क्षीर सागर में ‘नारायण –नारायण’ की आवाज गूँज उठी . भगवान विष्णु ने स्वागत करते हुए कहा- ‘आइये मुनिवर ! क्षीरोदधि में आपका स्वागत है .’
‘भगवन कुछ चिंतित हैं ?’ नारद ने वीणा को हाथ में संभाला.
‘एक चिरंतन समस्या है, मुनिवर’ - भगवान ने उत्तर दिया .
‘समस्या और आपके सम्मुख ---? क्यों परिहास करते हैं प्रभु”
‘परिहास नही है मुने! दुर्निवार समस्या है.
‘वह क्या प्रभो ?’
‘तुमने इंडियन टिपिकल सास के बारे में तो सुना होगा.’
‘हाँ हाँ प्रभो ---‘- नारद ने…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 16, 2018 at 11:30am — 9 Comments
वृद्धाश्रम के द्वार पर विधवा माँ को छोड़कर जाते समय बेटे ने उसका मोबाइल अपने कब्जे में किया और जाते हुए बोला, ‘तुम यहाँ आराम से रहना. इसकी अब तुम्हें जरूरत ही क्या. मैं आकर हाल लेता रहूँगा ‘
बेटा चला गया तब माँ की आँखों के रुके आंसू बाहर निकलने को बेताब हुए .
’तुम्हारी कोई बेटी नही है क्या ?’- अचानक व्यवस्थापिका ने आकर उससे पूछा .
‘नही, पर क्यों ?’- उसने धीरे से कहा.
‘इसलिए कि आज तक कोई बेटी अपनी माँ को वृद्धाश्रम छोड़ने नही आयी’
‘सच कहती हो बहन, मैंने दो…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2018 at 9:05pm — 8 Comments
‘क्या बात करते हो दद्दू ,प्रयास में कमी?’- मैंने झुंझलाकर कहा, ‘अरे हम जमीन आसमान एक कर दिए. कहाँ-कहाँ नहीं दौड़े. जिसने जहाँ बताया भाग-भागे गये. अख़बारों के मेट्रोमोनियल्स छान मारे, बड़े-बड़े घमंडी अह्मकों के आगे दामन फैलाया पर नतीजा वही सिफ़र. दो-तीन जगह तो दिखाई भी हुई, दो-एक लोगों ने पसंद भी किया, विवाह के लिये हाँ भी कर दी पर बाद में मुकर गए. इतना भी न सोचा कि लडकी पर क्या गुजरेगी. माँ-बाप पर क्या बीतेगी. जुबान की तो ससुरी कोई कीमत ही नही.’
‘धीरज धरो, छोटे’ – दद्दू ने सांत्वना दी,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2018 at 9:13pm — 7 Comments
होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला
अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला
खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी
फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी
भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ
गंज माँ होरी खेलें लखनौआ
गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके
प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2018 at 7:17pm — 5 Comments
जाड़ा है, हहराती ठंढी रात
साल आय गा फिर से बन नवजात
सोहर गावौ बहिनी जन्मा लाल
जग के आँगन जगमग उतरा साल
अब तो बजै बधइया नाचैं नारि
नए साल पर डारैं दुनियाँ वारि
अँगनइया माँ थरिया मधुर बजाव
पानी भरी गगरिया भौजी लाव
नाउन है बिरझानी माँगे नेग
पायल मातु धरित्री देहु सवेग
वारिन बोलै मैया जाइ न देब
नया साल है जन्मा बिछिया लेब
तुम काहे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2018 at 8:21pm — 4 Comments
नया साल है आवा अस संजोग
ओ बी ओ मदिरायित हर्षित लोग
हवा भई है ‘बागी’ मन मुस्काय
‘योगराज’ शिव बैठे भस्म रमाय
‘प्राची’ ने दिखलाया आज कमाल
नए साल का सूरज निकसा लाल
ठहरा सा है मारुत ‘सौरभ’-भार
नवा ओज भरि लाये ‘अरुण कुमार’
‘राणा’–राव महीपति अरु ‘राजेश’
बदले बदले दिखते हैं ‘मिथिलेश’
तना खड़ा है अकडा अब ‘गिरिराज’
हर्ष न देह समाये इसके आज
कुहरे में है सूरज अरुणिम…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 31, 2017 at 2:30pm — 7 Comments
पार हुयी नहिं आसों, बीता साल
बिटिया अबहूँ क्वांरी. माँ बेहाल
विदा भई जनु बिटिया बीता साल
जैसे–तैसे कटिगा जिव जंजाल
बेसह न पायो कम्बर बीता साल
जाड़ु सेराई कैसे नटवरलाल ?
मिली न रोजी-रोटी, बेटवा पस्त
गए साल का अंतिम सूरज अस्त
बारह माह तपस्या, जमे न पाँव
आखिर में मुँह मोड़ा हारा दाँव
शीतल, सुरभित, नूतन आया साल
बधू चांद सी आयी जनु…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2017 at 2:33pm — 3 Comments
हिन्दी साहित्य में ‘बरवै’ एक विख्यात छंद है . इस छंद के प्रणेता सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक महाकवि अब्दुर्रहीम खानखाना 'रहीम' माने जाते हैं . कहा जाता है कि रहीम का कोई दास अवकाश लेकर विवाह करने गया. वह जब वापस आया तो उसकी विरहाकुल नवोढा ने उसके मन में अपनी स्मृति बनाये रखने के लिए दो पंक्तियाँ लिखकर उसे दीं-
नेह-छेह का बिरवा चल्यो लगाय I
सींचन की सुधि लीजो मुरझि न जायII
रहीम के साहित्य-प्रेम से तो सभी परिचित थे . अतः उस दास ने ये पंक्तियाँ रहीम…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2017 at 9:00pm — 6 Comments
‘सर—---सर---‘, उसने हकलाते हुए कहा –‘सर, मेरे पास जवान, सुन्दर और हसीन लड़कियों की कोई कमी नहीं है. आप उनमे से किसी को चुन लें, पर भगवान् के लिए इस लडकी को छोड़ दें’- उसने बॉस से गिडगिडाते हुए कहा .
‘अच्छा !-----मगर इस लडकी में ऐसा क्या है जो तुम इस पर इतना मेहरबान हो ?’
‘दरअसल------दरअसल -----‘ उससे कहते न बना .
‘अरे बिदास कहो. हमसे क्या डरना ?’
‘सर, वह मेरी बेटी है‘ उसका हलक सूख गया . बॉस की आँखों में विस्मय भरी चमक आयी –‘ अरे ! तब तो यह नामुमकिन है कि हम इस जवान…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2017 at 8:58pm — 7 Comments
(डॉ 0 अनिल मिश्र की अंग्रेजी कविता का हिन्दी रूपांतरण )
सभी जो निरीह हैं वो भ्रूण हों या वयोवृद्ध
सब के सब जीवित शताधिक जला दिये
गोलियों से भूने गए कितने हजार और
कितने सहस्र को निराश्रित बना दिये
और कई पारावार आंसुओं के बार-बार
बाढ़ की तरह नित्य सहसा उफना दिये …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2017 at 8:30pm — 3 Comments
जब मैं छोटा था
अक्सर गोद पर सवार होकर
देखता था पिता का मुख
पर तब नही जान पाया
उनका अक्स कहीं छिपा है मुझमे
आज मेरे बेटे
हो चुके है बड़े
अब मैं तलाशता हूँ
उनके चेहरे पर अपना अक्स
पर अब वे अनजान हैं
किन्तु मैं निराश नही होता
मेरे पोते को गोद में लिए
मेरा बेटा तलाश रहा है
उसमे अपना अक्स
वह पोता जो नही जानता
अक्स के मायने
(मौलिक /अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 6, 2017 at 8:58pm — 5 Comments
महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूत ‘ खंड काव्य में दोहद’ शब्द का प्रयोग किया है -
रक्ताशोकश्चलकिसलय: केसरश्चात्र कान्त:
प्रत्यासन्नौ कुरबकवृतेर्माधवीमण्डपस्य।
एक: सख्यास्तव सह मया वामपादाभिलाषी
काङ्क्षत्वन्यो वदनमदिरां दोहदच्छद्मनास्या:।।
[उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 31, 2017 at 9:30pm — 5 Comments
महाकवि कालिदास ने मेघ का मार्ग अधिकाधिक प्रशस्त करने के ब्याज से प्रकृति के बड़े ही सूक्ष्म और मनोरम चित्र खींचे है, इन वर्णनों में कवि की उर्वर कल्पना के चूडांत निदर्शन विद्यमान है जैसे - हिमालय से उतरती गंगा के हिम-मार्ग में जंगली हवा चलने पर देवदारु के तनों से उत्पन्न अग्नि की चिंगारियों से चौरी गायों के झुलस गए पुच्छ-बाल और झर-झर जलते वनों का ताप शमन करने हेतु यक्ष द्वारा मेघ को यह सम्मति देना कि वह अपनी असंख्य जलधाराओं से वन और जीवों का संताप हरे .
मेघ को पथ निर्देश करता यक्ष…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 23, 2017 at 12:20pm — 4 Comments
आया फिर से सन्निकट दीप-पर्व अभिराम
बागी की शुभकामना सबके लिए प्रकाम
सबके लिय प्रकाम हर्ष वैभव हो भारी
अवध पधारे राम कहें राजेश कुमारी
कहते है गोपाल चतुर्दिक सौरभ छाया
नभ का तारक–माल उतर धरती पर आया
प्राची के मन में भरा है गहरा संताप
शरद--इंदु जी किसलिए है इतने चुपचाप
है इतने चुपचाप निशा तमसावृत काली
दूर् किये सब पाप मना हमने दीवाली
कहते है गोपाल बात शत-प्रतिशत साची
निज को रही संभाल प्रतीक्षारत है…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2017 at 10:30pm — 14 Comments
शापित यक्ष का इस प्रकार मान-मर्दन होने से उसकी महिमा घट गयी. अतः अपने निर्वासन का दंड भुगतने के लिए उसने अलकापुरी से दूर रामगिरि को अपना आश्रय स्थल बनाया. इस पर्वत पर भगवान राम ने अपने वनवास के कुछ दिन कभी काटे थे, इसीलिये वह पर्वत-प्रदेश रामगिरि कहलाता था . वहां जगजननी सीता के पवित्र स्नान कुंड थे . छायादार घने वृक्ष थे. यक्ष ने वहाँ के आश्रमों में बस्ती बनायी और प्रवास के दिन व्यतीत करने लगा. इस प्रकार प्रिया-संतप्त यक्ष ने किसी तरह आठ माह बिताये. ग्रीष्म ढल जाने पर आषाढ़ मास के पहले दिन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2017 at 8:03pm — 9 Comments
विरहाकुल था दीन यक्ष उसको कुछ समझ नहीं आया
वारिवाह से गुह्य याचना ही करना उसको भाया
लोक-ख्यात पुष्कर-आवर्तक जलधर बड़े नाम वाले
उनके प्रिय वंशज हो तुम हे वारिवाह ! काले-काले
प्रकृति पुरुष तुम कामरूप तुम इन्द्रसखा तुमको जानूं
विधिवश प्रिय से हुआ दूर हूँ तुम्हे मीत हितकर मानूं
तुम यथार्थ परिजन्य मूर्त्त हो मैं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 11, 2017 at 11:00am — 4 Comments
यक्षराज कुबेर की राजधानी अलकापुरी में वास करने वाला एक यक्ष प्रमादवश सेवा में हुई किसी चूक के कारण यक्षराज के कोप का भाजन बना . कुबेर ने उसे शाप दिया कि वह वर्ष पर्यंत निर्वासित रहकर अपनी पत्नी का वियोग सहे. यक्ष का प्रमाद कालिदास ने स्पष्ट नही किया . कितु टीकाकारों ने निज अनुमान से कई बड़े ही विदग्ध निष्कर्ष निकाले हैं. इनमे सबसे प्रचलित और बहुमान्य निष्कर्ष यह है कि कालिदास का अभागा शापित यक्ष कुबेर का बागबान था और उसके प्रमाद से इंद्र का विश्रुत हाथी ऐरावत एक दिन कुबेर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 30, 2017 at 10:03pm — 2 Comments
यक्षराज कुबेर की राजधानी अलकापुरी में वास करने वाला एक यक्ष प्रमादवश सेवा में हुई किसी चूक के कारण यक्षराज के कोप का भाजन बना . कुबेर ने उसे शाप दिया कि वह वर्ष पर्यंत निर्वासित रहकर अपनी पत्नी का वियोग सहे. यक्ष का प्रमाद कालिदास ने स्पष्ट नही किया . कितु टीकाकारों ने निज अनुमान से कई बड़े ही विदग्ध निष्कर्ष निकाले हैं. इनमे सबसे प्रचलित और बहुमान्य निष्कर्ष यह है कि कालिदास का अभागा शापित यक्ष कुबेर का बागबान था और उसके प्रमाद से इंद्र का विश्रुत हाथी ऐरावत एक दिन कुबेर…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 30, 2017 at 9:51pm — 1 Comment
प्रिये, स्वप्न दर्शन में जब तुम किसी भाँति हो मिल जाती
निष्ठुर भुजपाशों में भरने की ज्यों ही बेला आती
आतुर हो जब महा शून्य में अपना भुज मैं फैलाता
मेरी करुणा पर वन देवी का दृग-अंचल भर आता
मोटे-मोटे मुक्ताहल से अश्रु कपोलों पर आते
और पादपों के पल्लव पर सहसा बरस बिखर जाते (४३)
देवदार तरु के नैसर्गिक मुड़े हुए मृदु पातों को
सहज खोल दक्षिण से आती हिमपर्वत की वातो को
जो उन पल्लव के फुटाव से बहते पय-निर्यासों…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 9, 2017 at 11:30am — 5 Comments
‘कहो बिरजू कैसे आये ? वह भी सवेरे-सवेरे’
बिरजू रैदास हमारे यहाँ हलवाही का कार्य करते थे. खेती के नए उपकरण आ जाने और उम बढ़ जाने से उन्होंने अब यह कार्य छोड़ दिया था.
‘मलकिन, बिटिया की शादी तय कर दी है. अब आप से कुछ मदद होइ जाय ?’
‘अच्छा तो दिविया इतनी बड़ी हो गयी , जरूर-जरूर हमारी भी तो बेटी ही है’ –मैंने सकुचाते हुए उसे तीस ह्जार का चेक दिया.
‘जुग-जुग जियो मलकिन. बिटिया तरक्की करे‘ -वह आशीर्वाद देकर चला…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2017 at 12:00pm — 8 Comments
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