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विनय कुमार's Blog (201)

दिख रहा इंसान है- ग़ज़ल

हर तरफ बस दिख रहा इंसान है

हाँ, मगर अपनों से वो अंजान है



थे कभी रिश्ते भी नाते भी मगर

आजतो यह सिर्फ इक सामान है



जिसको कहते थे कभी काबिल सभी

सबकी नज़रों में वो अब नादान है 



जिसको सौंपी थी हिफाज़त बाग़ की

बिक रहा उसका ही अब ईमान है 



हर तरफ बैठे शिकारी घात में

चंद लम्हों का वो अब मेहमान है



था कभी गुलज़ार जो शाम-ओ-सहर 

अब वही दिखने लगा शमशान है



जिसने देखे अम्न के सपने कभी

अब उसी का टूटता अरमान है …



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Added by विनय कुमार on August 4, 2018 at 6:30pm — 11 Comments

नजरे झुकाये बैठे हैं- ग़ज़ल

आप महफिल में आये बैठे हैं

फिर भी नजरें  झुकाये बैठे हैं

मसअला ये कि मेरी बात से वो

अब  तलक़  खार  खाये  बैठे हैं

मुझको तो याद भी नहीं और वो

बात  दिल  से  लगाए  बैठे  हैं

हम तो करते नहीं कभी पर्दा

वो ही चिलमन गिराए बैठे हैं

हमने हर चीज याद रक्खी है

जाने  वो  क्यूँ  भुलाए बैठे हैं

हर तरफ दौर है ठहाकों का

और वो मुंह  फुलाए  बैठे हैं

बात दर अस्ल थी बहुत छोटी

वो  बड़ी  सी …

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Added by विनय कुमार on August 3, 2018 at 7:00pm — 7 Comments

रूह से भी यारी है - ग़ज़ल

जिस्म से रूह से भी यारी है

इश्क़ में इक सदी गुजारी है

उनसे मिलके भी दिल नहीं भरता

बढ़ रही फिर से बेकरारी है

उनकी बातें हैं जाम की बातें

फिर से चढ़ने लगी खुमारी है

सारी खुशियाँ उन्हें मुअस्सर हैं

सिर्फ अपनी ही गम से यारी है

उनके लब पे भी नाम हो अपना

ये  कवायद  हमारी  जारी  है

एक दिन वो मिलेंगे हमको ही

इश्क़  से  क़ायनात  हारी  है

मैं भी मिल पाऊँगा यक़ीन हुआ

उनके अपनों…

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Added by विनय कुमार on August 2, 2018 at 3:00pm — 3 Comments

याद तेरी - ग़ज़ल

याद तेरी कुछ इस कदर आए
तुझसे मिलने तेरे नगर आए

तुझको देखा करें हरेक लम्हा
वक़्त ऐसे ही अब ठहर जाए

अच्छी बातें ही बचें तेरे लिए
जो बुरा दौर हो गुजर जाए

बेकरारी है तुझको पाने की
हर तरफ तू ही तू नज़र आए

तेरी खुशबू हो हर तरफ मेरे
मेरी साँसों में ये असर आए

खार चुन लेंगे तेरी राहों से
राह में तेरे बस शजर आए !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on August 1, 2018 at 2:00pm — 7 Comments

जरुरी है--ग़ज़ल

सीखना सिखाना जरुरी है
दिल को मिलाना जरुरी है


मिलने का वक़्त हो न हो
यादों  में  आना  जरुरी है


जो  गलतियां  करे कोई
आईना दिखाना जरुरी है


जुबाँ  भले  न  कह  पाए
एहसास जताना जरुरी है


भूलना इंसानी फितरत है
याद तो दिलाना जरुरी है !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 24, 2018 at 3:00pm — 12 Comments

सीख लिया है- एक ग़ज़ल

बचके चलना सीख लिया है
हमने संभलना सीख लिया है


वक़्त सदा होता ना अच्छा
हमने बदलना सीख लिया है


देख समंदर की लहरों को
हमने मचलना सीख लिया है


दर्द अगर हद से बढ़ जाए
हमने पिघलना सीख लिया है


भाग रही अपनी दुनिया में
हमने ठहरना सीख लिया है


आसमाँ की ख़्वाहिश सबकी
हमने उतरना सीख लिया है !!

Added by विनय कुमार on July 21, 2018 at 4:07pm — 10 Comments

सीख लिया है- एक ग़ज़ल

बचके चलना सीख लिया है
हमने संभलना सीख लिया है


वक़्त सदा होता ना अच्छा
हमने बदलना सीख लिया है


देख समंदर की लहरों को
हमने मचलना सीख लिया है


दर्द अगर हद से बढ़ जाए
हमने पिघलना सीख लिया है


भाग रही अपनी दुनिया में
हमने ठहरना सीख लिया है


आसमान की ख़्वाहिश सबकी
हमने उतरना सीख लिया है !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by विनय कुमार on July 21, 2018 at 4:00pm — 4 Comments

हिचक--लघुकथा

हिचक--

"कभी बेटे को भी गले से लगा लिया कीजिये, वह भी आपके सीने से लगकर कुछ देर रहना चाहता है", रिमी ने गहरी सांस लेते हुए कहा. रमन को सुनकर तो अच्छा लगा लेकिन वह उसे दर्शाना नहीं चाहता था.

"ठीक है, इससे क्या फ़र्क़ पड़ जायेगा. वैसे भी तुम तो जानती हो कि मैं इन सब दिखावों में नहीं पड़ता", रमन ने अपनी तरफ से पूरी लापरवाही दिखाते हुए कहा. अंदर ही अंदर वह जानता था कि इसकी कितनी जरुरत है आजकल के माहौल में, लेकिन एक हिचक थी जो उसे रोकती थी.

"फ़र्क़ पड़ता है, आखिर उसके अधिकतर दोस्त तो अपने…

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Added by विनय कुमार on July 17, 2018 at 6:58pm — 12 Comments

मजदूर- कविता

एक बार फिर कंधे पर,

लैपटॉप बैग लटकाये,

वह अलस्सुब्ह निकल पड़ा.

रात को देर से आने पर,

हमेशा की तरह

नींद पूरी नहीं हुई थी,

जलती हुई आँखों,

और ऐठन से भरे शरीर,

को घसीटता हुआ वह,

जल्दी जल्दी बस स्टॉप की तरफ

भागने की कोशिश कर रहा था.

कल रात की बॉस की डांट,

उसे लाख चाहने के बाद भी,

भुलाते नहीं बन रही थी.

कहाँ सोचा था उसने पढ़ते समय,

कि यह हाल होगा नौकरी में.

कहाँ वह सोचता था कि उसे,

मजदूरी नहीं करनी…

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Added by विनय कुमार on May 1, 2018 at 4:30pm — 2 Comments

स्टेटस--लघुकथा

"सबको इस रिक्शे पर बैठना है और मन किया तो घूमना भी है", एक तरफ से आती आवाज सुनकर रवि ने उधर देखा. शादी के उस मंडप में वह विशिष्ट दर्जा प्राप्त व्यकि था, आखिर दामाद जो ठहरा. सामने कुछ दूर पर खड़ा रिक्शा दिख गया, वही सामान्य रिक्शा था, बस उसको खूब सजा दिया गया था. साफा बांधे एक आदमी भी वहां खड़ा था जिसे लोगों को घुमाने की जिम्मेदारी दी गयी थी. रवि ने वहां से जाने की कोशिश की लेकिन पत्नी ने हाथ पकड़ लिया "अरे सब बैठ रहे हैं तो हमको भी बैठना पड़ेगा".

बारी बारी से लोग रिक्शे पर बैठते, कोई थोड़ा…

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Added by विनय कुमार on February 19, 2018 at 3:14pm — 10 Comments

यक़ीन क़ायम है—लघुकथा

“लगता है आपने दुनियाँ नहीं देखी और खबरों से दूर रहते हैं आप”, ज़हूर भाई ने अपनी बात तेज आवाज मे कही, गोया वह आवाज के ज़ोर पर ही अपनी बात सही बताना चाहते थे. वह नए नए पड़ोसी बने थे रफ़ीक़ के और हाल मे ही हुए कौमी दंगों पर बहस कर रहे थे. रफ़ीक़ उनको लगातार समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वक़्त का तक़ाज़ा इन चीजों से ऊपर उठकर सोचने का है.

“आप जितनी तो नहीं देखी लेकिन कुछ तो देखी ही है ज़हूर भाई, दुनियाँ इतनी भी बुरी नहीं है. आज भी इंसानियत जिंदा है और मोहब्बत का खुलूस कायम है”, रफ़ीक़ ने मुसकुराते हुए जवाब…

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Added by विनय कुमार on February 13, 2018 at 4:41pm — 8 Comments

जरुरत- लघुकथा

आज वह बहुत खुश थी, सारे गुलाब बिक गए थे. रात काफी हो चली थी और एक आखिरी गुलाब को पास रखकर वह पैसे गिनने में तल्लीन थी तभी एक कार उसके पास रुकी.

"वो गुलाब देना", अंदर से एक नवयुवक ने आवाज लगायी. उसने एक उड़ती हुई नजर युवक पर डाली और उसकी बात अनसुना करते हुए वापस पैसे गिनने में लग गयी.

"अरे सुना नहीं क्या, वो गुलाब तो दे, कितने पैसे देने हैं", युवक ने इस बार थोड़ी ऊँची आवाज में कहा, उसके स्वर में झल्लाहट टपक रही थी.

उसने सर उठाकर युवक को देखा और पैसे अपनी थैली में रखते हुए बोली…

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Added by विनय कुमार on February 8, 2018 at 6:00pm — 14 Comments

जुनून--लघुकथा

बस आज की रात निकल जाए किसी तरह से, फिर सोचेंगे, यही चल रहा था उसके दिमाग में| दिन तो किसी तरह कट गया लेकिन रात तो जैसे हर अनदेखा और अनसोचा डर सामने लेकर आ खड़ी होती है और आज की रात तो जैसे अपनी पूरी भयावहता के साथ बीत रही थी| डॉक्टर की दी हुई हिदायत कि आज की रात बहुत भारी है, उसे रह रह कर डरा देती थी|

कितनी बार उसने दबे स्वर में मना भी किया था कि जिंदगी के प्रति इतने लापरवाह भी मत रहो| लेकिन राजन ने कभी सुनी थी उसकी, बस एक बड़े ठहाके में उसकी हर बात उड़ा देता| "जिंदगी उनका वरण करती है जो…

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Added by विनय कुमार on January 17, 2018 at 3:00pm — 4 Comments

मुआफ़ी- लघुकथा

धीरे धीरे सभी जुटने लगे थे, नजदीक के रिश्तेदार भी लगभग आ गए थे| उनके मोबाइल पर लगातार बेटे का फोन आ रहा था कि बस पहुँच रहे हैं माँ के अंतिम दर्शन करने के लिए| आंगन में विभा का शरीर सफ़ेद कपड़े में लपेट कर रखा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे वह हमेशा से ऐसी ही शांति में जी रही थी| उन्होंने एक बार फिर समय देखा और पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ चुपचाप बैठ गए|

बाहर गाड़ियों की आवाज़ आयी और फिर थोड़ी देर में रोने धोने की आवाज़ भी आने लगी| बेटा परिवार सहित अंदर आया और फिर उनका विलाप शुरू हो गया| उनको…

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Added by विनय कुमार on January 12, 2018 at 8:39pm — 10 Comments

कशमकश--लघुकथा

अजीब सी कशमकश में गुजर रहे थे हरी बाबू पिछले एक हफ्ते से, एक तरफ उनके खुद के विचार तो दूसरी तरफ एक छोटी सी चीज पर उनकी असहमति| बेटी अर्पिता पिछले दो साल से नौकरी में थी और उन्होंने कह रखा था कि या तो खुद ही शादी कर लो या जहाँ मन हो बता देना, शादी कर देंगे| लेकिन अपने उदार सोच और प्रगतिशील विचारों के बावजूद एक छोटी सी बात वह चाह कर भी किसी से नहीं कह पाए थे|

वैसे तो उनके सभी मज़हब और जातियों के दोस्त थे और उन्होंने कभी उनमें फ़र्क़ भी नहीं किया| लेकिन पिछले कई वर्षों से धर्म के आधार पर हो…

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Added by विनय कुमार on December 20, 2017 at 6:30pm — 4 Comments

पिंजरा--लघुकथा

जैसे ही आशिया घर में घुसी उसे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ आयी. चारो तरफ देखते हुए उसकी नज़र किनारे मेज पर रखे एक पिंजरे पर पड़ी जिसमें कई सारे रंगीन पक्षी कूद फांद कर रहे थे. उसने उछलते हुए पिंजरे की तरफ रुख किया और जब तक वह पिंजरे के पास पहुंचती, सामने से अब्बू आते दिखे.

"कितने प्यारे पक्षी हैं न आशिया, तुम्हारे लिए ही लाये हैं मैंने", अब्बू ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.

आशिया ने हँसते हुए अब्बू को शुक्रिया कहा और पिंजरे के पास खड़ी हो गयी. एक से एक खूबसूरत और प्यारे पक्षी, उसे लगा…

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Added by विनय कुमार on December 14, 2017 at 6:12pm — 12 Comments

अपना चेहरा- लघुकथा

"सरकार, आज अगर एक बार देख लिया जाए तो हमका तसल्ली होइ जात", लच्छू की आवाज़ बहुत घबराई लग रही थी| उसने एक बार सर ऊपर उठाया और लच्छू को गौर से देखा, दोनों हाथ जोड़े हुए उसका चेहरा बेहद कातर लग रहा था|

"किसको देखना था लच्छू?, लच्छू कई बार किसी के लिए कह रहा था, इतना तो याद आया लेकिन किसके लिए कहा था, याद नहीं आया| कितनी बार तो टाल चुके हैं इसको, फिर भी!

"सरकार, पतोहू कई दिन से बीमार है और लड़का बाहर काम करत है, एक बार आप देख लेते तो ठीक हो जात", लच्छू की आवाज़ में अब थोड़ी उम्मीद जग…

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Added by विनय कुमार on October 17, 2017 at 3:48pm — 7 Comments

परंपरा और गुलामी--

"कल की फोटो देखी मैंने, बहुत सुंदर दिख रही थीं आप", उसने ऑफिस में अपनी कलीग से कहा|

"अरे कल वो व्रत था ना, उसमें तो सजना बनता था", मुस्कुराते हुए वह बोली|

"अच्छा, तो आप भी यह सब मानती हैं, मुझे लगा कि आप आजाद ख्याल की हैं", उसके लहजे में व्यंग्य था या सहानुभूति, वह समझ नहीं पायी|

"ऐसी बात नहीं है, मैं तो बस परंपरा निभाने के लिए ऐसा कर लेती हूँ| वैसे इसी बहाने थोड़ी शॉपिंग भी हो जाती है, पति से गिफ्ट भी मिल जाता है", थोड़ी सफाई सी देती हुए वह बोली|

"मतलब परंपरा की आड़ में सब कुछ…

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Added by विनय कुमार on October 10, 2017 at 11:46am — 6 Comments

अपने अपने जज़्बात- लघुकथा

"हाय मम्मी, कैसी है, तबियत ठीक है ना तुम्हारी और दवा रोज ले रही हो ना", रोज के यही सवाल होते थे सिम्मी के और उसका रोज का जवाब।

"अब वीडियो काल किया है तो देख ही रही है मुझे, मैं एकदम ठीक हूँ। अच्छा अभी कितना बज रहा है वहाँ पर", उसने अपनी दीवाल घड़ी को देखते हुए पूछा।

"रोज तो बताती हूँ, बस साढ़े तीन घंटे आगे चलती है घड़ी यहाँ, अभी शाम के सिर्फ सात ही बजे हैं"।

"मुझे याद नहीं रहता, हमेशा उलझ जाती हूँ कि हमारी घड़ी आगे है या तुम्हारी। और मेहमान आए कि नहीं अभी, छोटू कैसा है", उसने भी…

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Added by विनय कुमार on October 9, 2017 at 5:54pm — 12 Comments

दर्द का एहसास--

"मैडम, इस तरह कैसे चलेगा, बिना छुट्टी लिए आप गायब हो जाती हैं| यह ऑफिस है, ध्यान रखिये, पहले भी आप ऐसा कर चुकी हैं", जैसे ही वह ऑफिस में घुसी, बॉस ने बुलाकर उसे झाड़ दिया| उसने एक बार नजर उठाकर बॉस को देखा, उसकी निगाहों में गुस्सा कम, व्यंग्य ज्यादा नजर आ रहा था| बगल में बैठी बॉस की सेक्रेटरी को देखकर उसको उबकाई सी आ गयी|

लगभग तीन महीने हो रहे थे उसको इस ऑफिस में, पूरी मेहनत से और बिना किसी से लल्लो चप्पो किये वह अपना काम करती थी| ऑफिस में कुछ महिलाएं भी थीं जिनके साथ वह रोज लंच करती थी…

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Added by विनय कुमार on September 27, 2017 at 1:00am — 12 Comments

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