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चक्र..

चक्र..

चैन और बेचैन का, चक्र चले दिन रात,

सुख दुःख के ही भोग में, यह आयी बारात.…

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Added by R N Tiwari on February 27, 2011 at 8:30pm — 7 Comments

विश्वास

पराजय कभी इतनी बड़ी नही होती कि ,

आदमी का मनोबल छीन ले जाये ...

हमेशा नए ख्वाब देखो

नक्षत्रों पर भरोसा रखो

कभी भी ' तथास्तु ' कह सकते हैं ...

इस विश्वास से ये सबक सीखो

बुरी बात कभी मुँह से मत निकालो .

बहुत दबे पाँव चलना होता है

मुसीबतें रास्ता रोके खड़ी होती हैं ,

लक्ष्य - भेद उम्र भर का मसला होता है ......

सारथी का चयन भी…
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Added by rashmi prabha on February 27, 2011 at 4:00pm — 10 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
बह्र पहचानिये- 5

 ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातःएक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक दुसरे के कमेन्ट से प्रभावित न हो सकें…

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Added by Rana Pratap Singh on February 27, 2011 at 10:30am — 1 Comment

कविता :- छोड़ दूं सच साथ तेरा

कविता :-  छोड़ दूं सच साथ तेरा

हर अनुभव हर चोट के बाद

अक्सर ऐसा सोचता हूँ

छोड़ दूं सच साथ तेरा

चल पडूँ ज़माने की राह

जो चिकनी है और दूर  तक जाती है

जिस राह पर चलकर

किसी को शायद नहीं रहेगी

शिकायत मुझसे

अच्छा…

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Added by Abhinav Arun on February 26, 2011 at 1:30pm — 11 Comments

एक गीत अनोखा लायी हूँ...

 

HIV POSITVE KIDS 

 

जब जी चाहे तब गा लेना ,एक गीत अनोखा  लायी हूँ..

हर भाव को क्षण में जी लेना ,संगीत अनोखा लायी हूँ..
जो पीर से व्याकुल कर देगा वो दर्द अनोखा लायी…
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Added by Lata R.Ojha on February 24, 2011 at 2:33am — 19 Comments

‘शबरी महोत्सव’ पर लगा ग्रहण

छत्तीसगढ़ राज्य में टेम्पल सिटी के नाम से विख्यात शिवरीनारायण में माघी मेला के दौरान आयोजित होने वाले शबरी महोत्सव पर ग्रहण लग गया है। राज्य सरकार और संस्कृति विभाग की उदासीनता के कारण आयोजन समिति को बजट नहीं मिलने से पिछले तीन वर्षो से यह महोत्सव नहीं हो पा रहा है।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद राज्य सरकार ने शिवरीनारायण में हर वर्ष माघी पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाले मेले…

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Added by rajendra kumar on February 24, 2011 at 9:30am — 1 Comment

लंगड़े कुत्ते का भाषण

बड़े-बड़े दरबारों में दुम हिलाया है

मालिकों के मलाईदार जूठे को खाया है

भौंक-भौंक कर किया कपालभाति

कभी लेट कर किया वज्रासन…

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Added by Shashi Ranjan Mishra on February 22, 2011 at 8:00am — 9 Comments

दोहा सलिला मुग्ध संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला मुग्ध  ***संजीव 'सलिल***

 

दोहा सलिला मुग्ध है, देख बसंती रूप.

शुक प्रणयी भिक्षुक हुआ, हुई सारिका भूप..

 

चंदन चंपा चमेली, अर्चित कंचन-देह.

शराच्चन्द्रिका चुलबुली, चपला करे विदेह..

 

नख-शिख, शिख-नख मक्खनी, महुआ सा पीताभ.

पाटलवत रत्नाभ तन, पौ फटता अरुणाभ..

 

सलिल-बिंदु से सुशोभित, कृष्ण…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 21, 2011 at 9:30am — 4 Comments

दो छोटी कवितायेँ

 एक 
और तभी होता है ये आभास 
गिन गिन कर लेते है
एक एक
श्वांस 
तोड़ कर पिंजड़ा 
उड़ता है एक पंछी 
और छाया मंडराती है
यहीं आसपास 
 
दो
 
एक…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 20, 2011 at 10:30am — 4 Comments

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

जब बेटी घर से विदा हो जायेगी..

   - शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"

 

ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे

जब बर्तन खन खन…

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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 17, 2011 at 5:00am — 18 Comments

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल 
 
बात मुझ से ये  कर  गया  पानी 
ये ना सोचो कि डर गया पानी
 
वो   हुनरमंद   है    ज़माने    में 
जिन की आँखों का मर गया पानी
 
हुई जो हक की बात महफ़िल में
जाने किस का उतर गया पानी
 
कल जो सैलाब था ज़माने पर 
अब समंदर के घर गया पानी
 
दौर  के  तौर  को  बदल  देगा 
जब भी सर से गुजर गया…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 13, 2011 at 2:30pm — 10 Comments

बसंत तुम देर से क्यूं आये ? -- डॉ नूतन गैरोला



ये पतझड़ भी कैसा था

अबके बहुत लंबा

और शीत ?

घनी गहरी बरफ में

हर फूल दबे मुरझाये|

बसंत! तुमने क्यों कर न देखा

मिट्टी… Continue

Added by Dr Nutan on February 8, 2011 at 6:00am — 15 Comments

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !

कविता :- हर ले वीणा वादिनी !



देश को लूट कर

हक़ हकूक छीन कर

जो बने हैं बड़े

और तन कर खड़े

बेशर्म बेहया

उन दरख्तों के पत्ते और सत्ते ओ माँ !

उनकी धूर्त और मक्कार शाखाएं भी

तू हरले सभी !

तू हरले…

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Added by Abhinav Arun on February 7, 2011 at 4:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल : - वो धुआं था रोशनी को खा गया

ग़ज़ल : - वो  धुआं था रोशनी को खा गया

छत से निकला आसमां पे छा गया ,

वो  धुआं था रोशनी को खा गया |

 

सब ज़बानें मजहबी खँजर हुईं ,

क्या पुनः दंगों का मौसम आ गया |

 

टहनियों पर तितलियों…

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Added by Abhinav Arun on February 5, 2011 at 8:30am — 13 Comments

अँधेरे की चीख से

यक़ीनन आप मेरे रहनुमा है

तभी तो कारवां ये बदगुमां है

 

निगाहे शौक से देखे अगर वो 

ज़हां में आशियां ही आशियां है

 

उठाओ हाथ में खंज़र उठाओ

मेरी आँखों के आगे इक मकां है

 

छुटा है कुछ अभी आलिंगनों से

न जाने कौन अपने दर्मियां है

 

वहीँ होगी दफ़न अपनी कहानी 

हर इक तारीख में अँधा कुआं है

 

दिखाओ सर्द मौसम को दिखाओ

जमीं की आग सा मेरा बयां है  

 

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 5, 2011 at 3:30pm — 1 Comment

पर्दाफ़ाश

 

तुमने मेरे मस्तिष्क को

बींदने की

बेपनाह कोशिश की है

उसे नियन्त्रित करने की

मशक्कत की है कि, जैसा तुम चाहो

मैं वैसा सोचूँ..

तुमने मुझे एक से बढ़ कर एक

रंगीन जाल दिखाया

बनाये अनोखे तिलिस्म और चाहा

कि जैसा तुम दिखाना चाहते हो

मैं बस वो ही देखूँ..

तुमने मेरी उंगलियों को

छेद छेद कर, पिरोने…

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Added by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on February 4, 2011 at 4:30am — 9 Comments

बड़े कवि

 

बड़े कवि

 

बड़े कवि

बड़ी कविता लिखते है 

जिसे बड़े कवि पढ़ते है

फिर परस्पर पीठ खुजलाते हुए 

कला साहित्य के 

नए प्रतिमान गढ़ते है

बड़े कवि

ख़ारिज कर देते है

किसी को भी 

तुक्कड़ या लिक्खाड़ 

कह कर

बड़े कवि

गंभीरता का लबादा ओढ़े 

किसी नोबेल विजेता की 

शान में कसीदे पढ़ते है

विदेशी कवियों को'कोट ' करते है

फिर उस 'कोट' के

भार…

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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on February 3, 2011 at 10:30pm — 6 Comments

षडऋतु - दर्शन * संजीव 'सलिल

(आचार्य जी ने काफी व्यस्तता के वावजूद यह कृति इस परिवार हेतु भेजी है , बहुत बहुत धन्यवाद ...एडमिन)

 

षडऋतु - दर्शन…

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Added by Admin on February 3, 2011 at 9:51am — 3 Comments

लघु कथा :- बीस बाईस वर्ष का बूढ़ा...

नगर बस में भीड़ के रेले में धकियाया गया एक बुढ्ढा बेचारा.

छोटे कद के कारण न तो छत पर लटके हैंडल पकड़ पा रहा था और न ही सीट पर सहारा पाने कि कोई उम्मीद ही दिख रही थी. नगर बस में कई जगह ' अपने से ज्यादा ज़रुरत मंदों को सीट दे ' के सूचना पट्टियाँ लगीं थी और उस बूढ़े कि खिल्ली उड़ा रहीं थीं .

अचानक एक सीट खाली हुई...आशा भरी द्रष्टि से बूढा उस सीट की ओर लपका. तभी एक बीस बाईस वर्ष का एक लड़का अपनी उम्र को दर्शाती फुर्ती के साथ सीट पर काबिज़ हो गया, और बुढ्ढा एक बार फिर निराश.

लोगों ने… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on February 2, 2011 at 6:00pm — 5 Comments

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर 

(मधु गीति सं. १६०४, रचना दि. २ जनवरी, २०११)

 

क्यों किलसते हो प्रलय के गीत सुनकर, क्यों विलखते हो विलय का राग सुनकर; 

दया क्यों ना कर रहे  जग जीव पर तुम, हृदय क्यों ना ला रहे तुम…

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Added by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on February 1, 2011 at 8:44pm — 3 Comments

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