2212---2212---2212---2212 |
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देखो मुझे फिर ये कहो- क्या आज भी इंसान हूँ |
क्यों इस तरह जतला रहें मैं कब कोई भगवान हूँ |
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ईमान का ऐलान हूँ तूफ़ान का फरमान… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 25, 2015 at 11:00am — 36 Comments
212---1222---212---1222 |
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धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती |
ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती |
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ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 9:17am — 38 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 10:30am — 49 Comments
1222---1222---1222---1222
हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा
यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।
कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन
बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा।
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।
लड़ाई कौम की खातिर, करो…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on March 18, 2015 at 4:30am — 31 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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ग़ज़ल से पा रहा हूँ मैं, ग़ज़ल ही गा रहा हूँ मैं |
ग़ज़ल के सर नहीं बैठा, ग़ज़ल के पा रहा हूँ मैं |
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किसी की नीमकश आँखों का तारा हूँ जमानों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 11:00pm — 35 Comments
212 - 212 - 212 - 212 |
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जिंदगी में नहीं कोई गम क्या करें |
दिख रही बस खुशी मुहतरम क्या करें |
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टूटकर इश्क भी हमसे कब हो सका … |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 11, 2015 at 3:00pm — 30 Comments
2212 / 2212 / 2212 / 2212----- (इस्लाही ग़ज़ल) |
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दिल खोल के हँस ले कभी, ऐसी कहाँ तस्वीर है |
यारो चमन की आजकल इतनी कहाँ तकदीर… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 8, 2015 at 9:30am — 43 Comments
22--22—22--22--22—2 |
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दिल्ली से जो बासी रोटी आई है |
अपने हिस्से में केवल चौथाई है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 3, 2015 at 9:30am — 31 Comments
212 / 1222 / 212 / 1222 |
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वाकिया हुआ कैसे बाद ये जमानों के |
मस्ज़िदी भजन गाये मंदिरी अजानों के |
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हौसला चराग़ों का यूं चला तबीयत… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 22, 2015 at 11:30pm — 31 Comments
22 / 22 / 22 / 22 / 22 / 2 |
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बादल जब बेज़ार किसी से क्या कहना |
फिर कैसी बौछार किसी से क्या कहना |
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ख़ामोशी,… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 18, 2015 at 10:30am — 32 Comments
121--22--121--22--121--22--121—22
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हमें इज़ाज़त मिले ज़रा हम नई सदी को निकल रहे है
जवाँ परिंदे उड़ानों की अब, हर इक इबारत बदल रहे हैं।*
गुलाबी सपने उफ़क में कितने मुहब्बतों से बिखर गए है
नया सवेरा अज़ीम करने, किसी के अरमां मचल रहे है।
मिले थे ऐसे वो ज़िन्दगी से, मिले कोई जैसे अजनबी से
हयात से जो मिली है ठोकर जरा - जरा हम संभल…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on February 17, 2015 at 2:30pm — 31 Comments
22--22--22--22--22--22--22--2 |
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हँसते - हँसते रो लेता हूँ, रोते - रोते हँसता हूँ |
कोई मुझसे ये मत पूछो आखिर क्यों मैं ऐसा हूँ |
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आईने-सी… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 10, 2015 at 11:00pm — 45 Comments
2122—2122—2122—212 |
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खेत की, खलिहान की औ गाँव की ये मस्तियाँ |
कितनी दिलकश हो गई है बाजरे की बालियाँ |
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वो कहन क्यूं खो गई जो महफिलों को लूट… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 5, 2015 at 11:00pm — 27 Comments
2122—2122—2122—212 |
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रात भर संघर्ष कर जब थक गई ये आँधियाँ |
एक दस्तक दी हवा ने, खुल गई सब खिड़कियाँ |
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जो गया , जाना उसे था , कौन जो ठहरा… |
Added by मिथिलेश वामनकर on February 4, 2015 at 3:00am — 41 Comments
वो अलसाया-सा इक दिन
बस अलसाया होता तो कितना अच्छा
जिसकी
थकी-थकी सी संध्या
जो गिरती औंधी-औंधी सी
रक्ताभ हुआ सारा मौसम
ऐसा क्यों है.....
बोलो पंछी?
ऐसा मौसम,
ऐसा आलम
लाल रोष से बादल जिसके
और
पिघलता ह्रदय रात का
अपना भोंडा सिर फैलाकर अन्धकार पागल-सा फिरता
हर एक पहर के
कान खड़े है
सन्नाटे का शोर सुन रहे
ख़ामोशी के होंठ कांपते
कुछ कहने को फूटे कैसे…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 26, 2015 at 12:30am — 32 Comments
121 - 22 / 121 - 22 / 121 - 22 / 121 – 22 |
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बड़े ही जोरो से इस ज़हन में अज़ब धमाका हुआ फरिश्तो |
फिज़ा में हलचल, हवा में दिल का गुबार छाया हुआ फरिश्तो |
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किसे पड़ी है… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2015 at 2:19am — 36 Comments
मेरा जीवन पी गया, तेरी कैसी प्यास । |
पनघट से पूछे नदी, क्यों तोड़ा विश्वास ।१। |
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मन में तम सा छा गया, रात करे फिर शोर। |
दिनकर जो अपना नहीं, क्या संध्या क्या भोर ।२।… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 10:30pm — 33 Comments
1 2 2 |
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भला क्या ? |
बुरा क्या ? |
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खुदी से |
मिला क्या… |
Added by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2015 at 4:26am — 13 Comments
नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ
विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ
सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता
मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता
विचारशील कामना प्रसंग से…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 11:30pm — 34 Comments
पति-पत्नी डाइनिंग टेबल पर लंच के लिए बैठे ही थे कि डोरबेल बजी।
पति ने दरवाज़ा खोला तो सामने ड्राइवर बल्लू था। उसने गाड़ी की साफ़-सफाई के लिए चाबी मांगी तो उसे देखकर पति भुनभुनाये :
“आ गए लौट के गाँव से ... जाते समय पेमेंट मांगकर कह गए थे कि साहब, गाँव में बीबी बच्चों का इन्तजाम करके, दो दिन में लौट आऊंगा और दस दिन लगा दिए…”
क्रोधित मालिक के आगे निष्काम और निर्विकार भाव से, स्तब्ध खड़ा ड्रायवर, बस सुनता रहा-
“अब फिर बहाने…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2015 at 2:54am — 40 Comments
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