊंगी
या जा गिरूंगी धधकती ज्वाला
क्षणभर में ही जल जाऊँगी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 31, 2019 at 4:55pm — 6 Comments
इंसा नहीं उसकी छाया है
बिन शरीर की काया है
सृष्टि का संतुलन बनाने हेतु
ईश्वर ने ही उसे बनाया है||
सृष्टि में नकारात्मकता और सकारात्मक्तका समन्वय करके
अच्छाई बुराई में भेद बनाया है
सही गलत का मार्ग बता
प्रभु ने जीवन को समझाया है||
अंधेरा का मालिक बना
भयानक रूप उसको दे कर
जग जीवन को डराया है
जीवन का भेद बताया है||
प्रबल इच्छा संग मर, जो जाते
सपने पूरे जो, ना कर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 28, 2019 at 11:37am — 3 Comments
कभी मैं बन ओंस की बूंद
मोती बन बिखर जाता हूँ
मोहकता की छवि बना
मुस्कान चेहरे पर लाता हूँ||
कभी तपता भानु के तप में
और भाप बन उड जाता हूँ
काले घने मैं बादल बन
मैं बरसता, भू-धरा की प्यास बूझाता हूँ||
कभी बन आँसू के मोती
कभी खुशी में मैं छ्लक आता हूँ
कभी दुख में बह कर के मैं
भावुकता को दर्शाता हूँ||
बेरंग हूँ, पर हर रूप में ढलता
जिसमे मिलता उसका रूप अपनाता हूँ
निश्चित…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 24, 2019 at 12:32pm — 4 Comments
कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं
क्यूँ मद हवा सा डोल रहा
क्या कोई हवा का झोका हूँ जो
क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||
क्या बहते जल की धारा हूँ
जिधर चले उस ओर मार्ग बना
कल-कल, छल-छल की आवाज कर
शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||
क्या खुला आकाश हूँ मैं
जो अनंत, असीम है
जीव जन्म का बीज है जो
छोर का जिसके नहीं पता ||
क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं
सहनता की सीमा नहीं
हर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments
संपर्क टूटा विक्रम से तो
ना समझ ये विफल रहा
आर्बिटर अभी चक्कर लगा रहा
धैर्य रख, थोड़ा इंतज़ार तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
मार्ग विक्रम भटक गया
भ्र्स्ट ही शायद कारण हो
खंड-खंड होकर बिखर भी गया तो
खोजने का प्रयास तो कर
चिंता नहीं बस चिंतन कर ||
वैज्ञानिकों का अपने हौंसला बढ़ा
साहस के उनके तारीफ तो कर
चूक कहाँ हो गई प्रयास मे
इस बात पर थोड़ा गौर तो कर
चिंता नहीं बस…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 9, 2019 at 11:06am — 3 Comments
कर्ज़ का मर्ज़ होता है कैसा
समझ कभी ना पाया था
जब तक कर्ज में नहीं था डूबा
ऋणकर्ता का मजाक बनाया था
समय बदलते देर ना लगती
अपनी मूर्खताओ की वजह से
मैं भी जब बाल-बाल बंधवाया
तब समझ में आया था ||
माँ कहती थी कर्ज ना लेना
गरीबी में तुम रह लेना
मुँह छोटा ओर पेट बड़ा
कर्ज का होता है बेटा
आसानी से ये नहीं चुकता
अच्छे-अच्छे को ले डूबता
पर आसानी से नहीं चुकता
इतना समझ लेना बेटा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 5, 2019 at 5:00pm — 4 Comments
त्याग, बलिदान, जोश, श्रम
चार पावों पर खड़ी हूँ मैं
सत्ता की मै बन धुरी
चमक-धमक से सजी-धजी
जादू की फूलझड़ी हूँ मैं
सपनों की सुंदर परी हूँ||
महत्वकांक्षा की कड़ी हूँ मैं
स्वागत को तेरे खड़ी हूँ मैं
धैर्य की सबकी परीक्षा लेती
कर्म मार्ग की लड़ी हूँ मैं
नियत, मेहनत का मूल्यांकन करती
तेरे सुख-दुख की कड़ी हूँ मैं||
उठक-बैठक कर खेल…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 27, 2019 at 4:21pm — 2 Comments
कभी खूनी, कभी कातिल
कभी गुनाहों का मार्ग कहलाती
जुर्म को होते देख चीखती
खून खराबे से मैं थर्राती
कभी खून की प्यासी तो
कभी डायन हूँ कहलाती
चाह के भी कुछ कर ना पाती
बेबसी पर नीर बहाती ||
हैवानियत की, कभी बलात्कार की,
ना चाह मैं साक्षी बनती
हत्या कभी षडयंत्रो का
अंजान देने पथ भी बनती
तैयार की गई हर साजिश को
हादसो का मैं नाम दिलाती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 20, 2019 at 4:29pm — 2 Comments
वो भी क्या दिन थे यारो
जब मिलजुल कर मौज मनाते थे
कभी पेड़ की डाल पर चढ़ जाते
कभी तालाब में डुबकी लगाते थे
रंग-बिरंगे फूलों से तब
भरे रहते थे बाग-बगीचे
सुंदर वातावरण बनाते और
आँगन को महकाते थे ||
कू-कू करती कोयल के
हम सुर से सुर मिलाते थे
रंग-बिरंगे तितलियों के पीछे
सरपट दौड़ लगाते थे
पक्षियों की चहचाहट में
जैसे, खुद को ही भूल जाते थे
मिलजुल कर मौज मनाते थे ||
स्वच्छ वायुं…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 26, 2019 at 2:32pm — 2 Comments
ईट पत्थर से बना मकान
उसमें रहते दो इंसान
रिश्तों को वो कदर न करते
एक-दूजे से बात ना करते
कहने को एक मकान में रहते
पर एक-दूजे से घृणा करते
मकान की परिभाषा
को सिद्ध करते ||
कच्ची मिटटी का एक, छोटा घर
स्वर्ग से सुंदर, प्यारा घर
एक परिवार की जान था, जो
प्रेम की सुंदर मिशाल था, वो
सब सदस्य साथ में रहते
हसतें-खेलतें घुल-मिल रहते
नारी के सम्मान के संग सब
एक दूजे का आदर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 4:47pm — No Comments
आँखों में अश्रु निकल आते है मेरे
इतिहास में जा, जब खोजता हूँ
नारी उत्पीडन की प्रथाओ की
कड़ी से कड़ी मै जोड़ता हूँ
हैरान हो जाता हूँ, जब कभी
इतिहास में जा, जब खोजता हूँ
कैसी नारी कुचली जाती
चुप होके क्यों, सब सहती थी
बालविवाह जैसी, कुरूतियों की खातिर
सूली क्यों चढ जाती थी
सती होने की कुप्रथा में क्यों
इतिहास नया लिख जाती थी
चुप होके क्यों, सब सहती थी
सूली क्यों चढ जाती थी ||
जब कभी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 10:45am — 4 Comments
देशभक्ति का चोला पहन
देश का युवा घूम रहा
मतवाला होके डोल रहा
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
घूम घूम कर,
झूम झूम कर
वीरो की गाथा खोज रहा
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
बलिदान को अपने वीरो के
हर पल हर क्षण को
रम रमा कर यादों में अपनी
खोया-खोया फिर रहा||
ऐसा देशभक्ति में डूब रहा||
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:30pm — No Comments
उम्र संग ये बढती है
कर्म से अपने चलती है
परीक्षा धैर्य की लेकर
मार्ग प्रशस्त ये करती है||
कर्म के पथ पर चढ़कर
ये, अगले कदम को रखती है
हार-जीत के थपेड़े दे देकर
निखार हुनर में करती है||
त्रुटी को सुधार के तेरी
आत्मविश्वास से बढ़ती है
उतार चढ़ाव के मार्ग बना
हर परस्थितियो लड़ने को
तैयार हमें ये करती है||
तरक्की की सीढी चढ़े सदा
लक्ष्य निर्धारित करती है
उठा-गिरा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 12, 2019 at 3:05pm — 2 Comments
वक्त की उठक बैटक ने
जीना हमकों सिखा दिया
जिन्दगी की पेचीदा परिस्थितयों से
लड़ना हमकों सिखा दिया
जीना हमकों सिखा दिया||
मुखौटों में छुपे चहरों से
रूबरू हमकों करा दिया
क्या कहेगी ये दुनियाँ
इस उलझन से जो छुड़ा दिया
जीना हमकों सिखा दिया ||
लोग कहे तो हंसे हम
और कहे तो रोये
लोगों के हाथो चलती, जिंदगी को
खुल के जीना सिखा दिया
जीना हमकों सीखा दिया ||
साथ ना छोड़ेगे के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 11, 2019 at 5:21pm — 3 Comments
Added by PHOOL SINGH on January 9, 2019 at 3:00pm — 3 Comments
मैं सक्षम, हूँ विलक्षण
निर्मल करता, विचलित मन
पुलकित कर तेरे, तन मन
सुगन्धित करता, वन उपवन
प्रकृति का श्रृंगार कर
महक का प्रसार कर
चिंतन करता हर एक क्षण
खुशियाँ देता मैं पल पल
न्योछावर अपना जीवन कर
कभी मंदिर, कभी जमी में
कभी रेंगता धूलि में
जीवन की प्रवाह ना कर
खुशियाँ बाटता हर एक क्षण
कभी कंठ की शोभा बनता
कभी बढाता शोभा शव
कभी गजरा नारी बनता
कभी में देता सेज सजा
क्षण भर के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 7, 2019 at 4:30pm — 4 Comments
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था, सोचा था तब, किसी ने
“ऐसा” कारनामा, उसे करना था
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था ||
जीवन के संघर्षो से, ना उसे कभी
डरना था, रूढ़िवादी धारा को भी,
उसे, आगे जा बदलना था
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था ||
सती हो जाती थी, जो नारी,
सुहाग गंवाने पर, “पुर्नविवाह”,
का अधिकार, उसे दिलाना था
महिलाओं के उत्पीड़न की…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 3, 2019 at 4:34pm — 2 Comments
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