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आशीष यादव's Blog (65)

तेरा ख़याल

हसीं इतना है तेरा ख्याल, पल भर के लिए दिल से निकलता नहीं|

पहले जैसे भी हम जी लिए पर, जीवन अब तेरे बिन देखो चलता नहीं||



वो गज़ब का समय था हमारे लिए, तेरी पहली नज़र का, पहले प्यार का|

सारी बाते बिछड़ जायेंगी एक दिन , कैसे भूलूंगा दिन तेरे इकरार का||

तेरे पहलू में रहने की जिद पे अड़ा, लाख बहलाऊं ये दिल बहलाता नहीं|

हसीं इतना है तेरा ख़याल...............................................



तेरे गेसुओं की घनी छाँव में, मेरा डेरा बने, एक बसेरा बने|

मेरी हर…

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Added by आशीष यादव on September 4, 2010 at 10:30am — 8 Comments

डिग्री और दुनियाँ

एक दिन मै अकेले बैठा था, वीरान जगह, सुनसान जगह|

और सोच रहा था ये दुनिया आखिर किस चीज से चलती है||



याद आया दिन कालेज का तब, मार पड़ी थी जब मुझको|

ये बता न पाया था  धरती, डिग्री पे झुक के चलती है||



मुझे मार पड़ी थी उस दिन भी, घंटा गणित का था शायद|

कुछ डिग्री कोण न बना सका, ये बात अभी तक खलती है||



इक चंचल चितवन की लड़की, जो प्यार मुझी…

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Added by आशीष यादव on August 21, 2010 at 11:30pm — 8 Comments

मेरी ग़ज़ल

गमन पे उसके एक आवाज़ लगाई न गई |
हाय ये व्यथा, ये कथा जो सुनाई न गई||

लौट जाती वो, मुझे था यकीं, इस बात का भी|
हाय मज़बूरी,ज़बां पे बात ही लाई न गई||

पलों के साथ में कई सदियाँ जी लीं हमने|
एक छोटी बात की अलख, हमसे जगाई न गई||

कह दूँ मैं तो कहीं रुसवा न मुझसे हो बैठे|
ह्रदय की बात मुझसे, उसको बताई न गई||

अब तो मुझसे दूर, बहुत दूर जा चुकी है वो|
'दाग' पर याद की लगी ऐसी की मिटाई न गई||

आशीष यादव "राजा रुपर्शुखम"

Added by आशीष यादव on August 18, 2010 at 7:55pm — 5 Comments

पंद्रह अगस्त पर

कल पंद्रह अगस्त है. मैंने सोचा की कुछ लिखूं इस स्वतंत्रता दिवस पर. लिखने बैठा तो कुछ या पंक्तियाँ बनी मेरे मस्तिस्क और ह्रदय में. मई उनको आपके सामने रख रहा हूँ|



वर्षों से थी पराधीनता से भारत माता ग्रस्त|

समय सुहाना सैंतालिस का, आया पंद्रह अगस्त||



आया पंद्रह अगस्त हुआ था नया सवेरा|

देश हुआ आज़ाद, फिरंगियों ने भारत छोड़ा||



गैरों की मर्ज़ी से था, जो चलता जीवन|

अपने बस में हुआ, खिल गए वन औ' उपवन||



खिंजा हटी बागों से, आया था बहार का… Continue

Added by आशीष यादव on August 14, 2010 at 5:40pm — 5 Comments

जागरण गीत

आज मै आप लोगो की सेवा में एक बार फिर अपनी रचना प्रस्तुत रहा हूँ. मुझे उम्मीद है की ये आप लोगो को पसंद आएगी. और आप लोगो का आशीर्वाद रूपी कमेन्ट अवश्य मिलेगा.

जागरण गीत



पूरब में जगी है भोर, पंछी करने लगे है शोर,

मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,



जग जाएगा तो पायेगा जग में सुन्दर अमूल खजाना,

सोकर खोकर समय चूकि फिर रह जाए पीछे पछताना .

समय के रहते जाग, की अपना हिस्सा ले तू आज,

मुसाफिर तू भी जग जा, हो मुसाफिर तू भी जग जा,



अपना सब… Continue

Added by आशीष यादव on August 12, 2010 at 3:08pm — 9 Comments

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