अब से मैं पूरा ध्यान रखूंगी मुकुल का, बहुत परेशान हो जाते हैं आजकल, उसके दिमाग में पूरे दिन यही घूम रहा था| जब से बेटी पैदा हुई थी, उसे एकदम व्यस्त रख रही थी, समय तो जैसे पंख लगा कर उड़ जाता था| बेचारे मुकुल खुद ही सब कुछ करते रहते थे, कभी कुछ कहते नहीं थे लेकिन उसे तकलीफ होती थी| आखिर कभी भी मुकुल को कुछ करने जो नहीं दिया था उसने|
"कपडे आयरन नही हैं, ओह फिर याद नहीं रहा", कहते हुए आज सुबह जब मुकुल ने सिकुड़े कपडे पहने तो उसे थोड़ी खीझ हुई| जल्दी से उसने नाश्ता निकालने का सोचा तभी बच्ची…
Added by विनय कुमार on September 23, 2017 at 12:00am — 10 Comments
जैसे ही वह ऑफिस से लौटी एक बार फिर वही नज़ारा उसके आँखों के सामने था| कितना भी समझा ले, न तो बेटा समझता था और न ही बाप, दोनों अपने आप को ही समझदार मानते थे| उसके घर में घुसते ही कुछ पल के लिए दोनों खामोश हो गए और उसकी तरफ फीकी मुस्कान फेंकते हुए देखने लगे|
"कब समझोगे तुम विक्की, मान क्यों नहीं लेते कि वह तुमसे ज्यादा समझते हैं| आखिर पिता हैं तुम्हारे, तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है उन्होंने", कहते हुए बैग उसने टेबल पर रखा और सोफे पर अधलेटी हो गयी| राजन ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा, अक्सर…
ContinueAdded by विनय कुमार on September 21, 2017 at 5:00pm — 4 Comments
दिल जिन्हें ढूंढे, वो हालात कहाँ
खाली दिल में वो है जज्बात कहाँ
बस एक रस्म निभा देते हैं
अब वो पहले सी मुलाक़ात कहाँ
लॉन शहरों में खूबसूरत हैं
गांव की उसमें मगर बात कहाँ
वक़्त बस यूँ ही गुजर जाता है
अब वो दिन और अब वो रात कहाँ
कभी शामिल थे जिनकी हर शै में
उनके अब ऐसे, खयालात कहाँ !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on August 3, 2017 at 12:30pm — 12 Comments
घर के बाहर ही जब उसने अपने चचेरे भाई रग्घू को देखा तो उसका माथा ठनका| आज यह घर क्यों आया था, जरूर कुछ गड़बड़ होगी, वर्ना पिताजी को गुजरे इतने साल हो गए, कभी हाल पूछने भी नहीं आया था| उसकी मुस्कराहट को नजरअंदाज करते हुए वह भागती हुई घर में घुसी|
"माँ, माँ, कहाँ है तू", सामने माँ नजर नहीं आयी तो वह बेचैन हो गयी| जल्दी से उसने पिछले कमरे में प्रवेश किया तो माँ को खाट पर बैठे पाया|
"तू यहाँ बैठी है और जवाब भी नहीं दे रही है, मैं तो घबरा गयी थी| आज रग्घू क्यों आया था घर, तूने तो नहीं…
Added by विनय कुमार on July 2, 2017 at 12:30am — 4 Comments
"लकवा मार गया है, अब बिस्तर पर ही रहना पड़ेगा इसको| शायद मालिश और दवा से कुछ फायदा हो और चलने फिरने लायक हो जाए कुछ दिन में", डॉक्टर ने एक कागज पर कुछ दवा लिखा और बाहर निकलने लगा|
"हस्पताल में भर्ती कराने से कुछ फायदा होगा क्या डॉक्टर साहब", बिटिया ने पूछा|
"कह नहीं सकता, हो भी सकता है", कहकर डॉक्टर निकल गया|
"माँ, बापू को हस्पताल ले चलते हैं, शायद ठीक हो जाए", बिटिया ने माँ की तरफ देखते हुए कहा|
उसने एक बार खाट पर पड़े लल्लू को देखा और फिर अपनी कमर में बंधे गांठ से कुछ…
Added by विनय कुमार on June 27, 2017 at 11:41pm — 10 Comments
खाला अपने रसोई में लगी हुई थीं, अब रमजान महीने के बस दो ही दिन तो बचे थे और अलीम बड़के शहर से आज ही आ रहा था. सबेरे सबेरे उन्होंने पड़ोसी मियां की दूकान से एक बार फिर लगभग गिड़गिड़ाते हुए सामान ख़रीदा था. अभी पिछले महीने का भी पूरा पैसा दिया नहीं था उन्होंने तो उम्मीद कम ही थी कि सामान मिल ही जायेगा. लेकिन एक तो उन्होंने बेटे के आने की खबर सुना दी थी और दूसरे आने वाली ईद, मियां ने थोड़े ना नुकुर के बाद सामान दे दिया.
"देखो खाला, इस बार अगला पिछला सब हिसाब चुकता हो जाना चाहिए, मेरे भी बाल बच्चे…
Added by विनय कुमार on June 24, 2017 at 1:03pm — 10 Comments
बीस साल बाद आज जोखन लौटा था गाँव, कितनी बार घरवालों ने बुलाया, कितने प्रयोजन पड़े, लेकिन जोखन ने कभी भी गाँव की तरफ जाने का नाम नहीं लिया था| कितनी बार लोगों ने पूछा, लेकिन कभी उसने वजह नहीं बताया| आज गाँव में आकर उसे सब कुछ बदला बदला लग रहा था, कुछ भी पहचाना नहीं लग रहा था| पिताजी से हाल चाल करके वह गाँव में घूमने निकला और कुछ ही देर में गाँव के बाहर खेतों में खड़ा था| खेत भी अब खेत कम, प्लाट ज्यादा लग रहे थे| खेतों को पार करता हुआ वह बगल के गाँव के रास्ते पर चल पड़ा| कभी पगडण्डी जैसा रास्ता…
ContinueAdded by विनय कुमार on February 26, 2017 at 9:00pm — 2 Comments
"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो", बालों में अंगुलियां फिराते हुए उसने कहा|
"हूँ", कहते हुए वह खड़ी होने लगी|
"थोड़ी देर और बैठो ना", उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया| वह वापस बिस्तर पर बैठ गयी|
"सच में तुमको देखे बिना चैन नहीं मिलता", एक बार फिर उसने उसका हाथ पकड़ा|
वह उसको लगभग अनदेखा करते हुए बैठी रही| थोड़ी देर बाद वह फिर से उठने लगी तो उसने कहा "तुम जवाब क्यों नहीं देती, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता?
"लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी", उसने एक गहरी नजर डाली और…
Added by विनय कुमार on January 18, 2017 at 9:51pm — 14 Comments
"सर, मिश्राजी का फोन आया था, थोड़ी देर में किसी के साथ आ रहे हैं", जैसे ही वह ऑफिस में आया, सेक्रेटरी ने आकर बताया|
"ठीक है, अंदर भेजने से पहले एक बार मुझसे पूछ लेना", उसने कहा लेकिन उसके चेहरे पर थोड़ी तिक्तता फ़ैल गयी| मिश्राजी उसके अध्यापक थे, जब वह हाई स्कूल में था और पिछले महीने ही वह उनसे मिला था| इस नए स्थान पर पोस्टिंग के समय तो उसे उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह से कोई पुराना परिचित मिल जायेगा, लेकिन मिश्राजी को उसने देखते ही पहचान लिया था| दो बार पहले भी वह आ चुके थे यहाँ लेकिन कभी…
Added by विनय कुमार on January 10, 2017 at 7:58pm — 16 Comments
"आखिर क्यों नहीं कर लेती उससे शादी, जब साथ साथ रहती हो तो दिक्कत क्या है", उसने घर से निकलते हुए बेटी को टोका| बेटी ने एक बार उसकी तरफ देखा और फिर आगे जाने लगी|
"अभी तुमको नहीं समझ में आ रहा है, कुछ साल बाद समझोगी| आखिर कुछ तो सोचो भविष्य के लिए", उसने फिर से समझाने की कोशिश की|
अबकी बार बेटी पलटी और वापस कमरे में आ गयी| उसके पास आकर उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लिया और प्यार से बोली "तुम्हें क्या दिक्कत है माँ, हम लोग खुश हैं और जब तक सब ठीक है, साथ रहेंगे"|
"लेकिन कोई बंधन तो…
Added by विनय कुमार on December 21, 2016 at 9:33pm — 14 Comments
अदालत में बैठे बैठे उनकी आंख लग गयी, अभी तक जज साहब नहीं आये थे और लगता था कि आज भी नहीं आएंगे| लगभग साल होने को आये थे लेकिन मामला पहली सुनवाई के बाद आगे नहीं बढ़ पाया था| पता नहीं और कितने महीने या साल लग जायेंगे इसमें, उनको खुद को समझ में नहीं आ रहा था|
शादी के कुछ ही हफ्ते बाद पत्नी ने शिकायत करना शुरू कर दिया और एक दिन वह अपना सूटकेस लेकर निकल गयी| शाम को जब उन्होंने फोन किया तो उसने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह उनके साथ नहीं रह सकती| उन्होंने समझाने की बहुत कोशिश की, उसके घर भी गए लेकिन न…
Added by विनय कुमार on December 8, 2016 at 6:16pm — 8 Comments
"आज फिर तेरा मुँह सूखा सूखा लग रहा है, लगता है आज भी कुछ नहीं खाया तूने", माँ ने उसको देखते ही टोका|
"बहुत भूख लगी है माँ, कुछ खिला पहले", उसने बात को टालने की गर्ज से कहा|
"ठीक है तू हाथ मुँह धो ले, कुछ गर्मागर्म बनाती हूँ तेरे लिए", माँ तुरंत रसोई की तरफ लपकी और फिर उसका बोलना चालू हो गया "पता नहीं कब अकल आएगी इस छोरे को"|
जल्दी से गरम पकोड़े उसके सामने रखते हुए वह बोली "चाय भी बना रही हूँ, तू आराम से खा| वैसे आज तूने पैसों का क्या किया, टिफ़िन तो तू ले ही नहीं जाता"|
"बहुत…
Added by विनय कुमार on December 5, 2016 at 6:59pm — 14 Comments
ठहाकों की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था, आज बहुत सालों बाद रीमा का सहपाठी रोहन उससे मिलने आया था| पिछले दो घंटे से पिछले १५ सालों की बातें दोनों एक दूसरे को बता रहे थे और साथ पढ़े बाकी दोस्तों के बारे में भी एक दूसरे को बताते जा रहे थे| रीमा ने रमेश को भी बता दिया था कि ऑफिस से जल्दी आ जाना और उसने हामी भर दी थी|
अचानक बात का सिलसिला कॉलेज के जमाने के शौक के बारे में चल निकला| रोहन ने एक गहरी सांस ली और अपने सर पर हाथ फेरते हुए बोला "यार, तुम्हारी एक आदत मुझे अब भी नहीं भूलती| कितना चिढ़ती थी…
Added by विनय कुमार on November 23, 2016 at 7:00pm — 4 Comments
"अरे जल्दी घर आओ. माँजी वापस आ गयी हैं| मैंने पूछा भी लेकिन कुछ कहा नहीं उन्होंने", पत्नी का फोन सुनते ही उसका माथा ठनका|
"ठीक है, तुम देखो, मैं जल्दी आता हूँ", कहकर उसने फोन रख दिया| उसको भी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक माँ घर क्यों आ गयी| अभी तीन महीने पहले ही तो उनको वृद्धाश्रम में छोड़ कर आया था|
इसी उधेड़बुन में डूबा हुआ वह जल्दी जल्दी घर पहुंचा| पत्नी भी अंदर कुछ परेशान खड़ी थी, एक तो वैसे ही नोट बंदी के चलते हालत पतली थी, उसपर माँ भी आ गयी|
"माँ, सब ठीक तो है वहाँ", और क्या…
Added by विनय कुमार on November 17, 2016 at 8:06pm — No Comments
देखो तुम भी गुनगुनाओगे जब बात समझ में आएगी
देखो तुम भी मुस्कुराओगे जब बात समझ में आएगी
कोई भी अकेला कैसे करे, इस अंधियारे से सबको दूर
तुम साथ चले ही आओगे, जब बात समझ में आएगी
गर लक्ष्य बड़ा हो जीवन में, देनी पड़ती है क़ुरबानी
खुशियों के दीप जलाओगे, जब बात समझ में आएगी
हर काम सही से हो जाए, क्यूँ रखते लोगों से उम्मीद
अपने भी फ़र्ज़ निभाओगे, जब बात समझ में आएगी
इस वक़्त अगर ना बन पाए इस तब्दीली का इक हिस्सा
आगे चलकर…
Added by विनय कुमार on November 17, 2016 at 3:32pm — 8 Comments
मौसम तो कमोबेश वही था लेकिन घर का माहौल कुछ बदला बदला सा लग रहा था| ऑफिस से घर आने में लगभग एक घंटा लग जाता था इसलिए इस एक घंटे में देश दुनियां में क्या हुआ, इसका पता शर्माजी को घर पहुँचने पर ही लगता था| लेकिन घर पहुँचते ही टी वी खोलने का मतलब शेर के मुंह में हाथ डालना होता था| शर्माजी का घर पहुँचने का समय वैसे ही कुछ ऐसा था कि श्रीमतीजी का दिमाग चढ़ा ही रहता था और उसपर कहीं गलती से पहुँचते ही टी वी खोल दिया तो फिर पता नहीं क्या क्या सुनना पड़ जाता था| उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ, घर पहुँचते…
Added by विनय कुमार on November 11, 2016 at 10:24pm — 4 Comments
चिरौंजीलाल बड़े पेशोपेश में थे, एक बार तो उनको लगा कि उनकी लुगाई ने बात बस यूँ ही कह दी, शायद बिना ज्यादा कुछ सोचे ही| लेकिन जब उन्होंने गौर से सोचा तो चेहरे पर चिंता की लकीरें दौड़ गईं कि भला मजाक में भी कोई ऐसा कहता है|
हफ़्तों क्या महीनों से ही घर में चर्चा चल रही थी और उनको बार बार याद दिलाया जा रहा था| वह एक कान से सुनते और दूसरे से निकाल देते, आखिर शादी के १५ वर्षों में इतना तो उन्होंने सीख ही लिया था| जब उनको लगता कि लुगाई समझ रही है कि वह अनसुना कर रहे हैं तो हाँ हूँ भी कह देते|…
Added by विनय कुमार on October 20, 2016 at 6:23pm — 4 Comments
पूरा दिन धूप में गुजर गया रग्घू का, लेकिन आज ठीक ठाक दिहाड़ी मिल गई थी उसको| आजकल मौसम कुछ बदल सा गया है, इस समय तो ठण्ड शुरू हो जाती थी और काम करने में दिक्कत नहीं होती थी, रग्घू सोचते हुए घर की तरफ चला| ठेला चलाना वैसे तो काफी श्रमसाध्य होता है, लेकिन जब घर पर पत्नी और बच्चे इंतज़ार में हों तो कोई और रास्ता भी नहीं बचता| मंडी के पास से गुजरते हुए उसकी नज़र किनारे बैठे एक बुढ़िया पर पड़ी जो केले बेच रही थी| केले पिलपिले और काले हो गए थे लेकिन काफी सस्ते मिले तो उसने एक दर्जन खरीद लिए|…
ContinueAdded by विनय कुमार on October 18, 2016 at 4:24pm — 4 Comments
'मेरे लिए क्या लायी, मेरे लिए क्या है", बच्चे हल्ला मचा रहे थे| बड़े भी कुछ कह तो नहीं रहे थे लेकिन उनकी भी नज़रें उसी की तरफ टिकी हुई थीं| नौकरी शुरू करने के दो महीने बाद श्रुति अपने कस्बे वाले घर लौटी थी और इस बीच घर के अधिकतर सदस्यों ने उससे कुछ न कुछ लाने की फरमाईस कर दी थी| अपनी सीमित तनख़्वाह में भी उसने सबके लिए कुछ न कुछ ले लिया था| एक किनारे बैठी उसकी दादी उसे बेहद प्यार भरी नज़रों से देख रही थी और इंतज़ार कर रही थीं कि कब सब लोग हटें तो वह अपनी पोती को लाड करें| श्रुति उनकी सबसे ज्यादा…
ContinueAdded by विनय कुमार on October 13, 2016 at 8:07pm — 8 Comments
रग्घू के यहाँ तेरहवीं का भोज खाने के बाद गांव के कुछ बुजुर्ग वहीँ दरवाजे पर बने कउड़ा पर हाथ सेंकने बैठ गए| जाड़े का दिन था और ठंढ भी कुछ ज्यादा थी| कुछ लोग खाने के बारे में बात करने लगे, किसी को अच्छा लगा था तो किसी को साधारण| जोखू चच्चा को हमेशा से ये ब्रम्ह भोज खराब लगता था और उन्होंने कई बार इसके विरोध में बोला भी था लेकिन किसी ने उसपर ध्यान नहीँ दिया| रग्घू की माली हालात अच्छी नहीँ थी, उसपर पिता की बिमारी ने उसे और कंगाल कर दिया था| अब ये भोज का खर्च, आज जोखू चच्चा ने सोच लिया कि बात…
ContinueAdded by विनय कुमार on October 12, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
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