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Ashok Kumar Raktale's Blog (72)

माँ दुर्गा स्तुति. (मदिरा सवैया)

निर्मित विश्व हुआ तुम से, तुम मात शिवे सगरे जग की,

स्थावर जंगम या लघु हो,तुम मात नियामक हो सब की,

सात्विक प्रकृति साधक पूजत भाव लिए मन  ब्रम्ह सदा,

पूजत साधक  धूमवती  बगला  तुमको  यह  देश  मृदा//  

 

 स्वरचित/अप्रकाशित

Added by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 10:30pm — 5 Comments

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

महाकुम्भ

मकर संक्रांति पर्व है,बीस तेरहा साल,

संगम घाट प्रयाग का,बजे शंख अरु थाल/

 

शाही सवारी चलती,होती जय जयकार,

चलते साधू संत है, करें अजब श्रृंगार/

 

प्रथम शाही स्नान करे, महाकुम्भ शुरुआत,

साधू संत नहा रहे,क्या दिन अरु क्या रात/

 

भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,

श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/

 

जुटे कोटिशः जन यहाँ,लेकर उर आनंद,

पाय   रहे  प्रसाद सभी, खाएं परमानंद/

Added by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments

संकल्प

हाईकू (१७ वर्ण, ५,७,५.)

भारतवर्ष

नारी देवी रुप है,

देवों में आस्था.

...........

तुम युवा हो,

माताएं व्यथित हैं,

सोना मना है,

..............

यौन शोषण,

सब संकल्प करें,

अब फांसी दो.

...........

पुलिस हा हा..

नारी असुरक्षित,

सब सुधरें.

..........

सभ्य समाज,

यह भी संभव है,

प्रण कर लें.

...............

बीता बरस,

युवा जाग गया है,

उम्मीद…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 7:00pm — 9 Comments

खुशी कैसी

पुराना जब भी जाता है नया इक साल आता है,

नया जब साल आता है उम्मीदे साथ लाता है/

 

कोई इक बार आकर के व्यथा उनसे भी तो पूछो,

जिन्हें आते हुए नव साल का इक पल न भाता है/

 

कभी तुम झाँक लो देखो जरा उस मन की तो बूझो,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 7:36pm — 13 Comments

प्रण

भोर भई अरु सांझ ढली दिन बीत गया अरु रात गई रे.

बात चली कुछ दूर गयी अरु जीवन हारत मौत भई रे,

मानत हैं नर नार प्रजा सब दामिनी नेह सहोद तई रे,

जीवन देकर ज्ञान दियो परखो नज़रें यह सीख दई रे/

 

सीख दई कछु ज्ञान दियो,पर जीव बचा नहि जान गई रे,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 12:56am — 7 Comments

खामोश बही सरिता.

नदी चली पाथर से,बही मिली सागर से,

पवित्र सरिता जल संग निस्तार लिए/

प्रदूषित अकुलायी,बहती चली आयी,

अधजली मानव की लाशों का भार लिए/

 …

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 27, 2012 at 10:30am — 7 Comments

एक प्रयास दो रंग. मुक्तहरा सवैया (जगण x 8)

नवीन लगे दिन रात नवीन सुहावत है हर बात नवीन/

नवीन खिले सब फूल-बहार,बयार चली भर शीत नवीन/

नवीन मिला जब साथ भई हथ हाथ लिए कुछ बात नवीन/

नवीन प्रसंग नवीन उमंग मिला मन को मन मीत नवीन//

करो न बचाव मिले उसको भरपूर सजा अरु दंड कठोर/

बने जहं भी नर कोय पिशाच, चुभे उसको गल फांस कि डोर/

जहां नित शोषित नार रहे सरकार में शामिल हों सब चोर/

वहाँ न सुरक्षित नार रहे घरबार न द्वार न मित्र न मोर/

Added by Ashok Kumar Raktale on December 23, 2012 at 9:30am — 14 Comments

सुमुखि सवैया (जगण x 7 + लघु + गुरु)

बुझाकर दीप नही करते जग रोशन होवत दीप हि से/

हुआ जग रोशन लो उनका उजियार मिला जब दीपक से/

मिटा तम भी मन भीतर का जब दीप जला मन भीतर से/…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 17, 2012 at 10:41pm — No Comments

सुखी सवैया (सगण x 8 + लघु + लघु ) एक प्रयास.

फिरि आवत जावत जाकर आवत, आवत है ऋतु ठंड कि ये पुनि/

फिरि सुर्य छिपा अरु धुंध बढ़ी, बदली दिखती नभ में बिछि ये पुनि/

सब लोग लिए कर कंपन कुम्पन, तांक रहे नभ में रवि को पुनि/

अरु सुर्य लगे धरती पर से, निकला सुबहा नभ में शशि है पुनि//

Added by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 9:16pm — 3 Comments

प्रेम ही इश्वर है.

प्रेम ही ज्ञान है प्रेम ही मान है, प्रेम ही राधिका श्याम भी प्रेम ही,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 10:58pm — 8 Comments

प्रेम

प्रेम  नशा अरु प्रेम मजा सब, प्रेम कथा अरु प्रेम हि भक्ति व,

प्रेम हि भाव व प्रेम सुभाव व,प्रेम हि त्याग व प्रेम हि शक्ति व,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 1, 2012 at 8:53am — 6 Comments

कार्तिक मास महत्त्व

देव उठे अरु लग्न हुए, सखि कार्तिक पावन मास यहाँ,

मत्स्य बने अवतार लिये,प्रभु कार्तिक पूनम सांझ जहाँ,

पद्म पुराण बताय लिखें, महिना इसको हि  पवित्र सदा,

मोक्ष मनुष्य प्रदाय करे,सखि कार्तिक स्नान व दान सदा/…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 7:45pm — 3 Comments

जल ही जीवन है.(बैरवे छंद)

तीन भाग जल धरती,शेष जमीन,

प्रकृति  सींचे  वरना, नीर विहीन/

धरती जल को दुहता,मनुज प्रवीण,

जाने जल बिन होगा, जीवन  हीन/

प्रकृति  भक्षक बनते,  मानव दीन,

बरसें  मेघ   लगाओ, वृक्ष  नवीन/

नद जल सारा खींचा, कूप बनाय,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:08pm — 2 Comments

हरिगीतिका से दीपावली

जब दीप जल उट्ठे हजारों,सज गयी हर बस्तियाँ/

हर द्वार हर आँगन सजा है,गज गयी हर बस्तियाँ/

उनके महल घर द्वार भी हैं,सम चमकती बिजलियाँ/

      घृत दीप जिनके द्वार पर है,सम दमकती बिजलियाँ//१//…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 12, 2012 at 9:00am — 4 Comments

नवरात्रि उत्सव.

नव रात्री नव रात है,नव जीवन संदेश/

तन मन भवन शुद्ध रखो,आये माँ किस भेष//

भक्तगण नव रात्री में,रखते हैं उपवास/

कन्या पूजन भी करें,माँ का यही निवास//

देखो कैसे सज रहा,माता का दरबार/

माँ के दर्शन को लगी,लम्बी बहुत कतार//

जयकारों से मात के,गूंज रहा दरबार/

माता का आशीष ले,पायें शक्ति अपार//

गरबा रमती मात है,चहुँ दिसि उत्सव होय/

भक्त यहाँ सुख पात हैं,सबके मंगल…

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Added by Ashok Kumar Raktale on October 16, 2012 at 7:59am — 11 Comments

मतगयंद (मालती)सवैया. (भगण x 7 अंत में दो गुरु) एक प्रयास

सूरज ताप बढ़ाकर जो मरुभूमि धरा पर दृश्य दिखाता,

मानव अक्सर जीवन में यह रीत मिसाल बना भरमाता,

भाग रहा वह तेज भयंकर झूठ कहे फिर भी अपनाता,

हाथ न आय तहाँ वह रोकर व्याकुल नीर बहा पछताता/

Added by Ashok Kumar Raktale on October 14, 2012 at 1:00pm — 11 Comments

कुरंग (बैरवे) पर एक प्रयास.

देख पिया को सम्मुख,मन हर्षाय,

देखे मुख को गौरी,नयन घुमाय/

 

पागल प्रेम दिवानी,पिया रिझाय,

सुधबुध खोकर अपनी,झूमति जाय/

 

हाथ धरे कभी शीश,चुमती जाय,

बनी मतवाली रीझ,घुमती जाय/

 

मुस्काय दिल पर हाय,घाव लगाय,

व्याकुल मनवा थिरके,चैन न पाय/

 

प्रेम पगे दिल आयी,मिलन कि चाह,

प्रेम बिना सूझे नहि, दूजी राह/

Added by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 11:14pm — 17 Comments

देश में हिंदी लाओ !

हिंदी दिवस मना रहे, अंग्रेजी की खान/

कैसे हो हिंदी भला, मिले इसे सम्मान//

मिले इसे सम्मान,ज्ञान का कोष अनूठा/

हर जिव्हा पर आज,शब्द परदेशी बैठा//

कह अशोक सुन बात,भाल पर जैसे बिंदी/

करो सुशोभित आज, देश की भाषा हिंदी//




लाओ फिरसे खोज कर,हिंदी के वह संत/

जिनसे थी प्रख्यात ये,चुभे विदेशी दंत//

चुभे  विदेशी   दंत,  बहा  दो   हिंदी गंगा/

करते जो बदनाम, करो अब उनको नंगा//

कह अशोक यह बात,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 12, 2012 at 8:30am — 13 Comments

कवित्त पर एक प्रयास.

मारा गया फ़कीर जो गया वह रोटी लाने,
बहती थी नदिया वेग तेज बहुत था /
मचा हाहाकार कोहराम कोई नहि जाने,
हुआ पानी लहू का वेग तेज बहुत था /

दीप बुझे कई देखो बाती जैसे टूट गई,
यों बही पुरवाई झोंका तेज बहुत था /
सिमट गए मानव मूल्य माता रूठ गई,
पश्चिम की आंधी का झोंका तेज बहुत था /

Added by Ashok Kumar Raktale on September 3, 2012 at 1:30pm — 8 Comments

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