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Sushil Sarna's Blog (876)

इक उम्र जी जाती हूँ ....

इक उम्र जी जाती हूँ ....

उसके जाने के बाद मैं

कितनी बेख़बर सी हो गयी हूँ

नींदें सुहाती नहीं

यादें सुलाती नहीं

आईना बेगाना सा लगता है

अक्स भी अंजाना सा लगता है

लिबास बदलूं

तो किस के लिए

शाम-ओ-सहर उदासियों के

मंज़र कहर ढाते हैं

ज़िस्म पर लम्स के अहसास

कतरनों से सजे नज़र आते हैं

चलती हूँ तो न जाने

कितने लम्हे साथ चलते हैं

एक आहट के इंतज़ार में

काफिले अश्कों के पिघलते हैं

शब् तो अब भी होती है मगर

अब हर…

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Added by Sushil Sarna on March 8, 2016 at 2:06pm — 14 Comments

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

मुस्कुरा भर देती हूँ .....

कुछ तो है

तेरे मेरे मध्य

अव्यक्त सा //

शायद कोई शब्द

जो अभिव्यक्ति के लिए

अधरों पर छटपटा रहा हो //

या कोई पीछे छूटा पल

जो समय की आंधी में

अपने अहसासों को

बिखरने की वज़ह ढूंढ रहा हो //

या हृदय के अवगुंठन में

कोई उनींदी से चेतना

जो किसी के

स्नेह्पाश की प्रतीक्षा में

नयन दहलीज़ पर

अधलेटी सी बैठी हो //

क्या है आखिर

ये अव्यक्त और…

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Added by Sushil Sarna on March 4, 2016 at 3:19pm — 10 Comments

दिल के अहसास :

मित्रो , आज दिनांक ०३. ०३. २०१६ को विवाह की ४०वीं वर्षगांठ के

अवसर पर अपने हमसफ़र को समर्पित दिल के अहसास :



मैं नहीं जानता

मेरे अलफ़ाज़

तेरे दिल की गहराईयों में

कब तक गूंजते हैं

मगर जब तेरी नज़र उठती है

मुझे अपने वुज़ूद का

अहसास होता है

जब तेरी पलक की नमी

मेरी पलक को छूती है

मुझे अपनी मुहब्बत का

अहसास होता है

जब तेरे सुर्ख लबों पे

मुस्कुराहट अंगड़ाई लेती है

मेरी धड़कनों को

तेरी करीबी का

अहसास होता है

जब…

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Added by Sushil Sarna on March 3, 2016 at 12:36pm — 10 Comments

नयी क़बा ....

नयी क़बा ....

कितनी अजब होती है

वो प्रथम अभिसार की रात

पुष्पों से सेज सुरभित रहती है

पलकों में उनींदे ख्वाब रहते हैं

एक जिस्म

दो कबाओं में सिमटा

किसी अनजाने पल के इंतज़ार में

ख़ौफ़ज़दा होता है

न चाह कर भी

अपने हाथों से

कुवांरे ख़्वाबों की क़बा का

कत्ल करना पड़ता है

मुहब्बत के

रेशमी  अहसासों का नया पैराहन

खामोश वज़ूद को

एक नया नाम दे देता है

कुवारी क़बा

इक चुटकी भर सिन्दूर में लिपट…

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Added by Sushil Sarna on February 27, 2016 at 8:00pm — No Comments

गूंगी गुड़िया ....



गूंगी गुड़िया ....

कितनी प्रसन्न दिख रही हो

सुनहरे बाल

छोटी सी फ्रॉक

छोटे छोटे पांवों में

लाल रंग की बैली

नटखट आँखें

नृत्य मुद्रा में फ़ैली दोनों बाहें

बिन बोले ही तुम

कितने सुंदर ढंग से

अपने भावों का

सम्प्रेषण कर रही हो

तुम पर

किसी मौसम का

कोई असर नहीं होता

सदैव मुस्कुराती हो

गुड़िया हो न !

शीशे की अलमारी में बंद रह के भी

सदा मुस्कुराती हो//

मैं भी बुल्कुल तुम्हारी तरह…

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Added by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 3:38pm — 2 Comments

चुप हो जाते हैं ...

चुप हो जाते हैं.....

मन ही मन

हम कितना बतियाते हैं

जब अक्सर

हम चुप हो जाते हैं//

कभी आँखें बोलती हैं

कभी लब थरथराते हैं

रुके हुए पाँव

मील का पत्थर हो जाते है

जब अचानक

हम चुप हो जाते हैं//

तारीकियों के कैनवास पे

रिश्तों की सिसकती रेखाओं से

अपनी तूलिका में

दर्द का रंग भरकर

उसमें सिमट जाते हैं

अक्सर जब

हम चुप हो जाते हैं//

तपती राहों पर

सूखे होते शज़र से लिपट…

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Added by Sushil Sarna on February 22, 2016 at 9:37pm — 2 Comments

प्यार में ....

प्यार में .......

नहीं नहीं

मैं अभी मृत्यु को

अंगीकार नहीं करना सकता//

अभी तो प्रेम सृजन का

शृंगार अधूरा है//

वृक्ष विहीन प्रेम पंथ पर

तलवों की तपिश का

संहार अधूरा है//

पाषाण बने पलों में

किसी लहर के

तट से मिलन का

इंतज़ार अधूरा है//

अभी तो मृत्यु से पूर्व

मुझे उसके लिए जीना है

जिसने आसमान के टूटे तारे से

बंद आँखों से

संग संग जीने की

दुआ माँगी है…

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Added by Sushil Sarna on February 16, 2016 at 9:02pm — 4 Comments

थाप पे तबले की ....



थाप पे तबले की ....

थाप पे  तबले  की  घुंघरू बजने लगे

किसने  पहचानी  इनकी  परेशानियां

दाम लगने लगे ज़िस्म थिरकने लगे

आई नज़र में नज़र तो बस हैवानियाँ

थाप पे तबले की ......

सब  खरीददार  थे  कोई  अपना न था

सूनी  आँखों  में  कोई भी सपना न था

चीर डाला  हर  एक  हाथ ने जिस्म को

बज़्म में चश्म से दर्द छलकना  न  था

शोर साँसों  की सिसकी का हर ओर था

हर  सिम्त  थी  बस नादान नादानियां

पाँव  घुंघरू  बंधे  महफ़िल में बजते रहे

किसने  …

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Added by Sushil Sarna on February 8, 2016 at 9:58pm — 8 Comments

अपना अधिकार रहने दो ....

अपना अधिकार रहने दो ....

व्यथित हृदय

कुछ तो रहने दो मन में

व्यथा को शब्दों के लिबास मत दो

शब्द सज संवर के आएंगे

जाने क्या क्या कह जाएंगे

अपने मौन को

शब्दों के आश्रित मत करो

सफर में शब्द भाव बदल देते हैं

जो अपनी होती है

वही बात

शब्दों के परिधान पहन

पराई हो जाती है

अपनी बात को

लोचन में पिघलने मत दो

अन्यथा व्यथा का रूप बदल जाएगा

बात का अपनापन

परायेपन की आशंका से

व्यर्थ में गीला हो जाएगा

बात…

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Added by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:50pm — 6 Comments

उस पार ...

उस पार ...

सच मानिए

नदिया के उस पार तो

कुछ भी नहीं है

जो कुछ भी है

सब इस पार यहीं है

आरम्भ भी यहीं है

अंत भी यहीं है

खुद से मिलने का

खुद में समाया

जीव का अलौकिक

पंत भी यहीं है

उस पार तो

कुछ भी नहीं है //

एक घर से

दूसरे घर की दूरी

एक श्वास भर ही तो है //

एक स्वप्न और

यथार्थ की दूरी

एक श्वास भर ही तो है //

एक मिलन और

विछोह की दूरी

एक श्वास भर ही…

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2016 at 8:40pm — 12 Comments

उम्र का सफर ....

उम्र का सफर ....

हम उम्र के साथी

शायद मेरी तरह

बूढ़े होने लगे हैं

केशों में चमकती चांदी

चेहरे की झुर्रियां

जीवन का सफर का

बेबाक आईना हैं

हाँ, सच

ये तो मेरी ही तरह बूढ़े हो चुके हैं

इनके हाथ काम्पने लगे हैं

मुंह की लार बस में नहीं है

ज़िंदगी को

बिना किसी सहारे के जीने वाले

बूढ़ी थकी लाठी पर

अपनी देह का बोझ लादे

डगमगाते पाँव लिए

जीवन का शेष सफर

तय करते नज़र आते हैं

क्या ! जीवन के सूरज का…

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Added by Sushil Sarna on January 29, 2016 at 8:53pm — 8 Comments

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास ).....

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास )

२१२ x ४

रदीफ़=हो गयी

काफ़िया=आ

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी

जान हम से हमारी जुदा हो गयी !!१!!

अब गिला आसमां से नहीं है हमें

बे-असर अब हमारी दुआ हो गयी !!२!!

हाल अपना सुनायें किसे हम भला

लो मुहब्बत हमारी खता हो गयी !!३!!

रात भर करवटों में वो लिपटी रही

याद उनकी हमारी क़ज़ा हो गयी !!४!!



दिल भला या बुरा समझता है कहाँ

ये मुहब्बत सुल्ह की रज़ा हो गयी…

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Added by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 8:57pm — 6 Comments

बोलते पलों का घर .....

बोलते पलों का घर .....

हमारे और तुम्हारे बीच

कितनी मौनता है

एक लम्बे अंतराल के बाद हम

एक दूसरे के सम्मुख

किसी अपराध बोध से ग्रसित

नज़रें नीची किये ऐसे खड़े हैं

जैसे किसी ताल के

दो किनारों पर

अपनी अपनी खामोशी से बंधी

दो कश्तियाँ//

कितने बेबस हैं हम

अपने अहंकार के पिघलते लावे को

रोक भी नहीं सकते//

चलो छोडो

तुम अपने तुम को बह जाने दो

मुझे भी कुछ कहने को

बह जाने दो

शायद ये खारा…

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Added by Sushil Sarna on January 18, 2016 at 7:50pm — 6 Comments

दिल के अहसासों को ...

दिल के अहसासों को ...

मैं नहीं जानता

वो किसकी दुआ थी

मैं नहीं जानता

वो किसकी सदा थी

मैं तो ये भी नहीं जानता

कब उसके लम्स

मेरे ज़िस्म पर

अपनी पहचान छोड़ गए

शायद वो रेशमी इज़हार

खामोशी की कबा में ग़ुम थे

कब साँझ ने

तारीक का लिबास पहन लिया

बस ! न जाने कब

चुपके से इक ख्याल

हकीकत बन गया

न पलक कुछ बोली

न लबों पे कोई जुंबिश हुई

दिल के अहसासों को

इक दूजे की हथेलियों ने

इक दूजे…

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Added by Sushil Sarna on January 7, 2016 at 7:30pm — 6 Comments

शिकन भरा लिबास....

शिकन भरा लिबास......

ये सुर्ख सी आँखें

बिखरी हुई जुल्फें

शिकन भरा लिबास देख

आज अपने ही दर्पण में

मैं लुटी नज़र आती हूँ //

हर शब की तरह

जो आज भी

इस जिस्म को रूहानी ज़ख़्म दे गया

फिर उसी के साथ बेवजह

जीने की ज़िद कर जाती हूँ //

जानती हूँ

वो फिर कुछ पल के लिए आएगा

अपने दिए ज़ख्मों पे

झूठे वादों का मरहम लगाएगा

मैं उसकी बातों में आजाऊंगी

भूल जाऊँगी दर्द ज़ख्मों का

और अपना अस्तित्व भी भूल जाऊँगी //

झूठा ही…

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Added by Sushil Sarna on January 6, 2016 at 4:29pm — 6 Comments

कितना अच्छा हो .....

कितना अच्छा हो  ....

अभी-अभी

हवाओं के थपेड़ों से बजते

वातायन के पटों ने

तिमिर में सुप्त चुप्पी से

चुपके से कुछ कहा //

अभी-अभी

रिमझिम फुहारों ने

चंचल स्मृति की

असीम गहराईयों संग

अंगड़ाई ली //

अभी-अभी

एक रूठा पल

घोर निस्तब्धता को

अपनी निःशब्द श्वासों से

जीवित कर गया //



अभी-अभी

एक तारा टूट कर

किसी की झोली

सपनों से भर गया //

अभी-अभी से लिपट

कभी पलक…

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Added by Sushil Sarna on January 4, 2016 at 7:48pm — 12 Comments

चुटकियाँ- ….. …



चुटकियाँ- ….. …



नेता   क्या   और भाषण क्या

भाषण   पे   अनुशासन  क्या

मूक    बधिर   इस जनता को

व्यर्थ   में     आश्वासन    क्या !!1!!



देश   क्या     विकास      क्या

बिन    कुर्सी  मधुमास    क्या

छल करते जो नित् निर्बल  से

उस आवरण का विश्वास   क्या !!2!!



नीति   क्या    अनीति      क्या

भ्रष्ट की  सोच   से  प्रीति   क्या

जनता के जो खून  से   जिन्दा

उस   नेता   की  परिणति क्या !!3!!



फ़र्ज़    क्या  …

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Added by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 1:27pm — 6 Comments

ये सिलसिला .......

ये सिलसिला .......

सच ! कितना स्वार्थी है इंसान

हर जीत पे मुस्कुराता है

हर हार से जी चुराता है

अपने स्वार्थ की पगडंडी पर अक्सर

वो हर रास्ते से नाता जोड़ लेता है

हर मोड़ पे इक दर्द को छोड़ देता है

हर कसम तोड़ देता है

मुहब्बत की पाक इबारत पे

वासना की कालिख पोत देता है

जिस्म के रोएँ रोएँ में

नफ़रत की फसल छोड़ देता

किसी ज़िंदगी को नरक कर

उसके अरमानों को रौंद देता है

किसी की पाकीज़गी को

चीत्कारों से ढक देता है

उफ़ !…

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Added by Sushil Sarna on December 21, 2015 at 8:08pm — 4 Comments

नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )

नई पसंद का जमाना ... (110 वीं रचना )

राम राम भाई

आज दुकान खोलने में बड़ी देर लगाई

हमने भी पड़ोसी को राम राम कहा

और अपनी नासाज़ तबियत का हवाला देते हुए

अपनी दुकान का शटर उठाया

धूप अगरबत्ति जलाकर

उसके धुऐं को दुकान और गल्ले में घुमाया

प्रभु को शीश नवाकर

अच्छी बोहनी के लिए प्रार्थना करके

धूपदानी प्रभु के आगे रखी ही थी कि

एक ग्राहक ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई

हमने चौंक कर

अपनी सुराहीदार गर्दन को

भगवान बने ग्राहक की तरफ घुमाया…

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Added by Sushil Sarna on December 15, 2015 at 12:45pm — 4 Comments

हकीकत.....

हकीकत.....

उस दिन

जब तुमने मेरे काँधे पे

अपना हाथ रखा था

कितने ख़ुशनुमा अहसास

मेरे ज़हन में

उत्तर आये थे

लगा भटकी कश्ती को

जैसे साहिलों ने

अपनी आगोश में ले लिया हो

मगर मैं उन सुकून देते लम्हों को

कहाँ पहचान पायी थी

क्या खबर थी कि तुम

इज़हारे मुहब्बत के बहाने

मेरे कमजोर कांधों की

ताकत नाप रहे थे

मैंने तुम्हें अपना सागर मान

अपने वज़ूद को

तुम्हें सौंप दिया

आज तक

तुम्हारी उँगलियों की वो छुअन…

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Added by Sushil Sarna on December 14, 2015 at 1:00pm — 4 Comments

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