हाथी के नेतृत्व में सभी जानवरों ने शाकाहार संघ बनाया। सबसे पहले लोमड़ी ने शाकाहार की कसम खायी और फिर उसने मांसाहारियों के सामने एक प्रदर्शन करने का सुझाव दिया, जिसे तुरंत ही मान लिया गया। लोमड़ी ने दस-दस जानवरों का समूह बना कर उन्हें एक क्रम में खड़ा किया। सबसे पहले दस हाथी, फिर भालू, बन्दर, बारहसिंघा, हिरण फिर खरगोशों का समूह और सबसे अंत में वो स्वयं थी। बड़े-बड़े पोस्टर लेकर जुलुस ने शाकाहार के पक्ष में नारे लगाते हुए जंगल के राजा शेर की मांद के अंदर तक पूरा चक्कर लगाया जैसे ही लोमड़ी और शेर की…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 2, 2015 at 3:30pm — 12 Comments
ब्रह्मा बड़ी शांति से इंद्र की बात सुन रहे थे, "पूजनीय, धरती पर आर्यव्रत नामक स्थान सोने की चिड़िया कहलाता है। कई अविष्कार हुए हैं, वेद लिखे गए, महाकाव्य लिखे गए, कितने ही उत्तम शास्त्र भी लिखे गए। सभी नागरिक स्वस्थ, सुखी और संपन्न हैं। श्री कृष्ण ने वेदों का परिष्करण कर अमर-अजर आत्मा की अवधारणा तक दे दी है।"
“सत्य है, लेकिन ईर्ष्या और स्वार्थ के कारण आपसी फूट आत्मा की तरह ही रोग, दुःख और विपन्नता को अमर कर देगी।“ वाणी में भारीपन था|
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 1, 2015 at 9:30pm — 9 Comments
सुकन्या भारतीय वायुसेना में नौकरी के पहले दिन तैयार होते ही भागी भागी आयी और अपनी माँ मधु को एक सैल्यूट करते हुए कहा, "माँ देखो, तुम्हारा सपना, तुम्हारे सामने| अब और क्या चाहिये तुम्हे?"
मधु की आखों में चमक के साथ साथ आंसू भी आ गये| उसने कहा, "एक वादा और चाहिये, बेटे| यदि तेरे भी बेटी हुई और तेरा पति और सास उसकी हत्या करने की कोशिश करे, तो तू मेरे जैसे अपनी बेटी को लेकर भाग मत आना| तेरी बेटी की रक्षा करने का कोई न कोई तरीका तुझे तेरे अफसर सिखा ही देंगे|"
(मौलिक…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 30, 2015 at 7:00pm — 14 Comments
एक पल की देरी किये बिना वो तेज़ क़दमों से बड़े-बड़े डग भरती हुई लक्ष्मी मंदिर में पूजा करने चली गयी| रास्ते में एक छोटी सी जिंदा बच्ची कचरे के डिब्बे में जो देख ली थी - शायद सात-आठ दिन पहले ही जन्मी थी|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 22, 2014 at 11:56pm — No Comments
ना रहे जो वक्त तो भी रहेगा वक्त ही
वक्त बेज़ुबां है तो भी कहेगा वक्त ही |
यूं तो गुज़र जाता है जिंदगी की तरह
जिंदगी के बाद तो भी रहेगा वक्त ही |
मैं उसे थामे चलूँ कितनी भी दूर ही
हाथ मेरा थाम तो भी चलेगा वक्त ही |
मेरी हर शै बढे या घटे है हर पल
जितना भी घटे तो भी बढेगा वक्त ही |
जो फैला है मार-काट साथ जिंदगी के
मारो किसी को तो भी कटेगा वक्त ही |
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 25, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
धन प्रभुता ना मिले विद्वान् जो ना हो साथ |
कर्म यज्ञ में दे आहुति विद्वान् ही का हाथ ||
विद्वता का उपयोग कर धनवान धन कमाए|
विद्वान् इस राह चले तो धनी निर्धन बन जाए||
धनवान को वाहन मिले संग्रह करके धन |
विद्वान वाहन में घूमे निग्रह करके मन ||
धन की करे चौकीदारी हर रात धनवान |
ज्ञान का सृजन करे हर रात विद्वान् ||
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 15, 2014 at 11:30am — 5 Comments
आज फिर लड़खड़ाते कदमों से
गिरने की कोशिश की
यह लालच संजोये हुए कि
आप आ जाओगे
फिर से मुझे चलना सिखाने को
मेरी अंगुली पकड़ के
मुझे गिरने नहीं दोगे...
काश आपकी पदचाप फिर सुन पाता,
या काश, मेरे क़दमों को गिरते हुए
आपकी आदत ना होती..
साथ थे आप तो पैर अल्हड़ थे
घिसटते कदम थे चाल बेताल थी..
विश्वास था फिर भी ना गिरने का
आज आपकी याद है...
पैर तने हैं, कदम सधे हैं
चाल भी सीधी…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 11, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
पृथ्वी की धुरी के इशारों पर
यूं तो नाचता है समय...
विस्मृत क्षण हो गए धूमिल
कई दिनों से गुम था समय...
कितने ही वर्षों से ढूंढता
पूछता था जिससे वो कहता
“मेरे पास तो नहीं है समय...”…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 27, 2014 at 6:51pm — 15 Comments
"सुनती हो, देखा तुमने गुप्ता जी की बेटी आज दौड़ में फर्स्ट आयी है, देखो हर फ़ील्ड में अव्वल है और एक हमारी बेटी है, पास हो जाती है यही उसका एहसान है, मैं पहले ही कहता था कि जिस रास्ते पर चल रही है वो सही नहीं है| दिन भर बस पता नहीं क्या सोचती रहती है | पांचवीं में पढ़ती है और बैठी ऐसे रहती है जैसे 50 साल की बुढ़िया हो |" - मदन जी चिल्लाते हुए अपने घर में दाखिल हुए|
उनकी पत्नी तो जैसे ये वाक्य सुनने को आतुर बैठी थी, उसने भी चिल्लाते हुए जवाब दिया, "अब आपके खानदान की है, और क्या…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 11, 2014 at 6:30pm — 16 Comments
मैं शब्दों के भार को तौलता रहा
भाव तो मन से विलुप्त हो गया|
मैं प्रज्ञा की प्रखरता से खेलता रहा
विचारों से प्रकाश लुप्त हो गया|
मस्तिष्क धार की गति तो तीव्र थी,
मन-ईश्वर का समन्वय सुषुप्त हो गया|
...…
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 27, 2014 at 11:20am — 5 Comments
मैं सबसे प्रेम करता था|
मेरे प्रेम को
एक मोबाइल कॉल की तरह अग्रेषित किया
मेरे अपनों ने ही
चमकते सिक्कों की ओर|
मेरे परिवार में मैं मूर्ख कहलाया |
मेरा लक्ष्य प्रेम था,
इसलिए…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 17, 2014 at 12:44pm — 9 Comments
मेरी मृत्यु नहीं हुई थी,
इसलिए बिछड़ी नहीं
हमेशा के लिए |
उसने मुझे रहने को
दे दिया बड़ा सा वृद्धाश्रम
कई लोगों के साथ में
कई सालों के लिए
घर से बस थोड़ी सी दूर|
जो रहा था
बस नौ महीने
अकेला
मेरी छोटी सी कोख में |
** मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 10, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
सुकुमार के पास और कोई चारा नहीं बचा था, व्यापार में हुए 200 करोड़ रुपये के घाटे वह सहे तो कैसे, अब या तो वह शहर-देश छोड़ कर भाग जाए या फिर काल का ग्रास बन जाए| सुकुमार को कोई राह सुझाई नहीं दे रही थी| सारे बंगले, ज़मीनें, कारखाने बेच रख कर भी इतना बड़े नुकसान की पूर्ति नहीं कर सकता था| फिर भी वो पुरखों की कमाई हुई सारी दौलत और जायदाद का सौदा करने एक बहुत बड़े उद्योगपति मदन उपाध्याय के पास जा रहा था| मदन उपाध्याय देश के जाने-माने उद्योगपति थे, उनके कई सारे व्यवसायों में…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 12, 2013 at 1:20am — 20 Comments
रामभरोसे ट्रेफिक पुलिस में हवलदार था, ड्यूटी करके वो घर में घुसते हुए अपनी पत्नी को चिल्ला कर बोला, “पार्वती, सुनो! गुड़िया को डॉक्टर को दिखाया? कुछ खांसी में फर्क पड़ा?”
उनकी पत्नी ने जवाब दिया, “सरकारी हस्पताल गयी थी, लेकिन वहां डॉक्टर साहब ने देख कर बोला कि पूरा चेकअप करना होगा, बच्ची को शाम को घर पर लाओ|”
रामभरोसे सर से लेकर पाँव तक गुस्से से तरबतर हो गया| वो पत्नी से बोला, “ये डॉक्टर बस रुपये कमाना ही जानते हैं, जनता की सेवा करना नहीं| पता है ना कि सरकारी…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 14, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
“आज गुरूजी कुछ विचलित लग रहे हैं, जाने क्या बात है? उनसे पूछूं, कहीं क्रोधित तो नहीं हो जायेंगे?” मन ही मन सोचते हुए उज्जवल ने एक निश्चय कर लिया कि गुरु रामदास जी से उनकी परेशानी का कारण पूछना है| वो हिम्मत जुटा कर गुरूजी के पास गया और उनसे पूछ लिया कि, “गुरूजी....! आप इस तरह से विचलित क्यों लग रहे हैं? कृपा करके अगर कोई दुःख हो तो अपने इस दास को बताएं|”
गुरूजी ने दुखी स्वर में कहा, “पुत्र, क्या बताऊँ, आजकल प्रतिदिन…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 7, 2013 at 10:45pm — 9 Comments
किसान हीरा की पत्नी घाट से जो मटका भर कर लाती थी, उसमें छोटा सा छेद हो गया था| उस पर हाथ रखते रखते भी पानी ज़मीन पर गिर ही जाता| जैसे तैसे वो पानी लेकर आती थी|
उसने अपने पति से इस बात की शिकायत की कि, अब इस मटके से पानी भरना संभव नहीं है, आप नया मटका ले आओ| हीरा थोड़ा व्यस्त था, जब तक वो नया मटका खरीदता, तब तक पुराने मटके का छेद काफी बढ़ गया और बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही गिर जाता|
नया मटका आते ही पुराना मटका हीरा की पत्नी ने बाहर फैंक दिया, वहां काफी कीचड़ थी,…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 1:00am — 8 Comments
उसके लिए कहना कितना आसान था,
सुखों के लिए बिक रहा मेरा ईमान था |
जो दुखों के पंख लगा के घर में आता है,
उसकी खुशामदीद का क्यों अरमान था |
तय की थीं मंज़िलें जिन्होंने दोस्ती की
वो कह गए कि उनका बड़ा एहसान था |
मैनें खोद के देखा इंसानियत की परतों को
ना तो वहां रूह थी और कहाँ इंसान था |
आओ छुपा दें हर ग़म को आखों में ही
सुख को सुखाना कहां इतना आसान था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 12:00am — 10 Comments
न था मैं तो भी जीवन था
न होउंगा तो भी जीवन रहेगा |
जीवन तो पाल है नाव की
धारा नहीं हवा के साथ बहेगा |
मेरा अक्स बन जाएगा इक दिन
टंगी हुई तस्वीर की तरह |
जिनकी वजह से हर्फ़ होंगे खामोश
जीने की वजह मेरा नाम न रहेगा|
मैं करता रहा अनदेखी, लगता रहा
नूर पे हर रोज़ एक ग्रहण |
क्यों चाँद को लाये नूर और मेरे बीच,
आँख का मेरे हर सितारा कहेगा|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 1, 2013 at 1:00am — 1 Comment
वो मानते हैं कि हो सकती उनसे कोई खता नहीं
खुद तक तो खुदा के सिवा कोई और पहुंचता नहीं|
वो जुस्तजू करते हैं हमारे क़दमों के निशाँ की भी
उनके हाथों में छुपे खंजर को तो कोई खोजता नहीं|
वो जिन्होंने तय की हैं बुलंदियां लाशों की सीढ़ी पे
कदमों में लगे खून से कब फिसल जाएँ पता नहीं|
वो हो जाते हैं नाराज़ हमारी ज़रा सी लडखडाहट से
जैसे उनके जहां में मदमस्त तो कोई गिरता नहीं|
वो हैं जैसे भी दूर उनसे सोच में भी नहीं…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 14, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
वैसे तो वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं,
उसे रोके बिना दिल हमारा भी भरता नहीं|
आने वाले पलों को खुशामदीद आज करलें
यूं ही तो आने वाला वक्त बदलता नहीं|
क़दमों की गर्मी से पहाड़ को बना दें पानी
रंगीनियों में तो बर्फ भी पिघलता नहीं|…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 29, 2013 at 6:00pm — 10 Comments
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